शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा आयोजित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण ने हाल ही में जुलाई-सितंबर 2023 के आँकड़े जारी किये, जो शहरी क्षेत्रों में भारत की बेरोज़गारी दर को दर्शाते हैं।
हालिया PLFS की प्रमुख विशेषताएँ:
- शहरी बेरोज़गारी दर: शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर 7.2% (जुलाई-सितंबर 2022) से घटकर 6.6% (जुलाई-सितंबर 2023) हो गई।
- पुरुष: यह दर इस समयावधि में 6.6% से घटकर 6% हो गई है।
- महिला: इनकी दर में अधिक सकारात्मक प्रवृत्ति देखी गई, जो दी गई समयावधि में 9.4% से घटकर 8.6% हो गई।
- श्रमिक-जनसंख्या अनुपात: शहरी क्षेत्रों में श्रमिक जनसंख्या अनुपात, जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों का प्रतिशत, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये जुलाई-सितंबर, जो वर्ष 2022 में 44.5% से बढ़कर जुलाई-सितंबर, वर्ष 2023 में 46% हो गया।
- पुरुष: यह दर इस समयावधि के दौरान 68.6% से बढ़कर 69.4% हो गई।
- महिला: इनकी दर इस समयावधि के दौरान 19.7% से बढ़कर 21.9% हो गई।
- श्रम बल भागीदारी दर: शहरी क्षेत्रों में LFPR जुलाई-सितंबर 2022 के 47.9% से बढ़कर जुलाई-सितंबर, 2023 में 49.3% हो गई।
- पुरुष: इनकी दर में इस अवधि के दौरान 73.4% से 73.8% तक मामूली वृद्धि देखी गई।
- महिला: इनकी दर में 21.7% से 24.0% तक अधिक महत्त्वपूर्ण वृद्धि प्रदर्शित की गई।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण क्या है?
- परिचय:
- अधिक नियमित समय अंतराल पर श्रम बल डेटा की उपलब्धता के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए NSSO ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण शुरू किया।
- PLFS बेरोज़गारी दर को श्रम बल में बेरोज़गार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित करता है।
- PLFS का उद्देश्य:
- केवल ‘वर्तमान साप्ताहिक स्थिति’ (CWS) में शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्प समय अंतराल में प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतक (जैसे श्रमिक जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना।
- वार्षिक रूप से ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में ‘सामान्य स्थिति’ और CWS दोनों में रोज़गार तथा बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना।
संबंधित प्रमुख शर्तें क्या हैं?
- श्रम बल भागीदारी दर (LFPR): यह 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के उन लोगों के प्रतिशत का प्रतिनिधित्त्व करता है जो या तो कार्यरत हैं या बेरोज़गार हैं लेकिन सक्रिय रूप से कार्य की तलाश में हैं।
- श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR): यह कुल जनसंख्या के भीतर नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत को मापता है।
- बेरोज़गारी दर (UR): यह श्रम बल में बेरोज़गार वाले व्यक्तियों के प्रतिशत को इंगित करता है।
- गतिविधि के संबंध में:
- प्रमुख गतिविधियों स्थिति (PS): वह प्राथमिक गतिविधि जो एक व्यक्ति पर्याप्त अवधि (सर्वेक्षण से पहले 365 दिनों के दौरान) में कर रहा है।
- सहायक आर्थिक गतिविधियों स्थिति (SS): सर्वेक्षण से पहले 365 दिन की अवधि में कम से कम 30 दिनों के लिये सामान्य प्राथमिक गतिविधि के अलावा अतिरिक्त आर्थिक गतिविधियाँ की गईं।
- वर्तमान साप्ताहिक स्थिति(CWS): यह स्थिति सर्वेक्षण तिथि से ठीक पहले पिछले 7 दिनों के दौरान किसी व्यक्ति की गतिविधियों को दर्शाती है।
शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- संरचनात्मक बेरोज़गारी: शहरी क्षेत्रों में प्राय: कार्यबल के पास मौजूद कौशल और उद्योगों द्वारा मांगे जाने वाले कौशल के बीच असमानता का सामना करना पड़ता है।
