ब्रिक्स के साथ भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
15वाँ BRICS शिखर सम्मेलन (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के शीर्ष नेताओं की बैठक) अगस्त, 2023 में जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में संपन्न हुआ। इस शिखर सम्मेलन ने विश्व की उन कुछ प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच सहयोग और संवाद का एक मंच प्रदान किया जो 21वीं सदी में साझा चुनौतियाँ और सदृश अवसर रखते हैं। शिखर सम्मेलन का मुख्य विषय या थीम था- ‘‘ब्रिक्स और अफ्रीका: पारस्परिक रूप से त्वरित विकास, धारणीय विकास और समावेशी बहुपक्षवाद के लिये साझेदारी (BRICS and Africa: Partnership for Mutually Accelerated Growth, Sustainable Development and Inclusive Multilateralism)’’
जोहान्सबर्ग ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (BRICS@15) की उपलब्धियाँ:
- बहुपक्षवाद और सुधार की पुष्टि: ब्रिक्स नेताओं ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया जिसमें बहुपक्षवाद (multilateralism), अंतर्राष्ट्रीय विधि (international law) और सतत विकास (sustainable development) के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र (United Nations) और अन्य वैश्विक संस्थानों को विकासशील देशों की आवश्यकताओं के प्रति अधिक प्रतिनिधिक एवं उत्तरदायी बनाने के लिये उनमें सुधार की आवश्यकता के प्रति भी अपना समर्थन व्यक्त किया।
- सदस्यता और प्रभाव का विस्तार: ब्रिक्स नेताओं ने ‘फ्रेंड्स ऑफ ब्रिक्स’ बैठक में भाग लेने के लिये अफ्रीका और वैश्विक दक्षिण (Global South) के 15 देशों को आमंत्रित कर समूह की सदस्यता के विस्तार का समर्थन किया।
- विस्तार का पहला चरण: छह देशों—अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को ब्रिक्स में शामिल होने का निमंत्रण प्राप्त हुआ। यह नई सदस्यता 1 जनवरी 2024 से प्रभावी होगी।
- उल्लेखनीय है कि 40 से अधिक देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा प्रकट की है।
- ब्रिक्स के विस्तार के कारण:
- वैश्विक प्रभाव के लिये चीन की रणनीतिक चाल।
- साझा उद्देश्य के लिये समान विचारधारा वाले देशों के बीच व्यापक संलग्नता।
- अन्य समूहों में सीमित विकल्प/अवसर।
- पश्चिम विरोधी भावना और वैश्विक दक्षिण की एकता।
- विस्तार का पहला चरण: छह देशों—अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को ब्रिक्स में शामिल होने का निमंत्रण प्राप्त हुआ। यह नई सदस्यता 1 जनवरी 2024 से प्रभावी होगी।
- साझा मुद्रा: ब्रिक्स नेता ब्रिक्स देशों के बीच व्यापार और निवेश के लिये एक साझा मुद्रा की संभावना की तलाश करने पर भी सहमत हुए।
- उन्होंने अपने वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों को ऐसी मुद्रा की व्यवहार्यता एवं लाभों का अध्ययन करने का कार्य सौंपा है, जो अमेरिकी डॉलर और अन्य प्रमुख मुद्राओं पर उनकी निर्भरता को कम कर सके।
- क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दे: ब्रिक्स नेताओं ने कोविड-19 महामारी, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, साइबर सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार एवं निवेश जैसे क्षेत्रीय और वैश्विक महत्त्व के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।
- उन्होंने सभी देशों के लिये टीकों और चिकित्सा आपूर्ति तक एकसमान पहुँच का आह्वान किया तथा स्वास्थ्य अनुसंधान और नवाचार में अपना सहयोग बढ़ाने का संकल्प प्रकट किया।
नोट:
- वर्ष 2011 के ब्रिक्स के सान्या घोषणापत्र (Sanya Declaration) में निर्धारित सिद्धांत गैर-ब्रिक्स देशों, विशेष रूप से विकासशील देशों के साथ संलग्नता एवं सहयोग बढ़ाने और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में वैश्विक दक्षिण की आवाज़ को सशक्त करने पर लक्षित हैं।
