हमें हार से हतोत्साहित न होकर आत्ममंथन करना चाहिए,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
यह सत्य है कि विगत MLC चुनाव का रिजल्ट हमारे अनुकूल नहीं आया है। इस चुनाव के रिजल्ट से हमारे कुछ भाई-मित्र बहुत ही मर्माहत हैं। मैं भी दुःखी हूँ, बहुत लोग दुःखित हैं। इस तरह का चुनाव परिणाम आने पर एक सच्चे भाजपा समर्थक का दुःखी होना नैसर्गिक है लेकिन दुःखी होने का मतलब उद्वेलित हो जाना और आपा खो देना नहीं होता है। जीत से अति उत्साहित होना तथा हार से बौखला जाना एक परिपक्व कार्यकर्ता की निशानी नहीं है।
बौखलाहट में कुछ लोग सिवान भाजपा के नेता , प्रदेश नेतृत्व तथा सिवान के संगठन को दोषी ठहरा रहे हैं, परिवर्तन की मांग कर रहे हैं। ये सब कर हम अपने-आप को और कमजोर कर रहे हैं।
हार और जीत सिक्के के दो पहलू हैं। हमें हार से हतोत्साहित न होकर आत्ममंथन करना चाहिए तथा संगठन में इस हार की गहराई से समीक्षा होनी चाहिए। यह हार एक अल्पविराम है, पूर्ण विराम नहीं।
शिवमंगल सिंह सुमन जी की एक कविता जिसे हमारे आदरणीय प्रेरणास्रोत अटल बिहारी वाजपेयी जी अक्सर सुनाते थे-
“क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही”
हम शायद भूल रहे हैं कि चंद दिनों पहले हमने अपने दल का 42वां स्थापना दिवस मनाया है। भारतीय जनता पार्टी दो सीट से चलकर आज राष्ट्रीय मानचित्र पर विराजमान है, यह एक बड़ी उपलब्धि है। यह किसी दल के लिए असाधारण उपलब्धि है।
इसलिए कार्यकर्ताओं से आह्वान करता हूँ कि अपने उर्जा और उत्साह को बनाये रखें। हताशा और आपसी छींटाकशी से हम अपने नुकसान को और अधिक बढ़ा लेंगे।
सीवान जनसंघ का गढ़ रहा है,फिर भारतीय जनता पार्टी ।
आकलन है कि आज के दौर में मुख्यतया कारण है –
1-जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा।
2-दल के पदाधिकारी एवं नेताओं में गुटबाजी
3-अन्दरूनी कलह
4-अफवाह फैलाना कि विधानसभा क्षेत्र में विचार धारा की जनप्रतिनिधियों की कम जीत होना।
5-बेहतर कैम्पनिग का अभाव।
6-बहुत दुख होता है , युद्ध के मैदान में अन्दरुनी कलह दिखाना।
7-नेताओं द्वारा एक दूसरे का काट करना। नेतृत्व को सही जानकारी नहीं देना।
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