मानव तस्करी के प्रमुख कारण और प्रभाव क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक योजना को मंज़ूरी दी है जिसका उद्देश्य राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं वाले राज्यों में मानव तस्करी के पीड़ितों के लिये संरक्षण और पुनर्वास गृह स्थापित करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
योजना के प्रमुख प्रावधान:
- संरक्षण और पुनर्वास गृह के लिये वित्तीय सहायता: यह योजना वित्तीय सहायता के साथ ही पुनर्वास गृह, आश्रय, भोजन, कपड़े, परामर्श, प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएँ तथा अन्य आवश्यक दैनिक आवश्यकताओं जैसी पीड़ितों, विशेष रूप से नाबालिगों और युवा महिलाओं की विशिष्ट ज़रूरतों को पूरा करेगी।
- मानव तस्करी विरोधी इकाइयों (AHTU) को सुदृढ़ करना: संरक्षण और पुनर्वास गृहों की स्थापना के अतिरिक्त सरकार ने सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के प्रत्येक ज़िले में मानव तस्करी विरोधी इकाइयों को सुदृढ़ करने हेतु निर्भया फंड से धन आवंटित किया है।
- BSF (सीमा सुरक्षा बल) और SSB (सशस्त्र सीमा बल) जैसे सीमा सुरक्षा बलों में कार्यात्मक AHTU सहित सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को यह फंड प्रदान किया गया है।
- वर्तमान में देश भर में सीमा सुरक्षा बल में 30 सहित कुल 788 कार्यात्मक मानव तस्करी विरोधी इकाइयाँ शामिल हैं
भारत में मानव तस्करी की स्थिति:
- परिचय:
- मानव तस्करी एक वैश्विक मुद्दा है जो कई देशों को प्रभावित करता है और भारत कोई अपवाद नहीं है।
- बड़ी आबादी, आर्थिक असमानता और जटिल सामाजिक परिस्थितियों के कारण भारत विभिन्न प्रकार की मानव तस्करी का केंद्र बन गया है।
- आँकड़े:
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 में मानव तस्करी के 2,189 मामले दर्ज किये गए, इनमें पीड़ितों की संख्या 6,533 थी।
- पीड़ितों में 4,062 महिलाएँ और 2,471 पुरुष थे। इनमें नाबालिगों की संख्या 2,877 थी।
- जबकि वर्ष 2021 में लड़कियों (1,307) की तुलना में अधिक कम उम्र के लड़कों (1,570) की तस्करी की गई, लेकिन इस पैटर्न में आगे बदलाव आया और पाया गया कि महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में बढ़ रही है।
- AHTU द्वारा दर्शाए गए आँकड़ों के अनुसार, कुछ राज्यों में मानव तस्करी के अधिक मामले दर्ज किये गए हैं:
- वर्ष 2021 में तेलंगाना, महाराष्ट्र और असम में संबंधित AHTU में सबसे अधिक मामले दर्ज किये गए।
- अपनी भौगोलिक स्थिति और अन्य कारकों के कारण ये राज्य सीमा पार तस्करी के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं, इन पर विशेष ध्यान देने तथा इन्हें पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
- भारत के पड़ोसी देश अक्सर उन तस्करों के लिये स्रोत के रूप में काम करते हैं जो रोज़गार अथवा बेहतर जीवन स्तर का झूठा वादा करके महिलाओं और लड़कियों का शोषण करते हैं।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 में मानव तस्करी के 2,189 मामले दर्ज किये गए, इनमें पीड़ितों की संख्या 6,533 थी।
- मानव तस्करी के विभिन्न रूप:
- जबरन श्रम: इसमें पीड़ितों को कृषि, निर्माण कार्य, घरेलू काम और विनिर्माण जैसे उद्योगों सहित शोषणकारी परिस्थितियों में काम करने के लिये मजबूर किया जाता है।
- यौन शोषण: इसमें वेश्यावृत्ति और अश्लील साहित्य सहित व्यावसायिक यौन शोषण के लिये व्यक्तियों, विशेष रूप से महिलाओं एवं बच्चों की तस्करी की जाती है।