- वर्ष 2022 में आयोजित 14वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में अंगीकृत बीजिंग घोषणापत्र (Beijing Declaration) ने सदस्यता विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया। चीन ने वर्ष 2017 में ‘ब्रिक्स प्लस’ विस्तार योजना का प्रस्ताव रखा था।
ब्रिक्स के साथ अपनी संलग्नता में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
- प्रतिद्वंद्वी हितों को संतुलित करना: भारत को चीन और रूस के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना होगा, जिन्हें पश्चिम द्वारा तेज़ी से रणनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के रूप में देखा जा रहा है।
- चीन का उदय भारत की सुरक्षा एवं हितों के लिये एक बड़ी चुनौती और खतरा है, विशेष रूप से सीमा विवाद, समुद्री सुरक्षा, व्यापार असंतुलन, प्रौद्योगिकी प्रतिस्पर्द्धा और मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर।
- यूक्रेन युद्ध में रूस की भागीदारी और चीन के साथ उसके गठबंधन ने भी भारत में अपने इस पारंपरिक साझेदार की विश्वसनीयता और साख को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा, अभ्यास और पक्षसमर्थन: भारत को अपनी स्वायत्तता या संप्रभुता से समझौता किये बिना पश्चिमी मानक अपेक्षाओं से निपटना होगा।
- भारत वैश्विक दक्षिण के अन्य देशों को अलग-थलग या नाराज़ नहीं करना चाहता, जो ब्रिक्स या शंघाई सहयोग परिषद (SCO) जैसे गैर-पश्चिमी मंचों की सदस्यता या प्रभाव बढ़ाने के चीन या रूस के प्रयासों को अनुकूल मान सकते हैं। भारत को एक व्यावहारिक और सैद्धांतिक विदेश नीति अपनानी होगी जो उसके राष्ट्रीय हितों और मूल्यों की पूर्ति करती हो।
- द्विपक्षीय मतभेदों को प्रबंधित करना: भारत चीन और पाकिस्तान के साथ अनसुलझे सीमा विवाद और रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता की स्थिति रखता है, जो ब्रिक्स के साथ उसके संबंधों को प्रभावित करती है। भारत अफगानिस्तान, ईरान और हिंद-प्रशांत जैसे मुद्दों पर भी रूस से भिन्न विचार रखता है। भारत को ब्रिक्स के अंदर बहुपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाते हुए इन द्विपक्षीय मतभेदों को प्रबंधित करना होगा।
- चीन के साथ भारत के लगातार व्यापार घाटे (trade deficit) की स्थिति ने आर्थिक संलग्नता की निष्पक्षता को लेकर चिंताएँ बढ़ा दी हैं। यह व्यापार असंतुलन ब्रिक्स के अंदर भारत के आर्थिक हितों पर दबाव डाल सकता है और इसकी समग्र आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
- चीन के प्रभुत्व को संतुलित करना: चीन ब्रिक्स का सबसे बड़ा एवं सबसे प्रभावशाली सदस्य है, जिसका आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक दबदबा अन्य चार सदस्यों से कहीं अधिक है। भारत को ब्रिक्स के ढाँचे के भीतर साझा मुद्दों पर चीन के साथ सहयोग करने की आवश्यकता के साथ अपने हितों और मूल्यों को संतुलित करना होगा।
- भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: चीन और रूस जैसे कुछ ब्रिक्स सदस्यों के साथ भारत के जटिल भू-राजनीतिक संबंध विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर एकजुट मोर्चा बनाए रखने में चुनौतियाँ पैदा करते हैं। क्षेत्रीय संघर्षों और सुरक्षा मामलों पर असहमति प्रभावी सहयोग में बाधा बन सकती है।
- विकासात्मक असमानताएँ: ब्रिक्स में चीन और रूस जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाएँ और भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएँ, दोनों शामिल हैं। सहयोग से समान लाभ सुनिश्चित करने के लिये सदस्य देशों के बीच विकास अंतराल को दूर करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
