भारत में चीता स्थानांतरण से संबंधित चुनौतियाँ क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत के मध्य प्रदेश स्थित कुनो वन्यजीव अभयारण्य में चीता पुन: वापसी परियोजना के तहत उपयोग किये जाने वाले रेडियो कॉलर के कारण चीतों की गर्दन पर घाव और सेप्टीसीमिया (बैक्टीरिया द्वारा रक्त का संक्रमण) के मामले देखे गए।
- इस स्थिति को देखते हुए भारत और अफ्रीका में कॉलर की प्रथाओं से सुपरिचित विशेषज्ञ काफी चिंतित हैं।
रेडियो कॉलर:
- परिचय:
- रेडियो कॉलर का उपयोग जंगली पशुओं पर नज़र बनाए रखने और अनुवीक्षण के लिये किया जाता है।
- यह छोटे रेडियो ट्रांसमीटर लगा कॉलर होता है।
- यह कॉलर पशुओं के व्यवहार, प्रवासन और जनसंख्या की गतिशीलता संबंधी डेटा प्रदान करने में काफी सहायता करता है।
- अतिरिक्त जानकारी के लिये इनमें GPS अथवा एक्सेलेरोमीटर का भी उपयोग किया जा सकता है।
- कॉलर का डिज़ाइन इस प्रकार किया गया है कि वे पशुओं के लिये उपयोग में हल्के और आरामदायक हों।
- ऐसे में किसी भी प्रकार के चोट अथवा संक्रमण जैसे संभावित जोखिमों और चुनौतियों पर विचार किया जाने की आवश्यकता है।
- रेडियो कॉलर से संबंधित चुनौतियाँ:
- गर्दन के घाव और सेप्टीसीमिया:
- कूनो अभयारण्य में दो चीतों की रेडियो कॉलर से गर्दन पर घाव के कारण होने वाले संदिग्ध सेप्टीसीमिया की वजह से मौत हुई है।
- ओबन, एल्टन और फ्रेडी सहित और भी चीतों में इसी प्रकार की चोट/जख्म देखे गए हैं।
- इन असफलताओं ने चीता पुनः वापसी परियोजना में रेडियो कॉलर के उपयोग के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- कूनो अभयारण्य में दो चीतों की रेडियो कॉलर से गर्दन पर घाव के कारण होने वाले संदिग्ध सेप्टीसीमिया की वजह से मौत हुई है।
- लंबे समय तक कॉलर के उपयोग से जुड़ी समस्याएँ:
- लंबे समय तक शरीर पर कुछ पहनने या बाँधे रखने से उसके गलत प्रभाव हो सकते है, जैसे कि घड़ी पहनने वालों और पालतू कुत्तों पर किये गए अध्ययनों में देखा गया है।
- घड़ी पहनने वालों की कलाई पर स्टैफिलोकोकस ऑरियस (Staphylococcus Aureus) बैक्टीरिया की उपस्थिति अधिक थी, जिससे सेप्सिस या मृत्यु हो सकती है।
- कॉलर पहनने वाले कुत्तों में एक्यूट मोइस्ट डर्मेटाइटिस (Acute Moist Dermatitis) या हॉट स्पॉट्स विकसित हो सकते हैं, जो कि टिक्स या पिस्सू के कारण बढ़ जाते हैं।
- टाइट-फिटिंग कॉलर बेडसोर के समान दबाव परिगलन (Pressure Necrosis) और गर्दन के चारों ओर तेज़ी से बाल झड़ने का कारण बन सकते हैं।
- वज़न संबंधी विचार:
- विश्व स्तर पर सामान्य दिशा-निर्देश के अनुसार, रेडियो कॉलर का वज़न पशु के शरीर के वज़न से 3% से कम रखना होता है।
- जंगली बिल्लियों के लिये आधुनिक कॉलर का वज़न आमतौर पर लगभग 400 ग्राम होता है, जो 20 किलोग्राम से 60 किलोग्राम वज़न वाले चीतों के लिये उपयुक्त है।
- हालाँकि चीतों को कॉलर पहनाना उनकी छोटी गर्दन के कारण चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर छोटे पशुओं के लिये।
- कॉलर से होने वाले जख्मों के प्रति संवेदनशीलता:
- चीतों की शीतकालीन खाल, जो बाघों या तेंदुओं की तुलना में अधिक मोटी और रोएँदार होती है, अधिक नमी बनाए रख सकती है तथा सूखने में अधिक समय लेती है।
- वर्ष 2020 के एक अध्ययन में पशुओं की बेहतर शारीरिक क्षमता (Athleticism) पर विचार न करने के लिये कॉलर वज़न नियम की आलोचना की गई थी, जिससे पता चला कि रेडियो कॉलर के कारण लगने वाला बल उनकी गतिविधियों के दौरान गर्दन (Collar) के वज़न से अधिक हो सकता है।
- उदाहरण के लिये रेडियो कॉलर द्वारा लगाया गया बल आमतौर पर शेर की गर्दन के वज़न का पाँच गुना और चीते की गर्दन के वज़न का 18 गुना तक पाया गया।
- भारतीय बाघों और तेंदुओं की तुलना में अफ्रीकी चीते स्थानीय रोगजनकों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं, संभवतः प्रतिरक्षा और पर्यावरणीय स्थितियों में अंतर के कारण।
