आयुर्वेदिक चिकित्सकों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आयुर्वेद—जो हज़ारों वर्ष पहले भारत में उत्पन्न हुई चिकित्सा की पारंपरिक प्रणाली है, आज दुनिया भर में लोकप्रियता प्राप्त कर रही है। जबकि इस प्राचीन चिकित्सा प्रणाली का बड़ी संख्या में लोगों द्वारा उपयोग किया जा रहा है, भारत में आयुर्वेदिक चिकित्सा अभ्यास को पेशेवर करियर बनाने वाले लोगों को विभिन्न चुनौतियों एवं कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

  • अपने समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक महत्त्व के बावजूद, भारत में आयुर्वेदिक पेशे को सरकार की ओर से उपयुक्त मान्यता एवं समर्थन की कमी से लेकर सीमित रोज़गार अवसर एवं कम वेतन तक विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
  • इसके अतिरिक्त, यह उद्योग काफी हद तक अनियमित है, जिससे आयुर्वेदिक उपचारों की गुणवत्ता एवं प्रामाणिकता के बारे में चिंताएँ प्रकट की जाती हैं। इस संदर्भ में, भारत में आकांक्षी आयुर्वेदिक चिकित्सकों को एक जटिल परिदृश्य में आगे बढ़ना होगा और सफलता प्राप्त करने एवं इस क्षेत्र में सार्थक योगदान देने के लिये कई बाधाओं को पार करना होगा।

आयुर्वेदिक चिकित्सकों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ

  • साक्ष्य-आधारित गुणवत्ता की कमी:
    • उपचार की साक्ष्य- आधारित गुणवत्ता की कमी के कारण आयुर्वेद के प्रति भरोसे की कमी पाई जाती है। पुरातन सिद्धांतों को प्रायः परिष्कृत हठधर्मिता के रूप में पेश किया जाता है और इससे संबद्ध उपचार प्रत्यक्ष प्रायोगिक जाँच के अधीन नहीं होते हैं।
  • धीमे उपचार की धारणा:
    • एक आम धारणा यह है कि आयुर्वेदिक उपचार धीमी गति से असर दिखाते हैं।
    • हालाँकि यह दृष्टिकोण अर्द्धसत्य है क्योंकि आयुर्वेद स्थायी रोगी लाभ पर बल देता है, जिसके लिये रोग से सेहत की ओर क्रमिक संक्रमण की आवश्यकता होती है।
  • सीमित उपयोगी ज्ञान:
    • आयुर्वेद प्राचीन चिकित्सा ज्ञान का एक विशाल कोष है और इसका केवल एक अंश ही व्यावहारिक रूप से प्रयोग करने योग्य है। चिकित्सकों को उपचार और उसकी प्रक्रिया की खोज करने के लिये स्वयं पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे वृहत परीक्षण एवं त्रुटि परिदृश्य का निर्माण होता है।
  • अभ्यास का सीमित दायरा:
    • आयुर्वेद का उपयोग केवल 60-70% प्राथमिक देखभाल रोगों में ही सुरक्षित और प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।
    • शेष के लिये, रोगी के हित में आयुर्वेद को आधुनिक चिकित्सा की पूरकता प्रदान करना आवश्यक है। लेकिन अधिकांश राज्य आयुर्वेद स्नातकों द्वारा आधुनिक चिकित्सा के अभ्यास को निषिद्ध करते हैं, जिससे उनके अभ्यास का दायरा सीमित हो जाता है।
  • अनुसंधान और विज्ञान पारिस्थितिकी तंत्र का अभाव:
    • आयुर्वेद में विज्ञान और अनुसंधान का एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद नहीं है, जिससे चिकित्सकों के लिये बौद्धिक एवं वैज्ञानिक प्रगति के साथ तालमेल रखना कठिन हो जाता है।
  • धोखाधड़ी और भ्रामक प्रचार:
    • कुछ आयुर्वेदिक चिकित्सक भोले-भाले रोगियों को फँसाने के लिये धोखाधड़ी और भ्रामक प्रचार का सहारा लेते हैं। इससे कर्तव्यनिष्ठ चिकित्सकों के लिये विश्वास जगाना कठिन हो जाता है और आयुर्वेद की एक नकारात्मक छवि बनती है।

भारत में आयुर्वेदिक चिकित्सकों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का समाधान करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • स्वास्थ्य देखभाल संबंधी आवश्यकताएँ:
    • भारत में एक बड़ी आबादी मौजूद है जो विविध स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताएँ रखती है। आयुर्वेदिक चिकित्सकों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों के समाधान से शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों की प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिल सकती है।
  • पारंपरिक चिकित्सा:
    • आयुर्वेद चिकित्सा की एक पारंपरिक प्रणाली है जो सदियों से भारत में प्रचलित है। इस प्रणाली को संरक्षित एवं संवर्द्धित करने से भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और चिकित्सा उपचार के लिये वैकल्पिक विकल्प प्रदान करने में मदद मिल सकती है।
  • साक्ष्य-आधारित अभ्यास:
    • साक्ष्य-आधारित अभ्यास की कमी जैसी चुनौतियों को संबोधित करने से आयुर्वेदिक उपचार की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है और चिकित्सा की इस प्रणाली में आम लोगों के भरोसे की वृद्धि हो सकती है।
  • प्राथमिक देखभाल:
    • आयुर्वेदिक चिकित्सक भारत में प्राथमिक देखभाल सेवाएँ प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इन चिकित्सकों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों के समाधान से प्राथमिक देखभाल को पुनः जीवंत करने और भारत में प्राथमिक देखभाल से संलग्न चिकित्सकों की कमी को दूर करने में मदद मिल सकती है।
  • चिकित्सकों का सशक्तीकरण:
    • आयुर्वेदिक चिकित्सकों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों के समाधान से उन्हें सुरक्षित एवं प्रभावी देखभाल प्रदान करने हेतु सशक्त करने, उनकी प्रतिष्ठा एवं पेशेवर अभ्यास में वृद्धि करने और उनकी वित्तीय स्थिरता में सुधार लाने में मदद मिल सकती है।
  • धोखाधड़ी से मुकाबला:
    • आयुर्वेदिक चिकित्सकों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों के समाधान से आयुर्वेद के क्षेत्र में व्याप्त धोखाधड़ी एवं अनैतिक अभ्यासों के प्रसार से निपटने में मदद मिल सकती है, जो रोगियों को हानि पहुँचाने के साथ ही इस पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचा सकते हैं।

