भारत में जलवायु स्मार्ट कृषि के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

21वीं सदी में मानव जाति के समक्ष विद्यमान दो सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं– जलवायु परिवर्तन (climate change) और खाद्य असुरक्षा (food insecurity)। जलवायु परिवर्तन के कुछ जारी प्रभाव जैसे हीट वेव्स आकस्मिक बाढ़सूखा और चक्रवात जीवन और आजीविका को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे हैं।

कथित तौर पर विश्व के दक्षिणी महाद्वीप जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर सूखे का सामना कर रहे हैं, जिसका कृषि उत्पादन और किसानों की आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। जनसंख्या विस्तार और आहार परिवर्तन दोनों ही खाद्य की मांग में वृद्धि में योगदान दे रहे हैं। कृषि उत्पादन पर पर्यावरण का प्रभाव कठिनाई को और बढ़ा ही रहा है।

जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ कम उत्पादक होती जा रही हैं। जलवायु परिवर्तन किसानों के समक्ष विद्यमान खतरों को और बढ़ा रहा है, जिससे वे अपने कृषि अभ्यासों के पुनर्मूल्यांकन के लिये प्रेरित हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिये किसान विभिन्न प्रकार के अनुकूलन उपाय कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन एवं शमन की दोहरी चुनौतियों और खाद्य मांग को पूरा करने के लिये वर्ष 2050 तक कृषि उत्पादन में 60% की वृद्धि लाने की तीव्र आवश्यकता से एक समग्र रणनीति की आवश्यकता प्रेरित हुई है।

जलवायु-स्मार्ट कृषि क्या है?

  • जलवायु-कुशल या जलवायु-स्मार्ट कृषि (Climate-Smart Agriculture) एक दृष्टिकोण है जो कृषि-खाद्य प्रणालियों को हरित एवं जलवायु प्रत्यास्थी अभ्यासों में बदलने के लिये कार्रवाइयों को निर्देशित करने में मदद करती है। यह सतत् विकास लक्ष्य (SDGs) और पेरिस समझौते जैसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहमत लक्ष्यों तक पहुँचने का समर्थन करती है।
  • इसका लक्ष्य तीन मुख्य उद्देश्यों की पूर्ति करना है:
    • कृषि उत्पादकता और आय में सतत रूप से वृद्धि करना
    • जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन और प्रत्यास्थता का निर्माण करना
    • ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करना और/या उन्हें समाप्त करना
  • जलवायु-स्मार्ट कृषि अभ्यासों के कुछ उदाहरण हैं:
    • जलवायु-प्रत्यास्थी फसल किस्मों की खेती करना (Cultivating Climate-Resilient Crop Varieties): ऐसी फसलों की खेती जो तापमान एवं वर्षा परिवर्तन, कीटों, बीमारियों और लवणता के प्रति अधिक प्रतिरोधी हों, किसानों को फसल उत्पादन पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से निपटने में मदद कर सकती हैं।
      • उदाहरण के लिये, उप-सहारा अफ्रीका में सूखा-सहिष्णु मक्के की किस्मों को विकसित और प्रसारित किया गया है, जिससे लाखों छोटे किसानों को लाभ प्राप्त हुआ है।
    • संरक्षण कृषि (Conservation Agriculture): बिना जुताई एवं कम जुताई वाली खेती (No-till and reduced-tillage cultivation), मृदा को ढँके रखने के लिये फसल अवशेषों एवं फसल आवरण का उपयोग करना और मृदा की उर्वरता एवं जैव विविधता को बढ़ाने के लिये फसल चक्र या क्रॉप रोटेशन ऐसे कुछ अभ्यास हैं जो संरक्षण कृषि के अंतर्गत शामिल हैं।
      • ये अभ्यास मृदा के कटाव को कम कर सकते हैं, जलधारण क्षमता में सुधार कर सकते हैं, कार्बन पृथक्करण (carbon sequestration) को बढ़ा सकते हैं और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम कर सकते हैं।
    • कृषि वानिकी (Agroforestry): वृक्षों एवं झाड़ियों को फसलों एवं पशुधन के साथ एकीकृत कर अधिक विविध और उत्पादक कृषि प्रणालियों का सृजन किया जा सकता है जो किसानों और पर्यावरण के लिये विभिन्न लाभ प्रदान करती हैं।
      • कृषि वानिकी मृदा की गुणवत्ता बढ़ा सकती है, जल की बचत कर सकती है, आय के स्रोतों में विविधता ला सकती है, ईंधन लकड़ी एवं चारा उपलब्ध करा सकती है और कार्बन पृथक्करण में योगदान कर सकती है।
    • परिशुद्ध सिंचाई (Precision Irrigation): ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई, वर्षा जल संचयन आदि प्रभावकारी जलवायु-स्मार्ट कृषि रणनीतियों के उदाहरण हैं जिनका उपयोग जल उपयोग दक्षता को अधिकतम करने और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिये किया जा सकता है।
      • वास्तविक समय में मृदा की नमी और फसल की जल आवश्यकताओं की निगरानी करने के लिये परिशुद्ध सिंचाई में सेंसर, ड्रोन और उपग्रह इमेजरी जैसे घटकों का योग किया जा सकता है।
    • परिवर्तनीय दर उर्वरकीकरण (Variable Rate Fertilization): सही समय और स्थान पर सही मात्रा में उर्वरक के प्रयोग से फसल की पैदावार को इष्टतम किया जा सकता है तथा पोषक तत्वों की हानि और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
      • प्रत्येक फसल और खेत की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप उर्वरक के प्रयोग के लिये मृदा परीक्षण, रिमोट सेंसिंग और परिशुद्ध कृषि प्रौद्योगिकियों का उपयोग कर परिवर्तनीय दर उर्वरकी की स्थिति प्राप्त की जा सकती है।

