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भारत में बंधुत्व के आदर्शों को प्राप्त करने की चुनौतियाँ क्या है? - श्रीनारद मीडिया

भारत में बंधुत्व के आदर्शों को प्राप्त करने की चुनौतियाँ क्या है?

भारत में बंधुत्व के आदर्शों को प्राप्त करने की चुनौतियाँ क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बंधुत्व, भारतीय संविधान में निहित मूल मूल्यों में से एक है, जो समाज में एकता और समानता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालाँकि भारत में बंधुत्व का व्यावहारिक अनुप्रयोग कई प्रश्न और चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।

बंधुत्व की अवधारणा की उत्पत्ति:

  • प्राचीन ग्रीस:
    • बंधुत्व, भाईचारे और एकता के विचार का एक लंबा इतिहास है।
    • प्लेटो के लिसिस में दार्शनिक ज्ञान प्राप्त करने की तीव्र इच्छा के लिये फिलिया (प्रेम) शब्द का आह्वान किया गया है।
      • इस संदर्भ में भाईचारे को दूसरों के साथ ज्ञान और बुद्धिमत्ता साझा करने की प्रबल इच्छा के रूप में देखा जाता था, जिससे बौद्धिक आदान-प्रदान के माध्यम से दोस्ती अधिक सार्थक हो जाती थी।
  • अरस्तू का विचार:
    • यूनानी दार्शनिक, अरस्तू ने “पोलिस” के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए बंधुत्व के विचार को जोड़ा, शहर-राज्य जहाँ व्यक्ति राजनीतिक प्राणियों के रूप में थे और शहर-राज्य (पोलिस) में नागरिकों के बीच मित्रता महत्त्वपूर्ण है।
  • मध्य युग:
    • मध्य युग के दौरान बंधुत्व ने एक अलग आयाम ले लिया, मुख्य रूप से यूरोप में ईसाई संदर्भ में।
      • यहाँ बंधुत्व अक्सर धार्मिक और सांप्रदायिक बंधनों से जुड़ा होता था।
      • इसे साझा धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं के माध्यम से बढ़ावा दिया गया, जिसमें आस्तिक/विश्वासियों के बीच बंधुत्व की भावना पर ज़ोर दिया गया।
  • फ्राँसीसी क्रांति :
    • वर्ष 1789 में फ्राँसीसी क्रांति, जिसने प्रसिद्ध आदर्श वाक्य “लिबर्टे, एगलिटे, फ्रेटरनिटे” (स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व) को जन्म दिया।
      • इसने स्वतंत्रता और समानता के साथ-साथ राजनीति के क्षेत्र में बंधुत्व की शुरुआत को चिह्नित किया।
        • इस संदर्भ में बंधुत्व, नागरिकों के बीच एकता और एकजुटता के विचार का प्रतीक है क्योंकि वे अपने अधिकारों तथा स्वतंत्रता के लिये लड़ते हैं।

भारत में बंधुत्व की अवधारणा:

  • भारत के समाजशास्त्र के अंदर भारतीय बंधुत्व की अपनी यात्रा है और भारतीय बंधुत्व की वर्तमान प्रकृति इसके संविधान में वर्णित राजनीतिक बंधुत्व से अलग है।
  • भारत में स्वतंत्रता और समानता के साथ-साथ बंधुत्व एक संवैधानिक मूल्य है, जिसका उद्देश्य सामाजिक सद्भाव तथा एकता प्राप्त करना है।
    • भारतीय संविधान के निर्माताओं ने पदानुक्रमित सामाजिक असमानताओं से ग्रस्त समाज में बंधुत्व के महत्त्व को पहचाना।
  • डॉ. भीम राव अंबेडकर ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की अविभाज्यता पर बल दिया तथा इन्हें भारतीय लोकतंत्र का मूलभूत सिद्धांत माना।
  • बंधुत्व से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
  • प्रस्तावना:
    • प्रस्तावना के सिद्धांतों में स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय के साथ-साथ बंधुत्व का सिद्धांत भी शामिल किया गया।
  • मौलिक कर्तव्य:
    • मौलिक कर्तव्यों पर अनुच्छेद 51A को वर्ष 1977 में 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया तथा वर्ष 2010 में 86वें संशोधन द्वारा संशोधित किया गया।
    • अनुच्छेद 51A(e) आमतौर पर प्रत्येक नागरिक के कर्तव्य को संदर्भित करता है जो ‘भारत के सभी लोगों के मध्य सद्भाव तथा समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देता’ है।

भारतीय संदर्भ में बंधुत्व की सीमाएँ एवं चुनौतियाँ:

