भारत में पशुधन क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
G20 के कृषि कार्य समूह (AWG) के तहत राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड, आनंद में सतत् पशुधन परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन किया गया।
भारत में पशुधन क्षेत्र की स्थिति:
- परिचय:
- पशुधन ग्रामीण समुदाय के दो-तिहाई हिस्से को आजीविका प्रदान करता है। इसके साथ ही यह क्षेत्र देश की GDP में लगभग 4% का योगदान देता है।
- भारत में डेयरी सबसे बड़ा एकल कृषि क्षेत्र है। भारत दूध उत्पादन में प्रथम स्थान पर है जो वैश्विक दूध उत्पादन में 23% का योगदान देता है।
- 20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, देश में लगभग 303.76 मिलियन गोवंश (मवेशी, भैंस, मिथुन और याक), 74.26 मिलियन भेड़, 148.88 मिलियन बकरियाँ, 9.06 मिलियन सूअर और लगभग 851.81 मिलियन मुर्गियाँ हैं।
- खाद्य और कृषि संगठन कॉर्पोरेट सांख्यिकीय डेटाबेस (FAOSTAT) उत्पादन डेटा (2020) के अनुसार, भारत विश्व में अंडा उत्पादन में तीसरे और मांस उत्पादन में 8वें स्थान पर है।
- पशुधन ग्रामीण समुदाय के दो-तिहाई हिस्से को आजीविका प्रदान करता है। इसके साथ ही यह क्षेत्र देश की GDP में लगभग 4% का योगदान देता है।
- संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत:
- अनुच्छेद 48: राज्य कृषि और पशुपालन को आधुनिक एवं वैज्ञानिक आधार पर संगठित करने की दिशा में काम करेगा।
- यह गायों, बछड़ों और अन्य दुधारू तथा माल ढोने वाले मवेशियों की नस्लों के संरक्षण एवं सुधार हेतु महत्त्वपूर्ण कदम उठाएगा तथा हत्या पर रोक लगाएगा।
- मौलिक कर्तव्य:
- अनुच्छेद 51A(g): जंगलों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा एवं सुधार करना तथा सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया दिखाना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत:
- भारत में पशुधन क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ:
- संसाधन तथा चारे की कमी: अनाज एवं चारे सहित पशु आहार की मांग, आपूर्ति से अधिक है, जिसके परिणामस्वरूप किसानों को पशु पोषण हेतु उच्च लागत से समझौता करना पड़ता है।
- यह कमी पशुधन के स्वास्थ्य, उत्पादकता के साथ समग्र कल्याण को प्रभावित करती है, जिससे टिकाऊ चारा उत्पादन तथा वितरण के लिये नवीन समाधान की आवश्यकता होती है।
- भारतीय चरागाह और चारा अनुसंधान संस्थान (IGFRI) के अनुसार, भारत में हरे चारे की कमी 63.5% है तथा सूखे चारे की कमी 23.5% है।
- अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढाँचा: पशु चिकित्सा सेवाओं एवं टीकों तक सीमित पहुँच रोग नियंत्रण के लिये खतरा उत्पन्न करती है, जिससे लगातार प्रकोप होता है जो पशुधन उत्पादकता के साथ उपज की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, उदाहरण के लिये गाँठदार त्वचा रोग या लंपी स्किन डिज़ीज़।
- जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरणीय दबाव: अनियमित मौसम पैटर्न, जल की कमी तथा बढ़ता तापमान भोजन एवं जल की उपलब्धता दोनों को प्रभावित करते हैं, जिससे पशुधन गर्मी के तनाव और संबंधित बीमारियों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) के एक अध्ययन में पाया गया कि गर्मी के तनाव के कारण भारत में गर्मी के महीनों के दौरान प्रति गाय प्रतिदिन दुग्ध उत्पादन 0.45 किलोग्राम कम हो गया।
