भारत में आत्महत्या के प्रमुख कारक क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत में विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाया गया। इस अवसर पर देश में महिलाओं, विशेषकर गृहिणियों द्वारा आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि, जो कि एक गंभीर समस्या है, पर चिंता व्यक्त की गई।
- आत्महत्या, जिसमें सबसे अधिक संख्या गृहिणियों की होती है, के मुद्दे को अक्सर नज़रअंदाज कर दिया जाता रहा है। हालिया वर्षों में इन घटनाओं की संख्या में हुई वृद्धि चिंताजनक है।
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस:
- विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस प्रत्येक वर्ष 10 सितंबर को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 2003 में WHO और इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) द्वारा की गई थी।
- यह आत्महत्या संबंधी पूर्वाग्रहों को कम करने और संगठनों, सरकार तथा जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने के साथ आत्महत्या को रोकने का संदेश देता है।
- वर्ष 2021- 2023 तक के लिये विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की थीम “कार्रवाई के माध्यम से उम्मीद बढ़ाना” (Creating hope through action) है। इस थीम का उद्देश्य सभी में आत्मविश्वास और प्रबुद्धता की भावना को प्रेरित करना है।
भारत में गृहिणियों के समक्ष चुनौतियाँ:
- हालिया आँकड़े: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, वर्ष 2021 में आत्महत्या करने वाली महिलाओं में गृहिणियों का अनुपात 51.5% था।
- इस संदर्भ में केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक सूची में शीर्ष पर हैं।
- आत्महत्या की कुल घटनाओं में लगभग 15% गृहिणियों से संबंधित हैं, जो इस समस्या की गंभीरता को रेखांकित करती है।
- इस संदर्भ में केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक सूची में शीर्ष पर हैं।
- चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ:
- आने-जाने पर प्रतिबंध: भारत में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में कई महिलाओं का घर से बाहर कहीं आने-जाने पर प्रतिबंध होता है।
- सामाजिक मानदंड और सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण अक्सर वे अकेले यात्रा करने या फिर अपने घरों से दूर जाने से परहेज करती हैं।
- ये परिस्थितियाँ उनमें अलगाव और असहायता की भावनाओं को जन्म दे सकती हैं।
- वित्तीय स्वायत्तता की कमी: अपने जीवनसाथी या परिवार पर आर्थिक निर्भरता महिलाओं के प्रति विभिन्न प्रकार के दुर्व्यवहार के प्रति उन्हें संवेदनशील बना सकती है। वित्तीय स्वतंत्रता की कमी, वैवाहिक नियंत्रण; भारतीय समाज में पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएँ और पितृसत्तात्मक मानदंडों के परिणामस्वरूप, विशेषकर विवाह के संदर्भ में महिलाओं को बहुत कम स्वतंत्रता प्राप्त है।
- ‘महिलाओं को अपने पति और ससुराल वालों की इच्छाओं के अनुरूप होना चाहिये’ ऐसी अपेक्षा विवशता की भावनाओं को जन्म दे सकती है।
- शारीरिक, यौन और भावनात्मक दुर्व्यवहार: शारीरिक, यौन एवं भावनात्मक शोषण सहित घरेलू हिंसा भारत में एक गंभीर समस्या है। कई महिलाएँ कलंक, प्रतिशोध के डर या समर्थन के अभाव के कारण इस प्रकार के दुर्व्यवहार को चुपचाप सहन करती रहती हैं।
- मदद मांगने की इच्छा न होना: मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर चर्चा करने और मदद मांगने को लेकर भारत में सामाजिक पूर्वाग्रह व्यापक है। कई महिलाएँ बाहरी सहायता लेने या अपने संघर्षों के बारे में दूसरों को बताने में झिझकती हैं, जिससे मानसिक स्वास्थ्य सहायता तक पहुँच में कमी देखी जाती है।
- आने-जाने पर प्रतिबंध: भारत में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में कई महिलाओं का घर से बाहर कहीं आने-जाने पर प्रतिबंध होता है।
भारत में आत्महत्या की समस्या के अन्य कारक:
