परिवहन क्षेत्र और पर्यावरण पर इलेक्ट्रिक वाहनों के क्या प्रभाव है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles- EVs) का युग सही मायने में आ चुका है। शून्य उत्सर्जन के साथ EVs न केवल वायु प्रदूषण का प्रत्यक्ष उपचार हैं, बल्कि ये तेल आयात को कम करने में भी मदद करेंगे।
हाल के वर्षों में इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन और बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। कई प्रमुख ऑटोमोबाइल निर्माताओं ने EV तकनीक में भारी निवेश किया है और बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये इलेक्ट्रिक मॉडल की एक विस्तृत शृंखला लॉन्च कर रहे हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती उपलब्धता और विविधता इस धारणा को पुष्ट करती है कि सही मायने में Evs का युग आ गया है।
EVs के अंगीकरण को गति देने में बैटरी प्रौद्योगिकी और अवसंरचना में प्रगति ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अधिक कुशल और सस्ती बैटरियों के विकास ने इलेक्ट्रिक वाहनों की ड्राइविंग रेंज (driving range : प्रति चार्जिंग तय की जा सकने वाली दूरी) को बढ़ा दिया है, जिससे उपभोक्ताओं के लिये ‘रेंज’ संबंधी चिंता कम हो गई है। इसके अतिरिक्त, सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों और घरेलू चार्जिंग समाधानों सहित चार्जिंग अवसंरचना के विस्तार ने चालकों के लिये EVs की सुविधा एवं अभिगम्यता में सुधार किया है।
इसके अलावा, दुनिया भर की सरकारों और नीतिनिर्माताओं ने जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने तथा उत्सर्जन को कम करने के साधन के रूप में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिये एक प्रबल प्रतिबद्धता प्रदर्शित की है।
इलेक्ट्रिक वाहन (EVs) महत्त्वपूर्ण क्यों हैं?
- पर्यावरणीय लाभ: EVs में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी लाने और जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला कर सकने की क्षमता है।
- जीवाश्म ईंधन इंजन से चालित वाहनों के विपरीत EVs शून्य टेलपाइप उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं।
- EVs कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और ऐसे अन्य प्रदूषकों को कम करने में मदद करते हैं जो वायु प्रदूषण, स्मॉग एवं ‘ग्लोबल वार्मिंग’ में योगदान करते हैं।
- इलेक्ट्रिक वाहन नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), पार्टिकुलेट मैटर (PM) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOCs) जैसे हानिकारक प्रदूषकों को कम करने में मदद करते हैं।
- इसका सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि स्वच्छ हवा श्वसन एवं हृदय रोगों के जोखिम को कम करती है।
- ऊर्जा विविधता और सुरक्षा: EVs तेल आयात पर निर्भरता कम करके ऊर्जा विविधता लाने में योगदान करते हैं।
- चूँकि बिजली ग्रिड को ऊर्जा स्रोतों के मिश्रण (a mix of energy sources) से संचालित किया जा सकता है, जिसमें सौर एवं पवन जैसे नवीनीकरणीय स्रोत शामिल हैं, EVs स्वच्छ एवं अधिक संवहनीय ऊर्जा विकल्पों की ओर परिवहन क्षेत्र के संक्रमण का अवसर प्रदान करते हैं।
- यह तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से संबद्ध भेद्यता को कम करता है और जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता को कम करके ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाता है।
- चूँकि बिजली ग्रिड को ऊर्जा स्रोतों के मिश्रण (a mix of energy sources) से संचालित किया जा सकता है, जिसमें सौर एवं पवन जैसे नवीनीकरणीय स्रोत शामिल हैं, EVs स्वच्छ एवं अधिक संवहनीय ऊर्जा विकल्पों की ओर परिवहन क्षेत्र के संक्रमण का अवसर प्रदान करते हैं।
- तकनीकी प्रगति और रोज़गार सृजन: EVs के विकास और अंगीकरण से बैटरी प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रिक ड्राइवट्रेन (electric drivetrains) और चार्जिंग अवसंरचना में तकनीकी प्रगति को प्रेरणा प्राप्त हुई है।
- इन प्रगतियों से न केवल मोटर वाहन क्षेत्र को लाभ हो रहा है बल्कि इनसे व्यापक अनुप्रयोग भी संबद्ध हैं, जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के लिये ऊर्जा भंडारण और ग्रिड स्थिरता (grid stability)।
