नागरिकता संशोधन कानून के लिए नियम क्या हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के नियमों को अधिसूचित किया, जिससे दिसंबर 2019 में संसद द्वारा पारित होने के 4 वर्ष बाद इसके कार्यान्वयन का मार्ग प्रशस्त हुआ।

  • CAA, 2019 एक भारतीय कानून है जो पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान से छह धार्मिक अल्पसंख्यकों: हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी एवं ईसाई से संबंधित प्रवासियों के लिये भारतीय नागरिकता का मार्ग प्रदान करता है।

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर सरकार द्वारा जारी किये गए नियम क्या हैं?

  • ऐतिहासिक संदर्भ: सरकार ने शरणार्थियों की दुर्दशा को दूर करने के लिये पहले भी कदम उठाए हैं, जिसमें वर्ष 2004 में नागरिकता नियमों में संशोधन तथा वर्ष 2014, वर्ष 2015, वर्ष 2016 एवं वर्ष 2018 में की गई अधिसूचनाएँ भी शामिल हैं।
  • CAA नियम 2024: नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6B CAA के अंर्तगत नागरिकता के लिये आवेदन प्रक्रिया का आधार है। भारतीय नागरिकता हेतु पात्र होने के लिये आवेदक को अपनी राष्ट्रीयता, धर्म, भारत में प्रवेश की तिथि एवं भारतीय भाषाओं में से किसी एक में दक्षता का प्रमाण देना होगा।
    • मूल देश का प्रमाण: लचीली आवश्यकताएँ विभिन्न दस्तावेज़ों की अनुमति देती हैं, जिनमें जन्म अथवा शैक्षणिक प्रमाण-पत्र, पहचान दस्तावेज़, लाइसेंस, भूमि रिकॉर्ड अथवा उल्लिखित देशों की नागरिकता सिद्ध करने वाला कोई भी दस्तावेज़ शामिल है।
    • भारत में प्रवेश की तिथि: आवेदक भारत में प्रवेश के प्रमाण के रूप में 20 अलग-अलग दस्तावेज़ प्रदान कर सकते हैं, जिनमें वीज़ा, आवासीय परमिट, जनगणना पर्चियाँ, ड्राइविंग लाइसेंस, आधार कार्ड, राशन कार्ड, सरकारी अथवा न्यायालयी पत्र, जन्म प्रमाण-पत्र और बहुत कुछ शामिल हैं।
  • नियमों के क्रियान्वयन के लिये तंत्र: 
    • गृह मंत्रालय (MHA) ने CAA के अंर्तगत नागरिकता आवेदनों को संसाधित करने का काम केंद्र सरकार के तहत डाक विभाग एवं जनगणना अधिकारियों को सौंपा है।
      • इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) जैसी केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों द्वारा पृष्ठभूमि एवं सुरक्षा जाँच की जाएगी।
    • आवेदनों पर अंतिम निर्णय प्रत्येक राज्य में निदेशक (जनगणना संचालन) के नेतृत्व वाली सशक्त समितियों द्वारा किया जाएगा।
    • इन समितियों में इंटेलिजेंस ब्यूरो, पोस्ट मास्टर जनरल, राज्य अथवा राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र सहित विभिन्न विभागों के अधिकारी एवं राज्य सरकार के गृह विभाग के साथ ही मंडल रेलवे प्रबंधक के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
      • डाक विभाग के अधीक्षक की अध्यक्षता में ज़िला-स्तरीय समितियाँ आवेदनों की जाँच करेंगी, जिसमें ज़िला कलेक्टर कार्यालय का एक प्रतिनिधि आमंत्रित सदस्य होगा।
  • आवेदनों का प्रसंस्करण: केंद्र द्वारा स्थापित अधिकार प्राप्त समिति एवं ज़िला स्तरीय समिति (DLC), राज्य नियंत्रण को दरकिनार करते हुए नागरिकता आवेदनों पर कार्रवाई करेगी।
    • DLC आवेदन प्राप्त करेगा और अंतिम निर्णय निदेशक (जनगणना संचालन) की अध्यक्षता वाली अधिकार प्राप्त समिति द्वारा किया जाएगा।

नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 क्या है?