- कृषि संकट और किसानों द्वारा आत्महत्याएँ: भारत की कृषि अर्थव्यवस्था को अनियमित मौसम पैटर्न, भूमि क्षरण और उच्च इनपुट लागत सहित कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- कर्ज के बोझ और फसल की बर्बादी के कारण बड़ी संख्या में किसानों द्वारा आत्महत्या की गई।
- भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कीटनाशकों जैसे घातक पदार्थों तक पहुँच अपेक्षाकृत सरल है और यह आवेगपूर्ण आत्महत्याओं की उच्च दर में योगदान देता है।
- शैक्षणिक दबाव: भारत की प्रतिस्पर्द्धी शिक्षा प्रणाली छात्रों पर उच्च शैक्षणिक प्रदर्शन हेतु अत्यधिक दबाव डालती है।
- विफलता का डर और माता-पिता की अत्यधिक उम्मीदें छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देने के साथ ही उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती हैं, जिससे छात्रों को लगता है कि उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा है।
- मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के हालिया प्रयासों के बावजूद अभी भी मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में किफायती मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित पहुँच है।
- यह समस्या भारत में मानसिक स्वास्थ्य संकट को बढ़ाती है और आत्महत्याओं में वृद्धि से जुड़ी एक सर्वोपरि चिंता के रूप में उभरती है।
- LGBTQ+ व्यक्तियों पर पारिवारिक दबाव: भारत में कई LGBTQIA+ व्यक्तियों को अपने परिवारों से गंभीर भेदभाव और अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है, जिससे अलगाव एवं अवसाद की भावना उत्पन्न होती है।
- परिवारों द्वारा स्वीकृति और समर्थन की यह कमी इस समुदाय की आत्महत्याओं में योगदान देने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
- साइबरबुलिंग: प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया के उदय के साथ साइबरबुलिंग एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया है, खासकर युवाओं के बीच। ऑनलाइन उत्पीड़न एवं धमकी का मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम हो सकता है जो आत्महत्या की घटनाओं को बढ़ा सकता है।
आत्महत्या की रोकथाम से संबंधित हालिया सरकारी पहल:
- मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम (MHA), 2017
- किरण (KIRAN) हेल्पलाइन
- मनोदर्पण पहल
- राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति, 2022
- गृहिणियों को सशक्त बनाने के लिये AI और नवाचार का लाभ उठाना: विशेष रूप से उन गृहिणियों के लिये डिज़ाइन किये गए AI-संचालित कौशल विकास एवं रोज़गार नियोजन कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है जो कार्यबल में प्रवेश या पुनः प्रवेश करना चाहती हैं।
- AI उन कौशलों और रोज़गार के अवसरों की पहचान करने में सहायता कर सकता है जो उनकी रुचियों तथा क्षमताओं के अनुरूप हों।
- ये कार्यक्रम विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण प्रदान कर सकते हैं, जैसे दूरस्थ कार्य, फ्रीलांसिंग या अंशकालिक रोज़गार, जिससे गृहिणियों में वित्तीय स्वतंत्रता की भावना और उद्देश्य की प्राप्ति की अनुमति मिलती है।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में सुधार: अधिक संख्या में मानसिक स्वास्थ्य क्लीनिकों की स्थापना और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षित कर, विशेष रूप से ग्रामीण तथा कम सेवा वाले क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता बढ़ाने की आवश्यकता है।
- मानसिक स्वास्थ्य विकारों का शीघ्र पता लगाने और हस्तक्षेप सुनिश्चित करने हेतु मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में एकीकृत करने की आवश्यकता है।
- विधान और विनियमन: कीटनाशकों की बिक्री पर सख्त नियम लागू करने की आवश्यकता है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में आत्महत्या का एक सामान्य तरीका है
- साथ ही साइबरबुलिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न के खिलाफ कानून लागू करने से युवाओं में मानसिक समस्या को कम करने में सहायता मिल सकती है।
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