- इलेक्ट्रिक गतिशीलता बैटरी विनिर्माण, नवीकरणीय ऊर्जा और चार्जिंग अवसंरचना क्षेत्र में रोज़गार एवं नवाचार का सृजन करती है।
- दीर्घावधिक लागत बचत: इलेक्ट्रिक वाहनों की परिचालन लागत कम होती है, क्योंकि बिजली आमतौर पर गैसोलीन या डीजल से सस्ती होती है।
- इसके अलावा, EVs में चलायमान अंगों (moving parts) की संख्या कम होती है और इन्हें कम रखरखाव की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप समय के साथ सर्विसिंग एवं मरम्मत का खर्च कम रहता है।
- शहरों की भीड़भाड़ को कम करना: इलेक्ट्रिक वाहन साझा गतिशीलता (shared mobility) और कॉम्पैक्ट डिज़ाइन को बढ़ावा देकर शहरों में भीड़भाड़ कम करने में मदद कर सकते हैं।
- साझा गतिशीलता का तात्पर्य है वाहनों के उपयोग को व्यक्तिगत संपत्ति के बजाय सेवा के रूप में उपयोग करना। इससे सड़क पर वाहनों की संख्या और पार्किंग की आवश्यकता को कम किया जा सकता है।
- कॉम्पैक्ट डिज़ाइन छोटे और हल्के वाहनों के उपयोग को संदर्भित करता है जो शहरी स्थानों में अधिक आसानी से संगत हो सकते हैं। यह भीड़भाड़ और उत्सर्जन को भी कम कर सकता है।
- कम अंतरा-शहर दूरी, दैनिक यात्रा और ऐसे अन्य परिवहन के लिये अभिनव एवं भविष्योन्मुखी स्मार्ट EVs को बड़ी बैटरी की आवश्यकता नहीं होगी। इसका अर्थ है कि बैटरी रिचार्ज के लिये कम समय लगेगा और कम लागत आएगी।
EVs के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ
- उच्च आरंभिक लागत: पारंपरिक वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने की अग्रिम लागत अपेक्षाकृत अधिक है। उच्च आरंभिक लागत कई संभावित खरीदारों के लिये इसे कम वहनीय बनाती है और EVs की मांग को सीमित करती है।
- यह लागत अंतर मुख्य रूप से EVs में उपयोग की जाने वाली महँगी बैटरी प्रौद्योगिकी के कारण है।
- सीमित चार्जिंग अवसंरचना: भारत में चार्जिंग अवसंरचना अभी भी विकास के आरंभिक चरण में है और प्रमुख शहरों में ही केंद्रित है।
- एक सुदृढ़ एवं व्यापक चार्जिंग नेटवर्क की कमी EVs मालिकों के लिये असुविधा उत्पन्न करती है, विशेष रूप से उन लोगों के लिये जो अपार्टमेंट में रहते हैं या जिनके पास समर्पित पार्किंग सुविधा नहीं है।
- ‘रेंज एंग्जाइटी’: रेंज एंग्जाइटी (Range Anxiety) का तात्पर्य है ड्राइविंग के दौरान बैटरी खत्म होने का भय या चिंता। सीमित ड्राइविंग रेंज EVs अंगीकरण की राह में एक प्रमुख चुनौती है।
- यद्यपि EVs रेंज में सुधार हो रहा है, फिर भी यह धारणा व्याप्त है कि EVs लंबी दूरी की यात्रा के लिये पर्याप्त रेंज की पेशकश नहीं कर सकते हैं, विशेष रूप से भारत जैसे विशाल दूरी वाले देश में।
- EVs की बैटरी समय के साथ खराब हो जाती है, जिससे रेंज में कमी आ सकती है।
- बैटरी प्रौद्योगिकी और आपूर्ति शृंखला: लिथियम-आयन बैटरी, जो EVs का एक प्रमुख घटक है, के उत्पादन के लिये विशिष्ट खनिजों एवं दुर्लभ मृदा तत्वों की आवश्यकता होती है।
- भारत वर्तमान में बैटरी निर्माण के लिये आयात पर अत्यधिक निर्भर है, जिससे आपूर्ति शृंखला संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- EVs का चार्जिंग समय पारंपरिक वाहनों में ईंधन भरने के समय से अधिक है, जो उनकी सुविधा और उपयोगिता को प्रभावित करता है।
- सीमित मॉडल विकल्प: वर्तमान में भारत में पारंपरिक वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहन मॉडल की उपलब्धता अपेक्षाकृत सीमित है। विविध उपभोक्ता प्राथमिकताओं एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये बाज़ार को वहनीय EVs सहित विभिन्न खंडों में अधिक विकल्पों की आवश्यकता है।
EVs अंगीकरण को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख सरकारी पहलें
- फेम योजना द्वितीय (Faster Adoption and Manufacturing of Electric Vehicles- FAME scheme II), जो EVs निर्माताओं और खरीदारों के लिये प्रोत्साहन प्रदान करती है। इन प्रोत्साहनों में सब्सिडी, कर छूट, अधिमान्य वित्तपोषण (preferential financing) और सड़क कर एवं पंजीकरण शुल्क से छूट शामिल हैं।
- नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान (National Electric Mobility Mission Plan- NEMMP), जो राजकोषीय प्रोत्साहन प्रदान करके वर्ष 2020 से वर्ष-दर-वर्ष हाइब्रिड एवं इलेक्ट्रिक वाहनों की 6-7 मिलियन बिक्री हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित करता है।
