लघु जल निकायों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

लघु जल निकायों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुसार, 2010 के दशक के पूर्वार्द्ध से मध्य तक वैश्विक आबादी के लगभग 1.9 बिलियन लोग जल की गंभीर कमी वाले क्षेत्रों में निवास कर रहे थे। वर्ष 2050 तक यह संख्या बढ़कर 2.7-3.2 बिलियन तक पहुँच जाने का अनुमान है।

  • केंद्रीय जल आयोग (CWC) द्वारा प्रकाशित जल एवं संबंधित आँकड़े (2021) में उल्लेख किया गया है कि वर्ष 2025 तक प्रत्येक तीन में से एक व्यक्ति जल-तनावग्रस्त क्षेत्र (water-stressed area) में निवास कर रहा होगा।
  • दुर्भाग्यजनक है कि तालाब, पोखर जैसे लघु जल निकाय (Small Water Bodies- SWBs) जो भारत में लंबे समय से जल की कृषि और घरेलू आवश्यकता का समर्थन करते रहे थे, अब तेज़ी से लुप्त हो रहे हैं। इस परिदृश्य में, बढ़ते जल संकट को टालने के लिये जहाँ तक संभव हो जल आपूर्ति में तत्काल वृद्धि करने की आवश्यकता है।

लघु जल निकायों से प्राप्त प्रमुख लाभ

  • जल तक आसान पहुँच:
    • SWBs विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू आवश्यकताओं, पशुपालन, पेयजल और कृषि के लिये जल की आसान पहुँच प्रदान कर सकते हैं। यह जल सुरक्षा को बेहतर बनाने और घरों के लिये जल संग्रह के बोझ को कम करने में मदद कर सकता है।
    • SWBs हर गाँव में मौजूद होते हैं, जिससे महिलाओं को पेयजल आवश्यकताओं के लिये जल लाने हेतु कम पैदल दूरी तय करनी पड़ती है।
  • कम रखरखाव लागत:
    • बड़े बाँधों और जलाशयों की तुलना में लघु जल निकायों के निर्माण एवं रखरखाव की लागत अपेक्षाकृत कम है। यह उन्हें छोटे पैमाने पर जल भंडारण और प्रबंधन के लिये एक आकर्षक विकल्प बनाता है।
  • किसानों के लिये सहायक:
    • SWBs का उपयोग सिंचाई और जलीय कृषि के लिये किया जा सकता है; इस प्रकार, ये खेती संबंधी गतिविधियों के लिये जल का एक विश्वसनीय स्रोत प्रदान करते हैं। यह फसल की पैदावार बढ़ाने और किसानों के लिये आजीविका का समर्थन करने में मदद कर सकता है।
    • बिना संघर्ष के जल का प्रभावी वितरण लघु और सीमांत किसानों के बीच गरीबी को कम करने में मदद करता है।
  • भूजल पुनर्भरण में सहायता:
    • SWBs भूजल संसाधनों के पुनर्भरण में भी मदद कर सकते हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ भूजल की कमी चिंता का विषय है। वर्षा जल के ग्रहण एवं भंडारण के माध्यम से SWBs भूजल जलभृतों को फिर से भरने और समग्र जल उपलब्धता में सुधार लाने में मदद कर सकते हैं।
  • जैव विविधता:
    • लघु जल निकाय कई दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों सहित पादप एवं जीव प्रजातियों की एक विविध श्रेणी का समर्थन करते हैं। वे मछली, उभयचर, सरीसृप एवं पक्षियों जैसे जलीय और अर्द्ध-जलीय जीवों के लिये महत्त्वपूर्ण पर्यावास एवं प्रजनन आधार प्रदान करते हैं।
  • जल की गुणवत्ता:
    • लघु जल निकाय प्राकृतिक फिल्टर के रूप में कार्य करके जल की गुणवत्ता में सुधार लाने में मदद कर सकते हैं, जहाँ वे अपवाह जल के बड़े जल निकायों में प्रवेश करने से पहले उनमें मौजूद प्रदूषकों और तलछट को दूर करने में भूमिका निभाते हैं। वे सूखे के दौरान भूजल के पुनर्भरण और जल स्तर को बनाए रखने में भी मदद कर सकते हैं।
  • बाढ़ नियंत्रण:
    • लघु जल निकाय बाढ़ के जोखिम को कम करने में भी मदद कर सकते हैं, जहाँ वे भारी बारिश के दौरान अतिरिक्त जल को इकट्ठा करने और उन्हें समय के साथ धीरे-धीरे छोड़ने में भूमिका निभाते हैं।

