गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम से क्या लाभ है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम
भारत का सबसे सख्त आतंक-विरोधी कानून है जिसमें कथित रूप से कुछ कठोर प्रावधान शामिल हैं। इसके स्वरूप और क्रियान्वयन में बहुत-सी छूटें दी गई है क्योंकि देश बार-बार आतंकवादी कृत्यों से आहत होता रहा है। फिर भी, विभिन्न कानूनों के तहत आरोप पत्र (charge sheets) दाखिल करने में लगने वाले समय पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के ‘भारत में अपराध’ (Crime in India 2022) रिपोर्ट के आँकड़ों को देखें तो एक चिंताजनक स्थिति नज़र आती है। UAPA के तहत दर्ज लगभग 50% मामलों में आरोप पत्र प्राथमिकी (FIR) दर्ज होने के कम से कम एक वर्ष बाद दायर किये गए। इनमें से 15% आरोप पत्र दायर करने में दो वर्ष से अधिक समय लगा।
- इसे वर्ष 1967 में अलगाववादी आंदोलनों और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों से निपटने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- आतंकवादी वित्तपोषण, साइबर-आतंकवाद, व्यक्तिगत पदनाम और संपत्ति की जब्ती से संबंधित प्रावधानों को शामिल करने के लिये इसमें कई बार संशोधन किया गया, जिसमें नवीनतम संशोधन वर्ष 2019 में देखा गया।
- यह राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (National Investigation Agency- NIA) को देश भर में UAPA के तहत दर्ज मामलों की जाँच करने और मुकदमा चलाने का अधिकार देता है।
- यह आतंकवादी कृत्यों के लिये उच्चतम दंड के रूप में मृत्युदंड और आजीवन कारावास का प्रावधान करता है।
- यह संदिग्धों को बिना किसी आरोप या ट्रायल के 180 दिनों तक हिरासत में रखने और आरोपियों को जमानत देने से इनकार करने की अनुमति देता है, जब तक कि न्यायालय संतुष्ट न हो जाए कि वे दोषी नहीं हैं।
- यह गैर-कानूनी गतिविधि को ऐसे किसी भी कृत्य के रूप में परिभाषित करता है जो भारत के किसी भी हिस्से के अधिग्रहण या अलगाव का समर्थन करता है या उसे प्रेरित करता है, या जो इसकी संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता पर सवाल उठाता है या इसका अनादर करता है।
- यह आतंकवाद को ऐसे किसी भी कृत्य के रूप में परिभाषित करता है जो किसी व्यक्ति की मृत्यु या आघात का कारण बनता है या इसकी मंशा रखता है, या किसी संपत्ति को क्षति पहुँचाता है या नष्ट करता करता है, या जो भारत या किसी अन्य देश की एकता, सुरक्षा या आर्थिक स्थिरता को खतरे में डालता है।
पक्ष में तर्क:
- राष्ट्रीय सुरक्षा: इसके समर्थकों का तर्क है कि UAPA राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह कानून सरकार को उन व्यक्तियों और संगठनों के विरुद्ध निवारक उपाय करने का अधिकार देता है जो आतंकवाद और राष्ट्र की सुरक्षा को खतरे में डालने वाली अन्य गतिविधियों में शामिल हैं या उनका समर्थन करते हैं।
- उदाहरण के लिये, एक जेसुइट पादरी एवं कार्यकर्ता स्टैन स्वामी (Stan Swamy) पर जनवरी 2018 में आयोजित दलितों की एक बैठक के दौरान हिंसा भड़काने के लिये UAPA के तहत मामला दर्ज किया गया था। सरकार ने आरोप लगाया ता कि वह एक प्रतिबंधित माओवादी समूह से संलग्न थे और राज्य में तख्तापलट की साजिश का अंग थे।
- आतंकवाद विरोधी उपाय: UAPA को एक व्यापक कानून के रूप में देखा जाता है जो कानून प्रवर्तन एजेंसियों को आतंकवाद से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये आवश्यक साधन प्रदान करता है। यह व्यक्तियों और संगठनों को आतंकवादी के रूप में नामित करने की अनुमति देता है, जिससे उनकी जाँच करना, मुकदमा चलाना और आतंकी गतिविधियों को रोकना आसान हो जाता है।
- उदाहरण के लिये, सरकार ने UAPA के तहत कई व्यक्तियों और संगठनों को आतंकवादी या आतंकी संगठनों के रूप में नामित किया है (जैसे मसूद अज़हर , हाफ़िज़ सईद, ज़की-उर-रहमान लखवी, दाऊद इब्राहिम, लश्कर -ए- तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और अन्य)। इससे सरकार को उनकी संपत्ति जब्त करने, उनकी यात्रा को प्रतिबंधित करने और उन पर प्रतिबंध लगाने में मदद मिली है।
