हमने पहली लहर और अपने अतीत के दूसरे अनुभवों से कुछ नहीं सीखा,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
टीकाकरण को लेकर भारत के अनुभव की दुनिया में मिसाल दी जाती है। 1994 में इस देश ने पोलियो उन्मूलन का अभियान शुरू किया और आज देश इस बीमारी से मुक्त घोषित हो चुका है। कोविड महामारी के प्रबंधन में भी इसकी धाक दुनिया में जमी थी जब पहली लहर को अपने अल्प संसाधनों के बावजूद बिना ज्यादा मशक्कत के इसने काबू कर लिया था। पहली लहर के दौरान दुनिया में जमी यह साख दूसरी लहर के प्रबंधन के दौरान बिखरती दिख रही है। होना तो यह चाहिए था कि पहली लहर के अनुभव से दूसरी लहर को अच्छी तरह से संभाला जाता, लेकिन तमाम वजहों ने ऐसा न होने दिया।
संसाधनों की किल्लत: पहली लहर के दौरान भी इनकी किल्लत रही। पहली लहर के शांत होने के बाद जो समय मिला था, उसमें हमें इनकी संख्या बढ़ानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अस्पताल बिस्तरों, टेस्टिंग सुविधा, आइसीयू, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर्स, रेमडेसविर, श्मशान स्थलों की कमी ने इसे अब तक की बड़ी आपदा सरीखा बना दिया। केंद्र और राज्य सरकारें भले ही इसके लिए एक दूसरे पर दोषारोपण करें, लेकिन ये स्याह तस्वीर बताती है कि हमने पहली लहर और अपने अतीत के दूसरे अनुभवों से कुछ नहीं सीखा।
समय रहते नहीं बने सक्षम: किसी महामारी की निगरानी के लिए व्यावहारिक रूप से जाना संक्रमण में वृद्धि बहुत मायने रखती है। पिछले साल नवंबर में मामले कम होने शुरू हुए और इस साल दस मार्च को मामले अपने न्यूनतम स्तर पह पहुंचे। 11 मार्च से इनमें इजाफा शुरू हुआ। दस दिन में ही दोगुने होकर 40 हजार हो गए। अगले ही सप्ताह तन गुना वृद्धि के साथ रोजाना 60 हजार मामले आने लगे। अगले ही एक सप्ताह में चार से पांच गुना वृद्धि के साथ मामलों की संख्या 80 हजार से एक लाख तक पहुंच गई। पांच अप्रैल से रोजाना वृद्धि एक लाख से अधिक हुई और 10 अप्रैल को सात गुनी वृद्धि के साथ मामले 1.45 लाख आने लगे। दस गुना वृद्धि के साथ दो लाख से ज्यादा मामले 15 अप्रैल से होने शुरू हुए। उसके बाद इनकी गुणांक वृद्धि जारी है। मध्य मार्च तक उचित उपचार केंद्र और राज्यों द्वारा दिया जाना शुरू हुआ लेकिन आरोप-प्रत्यारोप भी शुरू हुए। यही मौका था जब हमें एकजुट होकर इससे एक युद्ध की तरह लड़ना था।
मांग और आपूर्ति में रहा अंतर: इस साल जनवरी में जब दो वैक्सीन की अनुमति मिली तब हमने जरूरी खुराक की गणना ठीक से नहीं की। सीरम और भारत बायोटेक को ठोस मैटेरियल मैनेजमेंट तकनीक के तहत तय समयसीमा के भीतर स्पष्ट उत्पादन लक्ष्य दिया जाना चाहिए था। जिसके चलते टीका लगने वाली आबादी का दायरा बढ़ गया है लेकिन आलम यह है कि पहली खुराक लगी आबादी दूसरी खुराक का इंतजार कर रही है।
आबादी के लिहाज से टीकाकरण: आवर वल्र्ड इन डाटा के आंकड़े बताते हैं कि टीकाकरण से पूर्ण सुरक्षित हुई आबादी के लिहाज से भारत 17वें स्थान पर खड़ा है। यहां महज तीन से चार फीसद आबादी को ही टीके की दोनों खुराक लग चुकी हैं। जबकि दस फीसद आबादी को अभी सिर्फ एक टीका ही लग पाया है। इससे ऊपर के 16 देश पहली और दूसरी दोनों खुराकों को देने में इससे आगे हैं। हालांकि सबसे ज्यादा वैक्सीन लगाने के मामले में भारत शीर्ष पर है।
वैक्सीन चयन में देरी: जब कम आबादी वाले अमेरिका और ब्रिटेन सरीखे देशों ने अनुमन्य कंपनियों से तय समयसीमा और स्पष्ट उत्पादन लक्ष्य के साथ वैक्सीन की मांग रख रहे थे तो हम इस प्रयास में बहुत पीछे खड़े थे। हालांकि हमारे पहले और दूसरे लक्ष्य वाजिब और प्रशंसनीय हैं लेकिन जब पसंद की वैक्सीन से सार्वभौमिक टीकाकरण के साथ हमें जल्दी आगे बढ़ना चाहिए था।
वैक्सीन बने एकमात्र लक्ष्य: 18 साल से ऊपर की आबादी के टीकाकरण की राह खुल चुकी है। बच्चों को भी शीघ्र इसमें शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही टीकाकरण की सुविधा चौबीस घंटे मुहैया कराई जाए। टीकाकरण में दुनिया की ज्यादा से ज्यादा वैक्सीन को शामिल करके हम मांग को पूरा कर सकते हैं।
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