पानी से घिरी धरती पर पानी की कमी.
लापरवाही है बड़ा कारण.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
प्यासे कौवे की कहानी तो हम सबने पढ़ी ही है। घड़े की तली में मौजूद पानी को पीने के लिए उसने किस सूझ-बूझ का परिचय दिया और अपना गला तर करने में सफल हुआ, अब वही कहानी इंसानों के साथ दोहराई जा रही है। जिस तरह से धरती की कोख में सुरक्षित पेयजल का दोहन हो रहा है, उसमें प्रदूषक तत्व मिल रहे हैं, हमारा बेपानीदार भविष्य स्पष्ट दिख रहा है। पेयजल संकट बारहमासी हो चुका है। जहां उपलब्ध है तो दूषित मिल रहा है। इंसानों को होने वाली बीमारियों में बड़ा हिस्सा इसी दूषित जल का है। दुनिया में करीब जितना भी ताजा जल मौजूद है, वह भूजल के रूप में है। इसी से पीने, सिंचाई, साफ-सफाई, कृषि, उद्योग और पारिस्थितिकी तंत्र की जरूरतें पूरी होती हैं।
भूजल हमारे पास उपलब्ध ऐसा अनमोल संसाधन है जो हमें दिखता नहीं, हमारे पैरों के नीचे मौजूद होकर हमारे सर्वांगीण ऊध्र्वाधर और क्षैतिज विकास में सहायक होता है। दरअसल सदियों से यही भूजल हमारे अस्तित्व का आधार रहा है। हर साल धरती पर बारिश के रूप में इतना पानी बरस जाता है कि उससे कई पृथ्वी के लोगों की
प्यास और जल जरूरतें पूरी की जा सकती है। लेकिन पिछली सदी से हम लोगों ने धरती के भीतर मौजूद इस संसाधन का इतना दोहन किया कि उसकी मात्रा संकुचित होती चली गई। बदले में बारिश से धरती पर आए पानी को उसकी कोख तक पहुंचाने में भी विफल रहे। एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा। धरती पर मौजूद ज्यादातर जलस्नोत ताल, तलैया, पोखर, झील और छोटी सहायक नदियों का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है।
पहले बारिश का पानी इन्हीं जलस्नोतों में जमा होकर सालभर धरती की कोख में रिस-रिसकर जाता रहता था और भूजल स्तर को ऊपर करने के साथ उसे निर्मल भी बनाता रहता था। अब न वे जलस्नोत रहे और धरती के एक बड़े हिस्से का क्रीटीकरण भी हो चुका है जो भूजल के स्वत: रिचार्ज होने की प्रक्रिया के आड़े आता है। लिहाजा कम जमा और ज्यादा निकासी के चलते भूजल की स्थिति गंभीर बन चली है।
पानी से घिरी धरती पर पानी की कमी: पृथ्वी के दो तिहाई हिस्से पर पानी होने के बावजूद पानी की कमी की बात कई बार अविश्वसनीय लगने लगती है। इसका कारण है कि पृथ्वी पर उपलब्ध पानी का ज्यादातर हिस्सा नमकीन है और उसे पीने या अन्य गतिविधियों में प्रयोग नहीं किया जा सकता है। यह भी समझें : पानी एक नवीकरणीय स्रोत है। वाष्पीकरण और बारिश के चक्र के माध्यम से पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल खत्म नहीं होता। इसलिए खतरा इस बात का नहीं है कि पृथ्वी पर पानी खत्म हो जाएगा। खतरा यह है कि हमारी जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त साफ पानी होगा या नहीं।
लापरवाही है बड़ा कारण: साफ पानी की कमी में कुछ योगदान जलवायु परिवर्तन के कारण आए बदलावों का है। लेकिन इसमें बड़ी हिस्सेदारी हमारी लापरवाही की है। भूजल का जरूरत से ज्यादा दोहन, नदियों व तालाबों को सूखने देना और साफ पानी के अन्य स्रोतों को इतना प्रदूषित कर देना कि उनका इस्तेमाल ही न किया जा सके।
बढ़ता संकट: नीदरलैंड्स की यूनिवर्सिटी आफ ट्वेंटे के 2016 के एक अध्ययन के मुताबिक, आने वाले समय में दुनिया की करीब चार अरब आबादी को साल में कम से कम एक महीने पानी की गंभीर कमी का सामना करना पड़ेगा। देखा जाए तो कई देशों में ऐसी स्थिति आने भी लगी है।
पृथ्वी पर उपलब्ध कुल मात्रा में से बस इतना ही ताजा पानी है। इसमें से भी दो तिहाई हिस्सा ग्लेशियर और बर्फीली चोटियों के रूप में है। यानी मनुष्य के खाने, पीने, खेती व अन्य कार्यों के लिए उपलब्ध ताजा पानी बमुश्किल एक प्रतिशत है।
सही प्रबंधन में छिपी है कुंजी: पानी की आपूर्ति और संग्रह के ढांचे में ज्यादा निवेश करना होगा। साथ ही खेती को ऐसा बनाना होगा, जिससे उसमें पानी की खपत कम हो। अभी ताजा पानी का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा सिंचाई में प्रयोग हो जाता है। आप तक भोजन पहुंचने में हजारों लीटर पानी की खपत खाने-पीने का सामान खरीदते समय कभी नहीं सोचा होगा कि आप जो खरीद रहे हैं, असल में उत्पादन से लेकर आप तक उसे पहुंचाने की पूरी प्रक्रिया में कितना पानी लग चुका है। वाटर फुटप्रिंट नेटवर्क के अध्ययन के मुताबिक कुछ खाद्य पदार्थों के एक किलोग्राम उत्पादन में वैश्विक स्तर पर खपत होने वाले औसत पानी पर एक नजर:
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