चकमा और हाजोंग समुदाय का क्या मामला है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने अपने एक आदेश में गृह मंत्रालय और अरुणाचल प्रदेश सरकार को राज्य से चकमा और हाजोंग समुदाय के लोगों की कथित नस्लीय प्रोफाइलिंग और स्थानांतरण के खिलाफ छह सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

  • इसके अलावा गृह मंत्रालय और अरुणाचल प्रदेश सरकार दोनों को “यह सुनिश्चित करने हेतु निर्देशित किया गया है कि चकमा एवं हाजोंग लोगों के मानवाधिकार सभी तरीकों से सुरक्षित हों।”
  • विदित हो कि दोनों समुदायों के सदस्य कथित तौर पर घृणा अपराध, पुलिस अत्याचारों और मानवाधिकारों से वंचित रहे हैं।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य को चकमा और हाजोंग लोगों को नागरिकता देने का निर्देश दिया था, लेकिन इसे अभी तक पूर्णतः लागू नहीं किया गया है।
      • वर्ष 1996 में दिये गए एक निर्णय में न्यायालय ने कहा था कि “राज्य के भीतर रहने वाले चकमा समुदाय के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की जाएगी”।
    • इन आदेशों के आलोक में और यह देखते हुए कि चकमा/हाजोंग समुदाय के अधिकांश सदस्य राज्य में ही पैदा हुए थे तथा शांति से रह रहे हैं, अगस्त 2021 में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री की घोषणा कि चकमा/हाजोंग समुदाय के लोगों को राज्य के बाहर स्थानांतरित कर दिया जाएगा, पूर्णतः अनुचित थी।
    • उसके बाद चकमा डेवलपमेंट फाउंडेशन ऑफ इंडिया (सीडीएफआई) ने अवैध जनगणना के माध्यम से अरुणाचल प्रदेश के 65,000 चकमा और हाजोंग आदिवासियों की नस्लीय प्रोफाइलिंग के खिलाफ एनएचआरसी से तत्काल हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया क्योकि राज्य से उनका निर्वासन/निष्कासन/स्थानांतरण 31 दिसंबर, 2021 से शुरू होने वाला था (बाद में जनगणना की योजना को हटा दिया गया था)। 
      • नस्लीय प्रोफाइलिंग सरकार या पुलिस गतिविधि है जिसमें लोगों की जाँच के लिये उनकी पहचान करने हेतु नस्लीय और सांस्कृतिक विशेषताओं का उपयोग करना शामिल है।
  • विशेष जनगणना के मुद्दे:
    • चकमा संगठनों ने कहा कि जनगणना उनके जातीय मूल के कारण दो समुदायों की नस्लीय रूपरेखा के अलावा और कुछ नहीं थी एवं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 व भारत द्वारा अनुमोदित नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय के अनुच्छेद 1 का उल्लंघन है।
      • अनुच्छेद 14 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को भारत के क्षेत्र में कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा।
      • अक्तूबर 1966 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 मार्च को नस्लीय भेदभाव के उन्मूलन के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषित किया।
  • चकमा और हाजोंग:
    • मिज़ोरम और त्रिपुरा में बौद्ध चकमाओं की एक बड़ी आबादी है जबकि हिंदू हाजोंग ज़्यादातर  मेघालय के गारो हिल्स एवं आस-पास के क्षेत्रों में निवास करते हैं।
    • अरुणाचल प्रदेश के चकमा और हाजोंग तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान एवं वर्तमान बांग्लादेश के चटगांँव पहाड़ी क्षेत्रों से आए हुए प्रवासी हैं।
    • 1960 के दशक में कर्णफुली नदी पर कप्टई बांँध से विस्थापित होकर चकमा और हाजोंग ने भारत में शरण मांगी तथा वर्ष 1964 से 1969 तक अरुणाचल प्रदेश के दक्षिणी एवं दक्षिण-पूर्वी हिस्सों में राहत शिविरों में आकर बस गए।
      • उनमें से अधिकांश वर्तमान अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग ज़िले में निवास करते हैं।

Lushai-hills

  • नागरिकता की स्थिति:
    • 65,000 चकमा और हाजोंग लोगों  से लगभग 60,500 नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 3 के तहत जन्म से नागरिक हैं, जिनका जन्म 1 जुलाई, 1987 से पहले हुआ है, या इस तिथि से पहले पैदा हुए लोगों के वंशज के रूप में हैं।
      • वर्ष 1996 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद शेष 4,500 जीवित प्रवासियों के आवेदनों पर आज तक कार्रवाई नहीं की गई है।
    • वर्ष 2019 का नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, जिसने वर्ष 1955 के अधिनियम की दो धाराओं में संशोधन किया, का चकमा-हाजोंग समुदाय से कोई संबंध नहीं है, क्योंकि उन्हें वर्ष 1960 के दशक में भारत संघ द्वारा स्थायी रूप से बसाया गया था।
    • चूँकि 95% प्रवासियों का जन्म ‘नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी’ या अरुणाचल प्रदेश में हुआ था, इसलिये बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन-1873, जिसके तहत राज्य में आने वाले बाहरी लोगों के लिये इनर लाइन परमिट अनिवार्य है, उन पर लागू नहीं होता है।

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