  • भारत में नागरिकता: नागरिकता एक व्यक्ति तथा राज्य के बीच कानूनी स्थिति और संबंध है जिसमें विशिष्ट अधिकार एवं कर्त्तव्य शामिल होते हैं।
    • भारत में नागरिकता संविधान के अंर्तगत संघ सूची में सूचीबद्ध है और इस प्रकार यह संसद के विशेष क्षेत्राधिकार के अंतर्गत है।
      • 26 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान द्वारा भारतीय नागरिकता के लिये पात्र लोगों की श्रेणियाँ स्थापित कीं।
        • इसने संसद को नागरिकता के अतिरिक्त पहलुओं, जैसे अनुदान तथा अपरिग्रह को विनियमित करने का अधिकार भी प्रदान किया।
      • इस अधिकार के अंर्तगत संसद ने नागरिकता अधिनियम, 1955, लागू किया गया।   
    • अधिनियम निर्दिष्ट करता है कि भारत में नागरिकता पाँच तरीकों से हासिल की जा सकती है: भारत में जन्म से, वंश द्वारा, पंजीकरण के माध्यम से, प्राकृतिककरण (भारत में विस्तारित निवास) द्वारा और भारत में क्षेत्र को शामिल करके।
      • राजदूतों के लिये भारत में जन्में बच्चे केवल देश में उनके जन्म के आधार पर भारतीय नागरिकता हेतु पात्र नहीं हैं।

  • परिचय: पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई प्रवासियों को नागरिकता देने के लिये नागरिकता अधिनियम, 1955 में वर्ष 2019 में संशोधन किया गया था।
    • संशोधन के तहत, 31 दिसंबर 2014 को भारत में आकर रहने वाले और अपने मूल देश में “धार्मिक उत्पीड़न, भय या धार्मिक उत्पीड़न” का सामना करने वाले प्रवासियों को त्वरित नागरिकता के लिये पात्र बनाया जाएगा।
    • यह छह समुदायों के सदस्यों को विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 के तहत किसी भी आपराधिक मामले से छूट देता है, जो अवैध रूप से देश में प्रवेश करने तथा समाप्त वीज़ा एवं परमिट पर रहने के लिये सज़ा निर्दिष्ट करता है।
  • रियायत (Relaxations): नागरिकता अधिनियम, 1955 के अंतर्गत देशीकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने हेतु आवेदक को पिछले 12 महीनों से लगातार और साथ ही पिछले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में रहा होना चाहिये।
    • वर्ष 2019 के संशोधन निर्दिष्ट छह धर्मों और उपर्युक्त तीन देशों से संबंधित आवेदकों के लिये भारत में 11 वर्ष रहने की शर्त को 6 वर्ष करता है।
  • छूट (Exemptions): CAA भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत उल्लिखित क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा, जिसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्र शामिल हैं।
    • इसके अतिरिक्त, इनर लाइन परमिट सिस्टम के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों को भी CAA से छूट दी गई है।
      • इनर लाइन की अवधारणा पूर्वोत्तर की आदिवासी बहुल पहाड़ियों को मैदानी इलाकों से अलग करती है। यह पहाड़ी क्षेत्रों में प्रवेश करने तथा निवास करने के लिये अन्य क्षेत्रों के भारतीय नागरिकों को इनर लाइन परमिट (ILP) की आवश्यकता होती है।
      • वर्तमान में, इनर लाइन परमिट भारतीय नागरिकों सहित सभी व्यक्तियों की अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड की यात्रा को नियंत्रित करता है।
    • इस बहिष्कार का उद्देश्य उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में आदिवासी और स्वदेशी समुदायों के हितों की रक्षा करना है, यह सुनिश्चित करना कि इन क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्ति CAA, 2019 के प्रावधानों के तहत नागरिकता नहीं मांग सकते हैं।

CAA, 2019 से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?

