वक्फ संशोधन कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
वक्फ संशोधन कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
सुबह वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष जमीयत-उलमा-ए-हिंद की याचिका का उल्लेख किया और कहा कि इसमें वक्फ संशोधन कानून को चुनौती दी गई है।
वक्फ को लेकर सुप्रीम कोर्ट में किस-किसने दर्ज की याचिका?
उन्होंने कहा कि इस संबंध में कई याचिकाएं दाखिल हुई हैं इस पर जल्द सुनवाई की जरूरत है। सिब्बल के अलावा वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और निजाम पाशा ने भी अन्य याचिकाकर्ताओं की याचिकाओं का उल्लेख करते हुए जल्द सुनवाई का आग्रह किया। इसके अलावा इंडियन मुस्लिम लीग, अमानतुल्ला खान और गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दर्ज की है।
सीजेआई ने सिब्बल से क्या कहा?
पहली याचिका कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने दाखिल की थी। इसके बाद एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने याचिका दाखिल की।जमीयत-उलमा-ए-हिंद मौलाना अरशद मदनी ने भी याचिका दाखिल की है उनकी याचिका में अंतरिम मांग की गई है जिसमें कानून को लागू करने पर रोक मांगी गई है। एक याचिका समस्त केरला जमीअतुल उलमा ने भी दाखिल की है।
क्या है कानूनी सिद्धांत?
- मगर यह जरूर है कि मामले पर सुनवाई के बाद अगर सुप्रीम कोर्ट से विस्तृत फैसला आता है तो देश में धार्मिक दान की संपत्तियों के प्रबंधन पर स्पष्ट व्यवस्था आ सकती है।
- वक्फ संशोधन कानून 2025 के अदालत पहुंचने पर जरूरी हो जाता है कि किसी कानून पर विचार के तय कानूनी सिद्धांतों को देखा जाए।
- इलाहाबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट किसी भी कानून की वैधानिकता पर मुख्यत: तीन आधारों पर विचार करता है।
क्या है तीन परीक्षा?
पहला कि जिस व्यक्ति या संस्था ने कानून पारित किया है उसे इसका अधिकार नहीं था यानी विधायी सक्षमता (लेजिस्लेटिव कांपीटेंस), दूसरा वह कानून संविधान के किसी प्रविधान या मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो अथवा संविधान की मूल भावना के खिलाफ हो। तीसरा मनमाने ढंग से कानून पारित होना यानी आर्बीट्रेरीनेस।
याचिकाओं का मुख्य आधार क्या है?
इन तीन आधारों पर अगर वक्फ संशोधन कानून को देखा जाए तो विधायी सक्षमता की कसौटी पर संसद से घंटो बहस के बाद यह पारित हुआ है। दूसरा आधार संवैधानिक प्रविधानों के उल्लंघन का है। कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में मुख्य आधार यही है कि यह कानून मुसलमानों के संवैधानिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
याचिका में क्या दलील दी गई?
दलील है कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में सभी को धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक मामलों के प्रबंधन की आजादी मिली हुई है, जबकि इस नये कानून में मुसलमानों की इस आजादी में हस्तक्षेप होता है और सरकारी दखलंदाजी बढ़ती है। याचिकाओं में वक्फ बोर्ड के सदस्यों में गैर मुस्लिमों को शामिल करने का भी विरोध किया गया है।
कानून धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं
माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट में होने वाली बहस में धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार ही केंद्र में होगा और सुप्रीम कोर्ट जो व्यवस्था देगा वही लागू भी होगी। लेकिन कानून पर सरकार के तर्क को देखा जाए तो उसके अनुसार, यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं है बल्कि संपत्तियों के प्रबंधन से संबंधित है।
व्यवस्थित सुधारों की आवश्यकता
सरकार कानून को जायज ठहराते हुए तर्क दे रही है कि वक्फ प्रबंधन में चुनौतियों का समाधान करने के लिए व्यवस्थित सुधारों की आवश्यकता थी जिसके लिए वक्फ संशोधन कानून 2025 लाया गया। इससे पारदर्शिता, जवाबदेही और कानूनी निरीक्षण सुनिश्चित करके, वक्फ संपत्तियां गैर-मुसलमानों और अन्य हित धारकों के अधिकारों का उल्लंघन किये बगैर अपने इच्छित धर्मार्थ उद्देश्यों की पूर्ति कर सकती हैं।