भारत में अवसंरचना क्षेत्र के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आधारभूत संरचना को सार्वभौमिक रूप से विकास के प्रमुख चालक के रूप में स्वीकार किया जाता है। हालाँकि ‘आधारभूत संरचना’ (Infrastructure) शब्द आमतौर पर सड़क, बंदरगाह, बिजली पारेषण लाइन जैसी भौतिक संपत्तियों से संबद्ध किया जाता है, हाल के वर्षों में भारत की विकास गाथा न केवल भौतिक, बल्कि सामाजिक एवं डिजिटल आधारभूत संरचना पर भी गंभीरता से ध्यान देने के साथ गहनता से जुड़ी रही है।
बजट 2023 आधारभूत संरचना विकास के इन तीनों आयामों पर बल देता है, जो संयुक्त रूप से समावेशी विकास को गति प्रदान करते हैं। लक्षित निवेश न केवल महत्त्वपूर्ण भौतिक बुनियादी ढाँचे का निर्माण कर कनेक्टिविटी में सुधार लाएँगे (जिससे यात्रियों और माल की आवाजाही में तेज़ी आएगी), बल्कि रोज़गार भी उत्पन्न करेंगे, निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा साथ ही वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों के विरुद्ध एक सुरक्षा भी प्राप्त होगी।
बजट 2022-23 में भारत ने विभिन्न आधारभूत संरचना परियोजनाओं में निवेश के माध्यम से अर्थव्यवस्था को आवश्यक गति देने पर ध्यान केंद्रित किया है। आगामी बजट में आधारभूत संरचना क्षेत्र को समान राशि प्राप्त होगी ताकि वर्ष 2025 तक भारत के 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य की ओर सुचारू रूप से आगे बढ़ा जा सके।
वर्ष 2023-24 के बजट में प्रस्तावित आवंटन
- भारत का पूंजीगत व्यय:
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में भारत का पूंजीगत व्यय वर्ष 2014 में 1.7% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में लगभग 2.9% हो गया है।
- आधारभूत संरचना के लिये वर्ष 2023-24 के बजट में 10 लाख करोड़ रुपए (जीडीपी का 3.3%) आवंटित किया गया, जो वर्ष 2019 की तुलना में तीन गुना अधिक है।
- सबसे बड़ा आवंटन:
- रेल मंत्रालय को अब तक का सर्वाधिक 2.4 लाख करोड़ रुपए का आवंटन प्राप्त हुआ है, जो वर्ष 2013-14 के आवंटन का लगभग नौ गुना है।
- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के बजट आवंटन में 36% की वृद्धि हुई है और इसे 2.7 लाख करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं।
- राज्यों के लिये ब्याज मुक्त ऋण का विस्तार:
- केंद्र द्वारा प्रत्यक्ष पूंजी निवेश को राज्य सरकारों के लिये 50-वर्षीय ब्याज मुक्त ऋण में एक वर्ष के विस्तार के साथ पूरकता प्रदान की गई है ताकि 1.3 लाख करोड़ रुपए के उल्लेखनीय रूप से बढ़ाए गए परिव्यय के साथ आधारभूत संरचना निवेश को प्रोत्साहित किया जा सके और पूरक नीतिगत कार्रवाइयों को बढ़ावा दिया जा सके ।
- इससे विभिन्न भू-भागों में शहरी और परिधि-शहरी क्षेत्रों में विकेंद्रीकृत आधारभूत संरचना का विकास होगा।
- प्रधानमंत्री आवास योजना के लिये 66% अधिक आवंटन से न केवल ग्रामीण श्रमिकों को आवास प्रदान किया जाएगा, बल्कि रोज़गार भी सृजित होगा।
- केंद्र द्वारा प्रत्यक्ष पूंजी निवेश को राज्य सरकारों के लिये 50-वर्षीय ब्याज मुक्त ऋण में एक वर्ष के विस्तार के साथ पूरकता प्रदान की गई है ताकि 1.3 लाख करोड़ रुपए के उल्लेखनीय रूप से बढ़ाए गए परिव्यय के साथ आधारभूत संरचना निवेश को प्रोत्साहित किया जा सके और पूरक नीतिगत कार्रवाइयों को बढ़ावा दिया जा सके ।
- भौतिक अवसंरचना:
- भूमि अधिग्रहण: भौतिक अवसंरचना निर्माण से संबद्ध सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक भूमि अधिग्रहण है, क्योंकि इसमें प्रायः लोगों के पुनर्वास और मुआवजे के मुद्दे शामिल होते हैं।
- वित्तपोषण: बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं का वित्तपोषण भी एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि इसके लिये सरकार के पास पर्याप्त संसाधनों की कमी हो सकती है और आर्थिक एवं नियामक बाधाओं के कारण सीमित निजी निवेश प्राप्त हो सकता है।
- प्रौद्योगिकी की कमी: जटिल अवसंरचना परियोजनाओं के लिये आवश्यक प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता की उपलब्धता के मामले में भी भारत चुनौतियों का सामना करता है।
- सामाजिक अवसंरचना:
- अपर्याप्त मानव संसाधन: कुशल कामगारों, इंजीनियरों और प्रबंधकों की कमी सामाजिक अवसंरचना परियोजनाओं के विकास में बाधक बन सकती है।
- सार्वजनिक समर्थन का अभाव: स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी सामाजिक अवसंरचना परियोजनाओं के लिये सार्वजनिक समर्थन और ‘बाय-इन’ (buy-in) की आवश्यकता होती है, जिसे एक जटिल राजनीतिक वातावरण में सुनिश्चित करना कठिन हो सकता है।
- योजना-निर्माण और कार्यान्वयन की अनुपयुक्तता: खराब योजना-निर्माण और कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप गुणवत्ताहीन सुविधाओं एवं संवहनीयता की कमी जैसी स्थिति बन सकती है, जो अंततः आधारभूत संरचना पर बल देने के प्रभाव को कम कर सकती है।
- डिजिटल अवसंरचना:
- ‘डिजिटल डिवाइड’: ग्रामीण क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी और इंटरनेट तक सीमित पहुँच के साथ भारत में एक डिजिटल डिवाइड की स्थिति मौजूद है, जो डिजिटल अवसंरचना के विकास में बाधा बन सकती है।
- साइबर सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग ने साइबर सुरक्षा और गोपनीयता के बारे में भी चिंताओं की वृद्धि की है, जिससे सुदृढ़ विनियमन एवं आधारभूत संरचना का होना आवश्यक हो गया है।
- मानकीकरण का अभाव: डिजिटल अवसंरचना क्षेत्र में मानकीकरण का अभाव और क्षेत्र के विभिन्न खिलाड़ियों के बीच समन्वय की कमी उपयोगकर्ताओं के लिये समस्याएँ पैदा कर सकती है तथा विकास एवं नवाचार की क्षमता को सीमित कर सकती है।
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