लघु जल निकायों के समक्ष विद्यमान प्रमुख समस्याएँ

  • जलग्रहण क्षेत्रों का लगातार अतिक्रमण:
    • झीलों, तालाबों और जलधाराओं जैसे लघु जल निकाय अपने जलग्रहण क्षेत्रों के अतिक्रमण के कारण नियमित खतरे का सामना कर रहे हैं।
    • शहरीकरण के विस्तार के साथ लोग इन जल निकायों के जलग्रहण क्षेत्रों में और उसके आसपास आवासों, वाणिज्यिक भवनों और अन्य अवसंरचनाओं का निर्माण कर रहे हैं।
    • इससे प्राकृतिक वनस्पति के विनाश, मृदा के क्षरण और स्वयं जल निकाय के प्रदूषित होने की स्थिति बन सकती है।
      • 1990 के दशक से शुरू हुए शहरी संकुलन (urban agglomeration) ने SWBs को गंभीर रूप से प्रभावित किया है और उनमें से कई ‘डंपिंग ग्राउंड’ में बदल गए हैं।
      • जल संसाधन पर स्थायी समिति (2012-13) ने अपनी 16वीं रिपोर्ट में रेखांकित किया कि देश के अधिकांश जल निकायों का स्वयं राज्य एजेंसियों द्वारा अतिक्रमण किया गया था।
      • जल संसाधन पर स्थायी समिति (2012-13) के अनुसार अतिक्रमण और अन्य कारणों से लगभग 10 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता नष्ट हो गई।
  • वार्षिक रखरखाव का अभाव:
    • लघु जल निकायों को स्वस्थ और कार्यात्मक बनाए रखने के लिये नियमित रखरखाव की आवश्यकता होती है। लेकिन सीमित संसाधनों के कारण इन निकायों को प्रायः उपेक्षित किया जाता है और बदहाली के लिये छोड़ दिया जाता है।
    • रखरखाव की कमी के परिणामस्वरूप तलछट, मलबे एवं प्रदूषकों का निर्माण हो सकता है, जिससे जल की गुणवत्ता खराब हो सकती है और यहाँ तक कि जल निकाय पूरी तरह से सूख सकते हैं।
  • प्रदूषण:
    • लघु जल निकाय प्रायः कृषि अपवाह, सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट और शहरी विकास जैसे विभिन्न स्रोतों से प्रदूषण के शिकार होते हैं।
    • प्रदूषण विभिन्न पारिस्थितिक समस्याओं को जन्म दे सकता है, जिसमें सुपोषण/यूट्रोफिकेशन (eutrophication), शैवाल का अत्यधिक प्रसार और मछलियों का मरना शामिल है।
  • पर्यावास की क्षति:
    • शहरीकरण, वनों की कटाई और कृषि गहनता (agricultural intensification) जैसे भूमि उपयोग परिवर्तनों के कारण लघु जल निकायों को प्रायः पर्यावास की क्षति और विखंडन के खतरों का सामना करना पड़ता है। इससे जैव विविधता और पारिस्थितिक कार्यकरण में गिरावट आ सकती है।
  • आक्रामक प्रजातियाँ:
    • लघु जल निकाय गैर-स्थानीय प्रजातियों के आक्रमण के प्रति असुरक्षित या संवेदनशील हो सकते हैं, जो फिर देशी प्रजातियों को मात दे सकते हैं और पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को बाधित कर सकते हैं।
    • आक्रामक प्रजातियाँ जल की गुणवत्ता और पर्यावास की गुणवत्ता में गिरावट का कारण भी बन सकती हैं।
  • जलवायु परिवर्तन:
    • लघु जल निकाय जलवायु परिवर्तन से भी प्रभावित होते हैं जिससे जल की उपलब्धता, तापमान और गुणवत्ता में परिवर्तन हो सकता है। जलवायु परिवर्तन प्रदूषण एवं पर्यावास की क्षति जैसे अन्य तनावकारी कारकों (stressors) के प्रभावों को भी बढ़ा सकता है।
  • अति उपयोग और दोहन:
    • सिंचाई, पेयजल, मनोरंजन और मत्स्यग्रहण जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिये लघु जल निकायों के अत्यधिक उपयोग और दोहन की स्थिति भी बन सकती है।
    • अति उपयोग से जल संसाधनों की कमी, जल की गुणवत्ता में गिरावट और जैव विविधता की क्षति की स्थिति बन सकती है।

