भारत के जनजातीय समाज को सशक्त बनाने के तरीके क्या है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पूर्वोत्तर क्षेत्र के संस्कृति, पर्यटन और विकास मंत्री ने राज्यसभा में देश की जनजातीय सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा, संरक्षण एवं प्रचार के उद्देश्य से सरकार द्वारा शुरू की गई विभिन्न योजनाओं तथा कार्यक्रमों का उल्लेख किया।
भारत में जनजातियों के सशक्तीकरण के हालिया प्रयास:
- क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र (Zonal Cultural Centres- ZCCs): भारत सरकार ने सात ZCCs की स्थापना की है जो नियमित आधार पर देश भर में विविध सांस्कृतिक गतिविधियों और कार्यक्रमों के आयोजन के लिये उत्तरदायी हैं। ये केंद्र देश भर में जनजातीय भाषाओं एवं संस्कृति के संरक्षण में भी सहायता करेंगे।
- पटियाला, नागपुर, उदयपुर, प्रयागराज, कोलकाता, दीमापुर और तंजावुर में मुख्यालय के साथ इन परिषदों की स्थापना की गई है।
- क्षेत्रीय त्योहार: संस्कृति मंत्रालय के तहत प्रत्येक वर्ष क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों के माध्यम से कई राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव और कम-से-कम 42 क्षेत्रीय त्योहारों का आयोजन किया जाता है।
- इन गतिविधियों का समर्थन करने के लिये सरकार सभी क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों को अनुदान स्वरूप सहायता प्रदान करती है।
- जनजातीय भाषाओं का प्रचार-प्रसार: सरकार जनजातीय भाषाओं को बढ़ावा देने, जनजातीय भाषाओं के संरक्षण के लिये द्विभाषी प्राइमर्स के विकास और जनजातीय साहित्य को बढ़ावा देने हेतु राज्य जनजातीय अनुसंधान संस्थानों को अनुदान भी प्रदान करती है।
- जनजातीय अनुसंधान सूचना, शिक्षा, संचार और कार्यक्रम (TRU-ECE) योजना: इसके तहत जनजातीय समुदायों की संस्कृति, कलाकृतियों, रीति-रिवाज़ों एवं परंपराओं को बढ़ावा देने के उद्देश्य से TRU-ECE योजना के लिये प्रतिष्ठित संस्थानों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- एकलव्य मॉडल और संग्रहालय: आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने जनजातीय छात्रों की शिक्षा का समर्थन करने के लिये लगभग 750 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय स्थापित करने का संकल्प लिया है।
- सरकार ने आदिवासी लोगों के वीरतापूर्ण और देशभक्तिपूर्ण कार्यों को स्वीकार करने के लिये दस जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों को भी मंज़ूरी दी है।
- आदिवासी अनुदान प्रबंधन प्रणाली (ADIGRAMS): यह मंत्रालय द्वारा राज्यों को दिये गए अनुदान की भौतिक और वित्तीय प्रगति की निगरानी करती है तथा धनराशि के वास्तविक उपयोग को ट्रैक कर सकती है।
- जनजातीय गौरव दिवस: वर्ष 2021 में जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती को चिह्नित करने के लिये प्रत्येक वर्ष 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया।
अन्य संबंधित सरकारी योजनाएँ:
- ट्राईफेड
- जनजातीय स्कूलों का डिजिटल परिवर्तन
- विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों का विकास
- प्रधानमंत्री वन धन योजना
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)
अनुसूचित जनजातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- भारत का संविधान ‘जनजाति’ शब्द को परिभाषित करने का प्रयास नहीं करता है, हालाँकि अनुसूचित जनजाति‘ शब्द को अनुच्छेद 342 (i) के माध्यम से संविधान में प्रस्तुत किया गया था।
- इसमें कहा गया है कि ‘राष्ट्रपति, सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा जनजातियों या आदिवासी समुदायों या जनजातियों या आदिवासी समुदायों के कुछ हिस्सों या समूहों को निर्दिष्ट कर सकता है, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिये अनुसूचित जनजाति माना जाएगा।
- संविधान की पाँचवीं अनुसूची अनुसूचित क्षेत्रों वाले प्रत्येक राज्य में जनजाति सलाहकार परिषद की स्थापना का प्रावधान करती है।
- शैक्षिक एवं सांस्कृतिक सुरक्षा उपाय:
- अनुच्छेद 15(4): अन्य पिछड़े वर्गों (इसमें ST भी शामिल हैं) की उन्नति के लिये विशेष प्रावधान।
- अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा (इसमें ST भी शामिल हैं)।
- अनुच्छेद 46: राज्य, विशेष देखभाल के साथ कमज़ोर वर्गों और विशेष रूप से अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक तथा आर्थिक हितों को बढ़ावा देगा और उन्हें सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से बचाएगा।
