उत्तरप्रदेश में रमजान-ईद पर चेतावनी,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
यूपी में रमजान के आखिरी शुक्रवार पर सड़कों पर नमाज रोकने और राज्य भर में विशेष सतर्कता बरतने की जो खबरें प्रचारित की गईं और जिस तरह की सख्ती अपनाई गई उसे लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं.एक महीने तक चलने वाले रमजान के बाद मनाया जाने वाला मुसलमानों का प्रमुख त्योहार त्योहार ईद उल-फितर अब नजदीक है.रमजान का आखिरी जुमा यानी शुक्रवार बीत गया.मस्जिदों और ईदगाहों में हमेशा की तरह नमाज पढ़ी गई.भीड़ ज्यादा होने के कारण कई बार सड़कों पर भी नमाज पढ़ी जाती है,
इस बार भी पढ़ी गई.अलविदा जुमे की नमाज शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गई.मुस्लिम धर्मगुरुओं ने भी लोगों से शांति और सौहार्द बनाए रखने की अपील की थी और प्रशासनिक सख्तियों पर अमल करने को कहा था.लेकिन जिस तरह के प्रशासनिक फरमान जारी किए गए थे, पूरे प्रदेश में हाई अलर्ट जारी किया गया था, सुरक्षा को लेकर विशेष निर्देश दिए गए थे, उसे लेकर मुस्लिम समाज में खासी नाराजगी है.लोगों का कहना है कि ये सख्ती देखकर लगता है जैसे कोई त्योहार नहीं बल्कि साजिश रची जा रही हो.तमाम जगहों पर अलविदा की नमाज पर ड्रोन से निगरानी की गई.सड़कों और सार्वजनिक जगहों पर नमाज पढ़ने पर प्रतिबंध लगाया ही गया था.
नमाज पढ़ने पर एफआईआर दर्ज करना और फिर रद्द करना, क्या है पूरा मामला और क्या कहता है कानूनमुसलमानों को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा: इकरा हसनडीडब्ल्यू से बातचीत में यूपी के कैराना से समाजवादी पार्टी की सांसद इकरा हसन का कहना है कि ईद की सिर्फ दस मिनट की नमाज से किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए, और ना ही आम लोगों को दिक्कत होती है,
लेकिन असल मुद्दा ये है कि सरकार सिर्फ मुसलमानों को टारगेट करना चाहती है.इकरा हसन कहती हैं, “एक तरफ हमारे पीएम “सौगात-ए-मोदी” की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ मुसलमानों के नमाज पढ़ने पर इतनी सख्ती और निगरानी रखी जा रही है.मुसलमानों के लिए तो सबसे बड़ी सौगात यही होगी कि उन्हें उनका हक दिया जाए.2014 से ही यह स्थिति चल रही है.मुसलमानों को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है,
अपमानित किया जा रहा है.सरकार की इस तानाशाही का जवाब जनता देगी”दरअसल, यूपी के संभल, अलीगढ़, मेरठ जैसे कई शहरों में पुलिस ने सड़क पर नमाज पढ़ने पर रोक लगाई थी और गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी तक दी थी.मेरठ में पुलिस ने चेतावनी दी थी कि आदेश के उल्लंघन पर कानूनी कार्रवाई होगी, आपराधिक मामले भी दर्ज किए जा सकते हैं,
पासपोर्ट और लाइसेंस भी रद्द किए जा सकते हैं.धार्मिक आजादी रिपोर्ट को लेकर भारत ने अमेरिकी आयोग पर उठाए सवालबीजेपी के सहयोगी दलों ने की चेतावनी की आलोचनाइस तरह की चेतावनी का ना सिर्फ मुस्लिम समुदाय के लोगों और विपक्ष दलों के नेताओं ने बल्कि बीजेपी के सहयोगी दलों तक ने विरोध किया.केंद्रीय मंत्री और आरएलडी नेता जयंत चौधरी ने इस तरह के आदेशों की तुलना “ऑरवेलियन स्टेट” से की.जयंत चौधरी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए लिखा है,
“ऑरवेल के 1984 जैसा पुलिसिया रवैया!”ऑरवेलियन स्टेट का मतलब एक ऐसी स्थिति या शासन प्रणाली से है जो लोगों की अत्यधिक निगरानी करती हो, दमन करती हो और व्यक्तिगत आजादी का विरोध करती हो.यह शब्द जॉर्ज ऑरवेल के उपन्यास 1984 से प्रेरित है, जिसमें एक तानाशाही सरकार जनता की हर गतिविधि पर नजर रखती है, झूठे प्रचार यानी प्रोपेगैंडा का सहारा लेती है और विचारों को नियंत्रित करने की कोशिश करती है.
बंच ऑफ थॉट्स में साफतौर पर कहा गया है कि भारत में मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बन कर रहना स्वीकार करना होगा.आजादी के बाद भारत सेक्युलर देश बना लेकिन उस विचारधारा को मानने वाले लोग आज भी ये स्थापित करने में लगे हैं कि सेक्युलरिज्म अच्छा विचार नहीं है”डॉक्टर उत्कर्ष सिन्हा आगे कहते हैं, “पहले ये होता था कि इस विचारधारा को मानने वाली पार्टी इसे वोट तक कैलकुलेट करती थी यानी वो एक राजनीतिक फोर्स थी.
लेकिन अब राजनीतिक हिन्दुत्व पर उन्मादी हिन्दुत्व हावी हो गया है.कांवड़ यात्रा पर फूल चढ़ाना हो या फिर नमाज पर पासपोर्ट कैंसल कर देना, ये सब कानून-व्यवस्था तो है नहीं.यह तो सिर्फ संदेश है”पूर्व आईपीएस अधिकारी और आजाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर ने तो मेरठ पुलिस के अधिकारियों पर मुकदमा करने की चेतावनी दी है.उन्होंने कहा कि पुलिस का बयान धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है.डीडब्ल्यू से बातचीत में अमिताभ ठाकुर कहते हैं,
“पुलिस का ये कहना कि सड़क पर नमाज पढ़ने वालों के पासपोर्ट जब्त कर लिए जाएंगे ताकि वो मक्का-मदीना नही जा सकें, ये सब धर्म के आधार पर लोगों का अपमान है”दरअसल, चाहे कांवड़ यात्रा को सुविधाएं देने की बात हो या फिर नमाज पर सख्ती की बात हो, सरकार से ज्यादा कई बार नौकरशाही में बैठे अधिकारी सक्रिय दिखते हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ये स्थिति देश के लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष ढांचे के लिए कहीं ज्यादा खतरनाक है क्योंकि सरकारें आती-जाती रहती हैं लेकिन अगर नौकरशाही का चरित्र इस तरह बदलता रहा तो ये व्यवस्था के लिए ठीक नहीं है.डॉक्टर उत्कर्ष सिन्हा इसकी वजह बताते हैं,
“दरअसल, नौकरशाही भी इसी समाज से निकली है और समाज का एक वर्ग हमेशा रहा है जो इस तरह की गतिविधियों से प्रभावित रहा है.उसे ये सब चीजें अच्छी लगती हैं.और जब उसे राजनीतिक स्तर पर भी संकेत और प्रोत्साहन मिलने लगते हैं तो उसका मनोबल बढ़ जाता है”.
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