- मानसून की स्थितियों के प्रति अनुकूलन का अभाव:
- बारिश के बीच शुष्क त्वचा के कारण अफ्रीकी परिस्थितियों में कॉलर के नीचे जीवाणु संक्रमण को आमतौर पर रिपोर्ट नहीं किया जाता है।
- ऐतिहासिक समय में भारत में मानसून के दौरान चीतों को कॉलर नहीं पहनाया जाता था और हो सकता है कि उन्होंने स्थानीय जलवायु के अनुसार अलग तरह से अनुकूलन किया हो।
- पुनः वापसी परियोजना हेतु निहितार्थ:
- गर्दन की चोटों के लिये चीतों को ट्रैक करना, स्थिर करना और उनका आकलन करना चुनौतियों तथा संभावित देरी का कारण बनता है।
- अगले मानसून के लिये स्पष्ट रोडमैप की अनुपस्थिति चीतों की री-कॉलरिंग और उनके कल्याण के विषय पर सवाल उठाती है।
- गर्दन के घाव और सेप्टीसीमिया:
भारत में चीता पुनः वापसी परियोजना:
- परिचय:
- भारत में चीता पुनः वापसी परियोजना औपचारिक रूप से 17 सितंबर, 2022 को प्रारंभ हुई, जिसका उद्देश्य चीतों की आबादी को बहाल करना था, जिन्हें वर्ष 1952 में देश में विलुप्त घोषित कर दिया गया था।
- इस परियोजना में दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों का स्थानांतरण शामिल है।
- पुनः वापसी प्रक्रिया:
- 20 रेडियो-कॉलर वाले चीतों को दक्षिण अफ्रीका (12 चीते) और नामीबिया (8 चीते) से कुनो नेशनल पार्क में स्थानांतरित किया गया।
- मार्च 2023 में भारत ने नामीबिया से स्थानांतरित आठ चीतों में से एक ने 4 शावकों के जन्म दिया।
- चीतों को एक क्वारंटाइन अवधि से गुज़रना पड़ा और फिर उन्हें बड़े अनुकूलन बाड़ों में स्थानांतरित कर दिया गया।
- वर्तमान में 11 चीते स्वतंत्र अवस्था में हैं और एक शावक सहित 5 चीते क्वारंटाइन बाड़ों में हैं।
- समर्पित निगरानी दल स्वतंत्र रूप से घूमने वाले चीतों की चौबीसों घंटे निगरानी सुनिश्चित करते हैं।
- 20 रेडियो-कॉलर वाले चीतों को दक्षिण अफ्रीका (12 चीते) और नामीबिया (8 चीते) से कुनो नेशनल पार्क में स्थानांतरित किया गया।
- मृत्यु-दर:
- कूनो नेशनल पार्क में प्राकृतिक कारणों से 8 चीतों की मौत हो गई, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के प्रारंभिक विश्लेषण से संकेत मिलता है कि मौतें प्राकृतिक थीं तथा ये रेडियो कॉलर जैसे अन्य कारकों से संबंधित नहीं थीं।
- परियोजना कार्यान्वयन एवं चुनौतियाँ:
- इस परियोजना को NTCA द्वारा मध्य प्रदेश वन विभाग, भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के साथ नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के चीता विशेषज्ञों के सहयोग से कार्यान्वित किया गया है।
- इस परियोजना की चुनौतियों में पुनः स्थापित चीता आबादी की निगरानी, सुरक्षा और प्रबंधन शामिल है।
- संरक्षण के प्रयास और उपाय:
- चीते की मौत के कारणों की जाँच के लिये अंतर्राष्ट्रीय चीता विशेषज्ञों तथा दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के पशु चिकित्सकों के साथ परामर्श जारी है।
- स्वतंत्र राष्ट्रीय विशेषज्ञ निगरानी प्रोटोकॉल, सुरक्षा स्थिति, प्रबंधकीय दिशा-निर्देश, पशु चिकित्सा सुविधाओं, प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण की समीक्षा कर रहे हैं।
- चीता अनुसंधान केंद्र स्थापित करने, कुनो राष्ट्रीय उद्यान के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत वन क्षेत्रों का विस्तार करने, अतिरिक्त फ्रंटलाइन कर्मचारी प्रदान करने, चीता संरक्षण बल स्थापित करने तथा गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में चीतों के लिये दूसरा आवास स्थल बनाने के प्रयास चल रहे हैं।
- सरकार पुनः स्थापित चीता आबादी के संरक्षण तथा इसकी दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्ध है।
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