आगे की राह

  • कड़े कानून की आवश्यकता:
    • लगातार बढ़ते अतिक्रमणों को देखते हुए जल निकायों पर अतिक्रमण को संज्ञेय अपराध बनाने के लिये तत्काल कड़े कानून बनाये जाने चाहिये।
      • वर्ष 2014 में मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि SWBs (जलधाराओं, जल निकायों और आर्द्रभूमि) के निकट स्थित भूमि पर किसी योजना या लेआउट के निर्माण की स्वीकृति नहीं दी जानी चाहिये।
  • लघु जल निकायों के लिये एक अलग मंत्रालय का निर्माण करना:
    • SWBs की जीर्ण स्थिति को देखते हुए, समय-समय पर इनकी मरम्मत एवं पुनरुद्धार के लिये पर्याप्त धन के आवंटन के साथ एक अलग मंत्रालय का निर्माण किया जाना चाहिये।
    • किसानों की भागीदारी के बिना, जो SWBs के मुख्य लाभार्थी हैं, इन युगों पुराने साधनों के कार्यकरण में सुधार लाना कठिन है।
  • तालाब उपयोगकर्त्ता संगठन की स्थापना करना:
    • किसानों को एक तालाब उपयोगकर्ता संगठन (tank users’ organisation) की स्थापना के लिये स्वैच्छिक रूप से आगे आना चाहिये और SWBs के मरम्मत कार्य में योगदान करना चाहिये, जैसा सदियों पुरानी कूदीमरामथु (Kudimaramathu) प्रणाली के तहत किया जाता था।
    • चूँकि कॉर्पोरेट क्षेत्र द्वारा भी विभिन्न उद्देश्यों के लिये जल के उपयोग में लगातार वृद्धि हो रही है, उनसे कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के तहत SWBs की मरम्मत एवं पुनरुद्धार की अपेक्षा की जानी चाहिये।
  • संदूषण से बचना:
    • लघु जल निकाय कृषि क्षेत्रों, औद्योगिक गतिविधियों और आवासीय क्षेत्रों से होने वाले अपवाह से उत्पन्न प्रदूषण की चपेट में हैं।
    • उनकी रक्षा के लिये आवश्यक है कि जल निकायों में हानिकारक रसायनों एवं अपशिष्टों के निकास पर रोक लगाकर उनके संदूषण (Contamination) से बचा जाए।
  • आसपास की भूमि का संरक्षण:
    • छोटे जल निकायों का हित आसपास की भूमि के हित से निकटता से संबद्ध है। मृदा क्षरण में योगदान करने वाले विकास कार्यों, वनों की कटाई और अन्य गतिविधियों से आसपास की भूमि की रक्षा करना आवश्यक है, जो जल में अवसादन (sedimentation) और पोषक प्रदूषण (nutrient pollution) को रोकने में मदद कर सकता है।
  • आक्रामक प्रजातियों को नियंत्रित करना:
    • गैर-स्थानीय पादपों एवं जीवों जैसी आक्रामक प्रजायाँ लघु जल निकायों के पारिस्थितिक संतुलन को बाधित कर सकती हैं। उनके प्रवेश और प्रसार को रोकने के लिये आवश्यक नियंत्रण उपाय किये जाने चाहिये।
  • जागरूकता का प्रसार:
    • लघु जल निकायों के महत्त्व के बारे में जन जागरूकता के प्रसार से उनके संरक्षण के लिये समर्थन जुटाने में मदद मिल सकती है। इसमें सामुदायिक कार्यक्रम आयोजित करने, शैक्षिक सामग्री वितरित करने और स्थानीय हितधारकों के साथ संलग्न होने जैसी गतिविधियाँ शामिल हो सकती हैं।
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