  • सामाजिक और सांस्कृतिक अंतर:
    • भारत की विविध संस्कृतियों तथा परंपराओं के कारण विभिन्न समुदायों के मध्य भ्रांति/मिथ्या बोध एवं संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
      • धार्मिक अथवा जाति-आधारित मतभेदों के परिणामस्वरूप अमूमन अविश्वास, भेदभाव और यहाँ तक कि हिंसा भी होती है, जिससे बंधुत्व खतरे में पड़ सकता है।
      • धार्मिक असहिष्णुता अथवा संघर्ष की घटनाएं सामाजिक लगाव और एकता को बाधित कर सकती हैं, जिससे बंधुत्व की भावना को प्रोत्साहन नहीं मिलता है।
        • इस देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों को अनगिनत बार ऐसे सामाजिक और राजनीतिक तिरस्कार का सामना करना पड़ा है।
  • आर्थिक असमानताएँ:
    • समाज के विभिन्न वर्गों के बीच आर्थिक असमानता, असंतोष और भेदभाव की भावनाओं को जन्म दे सकती है।
    • जब लोग अपनी सफलता में आर्थिक बाधाओं को महसूस करते हैं, तो वे सहयोग करने में झिझक सकते हैं, जिससे भाईचारे के एक प्रमुख तत्त्व, सामाजिक एकजुटता में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • राजनीतिक मतभेद:
    • राजनीतिक विचारधाराएँ समाज में गहन विभाजन की स्थिति उत्पन्न कर सकती हैं तथा सहयोग एवं संवाद में बाधा डाल सकती हैं।
    • इस तरह के मतभेद अमूमन ध्रुवीकरण की स्थिति उत्पन्न कर शत्रुता और असहिष्णुता के माहौल को बढ़ावा देते हैं जो सकारात्मक सहभागिता में बाधा डालता है।
  • विश्वास की कमी:
    • समूहों के बीच आपसी विश्वास और समझ की कमी भाईचारे को कमज़ोर कर सकती है।
    • जब विश्वास की कमी होती है, तो सामान्य लक्ष्यों की दिशा में एकजुट होकर काम करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • संवैधानिक नैतिकता की विफलता:
    • भारतीय संवैधानिक मूल्यों पर आधारित संवैधानिक नैतिकता, भाईचारा बनाए रखने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
      • इसकी विफलता से संस्थानों और कानून के शासन में विश्वास की कमी हो सकती है जिससे अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है तथा भाईचारा कमज़ोर हो सकता है।
  • अपर्याप्त नैतिक व्यवस्था:
    • मूल्यों और सामाजिक कर्तव्यों का पालन करना तथा समाज में एक कामकाज़ी नैतिक व्यवस्था का होना अति आवश्यक है ।
    • इस क्षेत्र में विफलता के परिणामस्वरूप भाईचारे की स्थिति बिगड़ सकती है तथा अनैतिक कार्यों से नागरिकों के बीच अविश्वास उत्पन्न हो सकता है।
  • शैक्षिक असमानताएँ:
    गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच में असमानता सामाजिक असमानताओं की स्थिति को बरकरार रख सकती है और भाईचारे में बाधा डाल सकती है।
  • शैक्षिक असमानताओं के परिणामस्वरूप अमूमन असमान अवसर प्राप्त होते हैं, जिससे समुदायों के बीच विभाजन की स्थिति बनती है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ:
    • भारत की व्यापक भौगोलिक व क्षेत्रीय विविधता आर्थिक विकास एवं बुनियादी ढाँचे में असमानताएँ उत्पन्न कर सकती है।
    • ये क्षेत्रीय असमानताएँ कुछ समुदायों में हाशिये पर होने की भावना उत्पन्न कर सकती हैं, जिससे भाईचारे को बढ़ावा देने के प्रयासों को चुनौती उत्पन्न हो सकती है।
  • भाषा और सांस्कृतिक बाधाएँ:
    • भारत की भाषाओं और बोलियों की बहुलता कभी-कभी संचार बाधाएँ उत्पन्न कर सकती हैं।
      • भाषा और सांस्कृतिक मतभेद प्रभावी संवाद और सहयोग में बाधा डाल सकते हैं, जिससे भाईचारे की भावना प्रभावित हो सकती है।

आगे की राह

  • विभिन्न समुदायों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक सद्भाव को बढ़ावा देने वाली पहल मतभेदों को दूर करने तथा भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक हैं। इन कार्यक्रमों को विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों के बीच संवाद, समझ एवं सहयोग को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • नागरिक शिक्षा में छोटी उम्र से ही बंधुत्व, समानता और सामाजिक न्याय के मूल्यों को स्थापित किया जाना चाहिये। ज़िम्मेदार नागरिकता और नैतिक आचरण का उदाहरण स्थापित करने के लिये समाज के सभी स्तरों पर नैतिक नेतृत्व आवश्यक है।
  • धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के प्रति सम्मान को प्रोत्साहित करना महत्त्वपूर्ण है। अंतर-धार्मिक संवाद, धार्मिक एवं सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों के लिये सुरक्षा तथा सहिष्णुता की संस्कृति को बढ़ावा देने से सामाजिक एकता बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
  • नैतिक आचरण और ज़िम्मेदार नागरिकता का उदाहरण स्थापित करने के लिये समाज के सभी स्तरों पर नैतिक नेतृत्व को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • ऐसी नीतियाँ और कार्यक्रम लागू करने चाहिये जो आर्थिक असमानताओं को कम कर सकें, उनका समाधान करें, सभी नागरिकों के लिये अवसरों और संसाधनों तक समान पहुँच सुनिश्चित करें।
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