- निवारक निरोध: UAPA गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल होने के संदिग्ध व्यक्तियों के निवारक निरोध (Preventive Detention) की अनुमति देता है। समर्थकों का तर्क है कि संभावित खतरों के साकार होने से पहले इन्हें रोकने के लिये यह प्रावधान आवश्यक है, विशेष रूप से ऐसे मामलों में जहाँ औपचारिक परीक्षण या ट्रायल के लिये पर्याप्त सबूत नहीं भी हो सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, छात्र कार्यकर्ता सफ़ूरा ज़रगर को वर्ष 2020 में दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे भड़काने की साजिश का हिस्सा होने के आरोप में UAPA के तहत हिरासत में ले लिया गया था। सरकार ने आरोप लगाया था कि वह एक प्रतिबंधित चरमपंथी समूह से संलग्न थी और CAA विरोधी विरोध प्रदर्शन आयोजित करने में शामिल थी।
- वैश्विक प्रतिबद्धताएँ: समर्थकों का तर्क है कि UAPA आतंकवाद से निपटने के लिये भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के अनुरूप है। यह कानून अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से निपटने के वैश्विक प्रयासों से संरेखित है और आतंकवाद के विरूद्ध संघर्ष में अन्य देशों के साथ सहयोग के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
- उदाहरण के लिये, सरकार ने वर्ष 2019 में आतंकवाद के वित्तपोषण के दमन के लिये संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention for the Suppression of the Financing of Terrorism) की पुष्टि की और इसके प्रावधानों को शामिल करने के लिये UAPA में संशोधन किया। इस संशोधन ने सरकार को आतंकवाद के वित्तपोषण को अपराध घोषित करने और संदिग्ध लेनदेन की रिपोर्ट करने के लिये वित्तीय संस्थानों पर दायित्व लागू करने में सक्षम बनाया।
- प्रभावी अभियोजन: UAPA को एक मज़बूत कानूनी साधन के रूप में देखा जाता है जो गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों के विरुद्ध मुकदमा चलाने की सुविधा प्रदान करता है। यह कानून बाधित संचार (intercepted communications), इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य और अन्य आधुनिक जाँच तकनीकों के उपयोग की अनुमति देता है, जिससे आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न लोगों के विरुद्ध मामला/केस बनाना आसान हो जाता है।
- उदाहरण के लिये, सरकार ने 26/11 मुंबई आतंकी हमले के एकमात्र जीवित पकड़े गए आतंकवादी अजमल कसाब पर मुकदमा चलाने और उसे दोषी ठहराने के लिये UAPA का इस्तेमाल किया था। सरकार ने हमलों में उसकी संलिप्तता साबित करने के लिये सीसीटीवी फुटेज, फोन रिकॉर्ड, कबूलनामे और फोरेंसिक सबूतों का सहारा लिया। उसे मौत की सज़ा सुनाई गई और वर्ष 2012 में फाँसी दे दी गई।
- निवारक उपाय: UAPA को उन व्यक्तियों एवं संगठनों के विरुद्ध एक निवारक उपाय (Deterrence) के रूप में देखा जाता है जो राष्ट्र की सुरक्षा के लिये हानिकारक गतिविधियों में संलग्न होने के इच्छुक हो सकते हैं। कानून द्वारा निर्धारित गंभीर दंड और कानूनी परिणामों का उद्देश्य व्यक्तियों को गैर-कानूनी गतिविधियों में भाग लेने या समर्थन करने से हतोत्साहित करना है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2001 में संसद पर हमले का मामला जिसमें 14 लोग मारे गए और 22 लोग घायल हुए। सरकार ने हमले की साजिश रचने और उसे अंजाम देने के दोषी पाए गए लोगों पर गंभीर दंड आरोपित करने के लिये UAPA का इस्तेमाल किया। मुकदमे के बाद अफजल गुरु और अन्य को वर्ष 2013 में फाँसी दे दी गई।
विपक्ष में तर्क:
- मूल अधिकारों का उल्लंघन: यह कानून संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति, निरायुध सम्मेलन और संगम या संघ निर्माण की स्वतंत्रता जैसे मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है। यह असहमति एवं विरोध को अपराध घोषित करता है और इसका इस्तेमाल सरकार के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, छात्रों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिये किया जा सकता है।