- बहुपक्षीय मंचों पर समन्वय: जबकि ब्रिक्स संयुक्त राष्ट्र (UN) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) सहित वैश्विक शासन संस्थानों में सुधार का लक्ष्य रखता है, सदस्य देश इन सुधारों के प्रति प्रायः अलग-अलग प्राथमिकताएँ और दृष्टिकोण रखते हैं।
- विविध सुरक्षा चिंताएँ: ब्रिक्स के सदस्य देशों में आतंकवाद और क्षेत्रीय संघर्षों से लेकर साइबर खतरों तक विविध सुरक्षा चिंताएँ पाई जाती हैं। इन चिंताओं को दूर करने और संयुक्त सुरक्षा पहलों के समन्वय के लिये सतर्क संवाद की आवश्यकता है।
- बदलते वैश्विक गठबंधन: भू-राजनीतिक गतिशीलता के विकास और परिवर्तन के साथ ब्रिक्स के कुछ सदस्य समूह के बाहर के देशों या संगठनों के साथ बी घनिष्ठ संबंध की तलाश कर सकते हैं। यह वैश्विक मंच पर ब्रिक्स की एकजुटता और सामूहिक सौदेबाजी की शक्ति को प्रभावित कर सकता है।
ब्रिक्स (BRICS)
- परिचय:
- ब्रिक्स दुनिया की अग्रणी उभरती अर्थव्यवस्थाओं—ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के नाम-समूह का संक्षिप्त रूप है (Brazil, Russia, India, China, and South Africa- BRICS)।
- वर्ष 2001 में ब्रिटिश अर्थशास्त्री जिम ओ’नील (Jim O’Neill) ने चार उभरती अर्थव्यवस्थाओं- ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन की का वर्णन करने के लिये ‘BRIC’ शब्द गढ़ा था।
- वर्ष 2006 में BRIC विदेश मंत्रियों की पहली बैठक के दौरान इस समूह को औपचारिक रूप प्रदान किया गया।
- दिसंबर 2010 में BRIC में दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के साथ समूह के लिये ‘BRICS’ संक्षिप्त नाम का चयन किया गया।
- ब्रिक्स की हिस्सेदारी:
- ब्रिक्स विश्व के पाँच सबसे बड़े विकासशील देशों को शामिल करता है; इस प्रकार, वैश्विक आबादी में 41%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 24% तथा वैश्विक व्यापार में 16% की हिस्सेदारी रखता है।
- ब्रिक्स की अध्यक्षता:
- मंच की अध्यक्षता B-R-I-C-S अनुक्रम में बारी-बारी से प्रत्येक सदस्य देश द्वारा एक वर्ष के लिये की जाती है।
- भारत ने वर्ष 2021 में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता और मेज़बानी की थी।
- ब्रिक्स की प्रमुख पहलें:
- न्यू डेवलपमेंट बैंक:
- वर्ष 2014 में फोर्टालेज़ा (ब्राज़ील) में आयोजित छठे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान ब्रिक्स नेताओं ने न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB – मुख्यालय: शंघाई, चीन) की स्थापना के समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- आकस्मिक आरक्षित व्यवस्था:
- वर्ष 2014 में ब्रिक्स देशों की सरकारों ने आकस्मिक आरक्षित व्यवस्था (Contingent Reserve Arrangement) की स्थापना के लिये एक संधि पर हस्ताक्षर किये।
- इस व्यवस्था का उद्देश्य अल्पकालिक भुगतान संतुलन के दबाव को रोकना, पारस्परिक समर्थन प्रदान करना तथा ब्रिक्स देशों की वित्तीय स्थिरता को सुदृढ़ करना है।
- ब्रिक्स भुगतान प्रणाली:
- ब्रिक्स देश स्विफ्ट (SWIFT) भुगतान प्रणाली के विकल्प के रूप में एक भुगतान प्रणाली के सृजन का प्रयास कर रहे हैं।
- सीमा शुल्क समझौते:
- ब्रिक्स देशों के बीच व्यापार परिवहन के समन्वय तथा सुगमता के लिये सीमा शुल्क समझौतों (Customs Agreements) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- सुदूर संवेदन उपग्रहों की डेटा साझेदारी पर समझौता:
- समझौते के तहत ब्रिक्स देशों के विशिष्ट सुदूर संवेदन उपग्रहों का एक वर्चुअल नक्षत्रमंडल बनाया गया है, जिसमें अभी 6 उपग्रह शामिल हैं (2-2 भारत एवं चीन के, 1 रूस का और 1 ब्राज़ील-चीन सहयोग से प्रक्षेपित उपग्रह)।
- न्यू डेवलपमेंट बैंक:
ब्रिक्स के अंदर सहयोग के संभावित:
- समूह के भीतर सहयोग: ब्रिक्स को चीन की केंद्रीयता समाप्त करने और विविधीकरण की तत्काल आवश्यकता से प्रेरित एक बेहतर आंतरिक संतुलन का निर्माण करने की आवश्यकता है।
