डाकघर अधिनियम 2023 की मुख्य बातें क्या हैं?

डाकघर अधिनियम 2023 की मुख्य बातें क्या हैं?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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डाकघर अधिनियम, 2023 (Post Office Act 2023) को संसद की मंज़ूरी विभिन्न लाभ प्रदान करेगी, लेकिन यह डाकघर अधिकारियों को दी गई अनियंत्रित अवरोधन शक्तियों (interception powers) के संबंध में चिंताएँ भी उत्पन्न करती है। निहित मुद्दों में ‘आपातकाल’ (जिसे परिभाषित नहीं किया गया है) एवं प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों की अनुपस्थिति, मनमाने ढंग से इसके उपयोग के जोखिम और अधिकारियों द्वारा अवरोधन शक्तियों के संभावित दुरुपयोग जैसे विषय शामिल हैं।

डाकघर अधिनियम 2023 की मुख्य बातें क्या हैं?

  • डाक सेवा महानिदेशक (Director General of Postal Services):
    • हाल ही में पारित अधिनियम डाक सेवा महानिदेशक को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित विभिन्न अतिरिक्त सेवाओं की पेशकश के लिये आवश्यक गतिविधियों से संबंधित नियम बनाने के साथ-साथ इन सेवाओं के लिये शुल्क तय करने का अधिकार देता है।
      • यह उल्लेखनीय है क्योंकि यह पारंपरिक मेल सेवाओं सहित डाकघरों द्वारा प्रदान की जाने वाली किसी भी सेवा के लिये निर्धारित शुल्क को संशोधित करते समय संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता को समाप्त कर देता है।
  • शिपमेंट का अवरोधन:
    • अधिनियम में कहा गया है कि केंद्र सरकार, अधिसूचना द्वारा, निम्नलिखित विषयों के हित में किसी भी अधिकारी को डाकघर द्वारा संचरण के दौरान किसी भी वस्तु को अवरुद्ध करने, उसे खोलने या निरुद्ध करने का अधिकार दे सकती है:
      • राज्य की सुरक्षा,
      • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध,
      • लोक व्यवस्थाआपातकाल या लोक सुरक्षा 
      • इस अधिनियम के किसी भी उपबंध के किसी भी उल्लंघन के मामले में।
    • नए अधिनियम में एक व्यापक प्रावधान शामिल है जिसका उद्देश्य तस्करी और डाक पैकेजों के माध्यम से मादक पदार्थों एवं प्रतिबंधित वस्तुओं के अवैध संचरण को रोकना है।
      • केंद्र सरकार एक अधिसूचना के माध्यम से किसी अधिकारी को अधिकार सौंपेगी जो अवरोधन को अंजाम दे सकता है।
  • आइडेंटिफायर्स और पोस्ट कोड:
    • अधिनियम की धारा 5 की उपधारा 1 में कहा गया है कि “केंद्र सरकार वस्तुओं पर पते, एड्रेस आइडेंटिफायर्स और पोस्टकोड के उपयोग के लिये मानक निर्धारित कर सकती है।”
      • यह प्रावधान किसी परिसर की सटीक पहचान के लिये भौगोलिक निर्देशांक के आधार पर भौतिक पते को डिजिटल कोड से बदल देगा।
      • डिजिटल एड्रेसिंग एक दूरदर्शी अवधारणा है, जो छँटाई प्रक्रिया को सरल बना सकती है और मेल एवं पार्सल डिलीवरी की सटीकता को बढ़ा सकती है।
  • अपराधों और दंडों को हटाना:
    • अधिनियम में डाकघर के किसी अधिकारी द्वारा डाक वस्तुओं की चोरी, हेराफेरी या विनाश के लिये दंड का प्रावधान नहीं रखा गया है, जैसा वर्ष 1898 के मूल अधिनियम में रहा था।
  • धारा 7 के तहत जुर्माना:
    • प्रत्येक व्यक्ति जो डाकघर द्वारा प्रदत्त सेवा का लाभ उठाता है, ऐसी सेवा के संबंध में शुल्क का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी होगा।
    • यदि कोई व्यक्ति उप-धारा (1) में निर्दिष्ट शुल्क का भुगतान करने से इनकार करता है या इसकी उपेक्षा करता है तो ऐसी राशि इस तरह वसूली योग्य होगी जैसे कि यह उस पर देय भू-राजस्व का बकाया हो।
  • केंद्र की अनन्यता की समाप्ति:
    • वर्तमान अधिनियम ने वर्ष 1898 के अधिनियम की धारा 4 को निरसित कर दिया है जो केंद्र को सभी पत्रों को डाक द्वारा प्रेषण पर अनन्य विशेषाधिकार प्रदान करती थी।
      • कूरियर सेवाएँ अपने कूरियर को ‘लेटर्स’ के बजाय ‘डॉक्यूमेंट’ और ‘पार्सल’ कहकर वर्ष 1898 के अधिनियम को दरकिनार करती रही हैं।

भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898 (Indian Post Office Act 1898)

  • यह भारत में डाकघरों से संबंधित कानून को समेकित और संशोधित करने के उद्देश्य से 1 जुलाई 1898 को लागू किया गया था।
  • यह केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त डाक सेवाओं के लिये विनियमन प्रदान करता था।
  • यह केंद्र सरकार को पत्र प्रेषण पर अनन्य विशेषाधिकार प्रदान करता था और पत्र प्रेषण पर केंद्र सरकार का एकाधिकार स्थापित करता था।

डाकघर अधिनियम 2023 में क्या कमियाँ हैं?

  • डाक सेवाओं का कूरियर सेवाओं से भिन्न विनियमन:
    • वर्तमान में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों द्वारा सदृश डाक सेवाओं के विनियमन के लिये अलग-अलग रूपरेखाएँ हैं।
    • निजी कूरियर सेवाएँ वर्तमान में किसी विशिष्ट कानून के तहत विनियमित नहीं हैं। इससे कुछ प्रमुख अंतर पैदा होते हैं।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 1898 के अधिनियम ने ‘इंडिया पोस्ट’ के माध्यम से प्रसारित वस्तुओं के अवरोधन के लिये एक रूपरेखा प्रदान की। निजी कूरियर सेवाओं के लिये ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। वर्तमान अधिनियम में भी इस प्रावधान को बरकरार रखा गया है।
    • एक अन्य महत्त्वपूर्ण अंतर उपभोक्ता संरक्षण ढाँचे के अनुप्रयोग में उत्पन्न होता है।
      • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 ‘इंडिया पोस्ट’ की सेवाओं पर लागू नहीं होता है, लेकिन यह निजी कूरियर सेवाओं पर लागू होता है। डाकघर अधिनियम 2023 वर्ष 1898 के अधिनियम को प्रतिस्थापित करने की इच्छा रखते हुए भी इन प्रावधानों को बनाये रखता है।
  • प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का अभाव मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है:
    • विधेयक में डाक वस्तुओं के अवरोधन के विरुद्ध कोई प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय निर्दिष्ट नहीं किया गया है। इससे निजता के अधिकार और वाक् एवं अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
      • दूरसंचार के अवरोधन के मामले में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) बनाम भारत संघ मामले (1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अवरोधन की शक्ति को विनियमित करने के लिये एक उचित एवं सम्यक प्रक्रिया मौजूद होनी चाहिये।
      • अन्यथा अनुच्छेद 19(1)(a) (वाक् एवं अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य) और अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार के एक भाग के रूप में निजता का अधिकार) के तहत नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना संभव नहीं होगा।
