एक साथ चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशें क्या हैं?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
चुनाव सुधार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित एक साथ चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति ने भारत में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिये एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव दिया है।
- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई समिति की रिपोर्ट इस महत्त्वपूर्ण बदलाव को सुविधाजनक बनाने के लिये संविधान में व्यापक सिफारिशों और संशोधनों की रूपरेखा तैयार करती है।
एक साथ चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशें क्या हैं?
- एक साथ चुनाव के लिये संक्रमण:
- अनुच्छेद 82A में संशोधन:
- समिति राष्ट्रपति को लोकसभा और विधान सभाओं के एक साथ चुनाव शुरू करने के लिये “नियत तारीख” निर्दिष्ट करने का अधिकार देने के लिये संविधान के अनुच्छेद 82A में संशोधन करने का सुझाव देती है।
- इस तारीख के बाद जिन राज्य विधानसभाओं में चुनाव होने हैं, वे एक साथ चुनाव कराने की सुविधा के लिये अपनी शर्तों को संसद के साथ समन्वयित कर लेंगी।
- अवधि समन्वयन (Term Synchronization):
- यदि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद सिफारिशों को स्वीकार कर लिया जाता है और लागू किया जाता है, तो संभवतः पहला एक साथ चुनाव वर्ष 2029 में हो सकता है।
- वैकल्पिक रूप से यदि वर्ष 2034 के चुनावों को लक्षित किया जाता है, तो वर्ष 2029 के लोकसभा चुनावों के बाद नियत तारीख की पहचान की जाएगी।
- जिन राज्यों में जून 2024 और मई 2029 के बीच चुनाव होने हैं, उनका कार्यकाल 18वीं लोकसभा के साथ समाप्त हो जाएगा, भले ही इसके परिणामस्वरूप कुछ राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल एक बार के उपाय के रूप में पाँच साल से कम हो।
- पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु (2026), पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश (2027) और कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तेलंगाना (2028) जैसे राज्य अपने चुनावी चक्र को समन्वयित (synchronise) करेंगे।
- वर्ष 2024 के चुनावों के बाद चुनी गई सरकार अपनी प्राथमिकता के आधार पर वर्ष 2029 या 2034 को लक्ष्य करते हुए एक साथ चुनाव लागू करने के लिये शुरुआती बिंदु तय करेगी।
- संसद या राज्य विधानसभा के समय से पहले भंग होने की स्थिति में समन्वय बनाए रखने के लिये, समिति ने एक साथ चुनावों के अगले चक्र तक केवल शेष कार्यकाल या “असमाप्त अवधि (unexpired term)” के लिये नए चुनाव कराने की सिफारिश की।
- यह उपाय सुनिश्चित करता है कि कोई भी त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव एक साथ चुनावों की समग्र समय-सीमा को प्रभावित नहीं करता है।
- यदि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद सिफारिशों को स्वीकार कर लिया जाता है और लागू किया जाता है, तो संभवतः पहला एक साथ चुनाव वर्ष 2029 में हो सकता है।
- अनुच्छेद 82A में संशोधन:
- स्थानीय निकाय चुनावों का समन्वयन:
- संसद को आम चुनावों के साथ नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनावों का समन्वय सुनिश्चित करने के लिये संभवतः अनुच्छेद 324A की शुरुआत के माध्यम से कानून बनाने की सलाह दी जाती है।
- यह कानून स्थानीय निकायों की शर्तों को निर्धारित करेगा और उनके चुनाव कार्यक्रम को राष्ट्रीय चुनावी समय-सीमा के साथ संरेखित करेगा।
- मतदाता सूची तैयार करना एवं प्रबंधन:
- समिति संविधान के अनुच्छेद 325 में संशोधन करने का सुझाव देती है ताकि भारत के चुनाव आयोग को राज्य चुनाव आयोगों (SECs) के परामर्श से सरकार के सभी स्तरों पर लागू एकल मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान-पत्र तैयार करने में सक्षम बनाया जा सके।
- लोकसभा के लिये मतदाता सूची ECI द्वारा तैयार और रखरखाव की जाती है, जबकि स्थानीय निकायों के लिये मतदाता सूची SEC द्वारा तैयार की जाती है।
- समिति पुनर्मतदान को रोकने और मतदाता अधिकारों की सुरक्षा के लिये ECI तथा राज्य चुनाव आयोगों के बीच सामंजस्य के महत्त्व पर ज़ोर देती है।
- समिति संविधान के अनुच्छेद 325 में संशोधन करने का सुझाव देती है ताकि भारत के चुनाव आयोग को राज्य चुनाव आयोगों (SECs) के परामर्श से सरकार के सभी स्तरों पर लागू एकल मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान-पत्र तैयार करने में सक्षम बनाया जा सके।
- लॉजिस्टिक व्यवस्थाएँ और व्यय अनुमान:
- समिति ECI से एक साथ चुनावों के लिये विस्तृत आवश्यकताएँ और व्यय अनुमान प्रस्तुत करने को कहती है।
- निर्बाध लॉजिस्टिक व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिये समिति ECI और SECs से व्यापक योजनाएँ तथा अनुमान विकसित करने का आग्रह करती है।
- इन योजनाओं में उपकरण की आवश्यकताएँ, कर्मियों की तैनाती और सुरक्षा उपाय शामिल होने चाहिये।
- शासन और विकास पर प्रभाव:
- समिति प्रभावी निर्णय लेने और सतत् विकास के लिये शासन में निश्चितता के महत्त्व को रेखांकित करती है।
- यह नीतिगत पंगुता को रोकने और प्रगति के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देने में समकालिक चुनावों की भूमिका पर प्रकाश डालता है।
एक साथ चुनाव के संबंध में विवाद क्या हैं?