- बाल तस्करी: इसमें बाल श्रम, जबरन भीख मंगवाना, बाल विवाह, गोद लेने में घोटाले और यौन शोषण सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिये बच्चों की तस्करी शामिल है।
- बंधुआ मज़दूरी: इसमें ऋण चक्र में फँसे लोगों को ऋण चुकाने के लिये काम करने के लिये मजबूर किया जाता है और यह शोषणकारी प्रथाओं के कारण बढ़ता रहता है।
- मानव अंग तस्करी: अंगों की तस्करी में प्रत्यारोपण के लिये किडनी, लीवर और कॉर्निया जैसे अंगों का अवैध व्यापार शामिल है।
- भारत में प्रासंगिक कानून और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24:
- अनुच्छेद 23 मानव तस्करी और बेगारी (बिना भुगतान के जबरन श्रम) पर रोक लगाता है।
- अनुच्छेद 24,14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कारखानों और खदानों जैसे खतरनाक रोज़गार में नियोजित करने से रोकता है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) धारा:
- IPC की धारा 370 और 370A मानव तस्करी के खतरे का मुकाबला करने के लिये व्यापक उपाय प्रदान करती है, जिसमें शारीरिक शोषण या किसी भी प्रकार के यौन शोषण, दासता या अंगों को जबरन हटाने सहित किसी भी रूप में शोषण के लिये बच्चों की तस्करी शामिल है।
- धारा 372 और 373 वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से लड़कियों की खरीद-फरोख्त से संबंधित हैं।
- अन्य कानून:
- अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 [Immoral Traffic (Prevention) Act, 1956] देह व्यापार के लिये तस्करी की रोकथाम हेतु प्रमुख कानून है।
- महिलाओं और बच्चों की तस्करी से संबंधित अन्य विशिष्ट कानून बनाए गए हैं- बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006; बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976; बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986; मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994।
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 बच्चों को यौन दुर्व्यवहार और शोषण से बचाने के लिये एक विशेष कानून है।
- अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन:
- अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCTOC) महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने, शोषणकारियों और अपराधियों को दंडित करने के लिये एक प्रोटोकॉल है (भारत इसका हस्ताक्षरकर्ता है)।
- वेश्यावृत्ति के लिये महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने तथा मुकाबला करने पर SSARC अभिसमय (भारत इसका हस्ताक्षरकर्ता है)।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24:
मानव तस्करी के प्रमुख कारण और प्रभाव:
- कारण:
- सामाजिक आर्थिक कारक: गरीबी, बेरोज़गारी और आर्थिक अवसरों की कमी असुरक्षा पैदा करती है, जो व्यक्तियों को निराशाजनक स्थितियों में धकेल देती है जिसके कारण उनकी तस्करी होने की अधिक संभावना होती है।
- लैंगिक असमानता और भेदभाव: महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा, लैंगिक असमानता एवं भेदभाव के कारण तस्करी के लिये उनकी भेद्यता बढ़ जाती है।
- इसमें दहेज से संबंधित हिंसा, बाल विवाह और शिक्षा तक पहुँच की कमी जैसे मुद्दे शामिल हैं।
- राजनीतिक अस्थिरता और संघर्ष: राजनीतिक अस्थिरता, सैन्य संघर्ष और बड़े पैमाने पर प्रवासन आदि सभी ऐसा वातावरण बनाते हैं जो मानव तस्करी के लिये अनुकूल होता है क्योंकि ऐसी घटनाओं के पीड़ितों की स्थिति असहाय और असुरक्षित हो जाती है।