  • ‘आपातकाल’ का आधार उचित प्रतिबंधों से परे है:
    • विधि आयोग (1968) ने 1898 के अधिनियम का परीक्षण करते समय पाया था कि ‘आपातकाल’ (emergency) शब्द को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है और इस प्रकार यह अवरोधन के लिये एक अत्यंत व्यापक आधार प्रदान करता है। इसे वर्तमान अधिनियम में भी बरकरार रखा गया है।
      • इसमें कहा गया है कि सार्वजनिक आपातकाल अवरोधन के लिये संवैधानिक रूप से स्वीकार्य आधार नहीं हो सकता है, यदि यह राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या संविधान में निर्दिष्ट किसी अन्य आधार को प्रभावित नहीं करता हो।
  • सेवाओं में चूक के लिये दायित्व से छूट:
    • अधिनियम के तहत प्रदत्त रूपरेखा रेलवे के मामले में लागू कानून के विपरीत है, जो केंद्र सरकार द्वारा प्रदत्त एक अन्य वाणिज्यिक सेवा है।
    • रेल दावा अधिकरण अधिनियम 1987 (Railway Claims Tribunal Act 1987) भारतीय रेलवे के विरुद्ध सेवाओं में खामियों की शिकायतों के निपटान के लिये अधिकरणों की स्थापना करता है।
      • इनमें माल की हानि, क्षति या ग़ैर-डिलीवरी और किराए या माल की वापसी जैसी शिकायतें शामिल हैं।
  • सभी अपराधों और दंडों को हटाना:
    • वर्ष 1898 के अधिनियम के तहत, डाक अधिकारी द्वारा डाक वस्तुओं को अवैध रूप से खोलना दो वर्ष तक की क़ैद, जुर्माना या दोनों से दंडनीय था। डाक अधिकारियों के अलावा अन्य व्यक्तियों को भी मेल बैग खोलने के लिये दंडित किया जाता था।
      • इसके विपरीत, वर्ष 2023 के अधिनियम के तहत ऐसे कृत्यों के विरुद्ध कोई दंड नहीं होगा। इससे व्यक्तियों की निजता के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
      • डाक सेवाओं से संबंधित विशिष्ट उल्लंघन भारतीय दंड संहिता (IPC) जैसे अन्य कानूनों के दायरे में भी शामिल नहीं हैं।
  • कुछ मामलों में परिणामों पर स्पष्टता का अभाव:
    • अधिनियम में कहा गया है कि कोई भी अधिकारी ‘इंडिया पोस्ट’ द्वारा प्रदत्त सेवा के संबंध में किसी दायित्व का भागी नहीं होगा।
    • यह छूट वहाँ लागू नहीं होगी जहाँ अधिकारी ने धोखाधड़ी से काम किया हो या जानबूझकर सेवा की हानि, देरी या गलत डिलीवरी की हो।
      • हालाँकि, अधिनियम यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि यदि कोई अधिकारी ऐसा कृत्य करता है तो उस पर क्या कार्रवाई होगी।
      • जन विश्वास अधिनियम, 2023 के तहत संशोधन से पहले वर्ष 1898 के तहत इन अपराधों के लिये दो वर्ष तक की क़ैद, जुर्माना या दोनों की सज़ा का प्रावधान था।