जलवायु स्मार्ट कृषि के प्रमुख लाभ 

  • कृषि उत्पादकता में वृद्धि: चूँकि उत्पादन संसाधन कम होते जा रहे हैं और कृषि उत्पादों की मांग बढ़ रही है, जलवायु परिवर्तनशीलता (climate variability) से निपटने के लिये संसाधन-कुशल खेती (resource-efficient farming) की आवश्यकता है।
    • भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण फसल उपज में गिरावट (वर्ष 2010 और 2039 के बीच) 9% के उच्च स्तर तक पहुँच सकती है।
    • CSA जलवायु अनुकूलन, शमन और खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
      • भारत में उपयोग की जाने वाली विभिन्न जलवायु-स्मार्ट तकनीकों के अध्ययन से पता चलता है कि वे कृषि उत्पादन में सुधार करती हैं, कृषि को सतत/संवहनीय एवं विश्वसनीय बनाती हैं और GHG उत्सर्जन को कम करती हैं।
      • गेहूँ उत्पादन के संबंध में उत्तर-पश्चिम सिंधु-गंगा मैदान के एक अध्ययन से पता चलता है कि स्थल-विशिष्ट जुताई-रहित खेती उर्वरक प्रबंधन के लिये लाभप्रद है और GHG उत्सर्जन को कम करते हुए कृषि उपज, पोषक तत्व उपयोग दक्षता एवं लाभप्रदता को बढ़ावा दे सकती है।
    • इसके अलावा, CSA का महत्त्व पारिस्थितिक स्थिरता बनाए रखते हुए कृषि उत्पादन बढ़ाने की क्षमता में भी निहित है।
    • यह सहसंबंध न केवल एक वांछित परिणाम है, बल्कि गर्म होते ग्रह में दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा एवं संवहनीय संसाधन उपयोग के लिये भी आवश्यक है।
  • GHG उत्सर्जन में कमी: कृषि क्षेत्र बड़ी मात्रा में GHG का उत्सर्जन करता है। वर्ष 2018 में GHG उत्सर्जन में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 17% थी। इस परिदृश्य में, GHG उत्सर्जन को कम करने और जैव विविधता की रक्षा करने के लिये CSA का कार्यान्वयन महत्त्वपूर्ण है।
    • इसके अलावा, यह कृषि भूमि में कार्बन भंडारण की संवृद्धि में सहायता करता है।
    • GHG उत्सर्जन को कम कर ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को सीमित करने का पेरिस समझौते का लक्ष्य प्रत्यक्ष रूप से CSA की सफलता से संबद्ध है।
    • कृषि वानिकी और कार्बन पृथक्करण CSA उपायों के दो उदाहरण हैं जो भारत को अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों की पूर्ति करने और जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध वैश्विक संघर्ष में योगदान देने में मदद कर सकते हैं।
  • छोटे और सीमांत किसानों के लिये सहायता: अधिकांश भारतीय किसान छोटे या सीमांत किसान हैं। इस परिदृश्य में, उनके लाभ की वृद्धि करने में CSA महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। जलवायु भेद्यता (climate vulnerability) और कृषि महत्त्व का अंतर्संबंध भारत को एक ऐसे अनूठे परिदृश्य में रखता है जहाँ CSA को अपनाना न केवल वांछनीय है बल्कि आवश्यक भी है।
  • जैव विविधता संरक्षण: CSA का पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित दृष्टिकोण और विभिन्न फसल किस्में फसल भूमि एवं जंगली क्षेत्रों को एक साथ सह-अस्तित्व में रखने में मदद करती हैं। यह सहयोगात्मक प्रयास देशी पौध प्रजातियों को सुरक्षित रखने, परागणकों की आबादी को स्थिर बनाये रखने और पर्यावास क्षरण के प्रभावों को कम करने में मदद करता है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना: CSA फसल विविधीकरण को बढ़ावा देती है, जल दक्षता बढ़ाती है और सूखा-प्रतिरोधी फसल प्रकारों को एकीकृत करती है—जो जलवायु परिवर्तन के विघटनकारी प्रभावों को कम करने में मदद करती हैं।
    • CSA जलवायु संबंधी खतरों और झटकों के जोखिम को कम कर लघु मौसम अवधि एवं अनियमित मौसम पैटर्न जैसे दीर्घकालिक तनावों का सामना करने में प्रत्यास्थता को बढ़ाती है।