  • संवैधानिक चुनौती: आलोचकों का तर्क है कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है, जो कानून के समक्ष समानता के अधिकार की गारंटी देता है और धर्म के आधार पर भेदभाव पर रोक लगाता है।
    • CAA में धर्म के आधार पर नागरिकता देने के प्रावधान को भेदभावपूर्ण माना जाता है।
  • मताधिकार से वंचित होने की संभावना: CAA को अक्सर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) से जोड़ा जाता है, जो अवैध अप्रवासियों की पहचान करने हेतु प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी अभ्यास है।
    • आलोचकों को डर है कि CAA और दोषपूर्ण NRC का संयोजन कई नागरिकों को मताधिकार से वंचित कर सकता है जो अपने दस्तावेज़ साबित करने में असमर्थ हैं।
      • अगस्त 2019 में जारी असम NRC के अंतिम मसौदे से 19.06 लाख से अधिक लोगों को बाहर कर दिया गया था।
  • असम समझौते पर प्रभाव: असम में, असम समझौते, 1985 के साथ CAA की अनुकूलता को लेकर एक विशेष चिंता है।
    • समझौते ने असम में नागरिकता निर्धारित करने के लिये मानदंड स्थापित किये जिसमें निवास हेतु विशिष्ट कट-ऑफ तारीखें भी शामिल थीं।
    • CAA में नागरिकता देने के लिये अलग समयसीमा का प्रावधान असम समझौते के प्रावधानों के साथ टकराव पैदा कर सकता है, जिससे कानूनी और राजनीतिक जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं।
  • पंथनिरपेक्षता और सामाजिक एकजुटता: CAA के तहत धर्म को नागरिकता पात्रता के मानदंड के रूप में प्रदर्शित किया गया जो भारत में पंथनिरपेक्षता और सामाजिक एकजुटता पर इसके प्रभाव के संबंध में व्यापक चिंताएँ उत्पन्न करता हैं।
    • आलोचकों का तर्क है कि कुछ धार्मिक समुदायों को अन्य समुदायों की तुलना में विशेषाधिकार प्रदान करने से भारत के गठन से संबंधित पंथनिरपेक्ष सिद्धांत प्रभावित हो सकते हैं जिसके परिणामस्वरूप सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है।
  • कुछ धार्मिक समुदायों का बहिष्कार: CAA और इससे संबधित बाद के नियमों में अपने मूल देशों में धार्मिक उत्पीड़न का शिकार हुए कुछ धार्मिक समुदायों जैसे श्रीलंकाई तमिल तथा तिब्बती बौद्ध का अपवर्जन (शामिल न करना) किया गया है जो एक चिंता का विषय है।

नोट: पश्चिम बंगाल के मतुआ समुदाय {पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के हिंदू शरणार्थी)} ने CAA के नियमों का स्वागत किया है। यह अधिसूचना मतुआ संप्रदाय के संस्थापक हरिचंद ठाकुर की जयंती के साथ मेल खाती है जिनका जन्म वर्ष 1812 में वर्तमान बांग्लादेश में हुआ था।

आगे की राह

  • शरणार्थी हेतु समावेशी नीति: संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन के अनुरूप भारत में धर्म, जाति अथवा किसी अन्य मनमाने मानदंड के आधार रहित एक अधिक समावेशी शरणार्थी नीति विकसित करने की आवश्यकता है।
    • साथ ही सभी व्यक्तियों को उनकी पृष्ठभूमि की परवाह किये बिना समान अवसर प्रदान करते हुए नागरिकता कानून में समता और भेदभाव मुक्त सिद्धांतों की प्राथमिकता सुनिश्चित की जानी चाहिये।
  • प्रलेखीकरण हेतु सहायता: नागरिकता सत्यापित करने हेतु आवश्यक दस्तावेज़ प्राप्त करने में व्यक्तियों, विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले समुदायों की सहायता के लिये उपाय लागू करने की आवश्यकता है।
    • नागरिकता सुनिश्चित करने हेतु व्यक्तियों को नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया में मदद करने के लिये सहायता सेवाएँ और संसाधन प्रदान करना।
  • हितधारक सहभागिता और संवाद: CAA से संबंधित शिकायतों और चिंताओं का समाधान करने के लिये नागरिक समाज संगठनों, धार्मिक नेताओं तथा इसका विरोध करने वाले समुदायों के साथ सार्थक वार्ता एवं परामर्श की सुविधा प्रदान करना।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अन्य देशों के साथ सहभागिता: धार्मिक उत्पीड़न और मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित चिंताओं का समाधान करने के लिये पड़ोसी देशों, विशेष रूप से पाकिस्तान, अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश के साथ वार्ता करना।
    • भारत को धार्मिक स्वतंत्रता और सहिष्णुता को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से क्षेत्रीय सहयोग तथा राजनयिक पहल की दिशा में भी कार्य करना चाहिये।
  • शैक्षिक और जागरूकता अभियान: शैक्षिक और जागरूकता अभियान के माध्यम से नागरिकता कानूनों के संबंधी में सटीक जानकारी प्रसारित कर गलत सूचना अथवा गलत धारणाओं को दूर करने की आवश्यकता है।

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