मानव-वन्यजीव संघर्ष से संबंधित मुद्दे और उपाय क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड में मानव-वन्यजीव संघर्ष और सह-अस्तित्त्व पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें मानव-वन्यजीव संघर्ष के मुद्दे का हल निकालने के लिये लगभग 70 देशों के हज़ारों कार्यकर्त्ता एकजुट हुए।

  • यह सम्मेलन अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN), खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UN Development Programme) और अन्य संगठनों द्वारा सामूहिक रूप से आयोजित किया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • मानव-वन्यजीव संघर्ष के समाधान हेतु कार्य करने वाले लोगों और संस्थानों के बीच साझेदारी तथा सहयोग के विषय पर आपसी संवाद और समझ विकसित करने के लिये सुविधा प्रदान करना।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष पर सह-अस्तित्त्व और बातचीत के क्षेत्र से नवीनतम अंतर्दृष्टि, प्रौद्योगिकियों, विधियों, विचारों एवं सूचनाओं की अंतःविषयक और साझा समझ विकसित करना।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष जैवविविधता संरक्षण और अगले दशक के लिये निर्धारित सतत् विकास लक्ष्यों में शीर्ष वैश्विक प्राथमिकताओं में से एक है, यह राष्ट्रीय, क्षेत्रीय अथवा वैश्विक नीतियों तथा पहलों पर एक साथ काम करने का अवसर प्रदान करता है।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष को प्रबंधित करने और इसमें कमी लाने के लिये समझ और निष्पादन भिन्नताओं की समस्या के निपटान हेतु एक सामूहिक कार्ययोजना विकसित करना।

सम्मेलन की आवश्यकता का कारण:

  • मानव-वन्यजीव संघर्ष विश्व भर में विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, सह-अस्तित्त्व और जैवविविधता की सुरक्षा के संदर्भ में एक प्रमुख चुनौती है।
    • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, इस संघर्ष से विश्व भर में 75 फीसदी से अधिक जंगली बिल्लियों की प्रजातियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • यह “पारिस्थितिकी, पशु व्यवहार, मनोविज्ञान, कानून, संघर्ष का विश्लेषण, मध्यस्थता, शांति निर्माण, अंतर्राष्ट्रीय विकास, अर्थशास्त्र, नृ-विज्ञान एवं अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों को विभिन्न दृष्टिकोणों के माध्यम से मानव-वन्यजीव संघर्ष को समझने, एक-दूसरे से सीखने तथा सहयोग प्राप्त करने के लिये एक मंच प्रदान करेगा।
    • दिसंबर 2022 में जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय में सहमत कुनमिंग-मॉन्ट्रियल  वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क के लक्ष्य- 4 में मानव-वन्यजीव संपर्क का प्रभावी प्रबंधन निर्धारित किया गया है।

मानव-पशु संघर्ष:

  • परिचय:
    • मानव-पशु संघर्ष उन स्थितियों को संदर्भित करता है जहाँ मानव गतिविधियों, जैसे कि कृषि, बुनियादी ढाँचे का विकास या संसाधन निष्कर्षण, में वन्य पशुओं के साथ संघर्ष की स्थिति होती हैं, इसकी वजह से मानव एवं पशुओं दोनों के लिये नकारात्मक परिणाम सामने आते हैं।
  • प्रभाव:
    • आर्थिक क्षति: मानव-पशु संघर्ष के परिणामस्वरूप लोगों, विशेष रूप से किसानों और पशुपालकों को महत्त्वपूर्ण आर्थिक क्षति हो सकती है। वन्य पशु फसलों को नष्ट कर सकते हैं, बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचा सकते हैं तथा पशुधन को हानि पहुँचा सकते हैं जिससे वित्तीय कठिनाई हो सकती है।
    • मानव सुरक्षा के लिये खतरा: जंगली जानवर मानव सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न कर सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ मानव और वन्यजीव सह-अस्तित्व में रहते हैं। शेर, बाघ और भालू जैसे बड़े शिकारियों के हमलों के परिणामस्वरूप गंभीर चोट या मृत्यु हो सकती है।
    • पारिस्थितिक क्षति: मानव-पशु संघर्ष पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। उदाहरण के लिये यदि मानव शिकारी-पशुओं को मारते हैं तो शिकार-पशुओं की आबादी में वृद्धि हो सकती है, जो पारिस्थितिक असंतुलन का कारण बन सकती है।
    • संरक्षण चुनौतियाँ: मानव-पशु संघर्ष भी संरक्षण प्रयासों के लिये एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि इससे वन्यजीवों की नकारात्मक धारणा हो सकती हैं तथा संरक्षण उपायों को लागू करना कठिन हो सकता है।
    • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: मानव-पशु संघर्ष का लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी हो सकता है, विशेष रूप से उन लोगों पर जिन्होंने हमलों या संपत्ति के नुकसान का अनुभव किया है। यह भय, चिंता और आघात का कारण बन सकता है।
  • सरकारी उपाय:
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: यह अधिनियम गतिविधियों, शिकार पर प्रतिबंध, वन्यजीव आवासों के संरक्षण एवं प्रबंधन, संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना आदि के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
    • जैव विविधता अधिनियम, 2002: भारत जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का एक हिस्सा है। जैवविविधता अधिनियम के प्रावधान वनों या वन्यजीवों से संबंधित किसी अन्य कानून के प्रावधानों के अतिरिक्त हैं।
    • राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना (वर्ष 2002-2016): यह संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क को मज़बूत करने के साथ उन्हें बढ़ाने, लुप्तप्राय वन्यजीवों एवं उनके आवासों के संरक्षण, वन्यजीव उत्पादों के व्यापार को नियंत्रित करने तथा अनुसंधान, शिक्षा एवं प्रशिक्षण पर केंद्रित है।
    • प्रोजेक्ट टाइगर: प्रोजेक्ट टाइगर वर्ष 1973 में शुरू की गई पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की एक केंद्र प्रायोजित योजना है। यह देश के राष्ट्रीय उद्यानों में बाघों के लिये आश्रय प्रदान करती है।
    • प्रोजेक्ट एलीफैंटयह एक केंद्र प्रायोजित योजना है और हाथियों, उनके आवासों एवं उनके गलियारों की सुरक्षा के लिये फरवरी 1992 में शुरू की गई थी।
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