- सुरक्षा तंत्र का अभाव: अधिकारियों द्वारा शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिये कानून में पर्याप्त सुरक्षा उपायों और जवाबदेही तंत्र का अभाव है। यह केंद्र सरकार को बिना किसी न्यायिक समीक्षा या अपील के अवसर के व्यक्तियों को आतंकवादी के रूप में नामित करने का एकमात्र विवेक सौंपता है। यह सबूत देने का बोझ भी आरोपी पर डाल देता है, जिससे जमानत या निष्पक्ष सुनवाई प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
- इसके अलावा, NIA बनाम ज़हूर अहमद शाह वटाली (2020) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि UAPA के तहत जमानत पर विचार करते समय अदालतों को अभियोजन के मामले/केस के विस्तृत विश्लेषण में संलग्न होने और यह देखने की अनुमति नहीं है कि अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य (‘साक्ष्य’ के रूप में उद्धृत) पर्याप्त है भी या नहीं।
- बाद में थ्वाहा फज़ल बनाम भारत संघ (2021) मामले में न्यायालय ने UAPA की धाराओं के तहत आरोपित आरोपियों के लिये जमानत प्राप्त करना कुछ आसान बना दिया।
- इसके अलावा, NIA बनाम ज़हूर अहमद शाह वटाली (2020) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि UAPA के तहत जमानत पर विचार करते समय अदालतों को अभियोजन के मामले/केस के विस्तृत विश्लेषण में संलग्न होने और यह देखने की अनुमति नहीं है कि अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य (‘साक्ष्य’ के रूप में उद्धृत) पर्याप्त है भी या नहीं।
- संघीय ढाँचे के विरुद्ध: विरोधी तर्क देते हैं कि यह कानून देश के संघीय ढाँचे के विरुद्ध है, क्योंकि यह विधि-व्यवस्था बनाए रखने और अपराधों की जाँच करने की राज्य सरकारों की शक्तियों का अतिक्रमण करता है। यह NIA की स्वायत्तता एवं स्वतंत्रता को भी कमज़ोर करता है, जिसे आतंकवाद-निरोध के लिये एक केंद्रीय एजेंसी माना जाता है।
- दोषसिद्धि की निम्न दर: इस कानून के तहत दोषसिद्धि की दर निम्न रही है जो प्रकट करता है कि यह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के मामले में अप्रभावी और मनमाना रहा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2016 और 2019 के बीच UAPA के तहत दर्ज मामलों में से केवल 2.2% मामलों में ही न्यायालयों में दोषसिद्धि हुई। इससे पता चलता है कि इस कानून का इस्तेमाल आतंकवाद पर अंकुश लगाने के बजाय निर्दोष लोगों को परेशान करने और उन्हें डराने-धमकाने के लिये किया जाता है।
न्यायपालिका का क्या दृष्टिकोण रहा है?
- अरूप भुइयां बनाम असम राज्य (2011) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि किसी प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता मात्र से किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। ऐसा तब किया जा सकता है जब कोई व्यक्ति हिंसा का सहारा लेता है या लोगों को हिंसा के लिये उकसाता है या अव्यवस्था पैदा करने के इरादे से कोई कार्य करता है।
- पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम भारत संघ (2004) मामले में, न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि आतंकवाद से मुकाबले के प्रयासों में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जाता है तो यह आत्म-पराजय की स्थिति होगी।
- भारत संघ बनाम के.ए. नजीब (2021) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि UAPA के तहत जमानत पर प्रतिबंधों के बावजूद, संवैधानिक न्यायालय जमानत की अनुमति दे सकते हैं यदि उन्हें लगता है कि आरोपी के मूल अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।
- मज़दूर किसान शक्ति संगठन बनाम भारत संघ (2018) मामले में न्यायालय ने कहा कि सरकारी और संसदीय कृत्यों के विरुद्ध आवाज़ उठाना वैध है। हालाँकि ऐसे विरोध प्रदर्शन और सभाओं को शांतिपूर्ण एवं अहिंसक/निरायुध होना चाहिये।
UAPA में सुधार के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?