भारत में जलवायु स्मार्ट कृषि के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ 

  • जागरूकता और ज्ञान की कमी: नई कृषि पद्धतियों को अपनाने में यह एक आम चुनौती है। किसानों और विस्तार कार्यकर्ताओं (extension workers) के बीच CSA के लाभों या इन अभ्यासों को प्रभावी ढंग से लागू करने के तरीके के बारे में जानकारी की कमी हो सकती है।
  • वित्त, बीमा और बाज़ार तक सीमित पहुँच: किसानों के लिये CSA से जुड़ी नई तकनीकों एवं अभ्यासों में निवेश कर सकने के लिये वित्तपोषण महत्त्वपूर्ण है। वित्त, बीमा और बाज़ार तक पहुँच की कमी CSA को अपनाने में बाधक सिद्ध हो सकती है।
  • अपर्याप्त अवसंरचना और संस्थागत समर्थन: CSA की सफलता सहायक अवसंरचना और संस्थानों पर निर्भर करती है। इसमें सिंचाई प्रणालियाँ, भंडारण सुविधाएँ और विभिन्न संगठन शामिल हैं जो सहायता एवं मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।
  • उच्च लागत और जोखिम: नई प्रौद्योगिकियों और अभ्यासों को अपनाने से संबंद्ध आरंभिक लागत किसानों के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा सिद्ध हो सकती है। इसके अतिरिक्त, जोखिम की आशंका भी इसे अपनाने से हतोत्साहित कर सकती है।
  • नीति और नियामक बाधाएँ: जो नीतियाँ CSA का समर्थन या प्रोत्साहन नहीं करतीं, वे एक बड़ी बाधा सिद्ध हो सकती हैं। नियामक बाधाएँ भी CSA अभ्यासों के विस्तार की गति को मंद कर सकती हैं।

जलवायु-स्मार्ट कृषि को बेहतर ढंग से अपनाने के लिये कौन-से उपाय किये जाने चाहिये?