आयुर्वेद के विकास के लिये सरकार की प्रमुख पहलें

  • राष्ट्रीय आयुष मिशन
  • आहार क्रांति मिशन
  • आयुष क्षेत्र पर नए पोर्टल
  • ACCR पोर्टल और आयुष संजीवनी ऐप

आधुनिक विश्व में आयुर्वेद के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ

  • आपातकालीन मामलों में अप्रभावी उपचार:
    • गंभीर संक्रमणों और सर्जरी सहित अन्य आपात स्थितियों के उपचार में आयुर्वेद की अपर्याप्तता तथा चिकित्सीय उपचार में सार्थक शोध की कमी आयुर्वेद की सार्वभौमिक स्वीकृति को सीमित करती है।
    • आयुर्वेदिक उपचार जटिल हैं और इनसे बहुत-से ‘क्या करें, क्या न करें’ की शर्तें संलग्न हैं।
    • आयुर्वेदिक उपचार अपने कार्य और असर में धीमे होते हैं। प्रतिक्रिया या रोग निदान का आकलन करना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है।
  • मानकीकरण का अभाव:
    • आयुर्वेद के समक्ष विद्यमान सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है दवाओं के निर्माण एवं उपयोग में मानकीकरण की कमी। आधुनिक चिकित्सा, जहाँ दवाओं को कड़े नियमों के तहत प्रयोगशाला में संश्लेषित किया जाता है, के विपरीत आयुर्वेदिक दवाएँ प्राकृतिक पदार्थों के उपयोग से तैयार की जाती हैं, जो गुणवत्ता एवं सामर्थ्य में भिन्न हो सकती हैं। इससे दवा की प्रभावशीलता में असंगति की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • अनुसंधान का अभाव:
    • जबकि आयुर्वेद का सदियों से अभ्यास किया जा रहा है, इसके दावों का समर्थन करने के लिये वैज्ञानिक अनुसंधान की कमी है। साक्ष्य-आधारित शोध की कमी आयुर्वेद के लिये मुख्यधारा की चिकित्सा प्रणाली के रूप में स्वीकृत होना कठिन बनाती है।
  • आधुनिक चिकित्सा के साथ एकीकरण:
    • आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा को प्रायः स्वास्थ्य देखभाल की दो पृथक प्रणालियों के रूप में देखा जाता है। आयुर्वेद को आधुनिक चिकित्सा के साथ एकीकृत करना चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकती है, क्योंकि इसके लिये स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के तरीके में बदलाव की आवश्यकता होगी।

आगे की राह

  • साक्ष्य-आधारित मूल्यांकन:
    • आयुर्वेदिक प्रणाली को एक कठोर साक्ष्य-आधारित मूल्यांकन से गुज़रना होगा ताकि चिह्नित हो सके कि क्या प्रभावी है और क्या नहीं। यह प्रयोग करने योग्य अंशों को अप्रचलित या अव्यावहारिक अंशों से अलग करने में मदद करेगा और चिकित्सकों को उपचार के बारे में सूचना-संपन्न निर्णय ले सकने में सहायता करेगा।
  • आधुनिकीकरण:
    • समय की बौद्धिक और वैज्ञानिक प्रगति के साथ तालमेल रखने के लिये आयुर्वेद के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। पुरातन सिद्धांतों को आधुनिक वैज्ञानिक सिद्धांतों एवं अभ्यासों से प्रतिस्थापित करने की आवश्यकता है और आयुर्वेद को वृहत रूप से साक्ष्य-आधारित भी बनाना होगा।
  • नीति-निर्माण:
    • उपयुक्त नीति-निर्माण आयुर्वेद चिकित्सकों के समक्ष विद्यमान बहुत-सी समस्याओं का समाधान कर सकता है।
    • इसमें आयुर्वेद स्नातकों को निर्धारित प्राथमिक देखभाल क्षेत्रों में आधुनिक चिकित्सा का अभ्यास करने की अनुमति देना शामिल है, जो एक ऐसे कार्यबल के सृजन में मदद कर सकता है जो भारत की प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये प्रभावी ढंग से कार्य कर सके।
  • जन जागरूकता का प्रसार:
    • आयुर्वेद के लाभों और सीमितताओं के बारे में व्यापक जन जागरूकता की आवश्यकता है। यह शिक्षा अभियानों और ऐसे अन्य पहलों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है जो आयुर्वेदिक प्रणाली की बेहतर समझ को बढ़ावा देने पर लक्षित हों।
  • अनुसंधान और विकास:
    • आयुर्वेद में कई रोगों के उपचार की अपार क्षमता है, लेकिन अभी भी इसके दावों के समर्थन में वैज्ञानिक शोध की कमी है। सरकारी और निजी संगठनों को आयुर्वेदिक दवाओं एवं अभ्यासों पर अनुसंधान और विकास में निवेश करना चाहिये ताकि इनकी प्रभावशीलता एवं सुरक्षा को सत्यापित किया जा सके।
  • प्रशिक्षण और शिक्षा:

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