- शिक्षा प्रणाली रोज़गार बाज़ार की ज़रूरतों के अनुरूप नहीं है, जिससे अकुशल या अल्प-कुशल श्रमिकों की अधिकता हो जाती है।
- तेज़ी से तकनीकी प्रगति और अर्थव्यवस्था में बदलाव के कारण पारंपरिक उद्योगों में गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप कई शहरी श्रमिकों का रोज़गार चला गया है, जिनके पास उभरते क्षेत्रों के लिये आवश्यक कौशल की कमी है।
- अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: शहरी आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जिसमें कम वेतन, नौकरी की असुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा लाभों की कमी शामिल है।
- यह क्षेत्र अक्सर मौसमी उतार-चढ़ाव का अनुभव करता है, जिससे रोज़गार के अवसर असंगत होते हैं।
- औपचारिक रोज़गार के अवसरों की कमी के कारण कई श्रमिकों को ऐसी नौकरियाँ स्वीकार करने के लिये मजबूर होना पड़ता है जो उनके कौशल स्तर से कम हैं, जिससे मानव संसाधनों का कम उपयोग होता है।
- IMF के अनुसार, भारत में रोज़गार हिस्सेदारी के मामले में असंगठित क्षेत्र 83% कार्यबल को रोज़गार देता है।
- इसके अलावा अर्थव्यवस्था में 92.4% अनौपचारिक श्रमिक हैं (बिना किसी लिखित अनुबंध, सवैतनिक अवकाश और अन्य लाभों के)।
- जनसांख्यिकीय चुनौतियाँ: शहरों में तेज़ी से शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि ने रोज़गार सृजन को पीछे छोड़ दिया है, जिससे श्रम बाज़ार पर बोझ बढ़ गया है और बेरोज़गारी दर बढ़ गई है।
- ग्रामीण से शहरी प्रवास के कारण अक्सर शहरों में श्रम की अत्यधिक आपूर्ति हो जाती है, जिससे प्रवासी आबादी के बीच बेरोज़गारी दर में वृद्धि होती है, जिससे शहरी गरीबी और बढ़ जाती है।
- साख मुद्रास्फीति: शैक्षिक योग्यताओं पर अत्यधिक ज़ोर देने से ऐसी स्थितियाँ पैदा हो सकती हैं जहाँ व्यक्ति उपलब्ध नौकरियों के लिये अत्यधिक योग्य हो जाते हैं, जिससे अल्परोज़गार या बेरोज़गारी हो जाती है।
रोज़गार संबंधी सरकार की पहल:
- आजीविका और उद्यम के लिये सीमांत व्यक्तियों हेतु समर्थन” (स्माइल)
- पीएम-दक्ष (प्रधानमंत्री दक्षता और कुशलता संपन्न हितग्राही)
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई)
- स्टार्ट अप इंडिया स्कीम
- रोज़गार मेला
- इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना- राजस्थान
आगे की राह
- सुधारवादी शिक्षा: प्रासंगिक कौशल प्रदान करने के लिये पाठ्यक्रम को अद्यतन करके व्यावसायिक प्रशिक्षण पर ज़ोर देकर और रोज़गार क्षमता बढ़ाने के लिये आजीवन सीखने को बढ़ावा देकर शिक्षा को वर्तमान बाज़ार की मांगो के साथ संरेखित करना।
- स्टार्टअप इकोसिस्टम सपोर्ट: वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करके नौकरशाही बाधाओं को कम कर और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने के लिये मेंटरशिप कार्यक्रमों की पेशकश करके स्टार्टअप के लिये अनुकूल माहौल को बढ़ावा देना।
- रोज़गारोन्मुख नीतियाँ: ऐसी नीतियाँ बनाना और लागू करना जो रोज़गार सृज़न को बढ़ावा दें, जिसमें बुनियादी ढाँचे में निवेश, उद्योग-अनुकूल नियम और रोज़गार पैदा करने वाले व्यवसायों के लिये वित्तीय प्रोत्साहन शामिल हैं।
- सृज़नात्मक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: सांस्कृतिक उद्योगों, कला और रचनात्मक क्षेत्रों में निवेश करना, सांस्कृतिक उद्यमिता के माध्यम से रोज़गार उत्पन्न करने के लिये कारीगरों, कलाकारों और शिल्पकारों का समर्थन करना।
- हरित स्थल और शहरी कृषि: शहरों के भीतर शहरी कृषि और हरित स्थानों को बढ़ावा देना, खेती, बागवानी और संबंधित पर्यावरण-अनुकूल गतिविधियों में रोज़गार पैदा करना।
- हरित क्षेत्र में रोज़गार पैदा करने के लिये सतत् प्रथा, भूनिर्माण और शहरी वानिकी में प्रशिक्षण प्रदान करना।
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