- पक्ष में तर्क:
- लागत क्षमता:
- एक साथ चुनाव कराने से राज्य और केंद्र दोनों सरकारों द्वारा किये जाने वाले पर्याप्त आवर्ती व्यय में कमी आती है।
- चुनावों को एक कार्यक्रम में समेकित करने से मतदाता पंजीकरण, मतदान केंद्र, चुनाव कर्मचारी, सुरक्षा तैनाती और अन्य लॉजिस्टिक संबंधी आवश्यकताओं से जुड़ी लागत कम हो जाती है।
- सभी चुनावों के लिये एक ही मतदाता सूची के साथ, सुरक्षा बलों और नागरिक अधिकारियों जैसे प्रशासनिक संसाधनों का अधिक कुशलता से उपयोग किया जाता है, जिससे सार्वजनिक धन की बचत होती है जिसे अन्य सार्वजनिक कार्यों के लिये पुनर्निर्देशित किया जा सकता है।
- उन्नत शासन एवं प्रशासन:
- एक साथ चुनाव होने से चुनावी प्रक्रिया सुव्यवस्थित हो जाती है, जिससे बार-बार होने वाले चुनावों के कारण शासन और प्रशासन पर पड़ने वाला दबाव कम हो जाता है।
- अलग-अलग चुनावों के दौरान सुरक्षा और पुलिस बलों की लंबे समय तक तैनाती राष्ट्रीय सुरक्षा तथा कानून प्रवर्तन प्रयासों पर दबाव डाल सकती है, जिसे एक साथ चुनाव कराकर कम किया जा सकता है।
- अधिकारियों के बड़े पैमाने पर तबादले और अलग-अलग चुनावों के दौरान आचार संहिता के कारण होने वाला व्यवधान सरकारी मशीनरी के सुचारु कामकाज में बाधा डाल सकता है, जिसे समकालिक चुनावों के माध्यम से कम किया जा सकता है।
- एक साथ चुनाव होने से चुनावी प्रक्रिया सुव्यवस्थित हो जाती है, जिससे बार-बार होने वाले चुनावों के कारण शासन और प्रशासन पर पड़ने वाला दबाव कम हो जाता है।
- राजनीति में धन का प्रभाव कम होना:
- एक साथ चुनाव कराने से चुनाव अभियानों की आवृत्ति और संबंधित खर्चों को कम करके राजनीति में धन की भूमिका को कम किया जा सकता है।
- अभियान वित्त नियमों को ECI द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकता है, जिससे सभी दलों और उम्मीदवारों के लिये समान अवसर सुनिश्चित होंगे।
- एक साथ चुनाव कराने से चुनाव अभियानों की आवृत्ति और संबंधित खर्चों को कम करके राजनीति में धन की भूमिका को कम किया जा सकता है।
- विभाजनकारी राजनीति का शमन:
- ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की अवधारणा का उद्देश्य मतदाताओं को एकजुट करने में क्षेत्रवाद, जातिवाद और सांप्रदायिकता के विभाजनकारी प्रभाव को कम करना है।
- राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके और एकीकृत चुनावी एजेंडे को बढ़ावा देकर, एक साथ चुनाव संकीर्ण हितों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकता की भावना को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।
- ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की अवधारणा का उद्देश्य मतदाताओं को एकजुट करने में क्षेत्रवाद, जातिवाद और सांप्रदायिकता के विभाजनकारी प्रभाव को कम करना है।
- मतदाता सहभागिता में वृद्धि:
- विभिन्न स्तरों पर बार-बार होने वाले चुनावों से उत्पन्न होने वाली वोटर फेटीग को एक ही कार्यक्रम में एकत्रित करके कम किया जा सकता है।
- एक साथ चुनाव मतदाताओं की उदासीनता को कम करके और प्रत्येक चुनावी अभ्यास के महत्त्व को बढ़ाकर संभावित रूप से राष्ट्रीय स्तर पर मतदान प्रतिशत बढ़ा सकते हैं।
- लागत क्षमता:
- एक साथ चुनाव के खिलाफ तर्क:
- संघवाद और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व:
- एक साथ चुनाव, चुनावी प्रक्रिया को केंद्रीकृत करके और संभावित रूप से राष्ट्रीय मुद्दों के साथ क्षेत्रीय तथा स्थानीय मुद्दों को प्रभावित करके संघवाद के सिद्धांतों को कमज़ोर कर सकते हैं।
- घटक राज्य, विशेष रूप से वे जो राष्ट्रीय स्तर पर गैर-प्रमुख दलों द्वारा शासित हैं, समकालिक चुनाव परिदृश्य में हाशिए पर या अपर्याप्त प्रतिनिधित्व महसूस कर सकते हैं।
