Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
भारत में राजकोषीय संघवाद की क्या चुनौतियाँ है? - श्रीनारद मीडिया

भारत में राजकोषीय संघवाद की क्या चुनौतियाँ है?

भारत में राजकोषीय संघवाद की क्या चुनौतियाँ है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

  • सकल कर राजस्व में घटती हिस्सेदारी:
    • 14वें और 15वें वित्त आयोगों की सिफ़ारिशों के बावजूद, जहाँ राज्यों के लिये शुद्ध कर राजस्व के 42% और 41% का सुझाव दिया गया था, सकल कर राजस्व में उनकी वास्तविक हिस्सेदारी वर्ष 2015-16 में घटकर 35% रह गई तथा वर्ष 2023-24 तक और घटते हुए 30% (बजट अनुमानों के अनुसार) हो गई।
    • बजट अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2024-25 के लिये सकल कर राजस्व (GTR) वर्ष 2023-24 की तुलना में 11.7% बढ़कर 38.40 लाख करोड़ रुपए (GDP का 11.8%) होने का अनुमान है। इस प्रकार, GTR में वृद्धि के साथ राज्यों की हिस्सेदारी उनकी राजकोषीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये भिन्न-भिन्न होनी चाहिये।
  • राज्य कर स्वायत्तता का क्षरण:
    • राज्यों द्वारा राजस्व स्रोतों पर स्वतंत्र रूप से कर दरें निर्धारित कर सकने की क्षमता में गिरावट आई है, जो विशेष रूप से अंतर-राज्य व्यापार के लिये मूल्य-वर्द्धित कर (VAT) के अंगीकरण के बाद स्पष्ट हो गई है।
    • GST लागू होने के साथ ही इस बदलाव ने राज्यों की स्थानीय आर्थिक स्थितियों के अनुसार कर नीतियों को अनुरूप बना सकने की क्षमता को कम कर दिया है। इसके अलावा, GST क्षतिपूर्ति बकाया के समय पर वितरण को लेकर भी राज्यों ने विभिन्न अवसरों पर आपत्ति जताई है।
  • राज्यों को दी जाने वाली अनुदान सहायता में कटौती:
    • राज्यों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता वर्ष 2015-16 में 1.95 लाख करोड़ रुपए से घटकर वर्ष 2023-24 में 1.65 लाख करोड़ रुपए रह गई।
    • इसके परिणामस्वरूप, केंद्र सरकार के सकल कर राजस्व में सांविधिक वित्तीय हस्तांतरण का संयुक्त अनुपात 48.2% से घटकर 35.32% रह गया।
  • उपकर और अधिभार श्रेणियों के अंतर्गत कर संग्रहण को बढ़ाना:
    • सकल राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी में गिरावट का एक महत्त्वपूर्ण कारक शुद्ध कर राजस्व की कटौती प्रक्रिया में उपकर एवं अधिभार (cess and surcharge) के माध्यम से एकत्रित राजस्व को शामिल करना है।
    • इस संग्रहण में (जून 2022 तक GST उपकर को छोड़कर) समय के साथ उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • वित्तीय केंद्रीकरण संबंधी चिंताएं:
    • केंद्र सरकार राज्यों को प्रत्यक्ष वित्तीय हस्तांतरण के रूप में केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) और केंद्रीय क्षेत्र योजनाओं (CS) का उपयोग करती है, जिससे उनकी राजकोषीय प्राथमिकताएँ प्रभावित होती हैं।
    • वर्ष 2015-16 और 2023-24 के बीच केंद्र प्रायोजित योजनाओं (59 योजनाओं तक विस्तृत) के लिये आवंटन 2.04 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 4.76 लाख करोड़ रुपए हो गया।
    • यह दृष्टिकोण राज्यों को संघीय निधि के साथ-साथ समतुल्य वित्तीय संसाधन देने के लिये बाध्य करता है।
  • समृद्ध बनाम कम समृद्ध राज्यों से जुड़े मुद्दे:
    • CSS कार्यान्वयन से राज्यों के बीच असमानताएँ उजागर होती हैं, क्योंकि समृद्ध राज्य स्वतंत्र रूप से अनुरूप अनुदान का वित्तपोषण कर सकते हैं, जबकि कम समृद्ध राज्यों को उधार पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे उनकी राजकोषीय देनदारियाँ बढ़ जाती हैं।
    • यह असमानता सार्वजनिक वित्त में अंतर-राज्यीय असमानता को बढ़ाती है।
  • सीमित व्यय उत्तरदायित्वों के साथ संघ सरकार की वृहत वित्तीय शक्तियाँ:
    • राज्यों को सकल कर राजस्व का 50% से भी कम हस्तांतरित करने के बावजूद, केंद्र सरकार सकल घरेलू उत्पाद के 5.9% का उल्लेखनीय राजकोषीय घाटा रखती है।
    • यह व्यवस्था संघ को पर्याप्त वित्तीय अधिकार प्रदान करती है, जबकि इसके व्यय दायित्वों को सीमित करती है, जिससे राज्य आवंटन के लिये कम अवसर बचता है।