- अनुच्छेद 350: एक विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति के संरक्षण का अधिकार।
- राजनीतिक सुरक्षा:
- अनुच्छेद 330: लोकसभा में अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों का आरक्षण।
- अनुच्छेद 332: राज्य विधानमंडलों में अनुसूचित जनजाति के लिये सीटों का आरक्षण।
- अनुच्छेद 243: पंचायतों में सीटों का आरक्षण।
- प्रशासनिक सुरक्षा:
- अनुच्छेद 275: यह अनुसूचित जनजातियों के कल्याण को बढ़ावा देने तथा उन्हें बेहतर प्रशासन प्रदान करने हेतु केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार को विशेष धनराशि देने का प्रावधान करता है।1212
भारत में जनजातियों की समस्याएँ:
- भूमि अधिकार: आदिवासी समुदायों के सामने सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों में से एक सुरक्षित भूमि अधिकारों की कमी है। अनेक जनजातियाँ वन क्षेत्रों या दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहती हैं जहाँ भूमि और संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को अक्सर मान्यता नहीं दी जाती है जिससे विस्थापन एवं भूमि अलगाव की स्थिति उत्पन्न होती है।
- सामाजिक-आर्थिक पहुँच का अभाव: जनजातीय आबादी की स्थिति अक्सर सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिये पर होती है जिसमें गरीबी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल एवं स्वच्छ पेयजल तथा स्वच्छता सुविधाओं जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच की कमी शामिल है।
- शिक्षा अंतराल: जनजातीय आबादी के बीच शिक्षा का स्तर आमतौर पर राष्ट्रीय औसत से कम है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच की कमी, सांस्कृतिक बाधाएँ और भाषायी अंतर आदिवासी बच्चों के शैक्षिक विकास में बाधा बन सकते हैं।
- शोषण और बंधुआ मज़दूरी: कुछ आदिवासी समुदाय शोषण, बंधुआ मज़दूरी एवं मानव तस्करी के प्रति संवेदनशील हैं, विशेषकर दूरदराज़ के क्षेत्रों में जहाँ कानून प्रवर्तन कमज़ोर है।
- सांस्कृतिक क्षरण: तीव्रता से हो रहे शहरीकरण एवं आधुनिकीकरण से जनजातीय संस्कृतियों, भाषाओं और उनकी पारंपरिक प्रथाओं का क्षरण हो सकता है। युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
- प्रतिनिधित्व का अभाव: सुरक्षात्मक उपायों के बावजूद जनजातीय समुदायों को प्रायः अपर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व का सामना करना पड़ता है, साथ ही निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में एक प्रबल प्रतिनिधित्व की कमी होती है जो उनके कल्याण और अधिकारों से संबंधित होती है।
आगे की राह
- भूमि एवं संसाधन अधिकार: जनजातीय समुदायों के कल्याण के लिये उनके भूमि एवं संसाधन अधिकारों की पहचान तथा उन्हें सुरक्षित करना आवश्यक है। विस्थापन एवं भूमि हस्तांतरण जनजातियों द्वारा सामना किये जाने वाले महत्त्वपूर्ण मुद्दे रहे हैं और साथ ही इन चिंताओं को संबोधित करना उनके अस्तित्व के लिये भी आवश्यक है।
- शिक्षा एवं कौशल विकास: जनजातीय समुदायों की आवश्यकताओं तथा सांस्कृतिक संदर्भ के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान करने से उन्हें बेहतर आजीविका के अवसरों को प्राप्त करने के साथ अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में अधिक सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम बनाया जा सकता है।
- स्वास्थ्य सेवा एवं स्वच्छता: जनजातीय समुदायों के समग्र स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार के लिये उचित स्वास्थ्य सुविधाओं तथा स्वच्छता तक पहुँच सुनिश्चित करना आवश्यक है, जो प्रायः भौगोलिक अलगाव और सेवाओं तक सीमित पहुँच के कारण अद्वितीय स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करते हैं।
- महिलाओं का सशक्तीकरण: आदिवासी समाजों में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को पहचानने के साथ निर्णय लेने की प्रक्रियाओं, आर्थिक गतिविधियों तथा सामुदायिक विकास में उनकी सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना।
- स्वदेशी संस्कृति का प्रचार: भारत की विरासत की समृद्ध विविधता को बनाए रखने के लिये जनजातीय भाषाओं, कला, परंपराओं तथा सांस्कृतिक प्रथाओं का संरक्षण एवं प्रचार करना महत्त्वपूर्ण है।
- भागीदारी एवं समावेशन: स्थानीय शासन और नीति-निर्माण निकायों में जनजातीय प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी को प्रोत्साहित करना, जो यह सुनिश्चित करने में सहायता प्रदान करेगा कि उन मामलों में उनकी आवाज़ सुनी जाए जो सीधे उनके जीवन को प्रभावित करते हैं.
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