विश्व ओज़ोन दिवस पर भारत की उपलब्धियाँ क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने हाल ही में 29वाँ विश्व ओज़ोन दिवस मनाया, जो ओज़ोन परत के क्षय के गंभीर मुद्दे और इससे निपटने के वैश्विक प्रयासों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये समर्पित एक वार्षिक कार्यक्रम है।
विश्व ओज़ोन दिवस:
- ओज़ोन और संबंधित अभिसमय का परिचय:
- पृथ्वी की सतह से 10 से 40 किलोमीटर ऊपर समताप मंडल में स्थित ओज़ोन परत हमें हानिकारक पराबैंगनी विकिरण (UV Radiation) से बचाती है।
- यह सुरक्षात्मक परत, जिसे स्ट्रैटोस्फेरिक ओज़ोन या अच्छी ओज़ोन के रूप में जाना जाता है, मोतियाबिंद और त्वचा कैंसर जैसे प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों को रोकती है तथा कृषि, वानिकी और जलीय जीवन की रक्षा करती है।
- हालाँकि मानव निर्मित ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों के कारण समताप मंडल में ओज़ोन का क्षय हुआ है।
- इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा कार्यवाही की आवश्यकता महसूस की गई, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1985 में वियना कन्वेंशन और उसके बाद वर्ष 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल हुआ।
- पृथ्वी की सतह से 10 से 40 किलोमीटर ऊपर समताप मंडल में स्थित ओज़ोन परत हमें हानिकारक पराबैंगनी विकिरण (UV Radiation) से बचाती है।
- विश्व ओज़ोन दिवस का उद्देश्य:
- विश्व ओज़ोन दिवस प्रत्येक वर्ष 16 सितंबर को मनाया जाता है। यह वर्ष 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने का स्मृति दिवस है, जो एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संधि है और इसका उद्देश्य ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों (ODS) के उत्पादन एवं खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना है।
- वर्ष 2023 की थीम: “मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: ओज़ोन परत को ठीक करना और जलवायु परिवर्तन को कम करना” (Fixing the Ozone Layer and Reducing Climate Change)।
- विश्व ओज़ोन दिवस प्रत्येक वर्ष 16 सितंबर को मनाया जाता है। यह वर्ष 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने का स्मृति दिवस है, जो एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संधि है और इसका उद्देश्य ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों (ODS) के उत्पादन एवं खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना है।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का कार्यान्वयन: भारत की उपलब्धियाँ:
- जून 1992 में इस पर हस्ताक्षर करने के साथ ही भारत ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को लागू करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है:
- चरणबद्ध सफलता: भारत ने 1 जनवरी, 2010 तक नियंत्रित उपयोग के लिये क्लोरोफ्लोरोकार्बन, कार्बन टेट्राक्लोराइड, हेलोन्स, मिथाइल ब्रोमाइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म जैसे ODS को सफलतापूर्वक चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया।
- हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFC) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना: HCFC को वर्तमान में चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा रहा है, जिसके पहले चरण को वर्ष 2012 से वर्ष 2016 तक पूरा कर लिया गया है और दूसरे चरण को वर्ष 2024 के अंत तक जारी रखा जाएगा।
- कटौती लक्ष्य हासिल करना: भारत ने 1 जनवरी, 2020 तक HCFC में निर्धारित 35% की तुलना में 44% की कमी हासिल करके अपने लक्ष्य को पार कर लिया है।
- इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP): मार्च 2019 में लॉन्च किया गया ICAP कूलिंग मांग को कम करने, वैकल्पिक रेफ्रिजरेंट में बदलाव, ऊर्जा दक्षता बढ़ाने और तकनीकी उन्नति पर केंद्रित है।
- इसका लक्ष्य मौजूदा सरकारी कार्यक्रमों के साथ तालमेल के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों को अधिकतम करना है।
नोट: मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) को शामिल करने हेतु किगाली संशोधन किया गया, जिसे भारत ने सितंबर 2021 में अनुमोदित किया। यह संशोधन वर्ष 2032 से HFC खपत और उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से कम करने की भारत की योजना के अनुरूप है।
ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन:
- ट्रोपोस्फेरिक (या ज़मीनी स्तर) ओज़ोन या खराब ओज़ोन एक अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक है जो वायुमंडल में केवल घंटों या हफ्तों तक रहता है।
- इसका कोई प्रत्यक्ष उत्सर्जन स्रोत नहीं है, बल्कि यह एक यौगिक है जो वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (Volatile Organic Compounds- VOC) के साथ सूर्य के प्रकाश और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOX), जो बड़े पैमाने पर मानव गतिविधियों के कारण उत्सर्जित होते हैं, की परस्पर क्रिया से बनता है, इसमें मीथेन भी शामिल है।
- क्षोभमंडलीय ओज़ोन के निर्माण को रोकने की रणनीतियाँ मुख्य रूप से मीथेन में कमी और कार, विद्युत संयंत्रों एवं अन्य स्रोतों से उत्पन्न होने वाले वायुमंडलीय प्रदूषण के स्तर में कटौती पर आधारित हैं।
- गोथेनबर्ग प्रोटोकॉल की स्थापना वर्ष 1999 में अम्लीकरण और ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन का कारण बनने वाले प्रदूषकों को नियंत्रित करने के लिये की गई थी।
- यह सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, अमोनिया और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों सहित वायु प्रदूषकों को लेकर सीमा निर्धारित करता है जो मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिये खतरनाक हैं।
- पार्टिकुलेट मैटर (PM) और ब्लैक कार्बन (PM के एक घटक के रूप में) को शामिल करने तथा वर्ष 2020 के लिये नई प्रतिबद्धताओं को शामिल करने हेतु इसे वर्ष 2012 में अपडेट किया गया था।
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