  • क्षमता निर्माण और जागरूकता: प्रशिक्षण, प्रदर्शन, किसानों का परस्पर संपर्क और मास मीडिया के माध्यम से CSA के सिद्धांतों एवं अभ्यासों पर किसानों और विस्तार कार्यकर्ताओं की क्षमता एवं जागरूकता की वृद्धि करना।
  • वित्तीय और तकनीकी सहायता: CSA प्रौद्योगिकियों और नवाचारों को अपनाने के लिये किसानों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता (जैसे सब्सिडी, ऋण, बीमा, बाज़ार लिंकेज और डिजिटल प्लेटफॉर्म) प्रदान करना।
  • नीतिगत और संस्थागत सुदृढ़ीकरण: CSA को बढ़ावा देने और इसके स्तर को बढ़ाने के लिये नीतिगत एवं संस्थागत ढाँचे को सुदृढ़ करना, जैसे जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय एवं राज्य कार्य-योजनाओं में CSA को एकीकृत करना, एक समर्पित CSA फंड का सृजन करना और CSA समन्वय समिति की स्थापना करना।
  • हाशिये पर स्थित समूहों को भागीदारी के लिये प्रोत्साहित करना: CSA योजना-निर्माण एवं कार्यान्वयन में महिलाओं और हाशिये पर स्थित समूहों की भागीदारी एवं सशक्तीकरण को प्रोत्साहित करना, जैसे कि CSA समितियों में उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना, उन्हें संसाधनों एवं अवसरों तक समान पहुँच प्रदान करना और उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं को संबोधित करना।
  • नवाचार और सहकार्यता का समर्थन: संदर्भ-विशिष्ट एवं मांग-प्रेरित CSA समाधानों को विकसित करने और प्रसारित करने के लिये विभिन्न अभिकर्ताओं एवं क्षेत्रों के बीच नवाचार और सहकार्यता को बढ़ावा देना, जैसे कि भागीदारीपूर्ण अनुसंधान में किसानों को शामिल करना, सार्वजनिक-निजी भागीदारी का सृजन करना और बहु-हितधारक मंचों की सुविधा प्रदान करना।

जलवायु-स्मार्ट कृषि के लिये प्रमुख पहलें

  • राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कोष (National Adaptation Fund for Climate Change), जलवायु प्रत्यास्थी/सुनम्य कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार मृदा स्वास्थ्य मिशन (Soil Health Mission)प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजनापरंपरागत कृषि विकास योजनाबायोटेककिसान (Biotech-KISAN) और जलवायु-स्मार्ट ग्राम (Climate Smart Village) भारत में CSA पर केंद्रित सरकारी पहलों के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। .
  • विभिन्न सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की संस्थाएँ, जैसे किसान-उत्पादक संगठन (FPOs) और गैर-सरकारी संगठन (NGOs) भी CSA को अपनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं।
    • जलवायु परिवर्तन, कृषि और खाद्य सुरक्षा (Climate Change, Agriculture and Food Security- CCAFS) पर CGIAR अनुसंधान कार्यक्रम,जो अनुसंधान संगठनों की एक वैश्विक साझेदारी है, खाद्य सुरक्षा, गरीबी और जलवायु परिवर्तन की परस्पर संबद्ध चुनौतियों के समाधान का उद्देश्य रखता है।
    • विश्व बैंक समूह,जो विकासशील देशों में CSA परियोजनाओं एवं कार्यक्रमों के समर्थन के लिये ऋण, अनुदान एवं तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
    • जलवायु-स्मार्ट कृषि पर वैश्विक गठबंधन (Global Alliance for Climate-Smart Agriculture- GACSA),जो एक स्वैच्छिक मंच है, CSA के संबंध में ज्ञान साझेदारी, नीति संवाद और निवेश की सुविधा के लिये सरकारों, नागरिक समाज, किसानों, अनुसंधान संस्थानों और निजी क्षेत्र को एक साथ लाता है।
    • क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर यूथ नेटवर्क’ (CSAYN),जो विभिन्न देशों के युवाओं का एक समूह है जो युवाओं और अन्य हितधारकों के बीच CSA जागरूकता एवं कार्रवाई को बढ़ावा दे रहा है।

निष्कर्ष

जलवायु-स्मार्ट कृषि (CSA) में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, किसानों को सशक्त बनाने और नवाचार, प्रत्यास्थता एवं संवहनीयता को संयुक्त कर हमारे संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने की क्षमता है। जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में, CSA एक संवहनीय भविष्य सुनिश्चित करने के लिये सक्रिय विश्व के लिये प्रेरणा और रूपांतरण के एक स्रोत के रूप में अहम उपस्थिति रखता है।

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