- गुणवत्तापूर्ण प्रजनन और आनुवंशिक सुधार: भारत में पशुधन प्रजनन अक्सर गुणवत्तापूर्ण प्रजनन स्टॉक और आनुवंशिक सुधार कार्यक्रमों तक पहुँच के संदर्भ में सीमाओं का सामना करता है।
- पशुपालन एवं डेयरी विभाग (DAHD) के अनुसार, भारत में प्रजनन योग्य मादा गोवंश में से केवल 30% ही कृत्रिम गर्भाधान सेवाओं के अंतर्गत आते हैं।
- पशु कल्याण और नैतिक चिंताएँ: पशु क्रूरता और अमानवीय प्रथाओं जैसे पशुपालन से संबंधित नैतिक मुद्दों ने हाल के वर्षों में अधिक ध्यान आकर्षित किया है।
- संसाधन तथा चारे की कमी: अनाज एवं चारे सहित पशु आहार की मांग, आपूर्ति से अधिक है, जिसके परिणामस्वरूप किसानों को पशु पोषण हेतु उच्च लागत से समझौता करना पड़ता है।
- पशुधन क्षेत्र से संबंधित सरकारी पहल:
- राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (National Animal Disease Control Programme- NADCP)
- पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (Animal Husbandry Infrastructure Development Fund- AHIDF)
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन
- पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960
- भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (AWBI) की स्थापना वर्ष 1962 में अधिनियम की धारा 4 के तहत की गई थी।
आगे की राह
- पशुधन आहार के लिये पोषण संबंधी नवाचार: वैकल्पिक एवं सतत् चारा स्रोतों में अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करना।
- पारंपरिक चारा फसलों पर निर्भरता कम करने के लिये कीट-आधारित प्रोटीन, शैवाल-आधारित पूरक और उपोत्पाद उपयोग हेतु प्रौद्योगिकियों में निवेश करने की आवश्यकता है।
- पशुधन अपशिष्ट से ऊर्जा परियोजनाएँ: बायोगैस उत्पादन के लिये पशुधन अपशिष्ट का उपयोग करने वाले बायोएनर्जी संयंत्रों की स्थापना को बढ़ावा देना।
- यह न केवल अपशिष्ट प्रबंधन को संबोधित करता है बल्कि ग्रामीण समुदायों के लिये नवीकरणीय ऊर्जा भी उत्पन्न करता है।
- बायोगैस उत्पादन के उपोत्पादों का उपयोग जैविक उर्वरकों के रूप में किया जा सकता है, जिससे संसाधन उपयोग की बाधा समाप्त होगी और स्थिरता बढ़ेगी।
- साथ ही कृषि अपशिष्ट को पौष्टिक पशु आहार में परिवर्तित करके चक्रीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देना, जो पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी दोनों हो सकता है
- यह न केवल अपशिष्ट प्रबंधन को संबोधित करता है बल्कि ग्रामीण समुदायों के लिये नवीकरणीय ऊर्जा भी उत्पन्न करता है।
- आनुवंशिक निगरानी: भारत में पशुधन के लिये विशेष रूप से वायरस की आनुवंशिक निगरानी को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- चूँकि लम्पी रोग (Lumpy Skin Disease) का प्रकोप उच्च मृत्यु दर के साथ तेज़ी से फैल रहा है, इसलिये इस मुद्दे से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये इसकी आनुवंशिक संरचना की जाँच करने और इसके व्यवहार का विश्लेषण करने की आवश्यकता है।
- वन हेल्थ दृष्टिकोण को अपनाना: व्यक्तियों, जानवरों, पौधों और पर्यावरण के अंतर्संबंध को समझना तथा वन हेल्थ दृष्टिकोण को पहचानना महत्त्वपूर्ण है।
- अनुसंधान और ज्ञान साझा करने में अंतःविषय सहयोग को प्रोत्साहित करने से स्वास्थ्य स्थिरता को बढ़ावा मिल सकता है तथा ज़ूनोटिक रोगों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।
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