- ब्रिक्स के आने वाले दशकों में प्रासंगिक बने रहने के लिये, इसके प्रत्येक सदस्य को अवसरों और अंतर्निहित सीमाओं का यथार्थवादी मूल्यांकन करना होगा।
- समूह को वृहत स्तरों पर और व्यापक दायरे में ‘ब्रिक्स प्लस’ सहयोग की तलाश करनी होगी।
- इससे ब्रिक्स देशों का प्रतिनिधित्व और प्रभाव बढ़ेगा तथा वे विश्व शांति और विकास में अधिक योगदान कर सकेंगे।
- सार्वभौमिक सुरक्षा को बनाये रखना: ब्रिक्स देशों को सार्वभौमिक सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उठानी होगी। दूसरों की कीमत पर अपनी सुरक्षा की तलाश केवल नए तनाव और जोखिम ही पैदा करेगी।
- प्रत्येक देश की सुरक्षा का सम्मान करना और उसकी गारंटी देना, टकराव/संघर्ष को संवाद एवं साझेदारी से सुलझाना तथा एक संतुलित, प्रभावी एवं संवहनीय क्षेत्रीय सुरक्षा संरचना के निर्माण को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
- इसके साथ ही, राजनीतिक परस्पर विश्वास एवं सुरक्षा सहयोग को सशक्त करना, प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय मुद्दों पर संचार एवं समन्वय बनाए रखना और एक-दूसरे के मूल हितों एवं प्रमुख चिंताओं को समायोजित करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है।
- आर्थिक हितों की सुरक्षा: ब्रिक्स देशों को साझा विकास में योगदानकर्ता की भूमिका स्वीकार करनी चाहिये।
- विवैश्वीकरण (de-globalisation) की बढ़ती लहर और एकपक्षीय प्रतिबंधों की वृद्धि के परिदृश्य में ब्रिक्स देशों को आपूर्ति शृंखला, ऊर्जा, खाद्य एवं वित्तीय प्रत्यास्थता के मामले में पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग को बेहतर बनाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, ब्रिक्स के लिये OECD की तर्ज पर एक संस्थागत अनुसंधान विंग विकसित करना उपयोगी होगा, जो ऐसे समाधान पेश करेगा जो विकासशील विश्व के लिये बेहतर अनुकूलित हों।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य शासन: ब्रिक्स देशों को अपनी-अपनी क्षमता का पूरा लाभ उठाना चाहिये और ऐसी दिशा में सार्वजनिक स्वास्थ्य शासन के विकास को संयुक्त रूप से बढ़ावा देना चाहिये जो विकासशील देशों के पक्ष में हो।
- भारत का ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य’ (One Earth, One Health) का दृष्टिकोण सार्वजनिक स्वास्थ्य पर बहुपक्षीय सहयोग में उल्लेखनीय योगदान करता है
- सदस्य देशों को ‘ब्रिक्स वैक्सीन रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर’ का समुचित उपयोग करना चाहिये, बड़े पैमाने के संक्रामक रोगों पर रोक के लिये ब्रिक्स पूर्व-चेतावनी तंत्र स्थापित करना चाहिये और वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन सहयोग के लिये उच्च गुणवत्तायुक्त सार्वजनिक भलाई प्रदान करनी चाहिये।
- एक वैश्विक शासन दर्शन (Global Governance Philosophy): वैश्विक चुनौतियाँ एक के बाद एक उभर रही हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिये वैश्विक कार्यकरणों के बीच समन्वय की आवश्यकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली की सुरक्षा करना आवश्यक है, जहाँ सुनिश्चित किया जाए कि अंतर्राष्ट्रीय मामलों में सभी की भागीदारी हो, अंतर्राष्ट्रीय नियम सभी द्वारा बनाए जाएँ और विकास के परिणाम सभी द्वारा साझा किये जाएँ।
- ब्रिक्स को एक ऐसा वैश्विक शासन दर्शन अपनाना चाहिये जो व्यापक परामर्श, संयुक्त योगदान एवं साझा लाभों पर बल देता हो; उभरते बाज़ारों एवं विकासशील देशों के साथ एकजुटता एवं सहयोग को बढ़ाता हो; और वैश्विक शासन में अभिव्यक्ति को प्रबल करता हो।
- यह भी पढ़े…………..
- कायाकल्प की पियर एसेसमेंट टीम ने अस्पतालों का किया निरीक्षण
- एमडीए को लेकर पूर्णिया कॉलेज में एनसीसी के बच्चों के बीच चलाया गया जागरूकता अभियान
- आपसी विवाद में एक वृद्ध को इट से मार मार कर दी गई हत्या