- भ्रष्टाचार और संगठित अपराध: कानून प्रवर्तन, आव्रजन और न्यायिक प्रणालियों में व्यापक भ्रष्टाचार के कारण तस्कर बिना किसी डर के कार्य करते हैं, जिससे मामलों का पता लगाना, जाँच करना और प्रभावी ढंग से मुकदमा चलाना मुश्किल हो जाता है।
- प्रभाव:
- शारीरिक और मनोवैज्ञानिक आघात: तस्करी पीड़ित लोग शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार, हिंसा और आघात सहन करते हैं ।
- वे अक्सर चोटों, यौन संचारित संक्रमणों, कुपोषण और शारीरिक थकावट का सामना करते हैं।
- इसके अलावा मनोवैज्ञानिक प्रभाव में दुश्चिंता, अवसाद, उत्तर-अभिघातजन्य तनाव विकार (Post Traumatic Stress Disorder- PTSD) और दूसरों पर विश्वास की हानि शामिल है।
- मानवाधिकारों का उल्लंघन: मानव तस्करी मूलतः पीड़ितों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है। यह उन्हें उनकी स्वतंत्रता, सम्मान और सुरक्षा से वंचित करता है।
- आर्थिक शोषण: जिन लोगों की तस्करी की जाती है उन्हें कठिन श्रम परिस्थितियों में लंबे घंटों तक कार्य करवाया जाता है और बहुत कम या बिल्कुल भी वेतन नहीं दिया जाता है।
- पीड़ितों के लिये शोषण से बचना बेहद मुश्किल हो सकता है क्योंकि वे कर्ज के जाल में फँस जाते हैं, जहाँ उन्हें लगातार बढ़ते कर्ज को चुकाने के लिये कार्य करना पड़ता है।
- सामाजिक ताने-बाने का विघटन: मानव तस्करी समुदायों और परिवारों के सामाजिक ताने-बाने को बाधित करती है।
- यह परिवारों को तोड़ देती है क्योंकि व्यक्तियों को अपने प्रियजनों से जबरन अलग कर दिया जाता है। इस उथल-पुथल के कारण समुदायों के अंतर्गत रिश्ते तनावपूर्ण हो जाते हैं और सामाजिक समर्थन का अभाव देखा जाता है।
- शारीरिक और मनोवैज्ञानिक आघात: तस्करी पीड़ित लोग शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार, हिंसा और आघात सहन करते हैं ।
आगे की राह
- विधि और कानून प्रवर्तन को मज़बूत करना: तस्करी विरोधी मज़बूत कानून बनाने और लागू करने की आवश्यकता है जो मानव तस्करी के सभी रूपों को अपराध घोषित करे तथा अपराधियों के लिये पर्याप्त दंड का प्रावधान करे।
- साथ ही तस्करी के मामलों की पहचान करने तथा प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिये कानून प्रवर्तन एजेंसियों, न्यायपालिका और सीमा नियंत्रण अधिकारियों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ाने की आवश्यकता है।
- तकनीकी समाधान: बड़े डेटा सेट का विश्लेषण, तस्करी के रुझानों की पहचान और संभावित हॉटस्पॉट की भविष्यवाणी करने के लिये उन्नत डेटा एनालिटिक्स टूल के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता एल्गोरिदम विकसित करने की आवश्यकता है।
- ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग आपूर्ति शृंखलाओं में पारदर्शिता बढ़ाने के साथ कृषि और परिधान विनिर्माण जैसे तस्करी के खतरे वाले उद्योगों में बलपूर्वक श्रम के उपयोग को रोकने के लिये भी किया जा सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत, मानव तस्करी से निपटने में नवीन दृष्टिकोण, सर्वोत्तम प्रथाओं और सफलता की कहानियों को साझा करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ ज्ञान विनिमय प्लेटफाॅर्मों की सुविधा प्रदान कर सकता है।
- नवोन्मेषी समाधानों को संयुक्त रूप से विकसित करने और लागू करने के लिये देशों, गैर-सरकारी संगठनों, शिक्षाविदों के साथ निजी क्षेत्रों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है।
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