आगे की राह

  • सुदृढ़ प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को शामिल करना:
    • इंडिया पोस्ट के माध्यम से प्रेषित वस्तुओं के अवरोधन के लिये स्पष्ट और व्यापक प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय लागू करें।
    • इसमें वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तियों की निजता के अधिकार की रक्षा के लिये निरीक्षण तंत्र, न्यायिक वारंट और संवैधानिक सिद्धांतों का पालन शामिल होना चाहिये।
      • न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) के.एस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ मामले (2017) में संचार के अधिकार (right to communication) को निजता के अधिकार का एक अंग माना गया है और इस प्रकार इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित किया गया है।
  • अवरोधन के लिये आधार को परिभाषित करना:
    • अवरोधन के आधारों को परिष्कृत और स्पष्ट रूप से परिभाषित करें, विशेष रूप से ‘आपातकाल’ शब्द को, ताकि सुनिश्चित हो कि यह संविधान के तहत युक्तियुक्त निर्बंधों के साथ संरेखित हो।
      • संभावित दुरुपयोग को रोकने और व्यक्तिगत अधिकारों को बनाए रखने के लिये आपातकालीन शक्तियों के प्रयोग को सीमित करें।
    • ज़िला रजिस्ट्रार एवं कलेक्टर, हैदराबाद बनाम केनरा बैंक मामले (2005) में सर्वोच्च न्यायालय  ने माना कि ग्राहक द्वारा बैंक के संरक्षण में सौपे गए गोपनीय दस्तावेजों या सूचना के परिणामस्वरूप निजता के अधिकार का लोप नहीं हो जाता।
      • इसलिये, यदि कुछ व्यक्तिगत वस्तुओं को पत्राचार के लिये डाकघर को सौंपा जाता है तो इसमें व्यक्ति के निजता के अधिकार का लोप नहीं हो जाता।
      • न्यायालय ने कई निर्णयों में यह भी कहा है कि निजता का अधिकार तलाशी और जब्ती से पहले कारणों की लिखित रिकॉर्डिंग की आवश्यकता को लागू करता है।
  • संतुलित दायित्व ढाँचा:
    • डाकघर की स्वतंत्रता और दक्षता को खतरे में डाले बिना दायित्व के लिये स्पष्ट नियम निर्धारित कर उसकी जवाबदेही सुनिश्चित करें।
    • संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताओं का समाधान करें और हितों के टकराव को, विशेष रूप से विभिन्न सेवा शुल्क निर्धारित करने के संबंध में, रोकें।
    • सक्षम प्राधिकारी को अवरोधन शक्तियों के किसी भी मनमाने दुरुपयोग के लिये जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये, जहाँ उनके बचाव के लिये ‘गुड फेथ’ खंड का प्रयोग नहीं हो।
      • इन विधानों के तहत निजता के अधिकार के उल्लंघन के मामले में, राहत (मुआवजा सहित) केवल संवैधानिक अदालतों से मांगी जा सकती है।
  • अनधिकृत अनावरण के मुद्दे को संबोधित करना:
    • डाक अधिकारियों द्वारा डाक वस्तुओं के अनधिकृत अनावरण को संबोधित करते हुए, अधिनियम के भीतर विशिष्ट अपराधों और दंडों को पुनः लागू करें।
    • उपभोक्ताओं के निजता के अधिकार की सुरक्षा के लिये एक कानूनी ढाँचा स्थापित करें जो व्यक्तियों को कदाचार, धोखाधड़ी, चोरी और अन्य अपराधों के लिये ज़िम्मेदार ठहराए।
      • नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध 1966 (International Covenant on Civil and Political Rights 1966), जिसमें भारत एक पक्षकार है, का अनुच्छेद 17 कहता है कि “किसी को भी उसकी निजता, परिवार, घर और पत्र-व्यवहार में मनमाने या गैरकानूनी हस्तक्षेप के अधीन नहीं किया जाएगा और न ही उसके सम्मान एवं प्रतिष्ठा पर ग़ैर-कानूनी हमले किये जाएँगे।”

निष्कर्ष:

जबकि विधायी संशोधन समसामयिक चुनौतियों से निपटने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, सुरक्षा अनिवार्यताओं और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिये। उभरते कानूनी परिदृश्य में यह सुनिश्चित करने के लिये सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है कि अवरोधन प्रावधान संवैधानिक सिद्धांतों, अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों और व्यक्तिगत गोपनीयता की सुरक्षा की अनिवार्यता के अनुरूप हों।

भविष्य में संवैधानिक चुनौतियों को रोकने के लिये स्पष्ट प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों, जवाबदेही उपायों और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के पालन सहित विभिन्न अग्रसक्रिय कदम उठाये जाने आवश्यक हैं।

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