खाड़ी देशों में भारतीय प्रवासियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कुवैत सिटी के निकट एक अपार्टमेंट में भीषण आग लग गई, जिसके परिणामस्वरूप कम-से-कम 49 लोगों की मृत्यु हो गई, जिनमें से लगभग 40 भारतीय नागरिक थे।

  • इस अपार्टमेंट में 195 से अधिक श्रमिक रहते थे, जिनमें से अधिकांश भारतीय नागरिक थे, जो केरल, तमिलनाडु एवं उत्तर भारत के विभिन्न स्थानों से आए थे।

प्रवासी

  • यह वह व्यक्ति है जो अपनी नागरिकता वाले देश के अलावा किसी अन्य देश में रह रहा है अथवा काम कर रहा है।
  • यह व्यवस्था प्रायः अस्थायी तथा कार्य संबंधी कारणों से होती है।
  • प्रवासी वह व्यक्ति भी हो सकता है जिसने किसी अन्य देश का नागरिक बनने के लिये अपने देश की नागरिकता त्याग दी हो।

खाड़ी क्षेत्र में श्रमिकों की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • कुवैत में भारतीय समुदाय का विकास:
    • वर्ष 1990-1991 के खाड़ी युद्ध के कारण कुवैत से भारतीय समुदाय के लोगों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। कुवैत की मुक्ति के बाद, भारतीय समुदाय के अधिकांश सदस्य धीरे-धीरे वापस लौट आए और बाद में ये कुवैत में सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय बन गए।
    • मुक्ति संग्राम से पहले, फिलिस्तीनियों ने कुवैत में सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय गठित किया था।
      • “कुवैत की मुक्ति” से तात्पर्य वर्ष 1991 के सैन्य अभियानों से है, जिसके परिणामस्वरूप इराकी सेनाओं को कुवैत से बाहर कर दिया गया था। इस घटना ने खाड़ी युद्ध की समाप्ति को चिह्नित किया, जब संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में गठबंधन ने कुवैत को इराकी कब्ज़े से मुक्त करने के लिये एक सैन्य अभियान शुरू किया। कुवैत की मुक्ति संग्राम के परिणामस्वरूप उसकी स्वतंत्रता और संप्रभुता बहाल हुई।
  • खाड़ी देशों में भारतीय:
    • भारत सरकार के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 तक खाड़ी देशों में लगभग 8.9 मिलियन भारतीय प्रवासी रहते थे।
    • छह खाड़ी देशों (यूएई, सऊदी अरब, कुवैत, कतर, ओमान और बहरीन) में 56% अनिवासी भारतीय तथा 25% विदेशी भारतीय रहते हैं।
      • NRI (अनिवासी भारतीय) वे व्यक्ति हैं जो भारतीय नागरिकता रखते हैं लेकिन भारत से बाहर रहते हैं।
      • प्रवासी भारतीय या भारत के विदेशी नागरिक (OCI) वे विदेशी देश के व्यक्ति हैं जिनके पैतृक संबंध भारत से हैं। उन्हें भारतीय नागरिक नहीं माना जाता है, लेकिन उन्हें भारत में स्थायी निवासियों के समान विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
  • आवक प्रेषण:
    • कुल विदेशी आवक धन-प्रेषण का 28.6% खाड़ी देशों से आया, जिसमें अकेले कुवैत से 2.4% धन-प्रेषण आया।
  • व्यापारिक संबंध:
    • खाड़ी क्षेत्र भारत के कुल व्यापार में लगभग छठे हिस्से के रूप में योगदान देता है।
    • वित्त वर्ष 2022-23 में जीसीसी देशों के साथ भारत का व्यापार लगभग 184 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा, जो वित्त वर्ष 2021-22 की तुलना में 20% की वृद्धि दर्शाता है।
  • ऊर्जा सहयोग में भागीदारी:
    • भारत सरकार ने ऊर्जा सहयोग के क्षेत्र में GCC देशों के साथ व्यापक संबंध विकसित करने की योजना की घोषणा की है।
    • इसमें भारत के रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार में भागीदारी को प्रोत्साहित करनादीर्घकालिक गैस आपूर्ति समझौतों पर बातचीत करना, तेल क्षेत्रों में रियायतें मांगना और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं पर सहयोग करना शामिल होगा।

