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कोयला संयंत्रों के बंद होने से जुड़े जोखिम क्या है? - श्रीनारद मीडिया

कोयला संयंत्रों के बंद होने से जुड़े जोखिम क्या है?

कोयला संयंत्रों के बंद होने से जुड़े जोखिम क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में धीरे-धीरे प्रगति कर रहा है। हालाँकि विद्युत उत्पादन में स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर इस संक्रमण से कोयला संयंत्रों के बंद होने से जुड़े जोखिमों को लेकर आशंकाएँ बढ़ती जा रही हैं।

स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण में वर्तमान रुझान क्या हैं?

  • पिछले पाँच वर्षों में नई कोयला आधारित विद्युत परियोजनाओं के वित्तपोषण में गिरावट आई है, जबकि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर आधारित परियोजनाओं के वित्तपोषण में लगातार वृद्धि देखी गई है।
  • ऊर्जा मिश्रण में कोयले की हिस्सेदारी अभी भी काफी अधिक है, भारत में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।
  • वर्ष 2022-23 में कुल ऊर्जा क्षमता में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी 41% रही, जो वर्ष 2011-12 में 32% की वृद्धि दर्शाती है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2017 के बाद से कोयला चालित विद्युत उत्पादन की तुलना में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वार्षिक वृद्धि हुई है।
  •   बिजली मिश्रण में स्वच्छ ऊर्जा लगभग 23% तक बढ़ गई है, जबकि भारत की वर्तमान ऊर्जा ज़रूरतों का 55% से अधिक को अभी भी कोयले से पूरा किया जा रहा है। वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये हरित ऊर्जा की ओर इस संक्रमण में तेज़ी लाना आवश्यक है।

स्वच्छ ऊर्जा की ओर परिवर्तन के आर्थिक निहितार्थ क्या हैं?

  • फँसी हुई संपत्तियों का जोखिम:
    • बाज़ार की स्थितियों में अप्रत्याशित बदलाव, विनियामक परिवर्तन, उपभोक्ता की बदलती प्राथमिकताएँ और तकनीकी प्रगति के कारण फँसी परिसंपत्तियों का मूल्य खोने और देनदारियाँ बनने का खतरा है।
      • फँसी हुई संपत्तियाँ ऐसी संपत्तियाँ हैं जो अप्रत्याशित या समय से पहले बट्टे खाते में डालने, अवमूल्यन या देनदारियों में रूपांतरण जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता  है।
    • इससे उन बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिये संभावित जोखिम उत्पन्न हो गया है जिनका जीवाश्म ईंधन क्षेत्र से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध है।
  • वित्तीय संभावनाएँ:
    • भारत में कोयला संयंत्रों को बंद करने से संबद्ध वित्तीय जोखिम अपेक्षाकृत अधिक है क्योंकि इन संयंत्रों की औसत कार्यकाल केवल 13 वर्ष है।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान (NBFC)कोयला परियोजनाओं से संबद्ध ऋण का 90% बोझ वहन करते हैं।
      • इसके अलावा निजी बैंकों ने कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांटों का वित्तपोषण करना  काफी कम कर दिया है।
  • क्षेत्रीय कमज़ोरियाँ: 
    • छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड जैसे क्षेत्रों में राज्य की कोयला बिजली क्षमताओं में तनावग्रस्त संपत्तियों की हिस्सेदारी अधिक है (क्रमशः 58%, 55% और 27%)।
      • इससे परिसंपत्ति अवमूल्यन के कारण उनके वित्तीय हानि का सामना करने का जोखिम बढ़ गया है क्योंकि भारत सतत् ऊर्जा प्रथाओं की ओर बढ़ रहा है।

आगे की राह

  • कठोर नियम और विनियम निवेशकों को कोयले से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में एक सहज एवं पूर्वानुमानित संक्रमण प्रदान करते हैं, सरकारों के लिये आवश्यक है कि वे इसमें शामिल सभी पक्षों के लिये जोखिमों को कम करते हुए इन स्रोतों की ओर कदम बढ़ाएँ।
  • जीवाश्म ईंधन पर निर्भर संपत्तियों से धन को उत्तरोत्तर नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में स्थानांतरित करके वित्तीय संस्थान अपने निवेश पोर्टफोलियो में विविधता ला सकते हैं। वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों के अनुरूप यह कार्रवाई फँसी हुई परिसंपत्तियों से जुड़े खतरों को भी कम कर सकती है।

 

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