‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के उपलक्ष्य में पत्र सूचना कार्यालय , पटना द्वारा वेबिनार का आयोजन.
देश में अब तक घटित सभी घटनाओं में सबसे बड़ी घटना थी आजादी की लड़ाई – मुंशी सिंह
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के तहत सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय, पटना द्वारा आज “बिहार के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी” विषय पर एक वेबीनार का आयोजन किया गया।
93-वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी मुंशी सिंह ने वेबिनार को संबोधित करते हुए आजादी की लड़ाई के अपने दिनों के अनुभवों को साझा किया और कहा कि देश में अब तक घटित सभी घटनाओं में सबसे बड़ी घटना थी – आजादी की लड़ाई। 1857 की लड़ाई में मुंशी जी का गांव महाराजगंज इस संघर्ष में एक चर्चित केंद्र था, जो प्रथम राष्ट्रपति श्री राजेंद्र बाबू की कर्मभूमि भी थी।
मुंशी सिंह ने 16 अगस्त 1942 के दिन को याद करते हुए कहा कि शंकर विद्यार्थी व एक अन्य सेनानी ने उन सभी को बताया कि मुंबई में एक सम्मेलन में सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है और गांधी जी के द्वारा दिया गया नारा ‘करो या मरो’ को अमल में लाने का वक्त आ गया है। साथ ही विद्यार्थियों को यह निर्देश दिया गया कि वे थाना और रेलवे स्टेशन को जला दें. घटनाक्रम के दौरान पुलिस की गोली से महाराजगंज के सात लोग शहीद हो गए.
वेबीनार को संबोधित करते हुए प्रख्यात इतिहासकार एवं खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी,पटना के पूर्व निदेशक डॉ इम्तियाज अहमद ने देश की आजादी में मुख्य भूमिका निभाने वाले बिहार के चार सेनानियों पीर अली, राजकुमार शुक्ला, मजहर उल हक, ब्रजकिशोर और तारा रानी श्रीवास्तव का जिक्र किया.
उन्होंने कहा- भारत की स्वतंत्रता में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वालों में से कईयों के नाम भुला दिए गए हैं, तो कुछ को कभी कभार हीं याद किया जाता है। उन्होनें कहा कि आजादी तो हमें मिल चुकी है लेकिन आजादी की लड़ाई लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों के आदर्श को अपनाने की जरूरत है। साथ ही जरूरत है गुमनान नायकों को उचित सम्मान देने की। भारत छोड़ो आंदोलन की बात करते हुए उन्होंने कहा कि जब आंदोलन शुरू होने से पहले ही नेताओं को जगह-जगह कैद कर लिया गया तब तारा रानी श्रीवास्तव ने इस आन्दोलन में बहुत बड़ी भूमिका निभाई।
उनके पति झंडा उठाने के क्रम में शहीद हो गए थे। उन्होनें अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा कि 1942 की में पटना सचिवालय के बाहर शहीद हुए 7 छात्रों के नाम को आज की तारीख में इतिहास के विद्यार्थी भी नहीं जानते है। कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के जरिये हम अपने वीर स्वतंत्र सेनानियों की कुर्बानी को याद कर सकेंगे।
अतिथि वक्ता के रूप में वेबीनार को संबोधित करते हुए गांधी सत्याग्रह संग्रहालय मोतिहारी के संस्थापक एवं सचिव चंद्रभूषण पांडेय ने कहा कि स्वतंत्रता की लड़ाई में चंपारण का अतुलनीय योगदान है। इसकी वजह यह है कि 1917 में महात्मा गांधी द्वारा चंपारण से ही सत्याग्रह शुरू किया गया था। आजादी की लड़ाई में चंपारण के कई स्वतंत्र सेनानी हैं, जिनमें मुख्य हैं- राजकुमार शुक्ला व मजहरूलहक। श्री पांडे ने चंपारण के गुमनाम सेनानियों का जिक्र करते हुए बत्तख मियां के बारे में बताया कि अंग्रेजी हुकूमत बत्तख मियां के जरिए गांधी जी की हत्या करवाना चाहते थे, लेकिन बत्तख मियां ने उनकी इस साजिश में शामिल होने से साफ़ इनकार कर दिया। बत्तख मियां को सम्मान देते हुए मोतिहारी रेलवे स्टेशन के मुख्यद्वार का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
प्रेस इंफोर्मेशन ब्यूरो और रिजनल आउटरिच ब्यूरो के अपरमहानिदेशक शैलेश कुमार मालवीय ने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि देश की आजादी के 75 साल पूरे होने के अवसर पर देश भर में साल भर आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। आयोजन के जरिए इतिहास के पन्नों को खंगाला जाएगा और आजादी के गुमनाम योद्धाओं को सामने लाने का काम किया जाएगा ताकि आज की युवा पीढी अपने स्वतंत्रता सेनानियों को जानें और समझें।
पीआईबी के निदेशक दिनेश कुमार ने कहा कि बिहार के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों को जानना बहुत जरूरी है। उन्होनें कहा इन नायकों से हमें उस समय के माहौल को जानने का अवसर प्राप्त होगा। वेबिनार का संचालन पीआईबी के सहायक निदेशक संजय कुमार ने किया।
आभार-पत्र सूचना कार्यालय
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय
भारत सरकार, पटना