भारत में चीनी उद्योग की वर्तमान स्थिति से जुड़ी समस्याएँ क्या हैं ?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) के अनुसार, भारत में चीनी मिलों ने 55 लाख टन चीनी के निर्यात हेतु अनुबंध किया है।
- सरकार ने चीनी मिलों को विपणन वर्ष 2022-23 (अक्तूबर-सितंबर) में मई तक 60 लाख टन चीनी निर्यात करने की अनुमति दी है।
भारत में चीनी उद्योग की वर्तमान स्थिति:
- परिचय:
- चीनी उद्योग एक महत्त्वपूर्ण कृषि आधारित उद्योग है जो लगभग 50 मिलियन गन्ना किसानों और चीनी मिलों में सीधे कार्यरत लगभग 5 लाख श्रमिकों की ग्रामीण आजीविका को प्रभावित करता है।
- वर्ष 2021-22 (अक्तूबर-सितंबर) में भारत विश्व में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता तथा विश्व के दूसरे सबसे बड़े निर्यातक के रूप में उभरा है।
- गन्ने की वृद्धि के लिये भौगोलिक स्थितियाँ:
- तापमान: गर्म और आर्द्र जलवायु के साथ 21-27 °C के मध्य।
- वर्षा: लगभग 75-100 सेमी.।
- मृदा का प्रकार: गहरी समृद्ध दोमट मृदा।
- शीर्ष गन्ना उत्पादक राज्य: महाराष्ट्र> उत्तर प्रदेश> कर्नाटक।
- चीनी उद्योग के लिये विकास उत्प्रेरक:
- प्रभावोत्पादक चीनी अवधि (सितंबर-अक्तूबर): इस अवधि के दौरान गन्ना उत्पादन, चीनी उत्पादन, चीनी निर्यात, गन्ना खरीद, गन्ने के बकाये का भुगतान और इथेनॉल उत्पादन सभी के रिकॉर्ड बने थे।
- उच्च निर्यात: बिना किसी वित्तीय सहायता के निर्यात लगभग 109.8 LMT था तथा वर्ष 2021-22 में लगभग 40,000 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा अर्जित की।
- भारत सरकार की नीतिगत पहल: पिछले 5 वर्षों में उचित समय पर की गई सरकारी पहलों ने उन्हें वर्ष 2018-19 में वित्तीय संकट से निकालकर वर्ष 2021-22 में आत्मनिर्भरता के स्तर पर पहुँचा दिया है।
- इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहित करना: सरकार ने चीनी को इथेनॉल में परिवर्तित करने एवं अतिरिक्त चीनी का निर्यात करने के लिये चीनी मिलों को प्रोत्साहित किया है ताकि मिलों के संचालन को जारी रखने के लिये उनकी बेहतर वित्तीय स्थिति हो।
- पेट्रोल के साथ इथेनॉल सम्मिश्रण (Ethanol Blending with Petrol) कार्यक्रम: जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति 2018, वर्ष 2025 तक इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम के तहत 20% इथेनॉल मिश्रण का सांकेतिक लक्ष्य प्रदान करती है।
- उचित और लाभकारी मूल्य: FRP (Fair and Remunerative Price) वह न्यूनतम मूल्य है जो चीनी मिलों को गन्ने की खरीद के लिये गन्ना किसानों को भुगतान करना पड़ता है।
- यह कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों के आधार पर तथा राज्य सरकारों एवं अन्य हितधारकों के परामर्श के बाद निर्धारित किया जाता है।
- संबद्ध समस्याएँ:
- अन्य मिठास बढ़ाने वाले उत्पादों (Sweeteners) से प्रतिस्पर्द्धा: भारतीय चीनी उद्योग को उच्च फ्रुक्टोज कॉर्न सिरप जैसे अन्य मिठास बढ़ाने वाले उत्पादों से बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है, जो उत्पादन हेतु सस्ते है और इनकी शेल्फ लाइफ लंबी है।
- आधुनिक प्रौद्योगिकी की कमी: भारत में कई चीनी मिलें पुरानी हैं और चीनी का कुशलतापूर्वक उत्पादन करने हेतु आवश्यक आधुनिक तकनीक की कमी से ग्रस्त हैं। इससे उद्योगों के लिये अन्य चीनी उत्पादक देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो जाता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: गन्ने की खेती के लिये बड़ी मात्रा में पानी और कीटनाशकों की आवश्यकता होती है, जिसका पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- इसके अतिरिक्त चीनी मिलें अक्सर हवा और पानी में प्रदूषक छोड़ती हैं, जो आस-पास के समुदायों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: भारत में चीनी उद्योग राजनीति से काफी प्रभावित है, चीनी की कीमतों, उत्पादन और वितरण को निर्धारित करने में राज्य एवं केंद्र सरकार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यह अक्सर पारदर्शिता तथा अक्षमता की कमी की ओर ले जाता है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA):
- इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) भारत में एक प्रमुख चीनी संगठन है।
- यह देश में सरकार और चीनी उद्योग (निजी तथा सार्वजनिक चीनी मिलों दोनों) के मध्य इंटरफेस का कार्य करता है।
- इसका मुख्य उद्देश्य सरकार की अनुकूल और विकासोन्मुखी नीतियों के माध्यम से देश में निजी एवं सार्वजनिक चीनी मिलों के कामकाज़ तथा हितों की रक्षा सुनिश्चित करना है।
आगे की राह
- रिमोट सेंसिंग तकनीक: भारत में जल, खाद्य और ऊर्जा क्षेत्रों में गन्ने के महत्त्व के बावजूद भारत में हाल के वर्षों के गन्ना उत्पादन से संबंधित कोई निश्चित भौगोलिक मानचित्र उपलब्ध नहीं है।
- गन्ना उत्पादन क्षेत्रों के मानचित्रण के लिये रिमोट सेंसिंग तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है।
- विविधीकरण: भारत में चीनी उद्योग को जैव ईंधन और जैविक चीनी जैसे अन्य उत्पादों की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए कार्यों में विविधता लानी चाहिये।
- इससे चीनी की कीमतों में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिम को कम करने में मदद मिलेगी।
- अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन: फसल की पैदावार में सुधार लाने और चीनी उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये आवश्यक अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना चाहिये।
- सतत् कार्यप्रणाली को प्रोत्साहित करना: पर्यावरण पर चीनी उत्पादन के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिये इस उद्योग को जल संरक्षण, एकीकृत कीट प्रबंधन और कीटनाशकों के कम उपयोग जैसे संधारणीय अभ्यास को प्रोत्साहित करना चाहिये।
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