खाड़ी सहयोग परिषद (GCC):

  • GCC एक क्षेत्रीय संगठन है जिसमें 6 देश शामिल हैं– सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, कुवैत, कतर और बहरीन। GCC की स्थापना वर्ष 1981 में अपने सदस्य देशों के बीच उनकी क्षेत्रीय और सांस्कृतिक निकटता के आधार पर सहयोग, एकीकरण तथा अंतर्संबंध को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी।
  • वर्तमान में GCC देशों के राजस्व का प्राथमिक स्रोत तेल के निर्यात से प्राप्त होता है।
  • GCC सदस्य देश अपने तेल संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भर हैं, जो दशकों से उनकी अर्थव्यवस्थाओं की रीढ़ रहे हैं।

खाड़ी देशों में भारतीय प्रवासियों और प्रवासियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • कफला प्रणाली: यह प्रवासी कामगारों के वीज़ा को उनके नियोक्ता (प्रायोजक) से जोड़ने की प्रथा है। यह कई खाड़ी देशों में प्रचलित है। इससे शक्ति असंतुलन और कामगारों के लिये दुख पैदा होता है, जिन्हें पासपोर्ट ज़ब्त होने, नौकरी बदलने में कठिनाई एवं नियोक्ता द्वारा शोषण तथा दुर्व्यवहार जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे जबरन मज़दूरी की स्थिति पैदा हुई है।
  • सुरक्षा चिंताएँ: वर्ष 2014 में इराक में उग्रवाद के दौरान, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (Islamic State of Iraq and Syria – ISIS) द्वारा 40 भारतीय निर्माण श्रमिकों का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी गई थी, जो अस्थिर क्षेत्रों में भारतीय श्रमिकों के समक्ष संभावित सुरक्षा जोखिमों को उजागर करता है।
  • असुरक्षित कार्य परिस्थितियाँ और श्रम शोषण: प्रवासी मज़दूर, खास तौर पर निर्माण और शारीरिक श्रम क्षेत्रों में, अक्सर अपर्याप्त सुरक्षा उपकरणों तथा प्रोटोकॉल के साथ असुरक्षित कार्य वातावरण का सामना करते हैं। इससे दुर्घटनाएँ, चोटें और यहाँ तक कि मौतें भी हो सकती हैं।
    • वर्ष 2019 में यूएई में हीटस्ट्रोक के कारण कई भारतीय श्रमिकों की मृत्यु हो गई, जिससे बिना उचित सावधानियों के अत्यधिक गर्मी में काम करने के खतरों पर प्रकाश डाला गया।
    • उन्हें वेतन न मिलने, ओवरटाइम वेतन से इनकार करने और लंबे समय तक काम करने से संबंधित समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।
  • सीमित अधिकार: भारतीय प्रवासियों को अधिकांश खाड़ी देशों में नागरिकता या स्थायी निवास की अनुमति नहीं मिलने से संपत्ति के स्वामित्व, सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुँच एवं राजनीतिक प्रक्रियाओं में भाग लेने की इनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
    • घरेलू कामगार शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार के प्रति संवेदनशील होते हैं।

विदेशों में प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा हेतु भारत सरकार द्वारा किये गए उपाय:

