संविधान में राज्यसभा सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का क्या हैं नियम?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्षी दलों ने अविश्वास प्रस्ताव की पेशकश की है। प्रस्ताव पर विपक्ष के 60 सांसदों के हस्ताक्षर हैं। भले ही कहा जा रहा हो कि धनखड़ के खिलाफ यह प्रस्ताव सफल नहीं हो पाएगा, लेकिन विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने इसके जरिए एक संदेश जरूर दे दिया है।
लेकिन राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का नियम क्या है? क्या प्रस्ताव लाते ही सभापति को पद से हटना पड़ता है और संविधान में इस बारे में क्या कुछ लिखा हैं।

विपक्ष का सभापति पर क्या आरोप?

सबसे पहले समझिए कि ये अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाया गया। दरअसल विपक्षी दल जगदीप धनखड़ के खिलाफ पहले भी पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगा चुके हैं। उनका आरोप है कि सदन में सभापति विपक्ष को बोलने का मौका नहीं देते।

मानसून सत्र में भी धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाना था, लेकिन फिर बात आगे नहीं बढ़ पाई थी। अब शीतकालीन सत्र में फिर से विपक्ष में सहमति बनी और राज्यसभा के महासचिव पी सी मोदी को यह प्रस्ताव सौंप दिया गया।

अविश्वास प्रस्ताव लाने का क्या है नियम?

संविधान के अनुच्छेद 67B में उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने और इसकी प्रक्रिया का जिक्र है। आप जानते हैं कि भारत का उपराष्ट्रपति ही राज्यसभा का सभापति होता है। अनुच्छेद 67बी के अनुसार, यदि उपराष्ट्रपति के खिलाफ राज्यसभा में प्रस्ताव लाया जाता है और यह बहुमत से पारित हो जाता है, तो इस अविश्वास प्रस्ताव को लोकसभा में भेजा जाता है।

लोकसभा से भी प्रस्ताव के पारित होने पर उपराष्ट्रपति को अपने पद से त्याग पत्र देना पड़ता है। हालांकि उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के भी कुछ नियम हैं। इसमें एक बात तो यह है कि प्रस्ताव लाने के लिए राज्यसभा के कम से कम 50 सांसदों का समर्थन जरूरी है।
वहीं अविश्वास प्रस्ताव के लिए 14 दिन पूर्व नोटिस भी देना होता है। शीतकालीन सत्र 20 दिसंबर को खत्म हो रहा है। ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव की वैधता पर अभी भी संशय बना हुआ है। एक बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि उपराष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रक्रिया केवल राज्यसभा में ही शुरू की जा सकती है।

प्रस्ताव पारित होने के लिए कितने सांसदों का समर्थन जरूरी?

उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव पहले राज्यसभा और फिर लोकसभा में बहुमत से पारित होना चाहिए। इस समय राज्यसभा में कुल 231 सदस्य हैं। अगर विपक्ष को प्रस्ताव पारित करवाना है, तो उसे 116 सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी।
राज्यसभा में कांग्रेस के 27, तृणमूल कांग्रेस के 12, आम आदमी पार्टी के 10, समाजवादी पार्टी के 4, डीएमके के 10 और राष्ट्रीय जनता दल के 5 सदस्य हैं। इसके अलावा कुछ अन्य दलों के भी सांसद हैं, जिन्हें मिलाकर भी विपक्षी ब्लॉक के पास 85 सदस्य होंगे।
ऐसे में राज्यसभा में प्रस्ताव के पारित होने की उम्मीद न के बराबर ही है। अगर मान भी लें कि राज्यसभा में यह प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो लोकसभा में विपक्ष के लिए संख्याबल जुटाना मुश्किल होगा।

फिर प्रस्ताव क्यों लाया विपक्ष?

जानकार कहते हैं कि विपक्ष को भी पता है कि अविश्वास प्रस्ताव पारित नहीं हो पाएगा। लेकिन इसे सांकेतिक विरोध दर्ज कराने के लिए लेकर आए हैं। विपक्ष लगातार धनखड़ पर सरकार का पक्ष लेने का आरोप लगा रहा है।
ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव लाने से जनता में यह संदेश देने की कोशिश है कि सदन में विपक्ष की बात नहीं सुनी जा रही है। विपक्षी सांसदों का आरोप है कि सभापति भाजपा के लोगों को बात रखने की अनुमति दे देते हैं, लेकिन विपक्ष की बात तक नहीं सुनते।

क्या पहले कभी लाया गया ऐसा प्रस्ताव?

  • आपको जानकर आश्चर्य होगा कि संसद के इतिहास में यह पहली बार है, जब राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। इसके पहले साल 2020 में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया था।
  • वहीं लोकसभा में साल 1951 में पहली बार तत्कालीन स्पीकर गणेश वासुदेव मावलंकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था। इसके बाद 1966 में स्पीकर सरदार हुकुम सिंह और 1987 में लोकसभा स्पीकर बलराम जाखड़ के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था।

सरकार के खिलाफ भी लाया गया अविश्वास प्रस्ताव

उपराष्ट्रपति के खिलाफ भले ही देश में कभी अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया गया हो, लेकिन सरकार के खिलाफ अब तक 28 बार इस अधिकार का इस्तेमाल किया गया है। 2014 के बाद से केवल नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ 2 बार अविश्वास प्रस्ताव आ चुका है।

इंदिरा के खिलाफ सबसे ज्यादा बार आए प्रस्ताव

अब तक सबसे अधिक अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी की सरकार में पेश किए गए हैं। उनके 15 वर्ष के कार्यकाल में 15 बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए। हालांकि ये सभी प्रस्ताव गिर गए थे।

महज एक वोट से गई थी वाजपेयी की कुर्सी

हालांकि अब तक केवल तीन प्रधानमंत्रियों की कुर्सी अविश्वास प्रस्ताव की वजह से गिरी है, जिसमें विश्वनाथ प्रताप सिंह, एच. डी. देवेगौड़ा और अटल बिहारी वाजपेयी शामिल हैं। अटल वाजपेयी की सरकार तो महज एक वोट से गिर गई थी।

 

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