भारत निर्वाचन आयोग से संबद्ध विभिन्न मुद्दे क्या हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

  • संवैधानिक सीमाएँ:
    • संविधान ने निर्वाचन आयोग के सदस्यों की योग्यता (विधिक, शैक्षणिक, प्रशासनिक या न्यायिक) निर्धारित नहीं की है।
    • संविधान में निर्वाचन आयोग के सदस्यों का कार्यकाल निर्दिष्ट नहीं किया गया है।
    • संविधान ने सेवानिवृत्त निर्वाचन आयुक्तों को सरकार द्वारा किसी भी आगे की नियुक्ति से अवरुद्ध नहीं किया है।
  • चयन समिति में सरकार का प्रभुत्व:
    • मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पद की अवधि) अधिनियम, 2023 के तहत एक चयन समिति का गठन किया गया है जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं।
    • इस प्रकार, चयन समिति में तत्कालीन सरकार के सदस्यों का बहुमत होता है, जो ECI की स्वतंत्रता को कमज़ोर कर सकता है।
  • कार्यकाल की सुरक्षा:
    • निर्वाचन आयुक्तों के लिये कार्यकाल की सुरक्षा की गारंटी नहीं है क्योंकि उन्हें औपचारिक महाभियोग प्रक्रिया के बजाय मुख्य निर्वाचन आयुक्त की अनुशंसा पर सत्तारूढ़ सरकार द्वारा हटाया जा सकता है। इससे वे असुरक्षित हो जाते हैं और संभावित रूप से उनकी स्वतंत्रता पर असर पड़ता है।
  • वित्तीय स्वतंत्रता का अभाव:
    • निर्वाचन आयोग की वित्तीय स्वतंत्रता सीमित है क्योंकि यह वित्तीय मामलों के लिये केंद्र सरकार पर निर्भर है।
    • विभिन्न प्रावधानों के माध्यम से इसकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के प्रयासों के बावजूद, निर्वाचन आयोग का व्यय भारत की संचित निधि से प्राप्त नहीं किया जाता है, जिससे केंद्र सरकार पर उसकी निर्भरता और बढ़ जाती है।
  • चुनावी कदाचार:
    • मतदाता सूची में अनियमितताएँ एवं विसंगतियाँ (जैसे डुप्लिकेट प्रविष्टियाँ, अशुद्धियाँ एवं अपवर्जन) ऐसे नियमित रूप से बने रहे मुद्दे हैं जो नागरिकों को मताधिकार से वंचित कर सकते हैं और चुनाव की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकते हैं।
    • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों के साथ छेड़छाड़, मतदाता प्रतिरूपण और मतदाता सूचियों में हेरफेर सहित चुनावी धोखाधड़ी के विभिन्न मामले चुनाव की अखंडता के लिये खतरा पैदा करते हैं।
    • चुनावी हिंसा, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता या सांप्रदायिक तनाव का इतिहास रहा है, एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बनी हुई है।
  • राजनीतिक पूर्वाग्रह के आरोप:
    • ECI को उसकी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में राजनीतिक पूर्वाग्रह और पक्षपात के आरोपों का सामना करना पड़ा है।
    • आयोग के आदेश द्वारा राज्य सरकारों के अधीन कार्यरत वरिष्ठ अधिकारियों के अचानक स्थानांतरण के उदाहरण सामने आते रहे हैं।
    • राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा MCC के उल्लंघन (जैसे घृणास्पद भाषण, सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग और नकदी एवं उपहारों का वितरण) के मामले अधिक प्रभावी प्रवर्तन तंत्र की आवश्यकता को उजागर करते हैं।
    • कुछ राजनीतिक दलों और हितधारकों द्वारा ECI पर सत्तारूढ़ दल से प्रभावित होने या चुनावी विवादों एवं शिकायतों को संबोधित करने में निष्पक्ष रूप से कार्य करने में विफल रहने के आरोप लगाये जाते रहे हैं।
  • राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति का अभाव:
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत नामांकन प्राधिकारी के रूप में अपनी भूमिका के बावजूद, निर्वाचन आयोग के पास गंभीर उल्लंघन के मामलों में भी राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति नहीं है।
    • इसके अतिरिक्त, ECI के पास दलों में आंतरिक लोकतंत्र को लागू करने या दलों के वित्त को विनियमित करने की शक्ति नहीं है।
  • अभिगम्यता और समावेशिता:

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