राजकोषीय संघवाद पर गठबंधन राजनीति का प्रभाव:

  • सकारात्मक प्रभाव:
    • केंद्रीय हस्तांतरण पर प्रभाव: गठबंधन में प्रतिनिधित्व रखने वाले राज्य (वे राज्य जहाँ केंद्रीय सरकार में शामिल दलों की सरकार है) राजस्व-साझाकरण और अनुदान के संदर्भ में अधिक अनुकूल शर्तों के लिये सौदेबाज़ी कर सकते हैं, जिससे समग्र राजकोषीय संघवाद ढाँचे पर प्रभाव पड़ता है।
      • उदाहरण के लिये, नवीन बजट में विभिन्न सड़क परियोजनाओं के लिये बिहार को 26,000 करोड़ रुपए प्राप्त होंगे, जबकि आंध्र प्रदेश को नई राजधानी के निर्माण के लिये 15,000 करोड़ रुपए दिये जाएँगे।
    • राज्यों की बेहतर सौदेबाज़ी शक्ति: गठबंधन सरकारों को प्रायः क्षेत्रीय दलों के समर्थन की आवश्यकता होती है, जिससे राज्यों की केंद्रीय हस्तांतरण के बड़े हिस्से के लिये बातचीत करने और राजकोषीय प्रबंधन में अधिक स्वायत्तता प्राप्त करने के लिये सौदेबाज़ी की शक्ति बढ़ जाती है।
    • क्षेत्रीय विकास पर फोकस: गठबंधन सरकारें ऐसी नीतियाँ अपना सकती हैं जो क्षेत्रीय आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं को पूरा करती हों। इससे स्थानीय विकासात्मक चुनौतियों का समाधान करने वाली अधिक सुव्यवस्थित राजकोषीय नीतियों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सकता है, जिससे संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
      • उदाहरण के लिये, आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम2014 जिसका उद्देश्य दो राज्यों के विकास को बढ़ावा देना था, केंद्र में गठबंधन दलों के सहयोग के कारण संसद द्वारा पारित किया गया।
    • पारदर्शिता और जवाबदेही में वृद्धि: गठबंधन साझेदारों को बनाए रखने की आवश्यकता कभी-कभी राजकोषीय निर्णयों में अधिक पारदर्शिता और सार्वजनिक धन के उपयोग में जवाबदेही का कारण बन सकती है।
    • स्थिरता और दीर्घकालिक योजना: यद्यपि गठबंधन कभी-कभी अस्थिर हो सकते हैं, लेकिन वे राजकोषीय मामलों में आम सहमति और दीर्घकालिक योजना के निर्माण को भी बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे शासन में स्थिरता सुनिश्चित हो सकती है और सतत आर्थिक वृद्धि एवं विकास संभव हो सकता है।
  • नकारात्मक प्रभाव:
    • राजकोषीय अनुशासनहीनता: गठबंधन सहयोगियों के तुष्टीकरण की इच्छा अत्यधिक व्यय एवं लोकलुभावन उपायों को जन्म दे सकती है, जिससे राजकोषीय अनुशासन और व्यापक आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
    • निर्णय लेने में विलंब: गठबंधन सरकारों को प्रायः राजकोषीय मामलों पर आम सहमति तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप निर्णय लेने और महत्त्वपूर्ण सुधारों के कार्यान्वयन में देरी होती है।
    • अनिश्चितता और अस्थिरता: गठबंधन सरकारों की भंगुर प्रकृति राजकोषीय वातावरण में अनिश्चितता पैदा कर सकती है, जिससे दीर्घकालिक निवेश और योजना-निर्माण हतोत्साहित हो सकते हैं।
    • धन के दुरुपयोग की संभावना: गठबंधन सहयोगियों को संतुष्ट करने के लिये संसाधनों को वितरित करने का दबाव कभी-कभी धन के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार को जन्म दे सकता है।
    • यह भी पढ़े……………
    • रील बनाने के दौरान नहर में डूबे यवक का  चालीस घंटे बाद मिला  शव
    • गठबंधन राजनीति के बीच राजकोषीय संघवाद का क्या भविष्य है?
    • क्या कांग्रेस और खालिस्तान में चोली एवं दामन का सम्बन्ध है?

Leave a Reply

error: Content is protected !!