भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र में वर्ष 2023-24 में रिकॉर्ड स्तर की संवृद्धि दर्ज की गई है, जहाँ कुल उत्पादन बढ़कर 28 मिलियन यूनिट हो गया है और इसी क्रम में यह क्षेत्र विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के लिये एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र में रूपांतरित हो रहा है।

भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र का विकास पथ किस प्रकार रहा है?

  • प्रारंभिक उदारीकरण (1991 के बाद): वर्ष 1991 में ऑटोमोबाइल उद्योग को लाइसेंस मुक्त कर दिया गया और उसके बाद स्वचालित मार्ग से 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी गई।
    • इससे सुजुकी, हुंडई और होंडा जैसे वैश्विक निर्माताओं के लिये भारत में उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करना सुकर हुआ।
  • उत्पादन में वृद्धि: वाहनों का उत्पादन 2 मिलियन यूनिट (1991-92) से बढ़कर 28 मिलियन (2023-24) हो गया।
  • अर्थव्यवस्था में योगदान: भारत के ऑटोमोटिव उद्योग का आवर्त 240 बिलियन अमरीकी डॉलर है और इस क्षेत्र का भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 6% का योगदान है तथा इससे लगभग 30 मिलियन रोज़गार (4.2 मिलियन प्रत्यक्ष और 26.5 मिलियन अप्रत्यक्ष) का सर्जन हुआ।
  • ऑटो कंपोनेंट उद्योग: भारत के ऑटो कंपोनेंट उद्योग का सकल घरेलू उत्पाद में 2.3% का योगदान है और इससे प्रत्यक्ष रूप से 1.5 मिलियन लोगों को रोज़गार प्राप्त होता है।
    • वित्त वर्ष 24 में, उद्योग का आवर्त 6.14 लाख करोड़ रुपए (74.1 बिलियन अमरीकी डॉलर) हो गया, जिसका 54% आपूर्ति घरेलू मूल उपकरण निर्माताओं और 18% निर्यात का था।
    • वित्त वर्ष 2016-24 की 8.63% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ते हुए, वित्त वर्ष 24 में निर्यात बढ़कर 21.2 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया और अनुमानतः वर्ष 2026 तक यह बढ़कर 30 बिलियन अमरीकी डॉलर हो जाएगा।
  • इलेक्ट्रिक वाहन के उपयोग में वृद्धि: अगस्त 2024 तक कुल EV पंजीकरण 4.4 मिलियन से अधिक था। EV का बाज़ार में योगदान 6.6% रहा।
  • व्यापार:
    • निर्यात विस्तार: वित्त वर्ष 24 में निर्यात 4.5 मिलियन यूनिट हो गया। भारत का ऑटो कंपोनेंट निर्यात यूरोप, उत्तरी अमेरिका और एशिया में सर्वाधिक है।
    • आयात: ऑटो कंपोनेंट उद्योग ने वर्ष 2023-24 के दौरान 21.2 बिलियन अमरीकी डॉलर का निर्यात किया और 20.9 बिलियन अमरीकी डॉलर मूल्य के कंपोनेंट का आयात किया, जिसके परिणामस्वरूप 300 मिलियन अमरीकी डॉलर का व्यापार अधिशेष हुआ।
  • FDI और निवेश: भारत को 36 बिलियन अमरीकी डॉलर का FDI (2020-2024) प्राप्त हुआ, और वित्त वर्ष 28 तक, भारतीय ऑटो उद्योग ने देशज रूप से इलेक्ट्रिक मोटर्स और स्वचालित ट्रांसमिशन विकसित करने के उद्देश्य से आयात में कमी लाने और “चाइना प्लस वन” रणनीति का लाभ उठाने के लिये 7 बिलियन अमरीकी डॉलर के निवेश की योजना बनाई है।

भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • आयात पर निर्भरता: भारत लिथियम-आयन सेल और सेमीकंडक्टर जैसे प्रमुख EV घटकों के आयात पर निर्भर है, जिससे लागत एवं आपूर्ति वैश्विक व्यवधानों के प्रति संवेदनशील होने से आत्मनिर्भरता सीमित हो जाती है।
  • EV का सीमित प्रसार: भारत में EV का प्रसार वैश्विक स्तर पर 12% और चीन के 30% की तुलना में कम है। इसके अतिरिक्त, जीएसटी में कटौती के बावजूद बैटरी और वाहन की लागत अधिक बनी हुई है।
    • विशेष रूप से टियर-2/3 शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित चार्जिंग अवसंरचना जैसी चिंताएँ वित्त वर्ष 30 तक इसके 20% प्रसार के लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधक हैं।
  • कुशल कार्यबल की कमी: व्यापक श्रम बाज़ार के बावजूद इस उद्योग में स्वचालन तथा ईंधन सेल और हाइड्रोजन तकनीक में कुशल श्रमिकों की कमी है।
  • सख्त उत्सर्जन मानदंड: आगामी कॉर्पोरेट औसत ईंधन दक्षता (CAFE III और IV) मानक (2027-2032) के तहत सख्त कार्बन उत्सर्जन सीमाओं को आरोपित किया जाएगा, जिससे वाहन निर्माताओं पर महँगी प्रौद्योगिकी अपनाने का दबाव बनेगा।
    • इससे आंतरिक दहन इंजन (ICE) वाहनों की कीमतों में वृद्धि होने की संभावना है, क्योंकि निर्माता स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश कर रहे हैं।
  • साझा आवागमन और सार्वजनिक परिवहन: राइड-शेयरिंग ऐप्स और बेहतर सार्वजनिक परिवहन विकल्पों के कारण कार की मांग में कमी आने से वाहनों की बिक्री प्रभावित हो सकती है।

भारत अपने ऑटोमोटिव क्षेत्र के विकास और स्थिरता को किस प्रकार गति दे सकता है? 

  • ऑटो घटकों का स्थानीयकरण: खान मंत्रालय के राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन के माध्यम से दुर्लभ मृदा तत्त्व और लिथियम के घरेलू उत्पादन में तेज़ी लाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना: नीति आयोग की सिफारिश के अनुसार, शहर की योजना के साथ EV चार्जिंग बुनियादी ढाँचे को एकीकृत किया जाना चाहिये, विशेष रूप से स्मार्ट शहरों और शहरी परिवहन केंद्रों में।
    • EV आपूर्ति शृंखला में MSME और स्टार्टअप्स को समर्थन देने के लिये ग्रीन मोबिलिटी क्रेडिट गारंटी फंड बनाना चाहिये।
  • सर्कुलर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: नीति आयोग द्वारा अनुशंसित बैटरी स्वैपिंग फ्रेमवर्क को लागू करना चाहिये।
    • अंतिम-मील तक EV को बढ़ावा देने के क्रम में हरित लॉजिस्टिक्स नीतियों को अपनाने के साथ लॉजिस्टिक्स दक्षता संवर्द्धन कार्यक्रम (LEEP) पर बल देना चाहिये
  • नीतिगत सामंजस्य: राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना के लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के लिये राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में EV नीतियों को सुव्यवस्थित करना (वर्ष 2020 से प्रतिवर्ष हाइब्रिड एवं EV वाहनों का 6-7 मिलियन तक का बिक्री लक्ष्य प्राप्त करना) चाहिये।
    • व्यापार में सुलभता के लिये राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली (NSWS) का उपयोग करके विनियामक अनुमोदनों को डिजिटल बनाना चाहिये।
  • ICV से EV में परिवर्तन: वित्तीय एवं तकनीकी सहायता के साथ CAFE III और IV का समर्थन (विशेष रूप से MSME के संदर्भ में) करना चाहिये।
    • कौशल भारत मिशन और राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्द्धन योजना के अंतर्गत लक्षित पुनः कौशलीकरण के माध्यम से ICV पारिस्थितिकी तंत्र में श्रम विस्थापन की समस्या का समाधान करना चाहिये।
    • पुराने ICV के रिटायरमेंट को प्रोत्साहित करने एवं EV खरीद के लिये छूट प्रदान करके वाहन स्क्रैपेज नीति को EV के प्रसार के साथ संरेखित करना चाहिये।
  • यह भी पढ़े……………..
  • ऊर्जा मंत्री की जनसभा में बिजली कटी… जाते ही आ गई
  • सोशल मीडिया पर नगरा अंचलाधिकारी का देसी कट्टे के साथ वायरल हो रहा वीडियो
  • मुख्यमंत्री निवास संत कबीर कुटीर में केयू धरोहर हरियाणा संग्रहालय ने लगाई प्रदर्शनी

Leave a Reply

error: Content is protected !!