- संविधान में निहित संघीय भावना को कमज़ोर करते हुए, राष्ट्रीय पार्टियाँ क्षेत्रीय पार्टियों पर अनुचित लाभ प्राप्त कर सकती हैं।
- एक साथ चुनाव, चुनावी प्रक्रिया को केंद्रीकृत करके और संभावित रूप से राष्ट्रीय मुद्दों के साथ क्षेत्रीय तथा स्थानीय मुद्दों को प्रभावित करके संघवाद के सिद्धांतों को कमज़ोर कर सकते हैं।
- लागत निहितार्थ:
- एक साथ चुनावों के कार्यान्वयन के लिये अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल की खरीद में महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होगी, जिससे वित्तीय बोझ बढ़ जाएगा।
- विधान परिषदों/राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनावों और उप-चुनावों के लिये अभी भी अलग-अलग मतदान आयोजनों की आवश्यकता होगी, जो समकालिक चुनावों के बावजूद चल रही लागत में योगदान देगा।
- जवाबदेही और प्रतिनिधित्व पर प्रभाव:
- सरकार के विभिन्न स्तरों पर बार-बार चुनाव होने से निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच जवाबदेही बनाए रखने में मदद मिलती है और मतदाताओं को अपनी प्राथमिकताएँ व्यक्त करने के नियमित अवसर सुनिश्चित होते हैं।
- चुनावों को समकालिक करने से चुनावी जवाबदेही जाँच की आवृत्ति कम हो सकती है और निर्वाचित अधिकारियों की अपने मतदाताओं की बढ़ती आवश्यकताओं के प्रति जवाबदेही सीमित हो सकती है।
- सरकार के विभिन्न स्तरों पर बार-बार चुनाव होने से निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच जवाबदेही बनाए रखने में मदद मिलती है और मतदाताओं को अपनी प्राथमिकताएँ व्यक्त करने के नियमित अवसर सुनिश्चित होते हैं।
- आवश्यक संवैधानिक संशोधन:
- भारत का संसदीय लोकतंत्र लोकसभा और राज्य विधानसभाओं को उनके पाँच वर्ष के कार्यकाल पूरा होने से पहले भंग करने की अनुमति देता है।
- सभी सदनों के लिये पाँच वर्ष का निश्चित कार्यकाल अवधि और विघटन से संबंधित अनुच्छेद 83, 85, 172 तथा 174 में संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है।
- एक साथ चुनावों को समायोजित करने के लिये राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने को नियंत्रित करने वाले अनुच्छेद 356 में संशोधन की भी आवश्यकता होगी।
- भारत का संसदीय लोकतंत्र लोकसभा और राज्य विधानसभाओं को उनके पाँच वर्ष के कार्यकाल पूरा होने से पहले भंग करने की अनुमति देता है।
- सुरक्षा निहितार्थ:
- एक साथ चुनावों के दौरान, चुनाव ड्यूटी के लिये बड़े सुरक्षा बलों को तैनात करना संभावित रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा को कमज़ोर कर सकता है, क्योंकि यह उन्हें सीमा सुरक्षा से विचलित कर देता है।
- संघवाद और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व:
एक साथ चुनाव के संबंध में संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
संवैधानिक प्रावधान | विवरण |
अनुच्छेद 83 | लोकसभा (लोगों का सदन) की अवधि निर्दिष्ट करती है, जिसमें कहा गया है, कि यह अपनी पहली बैठक से पाँच वर्ष तक जारी रहेगी जब तक कि पहले भंग न हो जाए। |
अनुच्छेद 172 | राज्य विधान सभाओं की अवधि से संबंधित, यह घोषणा करते हुए कि एक विधान सभा अपनी पहली बैठक की तारीख से पाँच वर्ष तक जारी रहेगी। |
अनुच्छेद 324 | निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची की तैयारी और संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के चुनावों की निगरानी, निर्देशन एवं नियंत्रण करने के लिये सशक्त बनाना। |
अनुच्छेद 356 | संवैधानिक शासन की विफलता के मामले में किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुमति देता है, जिससे राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति द्वारा प्रत्यक्ष शासन किया जाता है। |
