हम भारतीय समस्या के लिए नहीं बल्कि निराकरण के लिए जाने जाते हैं- प्रो.आनंद प्रकाश,कुलपति,म. ग. केंद्रीय विवि. बिहार।
हमारी मौलिक मनीषा का प्रकारान्तर शोध होता है-प्रो. प्रसून दत्त सिंह, अधिष्ठाता, भाषा व मानविकी संकाय।
विश्वविद्यालय में शोध से संबंधित नियमावली बिल्कुल स्पष्ट है- प्रो. संतोष त्रिपाठी, अधिष्ठाता,शोध एवं विकास प्रकोष्ठ।
मेरे लिए विचार सदैव से महत्वपूर्ण रहे है- प्रो. आशीष श्रीवास्तव, अधिष्ठाता, शिक्षा संकाय।
अन्तर विषयक शोध अनिवार्य है-डाॅ अंजनी कुमार श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष,हिंदी।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
स्टूडेंट फॉर हॉलिस्टिक डेवलपमेंट ऑफ ह्यूमेनिटी (शोध) और महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय बिहार के शोध व विकास प्रकोष्ठ के संयुक्त तत्वधान में मंगलवार को चाणक्य परिसर स्थित राजकुमार शुक्ला सभागार में रिसर्च: रूल्स एंड रेगुलेशनस विषय पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया।
सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति डॉ आनंद प्रकाश ने कहा कि आप शोधार्थियों में चिंतन की शक्ति आनी चाहिए, आप अपने को संतुष्ट करने के लिए शोध करते हैं, वह अंतिम समय तक आपके द्वारा होता रहता है। हम भारतीय समाज समस्या के लिए नहीं निराकरण के लिए जाने जाते हैं अतः शोध की गुणवत्ता ही शोधार्थियों की पहचान है, इस पर हमें कार्य करना चाहिए।
अन्तर विषयक शोध अनिवार्य है-डाॅ अंजनी कुमार श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष,हिंदी।
सेमिनार में विषय प्रवर्तन करते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि शोध किसी भी देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है लेकिन हमारे देश में शोध को लेकर स्थिति दयनीय है। भारत में प्रति एक लाख छात्रों में से एक सौ ग्यारह ही शोध के प्रति अग्रसर होते हैं, इसलिए अंतर विषयक शोध अनिवार्य है। इसके लिए विश्वविद्यालय के शिक्षकों को कैसे प्रशिक्षित किया जाए? यह यक्ष प्रश्न है।साथ ही शोध को लेकर शोधार्थियों में जागरूक कैसे लाई जाये, यह भी महत्वपूर्ण विषय है। इसके नियम व विनियम क्या कहते हैं, यह भी शोधार्थियों को समझना आवश्यक है।
हमारी मौलिक मनीषा का प्रकारान्तर शोध होता है-प्रो. प्रसून दत्त सिंह, अधिष्ठाता, भाषा व मानविकी संकाय।
शोध की दशा और दिशा विषय पर अपने उद्बोधन में भाषा एवं मानविकी संकाय के अधिष्ठाता प्रो. प्रसून दत्त सिंह ने कहा की कोई मंदबुद्धि का व्यक्ति भी किसी प्रयोजन के समझे बिना किसी कार्य में प्रवृत्त नहीं होता है। सदैव से यह यक्ष प्रश्न बनता है कि शोध के विषय को हम कैसे चुने? जबकि हमारी मौलिक मनीषा का प्रकारान्तर शोध होता है। आपके शोध की उपादेयता सिद्ध होनी चाहिए। आप ज्ञान के समुद्र से मोती निकालते हैं। हमें स्वयं आत्म परितोष को प्राप्त करना है। भाषा की शुद्धता आवश्यक है। शोधार्थियों को मदद करनी चाहिए, कार्य करने पर जोर देनी चाहिए। अपनी शोध को मौलिकता प्रदान करनी चाहिए।
विश्वविद्यालय में शोध से संबंधित नियमावली बिल्कुल स्पष्ट है- प्रो. संतोष त्रिपाठी, अधिष्ठाता,शोध एवं विकास प्रकोष्ठ।
सेमिनार में शोध एवं विकास प्रकोष्ठ के अधिष्ठाता प्रो.संतोष त्रिपाठी ने अपने उद्बोधन में बताया कि शोध से संबंधित महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय की नियमावली बिल्कुल स्पष्ट है यह अध्यादेश-35 के द्वारा यूजीसी-2016 के नियम व विनियम को पूर्णत स्वीकार करता है।
अपने विश्वविद्यालय में नामांकन लिखित परीक्षा के द्वारा लिया जाएगा। यह परीक्षा एनटीए या विश्वविद्यालय स्वयं करा सकता है। प्रश्न पत्र 100 प्रश्रों का होगा जिसमें 50 प्रतिशत शोध से और 50 प्रतिशत आपके अमुक विषय से होंगे। उम्मीदवारों को कुल 50 प्रतिशत अंक प्राप्त करने होंगे, उस छात्र को उत्तीर्ण माना जाएगा और साक्षात्कार के लिए बुलाया जाएगा। इसमें संबंधित विभाग के शिक्षक साक्षात्कार लेंगे। 70 प्रतिशत लिखित परीक्षा से व 30 प्रतिशत साक्षात्कार में प्राप्त अंक को मिलाकर नामांकन हेतु मेरिट सूची तैयार किया जाएगा।
