प्रोजेक्ट चीता के प्रथम वर्ष की क्या उपलब्धियां है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

प्रोजेक्ट चीता, भारतीय वनों में अफ्रीकी चीतों की पुनःवापसी का भारत का एक महत्त्वाकांक्षी प्रयास है जो कि सितंबर 2022 में आरंभ किया गया था, एक वर्ष पूर्ण कर चुका है।

  • परियोजना के अंतर्गत चार मामलों में अल्पकालिक सफलता हासिल करने का दावा किया है: जिसमें  “दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से लाए गए चीतों में से 50% जीवित रहनाहोम रेंजों की स्थापनाकुनो में शावकों का जन्म” एवं स्थानीय समुदायों के लिये राजस्व सृजन।

प्रोजेक्ट चीता के प्रथम वर्ष के व्यापक परिणाम: 

  • वनों में इनका अस्तित्व: 
    • चीता पुनः वापसी परियोजना के अनुसार, चीते, जो जंगल में कुल 142 महीनों के लिये लाये गए थे, ने संयुक्त रूप से 27 महीने से भी कम समय बिताया।
    • धात्री, साशा, सूरज, उदय, दक्ष और तेजस उन छह चीतों में से थे, जो कार्यात्मक वयस्क आबादी में परियोजना की 40% की गिरावट के परिणामस्वरूप मारे गए थे।
      • इसके अतिरिक्त, भारत में चार शावकों का जन्म हुआ जिनमें से तीन की मृत्यु हो गई और चौथे को कैद करके पाला जा रहा है।
  • होम रेंज की स्थापना:
    • इसका लक्ष्य चीतों के लिये कूनो में घरेलू क्षेत्र स्थापित करना था।
      • नामीबिया से आयातित केवल तीन चीते- आशा, गौरव और शौर्य – जंगल में तीन महीने से अधिक समय तक जीवित रहने में सक्षम थे। लेकिन जुलाई 2023 के बाद वे बोमा या बाड़ों तक ही सीमित रहे।
    • जिस कारण कूनो नेशनल पार्क में “होम रेंज” की सफल स्थापना के बारे में संदेह है।
  • प्रजनन सफलता:
    • कार्य योजना का उद्देश्य जंगल में चीतों का सफल प्रजनन कराना है।
      • नामीबियाई मादा सियाया उर्फ ज्वाला ने कूनो में चार शावकों को जन्म दिया। हालाँकि उसे बंदी बनाकर पाला गया तथा जंगल के लिये अयोग्य माना गया। उसके शावक एक  बोमा (इसमें वी आकार की बाड़ के माध्यम से जानवरों का पीछा करके उन्हें एक बाड़े में कैद किया जाता है) में ही जन्मे थे।
    • प्रजनन लक्ष्य को चुनौतियों तथा समझौतों का सामना करना पड़ता है, जिससे परियोजना की दीर्घकालिक सफलता पर प्रश्नचिह्न लगते हैं।
  • स्थानीय आजीविका में योगदान:
    • कुनो क्षेत्र में अनुबंधों, नौकरियों का निर्माण तथा भूमि मूल्यों में वृद्धि, ये सभी प्रोजेक्ट चीता के लाभकारी प्रभाव थे।
      • क्षेत्र में मानव-चीता संघर्ष की कोई सूचना नहीं है, जो कि यहाँ आए चीतों और स्थानीय समुदायों के बीच सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व समन्वय का संकेत देता है।

प्रोजेक्ट चीता को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

  • सत्यनिष्ठा चुनौतियाँ:
    • तीन नामीबियाई चीते, साशा (परियोजना की पहली दुर्घटना से ग्रस्त), ज्वाला, और सवाना उर्फ नाभा को परियोजना की अखंडता से समझौता करते हुये “अनुसंधान विषयों” के रूप में बंदी बनाकर रखा गया था।
  • दृष्टिकोण में बदलाव:
    • चीतों को आयात करने के कुछ सप्ताह बाद भारत ने परियोजना की प्रतिज्ञाओं पर नैतिक सवाल उठाए जब उसने हाथीदाँत के व्यापार पर प्रतिबंध लगाने वाले वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) में वोट से दूर रहने का फैसला किया।
  • अग्रिम प्रतिमान में बदलाव:
    • आनुवंशिक रूप से चीतों की आत्मनिर्भर जनसंख्या का समर्थन करने में कुनो की असमर्थता के कारण वृहद-जनसंख्या दृष्टिकोण के लिये एक आदर्श बदलाव की आवश्यकता होती है।
      • वृहद -जनसंख्या दृष्टिकोण में खंडित आवासों में एक प्रजाति की अलग-अलग आबादी का प्रबंधन करना, दीर्घकालिक व्यवहार्यता और आनुवंशिक विविधता के लिये उनकी परस्पर निर्भरता को स्वीकार करना शामिल है।
    • तेंदुओं के विपरीत, चीते अपनी विरल जनसंख्या के कारण अकेले लंबी दूरी तय नहीं कर सकते हैं।
    • आनुवंशिक व्यवहार्यता के लिये आवधिक स्थानांतरण के दक्षिण अफ़्रीकी मॉडल को अनुकूलित करने का सुझाव दिया गया है, लेकिन प्राकृतिक वन्यजीव फैलाव के कारण वन कनेक्टिविटी पर प्रभाव के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • कुनो की वहन क्षमता:
    • चीता एक्शन प्लान में 50 से अधिक एकल जीवों की संख्या के साथ दीर्घकालिक अस्तित्व की उच्च संभावना का अनुमान लगाया गया है।
      • वर्ष 2010 में एक व्यवहार्यता रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि कुनो के 347 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में अधिकतम 27 चीतों को रखा जा सकता है, जबकि 3,000 वर्ग किमी. के बड़े परिदृश्य में 70-100 चीतों को रखा जा सकता है।
      • वर्ष 2020 में संशोधित आकलन से संकेत मिलता है कि कुनो में चीतल(मृगों) का घनत्व 38 प्रति वर्ग किमी. है, जो 21 चीतों का निवास स्थल है और 50 चीतों की एकल संख्या की व्यवहार्यता के लिये चुनौतीपूर्ण है।
    • परियोजना का एकमात्र विकल्प अब मध्य और पश्चिमी भारत में वितरित हुई मेटा-जनसंख्या है, जो सहायता प्राप्त वितरण के दक्षिण अफ्रीकी मॉडल की तुलना में अधिक चुनौतियाँ पेश कर रही है।

चीता पुनः वापसी परियोजना क्या है?

  • भारत में चीता पुनः वापसी परियोजना औपचारिक रूप से 17 सितंबर, 2022 को प्रारंभ हुई, जिसका उद्देश्य देश में चीतों की आबादी को बहाल करना था, जिन्हें वर्ष 1952 में देश में विलुप्त घोषित कर दिया गया था।
  • इस परियोजना में दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों का स्थानांतरण शामिल है।
  • यह परियोजना राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा मध्य प्रदेश वन विभागभारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) तथा नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के चीता विशेषज्ञों के सहयोग से कार्यान्वित की गई है।

थल के सबसे तेज़ जंतु चीता को “क्रिपसकुलर” शिकारी माना जाता है, जिसका अर्थ है कि वे सूर्योदय और सूर्यास्त के समय शिकार करते हैं।

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