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 | भारत में चुनाव कराने के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करता है, जिसमें मतदाता सूची, सदस्यता के लिये योग्यता और चुनाव आचरण जैसे पहलू शामिल हैं। |
भारत में एक साथ चुनाव का इतिहास
- भारत में एक साथ चुनाव, जहाँ लोकसभा तथा राज्य विधानसभाएँ दोनों एक साथ निर्वाचित होते थे, आज़ादी के बाद शुरुआती वर्षों में 1952, 1957 एवं 1962 में प्रचलित थे।
- हालाँकि, राजनीतिक अस्थिरता, राज्य विधानसभाओं के शीघ्र विघटन और क्षेत्रीय मुद्दों के समाधान के लिये अलग-अलग चुनावों की आवश्यकता जैसे विभिन्न कारकों के कारण, एक साथ चुनावों की प्रथा धीरे-धीरे खत्म हो गई।
- वर्ष 2019 में, केवल चार राज्यों (आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम) में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव हुए।
एक साथ/समकालिक चुनाव वाले देश
- दक्षिण अफ्रीका:
- नेशनल असेंबली और प्रांतीय विधानसभाओं के चुनाव हर 5 वर्ष में एक साथ होते हैं।
- दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति का चुनाव नेशनल असेंबली द्वारा किया जाता है।
- स्वीडन:
- स्वीडन के प्रधानमंत्री का चुनाव प्रत्येक चार वर्ष में विधायिका द्वारा किया जाता है।
- जर्मनी:
- जर्मनी के चांसलर का चुनाव प्रत्येक चार वर्ष में विधायिका द्वारा किया जाता है।
- चांसलर में विश्वास की कमी को केवल उत्तराधिकारी चुनकर ही दूर किया जा सकता है।
- ब्रिटेन:
- ब्रिटिश संसद और उसके कार्यकाल को स्थिरता तथा पूर्वानुमेयता की भावना प्रदान करने के लिये निश्चित अवधि संसद अधिनियम, 2011 पारित किया गया था। इसमें प्रावधान था कि पहला चुनाव 7 मई, 2015 को और उसके बाद प्रत्येक 5वें वर्ष मई के पहले गुरुवार को होगा।
एक साथ/समकालिक चुनाव के संबंध में विभिन्न अन्य सिफारिशें क्या हैं?
- पिछली रिपोर्ट:
- एक साथ/समकालिक चुनाव के मुद्दे को विधि आयोग (1999) और कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय पर संसदीय स्थायी समिति (2015) की रिपोर्टों में हल किया गया है। इसके अतिरिक्त, विधि आयोग ने वर्ष 2018 में एक प्रारूप रिपोर्ट प्रस्तुत की।
- सिफारिशों का सारांश:
- क्लबिंग चुनाव:
- प्रस्तावों में लोकसभा चुनावों को लगभग आधे राज्य विधानसभा चुनावों के साथ एक चक्र में जोड़ने का सुझाव दिया गया है, जबकि शेष राज्य विधानसभा चुनावों को ढाई वर्ष बाद दूसरे चक्र में कराने का सुझाव दिया गया है।
- इसके लिये मौजूदा विधानसभाओं के कार्यकाल को समायोजित करने हेतु संविधान और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन की आवश्यकता होगी।
- प्रस्तावों में लोकसभा चुनावों को लगभग आधे राज्य विधानसभा चुनावों के साथ एक चक्र में जोड़ने का सुझाव दिया गया है, जबकि शेष राज्य विधानसभा चुनावों को ढाई वर्ष बाद दूसरे चक्र में कराने का सुझाव दिया गया है।
- अविश्वास प्रस्ताव:
- लोकसभा या विधानसभा में किसी भी अविश्वास प्रस्ताव के साथ वैकल्पिक सरकार बनाने का विश्वास प्रस्ताव भी होना चाहिये।
- यदि लोकसभा या राज्य विधानसभा का विघटन अपरिहार्य है, तो नवगठित सदन को विघटन को हतोत्साहित और वैकल्पिक सरकार बनाने की खोज को प्रोत्साहित करने के लिये मूल सदन की केवल शेष अवधि में ही काम करना चाहिये।
- लोकसभा या विधानसभा में किसी भी अविश्वास प्रस्ताव के साथ वैकल्पिक सरकार बनाने का विश्वास प्रस्ताव भी होना चाहिये।
- उप-चुनाव:
- सदस्यों की मृत्यु, इस्तीफे या अयोग्यता के कारण होने वाले उपचुनावों को दक्षता के लिये एक साथ समूहीकृत किया जा सकता है और वर्ष में एक बार आयोजित किया जा सकता है।
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- क्लबिंग चुनाव: