जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की लद्दाख को लेकर क्या मांगें है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक और उनके समर्थकों को दिल्ली पुलिस ने सोमवार रात सिंघु बॉर्डर पर हिरासत में ले लिया। दिल्ली पुलिस ने कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर बीएनएस की धारा 163 लागू कर दी गई है। मंगलवार को वांगचुक ने कई अन्य लोगों के साथ उन पुलिस स्टेशनों पर अनिश्चितकालीन उपवास शुरू किया, जहां उन्हें रखा गया है। दिल्ली चलो पदयात्रा का आयोजन लेह एपेक्स बॉडी द्वारा किया जा रहा है। यह कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के साथ संयुक्त रूप से चार साल से आंदोलन को आगे बढ़ा रहा है। मार्च 1 सितंबर को लेह से शुरू हुआ था और 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के स्मारक राजघाट पर समाप्त होने वाला था।

बड़ा सवाल ये है कि आखिर सोनम वांगचुक के नतृत्व में ये प्रदर्शन क्यों हो रहा है? आखिर इनकी मांग क्या है?

– लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए।

– संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए।

– स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण।

– लेह और कारगिल जिलों के लिए दो लोकसभा और एक राज्यसभा सीट।

– भारत के संविधान के अनुच्छेद 244 (अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन) के तहत छठी अनुसूची भूमि के लिए कुछ सुरक्षा और नामित जनजातीय क्षेत्रों में नागरिकों के लिए नाममात्र स्वायत्तता की गारंटी देती है। लद्दाख में 97% से अधिक आबादी अनुसूचित जनजाति की है।

गैर-लाभकारी हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स के संस्थापक निदेशक सोनम वांगचुक ने उस समय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं जब उन्होंने लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग के लिए जलवायु उपवास शुरू किया। आपको बता दें कि छठी अनुसूची में शामिल होने से एक आदिवासी क्षेत्र को स्वायत्त जिला बनने की अनुमति मिलती है, जिसमें कुछ क्षेत्रों में विधायी, न्यायिक, कार्यकारी और वित्तीय निर्णयों को स्वतंत्र रूप से निष्पादित करने की शक्ति के साथ क्षेत्रीय परिषदें स्थापित की जा सकती हैं।

नाराजगी की एक और वजह

लद्दाख में पहले से ही ऐसी क्षेत्रीय परिषदें हैं – एक लेह में और दूसरी कारगिल में। स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषदों के रूप में जाने जाने वाले इन निकायों की स्थापना लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास अधिनियम, 1997 के तहत की गई थी, जबकि यह क्षेत्र जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा था। वर्षों तक, इन परिषदों के पास भूमि के कुछ हिस्सों के उपयोग और क्षेत्र के पर्यावरण के संरक्षण जैसे मामलों में शक्तियां और जिम्मेदारियां थीं।

लेकिन केंद्र में भारतीय-जनता-पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा 2019 में जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने, लद्दाख को सीधे अपने नियंत्रण में लाने के बाद, स्थानीय लोगों का तर्क है कि परिषदें काफी हद तक अशक्त हो गई हैं, और निर्णय बड़े पैमाने पर उपराज्यपाल के कार्यालय में केंद्रीकृत हो गए हैं।

केंद्र की परियोजनाओं से चिंता

सोनम वांगचुक लद्दाख में पर्यावरण को लेकर भी चिंतित हैं। लद्दाख में इस बात को लेकर व्यापक चिंता है कि केंद्र अपने हितों को साधने के लिए यहां परियोजनाओं को थोप रहा है। नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना को लेकर अपारदर्शिता और स्थानीय लोगों के साथ परामर्श की कमी ने उनकी नाराजगी को और बढ़ा दिया। यही कारण है कि इस ऊर्जा परियोजना के विरोध में स्थानिए लोग सामने आ गए। नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना ऐसे समय में आ रही है जब चांगपास के चरागाह पहले से ही भारी दबाव में हैं – जलवायु ने घास के आवरण को कम कर दिया है, और भारत और चीन के बीच सैन्य तनाव ने विशाल भूमि तक पहुंच में कटौती कर दी है।

लद्दाख में लोगों ने पहली बार इस परियोजना के बारे में तब सुना जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2020 को अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में इस क्षेत्र में 7.5 गीगावॉट सौर पार्क स्थापित करने की बात कही। नवंबर 2021 तक, योजना का विस्तार पांग में 10 गीगावॉट की परियोजना में हो गया, जिसके लिए 160 वर्ग किमी भूमि की आवश्यकता थी। पिछले साल अक्टूबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को लद्दाख में 13 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना के लिए ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर (जीईसी) चरण- II – अंतर-राज्य ट्रांसमिशन सिस्टम (आईएसटीएस) परियोजना को मंजूरी दे दी।

सोनम वांगचुक का कहना है कि हम लद्दाख़ की पहाड़ियों को बचाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। जनजातीय क्षेत्र के लोगों और संस्कृतियों को बचाना हमारा मकसद है। उनका मानना है कि छठी अनुसूची के बगैर तो यहां होटेल्स के जाल पूरी तरह से बिछ जाएंगे और लोग यहां पर्यटक के रूप में लाखों की संख्या में पहुंचेंगे। हमपर वो चीजें थोपी जाएंगी जिससे हम सालों से बचाते आ रहे हैं।

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