- परिवर्तनकारी गतिशीलता और बैटरी भंडारण पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Transformative Mobility and Battery Storage), जो EVs के अंगीकरण के लिये एक व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करने और भारत में गिगा-स्केल बैटरी निर्माण संयंत्रों की स्थापना को समर्थन देने का लक्ष्य रखता है।
- उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, जो इलेक्ट्रिक वाहनों और उसके घटकों के विनिर्माण के लिये प्रोत्साहन प्रदान करती है।
- ‘वाहन स्क्रैपिंग नीति’ (Vehicle Scrappage Policy), जो पुराने वाहनों की स्क्रैपिंग और नए इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद के लिये प्रोत्साहन प्रदान करती है।
- ‘गो इलेक्ट्रिक अभियान’ (Go Electric campaign) का उद्देश्य EVs और EVs चार्जिंग अवसंरचना के लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करना है।
- भारत विश्व के उन कुछ देशों में से एक है जो वैश्विक EV30@30 अभियान का समर्थन करता है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 नए वाहनों की बिक्री में कम से कम 30% के इलेक्ट्रिक वाहन होने को सुनिश्चित करना है।
- विद्युत मंत्रालय ने चार्जिंग अवसंरचना पर अपने संशोधित दिशानिर्देशों (MoP Guidelines) में निर्धारित किया है कि 3 किमी के ग्रिड में और राजमार्गों के दोनों किनारों पर प्रत्येक 25 किमी पर कम से कम एक चार्जिंग स्टेशन मौजूद होना चाहिये।
- आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने भी मॉडल भवन उपनियम, 2016 (Model Building Bye-laws- MBBL) में संशोधन किया है जहाँ आवासीय एवं वाणिज्यिक भवनों में EVs चार्जिंग सुविधाओं के लिये पार्किंग स्पेस के 20% को अलग रखने को अनिवार्य बनाया गया है।
भारत में EVs अंगीकरण के लिये आगे की राह
- उपभोक्ताओं और निर्माताओं दोनों के लिये सब्सिडी, कर प्रोत्साहन एवं वित्तपोषण योजनाएँ प्रदान कर EVs अपनाने की आरंभिक लागत को कम करना।
- मूल उपकरण निर्माताओं (Original Equipment Manufacturers- OEMs), स्टार्ट-अप और अन्य हितधारकों के बीच नवाचार, प्रतिस्पर्द्धा एवं सहयोग को प्रोत्साहित कर EVs के विकल्प को बढ़ाना।
- प्रोत्साहन और सहायक नीतियों के माध्यम से EVs एवं संबंधित घटकों के घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करना।
- EVs के लाभों और प्रदत्त प्रोत्साहनों के बारे में अभियान, पोर्टल और प्लेटफॉर्म लॉन्च करने के माध्यम से जनता में जागरूकता का प्रसार करना।
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, स्मार्ट ग्रिड और ऊर्जा भंडारण प्रणालियों में निवेश के माध्यम से बिजली वितरण एवं आपूर्ति में सुधार लाना।
- फास्ट-चार्जिंग और बैटरी-स्वैपिंग तकनीकों एवं मानकों को विकसित करके EVs के चार्जिंग समय को कम करना।
- पर्याप्त गुणवत्ता और अभिगम्यता के साथ देश भर में सार्वजनिक एवं निजी चार्जिंग स्टेशनों का नेटवर्क स्थापित कर EVs चार्जिंग अवसंरचना का विस्तार करना।
- EVs के रखरखाव और सर्विसिंग के लिये तकनीशियनों, मैकेनिक एवं डीलरों को प्रशिक्षण और प्रमाण-पत्र प्रदान कर EVs के लिये सेवा केंद्र एवं मरम्मत विकल्पों की वृद्धि करना।
- सार्वजनिक परिवहन प्राधिकरणों सहित सरकारी संस्थानों को अपने बेड़े में EVs अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना। यह EVs के लिये बड़ी मांग पैदा करेगा, बाज़ार को प्रोत्साहित करेगा और इलेक्ट्रिक गतिशीलता की व्यवहार्यता प्रदर्शित करेगा।
- एक घरेलू बैटरी विनिर्माण पारितंत्र विकसित करना और आयात पर निर्भरता कम करना भी महत्त्वपूर्ण है।
- हाल ही में राजस्थान में लीथियम की खोज इस दिशा में अत्यंत आशाजनक प्रगति है।
भारत ने UNFCC COP26 में वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य (net zero) प्राप्त करने का एक अत्यंत महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में EVs की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। जबकि EVs स्वयं शून्य टेलपाइप उत्सर्जन करते हैं, इलेक्ट्रिक वाहनों का समग्र पर्यावरणीय प्रभाव उन्हें चार्ज करने के लिये उपयोग की जाने वाली बिजली के स्रोत पर निर्भर करेगा। यदि बिजली सौर या पवन जैसे नवीकरणीय स्रोत से प्राप्त होगी तो इससे संबद्ध पर्यावरणीय लाभ भी अधिकतम होगा।
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