  • द्विपक्षीय श्रम समझौते (BLAs): सरकार ने भारतीय प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा एवं कल्याण सुनिश्चित करने के क्रम में कई देशों के साथ BLA पर हस्ताक्षर किये हैं। इन समझौतों में न्यूनतम मज़दूरी, कार्य की स्थिति, स्वदेश वापसी तथा विवाद समाधान जैसे पहलू शामिल हैं।
  • प्रवासी भारतीय बीमा योजना (PBBY): यह इमीग्रेशन चेक रिक्वायर्ड (Emigration Check Required- ECR) श्रेणी के तहत शामिल सभी भारतीय प्रवासी श्रमिकों को जीवन एवं विकलांगता कवर प्रदान करने वाली एक अनिवार्य बीमा योजना है।
    • यह बीमा योजना विदेश में भारतीय प्रवासी श्रमिकों की आकस्मिक मृत्यु या स्थायी विकलांगता के मामले में 10 लाख रुपए तक का कवरेज प्रदान करती है।
  • न्यूनतम रेफरल वेतन (MRW): 
    • भारत सरकार द्वारा उन देशों में जाने वाले भारतीय प्रवासी श्रमिकों के लिये MRW का निर्धारण किया गया है, जिनमें न्यूनतम वेतन कानून नहीं हैं।
    • इसकी रेंज 300 से 600 अमेरिकी डॉलर के बीच है।
      • यह विशिष्ट देशों में जाने वाले प्रवासी श्रमिकों (विशेष रूप से अकुशल) के लिये भारत सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम स्वीकार्य वेतन है।
      • इससे सुनिश्चित होता है कि भारत से जाने वाले प्रवासी श्रमिकों को उचित वेतन प्राप्त हो सके।
        • इससे यह लोग बहुत कम वेतन देने वाले नियोक्ताओं के शोषण से बच पाते हैं।
      • MRW दरों में संबंधित मंत्रालयों द्वारा निर्धारित जीवन-यापन की मौजूदा लागत तथा मज़दूरी दरों को ध्यान में रखा जाता है। कोविड-19 महामारी के दौरान, खाड़ी देशों में भारतीय कामगारों की नौकरियों की सुरक्षा के क्रम में इसे कुछ समय के लिये कम कर दिया गया था।
  • ई-माइग्रेट प्रणाली: यह प्रवास प्रक्रिया को सरल बनाने वाला एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है। इसके द्वारा नौकरी अनुबंधों को पंजीकृत करने के साथ प्रवासी श्रमिकों की स्थिति को ट्रैक किया जाता है।
  • प्रवासी संसाधन केंद्र: इन्हें संभावित और लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों को सूचना, परामर्श तथा सहायक सेवाएँ प्रदान करने के लिये कई राज्यों में स्थापित किया गया है।
  • शिकायत निवारण तंत्र: ई-माइग्रेट प्रणाली और ओवरसीज़ वर्कर्स रिसोर्स सेंटर जैसे प्लेटफॉर्म प्रवासी श्रमिकों को शिकायत दर्ज करने तथा सरकार से सहायता प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करते हैं।
  • प्रत्यावर्तन सहायता: संकट या संघर्ष के मामलों में भारत सरकार विदेशों में भारतीय श्रमिकों को प्रत्यावर्तन सहायता प्रदान करती है, जिससे उन्हें भारत में सुरक्षित वापसी की सुविधा मिलती है।
  • महिलाओं के प्रवास पर प्रतिबंध: 30 वर्ष से कम आयु की महिलाओं को गृहिणी, घरेलू कामगार, हेयरड्रेसर, ब्यूटीशियन, नर्तक, मंच कलाकार, श्रमिक या सामान्य कर्मचारी के रूप में रोज़गार हेतु प्रवासन की मंज़ूरी नहीं दी जाती है।

खाड़ी-क्षेत्र 

  • फारस की खाड़ी की सीमा 8 देशों अर्थात् बहरीन, ईरान, इराक, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) से लगती है।
    • ये सभी आठ देश संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं।
    • UAE, बहरीन, सऊदी अरब, ओमान, कतर, कुवैत खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के सदस्य हैं।
    • फारस की खाड़ी के देशों में से ईरान, इराक, कुवैत, UAE और सऊदी अरब पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) के सदस्य हैं।
  • सामरिक महत्त्व: फारस की खाड़ी वैश्विक स्तर पर रणनीतिक रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। ऐसा दो प्रमुख कारणों से है।

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