साक्षात्कार के समय ही आपसे एक संक्षिप्तिका मांगी जाएगी यानी जिस विषय पर आप काम करना चाहते हैं। नामांकन हो जाने के बाद आपको कोर्स वर्क करना है, इसमें 8 से लेकर 16 क्रेडिट होगा। कोर्स वर्क पूरा हो जाने के बाद फिर आपको एक संक्षिप्तिका प्रस्तुत करनी होगी, जो आपके विभागाध्यक्ष एवं शिक्षकों के सामने होगा। अब यहां पर आपके शोध निर्देशक तय होंगे, इसके बाद शोध सलाहकार समिति के समक्ष इस संक्षिप्तका को प्रस्तुत किया जाएगा,इसमें जो सुझाव आएंगे उसे पूर्णतः लागू करना होता है।
प्रत्येक छह महीने पर एक बार शोध सलाहकार समिति की बैठक होगी, अगर आपके शोध कार्य में प्रगति से वाह्य शिक्षक एवं अन्य शिक्षक संतुष्ट नहीं हैं तो आपको शोध कार्य से मुक्त भी किया जा सकता है। आगे शोध प्रबंध तैयार करते समय यूजीसी द्वारा मानित पत्रिका में आपके एक शोध-पत्र आने चाहिए,साथ ही दो सेमिनार में भाग लेकर उसका प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना है। शोध प्रबंध जमा करने से पहले विभागीय शोध सलाहकार समिति के सामने फिर आपको एक संक्षिप्तिका प्रस्तुत करनी है,क्योंकि आपने चार सौ पृष्ठों के शोध प्रबंध में क्या-क्या किया है, यह संक्षिप्तिका मात्र 15 से 20 पृष्ठों की होगी,जो आपके पूरे शोध प्रबंध का एक सार प्रस्तुत कर रहा होगा। इसके बाद सभी के सामने आपको प्रस्तुति के लिए तैयार रहना है। आपके शोध प्रबंध को दो बाह्य शिक्षकों के पास भेजा जाएगा,इस पर प्रतिवेदन आने पर एक बैठक में बाह्य शिक्षक के समक्ष आपके शोध प्रबंध पर चर्चा होगी, प्रश्न होंगे आपको उतर देना होगा, तत्पश्चात आपको उत्तीर्ण किया जाएगा।
मेरे लिए विचार सदैव से महत्वपूर्ण रहे है- प्रो. आशीष श्रीवास्तव, अधिष्ठाता, शिक्षा संकाय।
सेमिनार में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 पर विस्तार से चर्चा करते हुए शिक्षा संकाय के अधिष्ठाता प्रो. आशीष श्रीवास्तव ने कहा कि हम सभी शोधार्थियों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 को अवश्य पढ़ना चाहिए, क्योंकि यह शोधार्थियों की दिशा और दशा को तय करने वाला है। 60 पृष्ठों की इस नीति में 115 बार शोध शब्द का प्रयोग किया गया है यानी शोध इस नीति में भी काफी महत्वपूर्ण है। उसके लिए गुणवत्ता और उत्तरदायित्व आवश्यक है। यह विडंबना ही है कि पिछले 75 वर्षों से हम बुनियादी प्रश्नों से जूझ रहे हैं, इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 समाप्त करने में कारगर साबित होगी। हम अपनी शोध की अवधारणा को स्पष्ट करें, अपने प्रति ईमानदार बने, पूरी लगन के साथ भाषा की शुद्धता का प्रयोग करें। बुनियादी बातों का सदैव ध्यान रखें। क्योंकी मेरे लिए विचार महत्वपूर्ण है।
शोध की गुणवत्ता ही हमारी पहचान है- प्रो. आर्तत्राण पाल,अधिष्ठाता,लाइव साइंस प्रकोष्ठ।
कार्यक्रम में लाइव साइंस के अधिष्ठाता प्रो. आर्तत्राण पाल ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि हम लोग पीएचडी कर रहे हैं शोध नहीं। हम सभी शोधार्थियों यहां शोध करने के लिए आए हैं,हमें अपने समय का भरपूर सदुपयोग करना चाहिए। हमें शोध की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए। आप कहां से शोध कर रहे हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि यह ध्यान देने योग्य है कि आपका शोध कैसा है? आपके शोध की गुणवत्ता कैसी है। हम सभी कोर्स वर्क इस बात के लिए करते हैं कि हमें शोध किस विषय पर और क्यों करना चाहिए जबकि संक्षिप्तिका का मूल अर्थ है पाठ्यक्रम, इसके माध्यम से हम एक पाठ्यक्रम तैयार करते हैं कि हमें अमूक विषय पर क्या कार्य करना चाहते हैं और यह आगे भविष्य में कैसे लाभप्रद होगा?
कार्यक्रम का प्रारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन से हुआ। सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए इस कार्यक्रम के संयोजक व संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डॉ विश्वेश वागमी ने कहा कि आज के इस सेमिनार से सभी शोधार्थियों को अवश्य लाभ होगा। सभी शोधार्थियों को एक मंच पर आकर शोध से संबंधित नियम व विनियम को जान सकेंगे।
वहीं सेमिनार का सफल संचालन कार्यक्रम के सह संयोजक हिंदी विभाग के शोधार्थी मनीष कुमार भारती ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम के सह संयोजक व अंग्रेजी विभाग के शोधार्थी कृष्ण कुमार ने किया।
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