- कानून में संशोधन करना: शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन, असहमत विचार और वैचारिक अभिव्यक्ति जैसी संवैधानिक रूप से संरक्षित गतिविधियों को दायरे से बाहर करने के लिये ‘गैर-कानूनी गतिविधि’ और ‘आतंकी कृत्य’ की परिभाषा को स्पष्ट किया जाना चाहिये। वर्तमान में मौजूद परिभाषाएँ अस्पष्ट, व्यापक एवं व्यक्तिनिष्ठ हैं और इनका उपयोग किसी भी ऐसे कृत्य को अपराध घोषित करने के लिये किया जा सकता है जिसे सरकार अवांछनीय या धमकीपूर्ण मानती है।
- असहमति (dissent) अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की एक अनिवार्य विशेषता है, जैसा कि मकबूल फिदा हुसैन बनाम राजकुमार पांडे (2008) मामले में कहा गया था।
- सबूत के बोझ को हस्तांतरित करना: सुनिश्चित किया जाए कि सबूत या साक्ष्य प्रदान करने का बोझ अभियोजन पक्ष पर हो, न कि अभियुक्त पर। UAPA आपराधिक कानून के सामान्य सिद्धांत को ही उलट देता है, जहाँ अभियुक्तों पर ही स्वयं को निर्दोष साबित करने का भार डाल दिया गया है, बजाय इसके कि अभियोजन पर उसे दोषी सिद्ध करने का उत्तरदायित्व हो। इससे आरोपी को जमानत मिलना या मामले की निष्पक्ष सुनवाई होना अत्यंत कठिन हो जाता है।
- एक समीक्षा तंत्र स्थापित करना: कतिपय संघों या व्यक्तियों को गैर-कानूनी या आतंकी के रूप में प्रतिबंधित करने या नामित करने के सरकार के निर्णयों की निगरानी करने और इसे चुनौती देने के लिये एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष समीक्षा तंत्र स्थापित किया जाए। वर्तमान तंत्र अपर्याप्त और अप्रभावी है, क्योंकि सरकार को अपने कार्यों के लिये कोई कारण या सबूत नहीं देना पड़ता है और समीक्षा न्यायाधिकरण (review tribunal) प्रायः पक्षपाती या सरकार से प्रभावित होता है।
- अंतिम उपाय के रूप में UAPA का उपयोग करना: सुनिश्चित किया जाए कि UAPA का उपयोग केवल अंतिम उपाय के रूप में ही किया जाए, न कि सुरक्षा खतरों या सामाजिक अशांति से निपटने के लिये पहली प्रतिक्रिया के रूप में।
- UAPA कानून का इस्तेमाल वैध असहमति, आलोचना या विरोध को दबाने या नागरिक समाज के अभिकर्ताओं, पत्रकारों, शिक्षाविदों या मानवाधिकार रक्षकों को परेशान करने, डराने या चुप कराने के लिये नहीं किया जाना चाहिये।
- सरकार को सभी नागरिकों के मूल अधिकारों एवं स्वतंत्रता का सम्मान एवं सुरक्षा करनी चाहिये और संघर्षों एवं शिकायतों को हल करने के लिये संवाद, समझौता वार्ता एवं सुलह को अधिमानित या प्रमुख साधन के रूप में उपयोग करना चाहिये।
UAPA भारत के आतंकवाद विरोधी प्रयासों में एक शक्तिशाली उपकरण या साधन है, लेकिन व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर इसके प्रभाव को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं। इसके समर्थक राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद-निरोध के पक्ष पर बल देते हैं, जबकि इसके आलोचक अधिकारों के संभावित उल्लंघन और दोषसिद्धि की निम्न दर की ओर इशारा करते हैं। सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रता के बीच संतुलन निर्माण के लिये विचारशील संशोधन, सम्यक प्रक्रिया के प्रति प्रतिबद्धता और UAPA के विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता है, जो भारत में एक अधिक प्रभावकारी आतंकवाद विरोधी रणनीति को आकार दे सकेगा।
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