आपदाओं को रोकने के लिये बुनियादी ढाँचे में क्या बदलाव आवश्यक है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
वर्ष 2023 की मानसूनी बारिश के कारण हिमाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में फ्लैश फ्लड/आकस्मिक बाढ़ के कारण जान-माल की अभूतपूर्व क्षति हुई है।
फ्लैश फ्लड:
- परिचय:
- यह घटना बारिश के दौरान या उसके बाद जल स्तर में हुई अचानक वृद्धि को संदर्भित करती है।
- यह अत्यधिक उच्च क्षेत्रों में छोटी अवधि में घटित होने वाली घटना है, आमतौर पर वर्षा और फ्लैश फ्लड के बीच छह घंटे से कम का अंतर होता है।
- जल निकासी लाइनों के अवरुद्ध होने या जल के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा डालने वाले अतिक्रमण के कारण बाढ़ की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है।
- यह घटना बारिश के दौरान या उसके बाद जल स्तर में हुई अचानक वृद्धि को संदर्भित करती है।
- कारण:
- ऐसी स्थिति तेज़ आँधी, तूफान, उष्णकटिबंधीय झंझावात युक्त भारी बारिश या बर्फ से पिघले जल या बर्फ की चादरों या बर्फ के मैदानों पर प्रवाहित होने वाली बर्फ के कारण उत्पन्न हो सकती है।
- बाँध या तटबंध टूटने या भूस्खलन (मलबा प्रवाह) के कारण भी आकस्मिक बाढ़ आ सकती है।
हिमाचल प्रदेश में वर्षा का पैटर्न:
- हिमालय क्षेत्र में कम समय में अधिक वर्षा होने का एक उल्लेखनीय पैटर्न देखा गया है।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) की छठी आकलन रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि भारतीय हिमालय और तटीय क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे।
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के आँकड़ों से पता चलता है कि इस अवधि के दौरान सामान्य वर्षा 720 मिमी. से 750 मिमी. के बीच होने की उम्मीद है। हालाँकि कुछ मामलों में वर्ष 2010 में 888 मिमी. और वर्ष 2018 में 926.9 मिमी. से अधिक वर्षा हुई।
- हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2023 में अब तक हुई वर्षा के लिये पश्चिमी विक्षोभ के साथ दक्षिण-पश्चिम मानसून के संयुक्त प्रभाव को ज़िम्मेदार माना गया है।
- जून से अब तक कुल 511 मिमी. वर्षा हुई है।
हिमाचल प्रदेश में आकस्मिक बाढ़ के कारक:
- उदारीकरण द्वारा संचालित विकासात्मक मॉडल:
- हिमाचल प्रदेश के विकास मॉडल ने प्रगति की है तथा पर्वतीय क्षेत्रों को सामाजिक विकास में दूसरा स्थान दिया है।
- उदारीकरण से राजकोषीय सुधार के साथ ही आत्मनिर्भरता की स्थिति देखी गई है। हालाँकि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी बढ़ा है जिससे पारिस्थितिक तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ा है।
- जलविद्युत परियोजनाएँ:
- जलविद्युत परियोजनाओं के अनियंत्रित निर्माण के कारण पहाड़ी नदियाँ अब महज जलधाराएँ बनकर रह गई हैं।
- जब बहुत अधिक बारिश होती है अथवा बादल फटते हैं, तो जल का प्रवाह सुरंगों में बढ़ने और अपशिष्ट को नदी के किनारे फेंक दिये जाने से आकस्मिक बाढ़ की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है।
- अपशिष्ट का अनुचित निपटान न केवल बरसात के मौसम में भूस्खलन के लिये अनुकूल स्थिति पैदा करता है, बल्कि मनुष्यों द्वारा निष्काषित अवसाद नदी घाटियों को अवरुद्ध कर देता है जिससे नदी का मार्ग बदल जाता है और अतिप्रवाह के परिणामस्वरूप आकस्मिक बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- पर्यटन और सड़क मार्ग का विस्तार:
- आवश्यक भू-वैज्ञानिक अध्ययनों को दरकिनार करते हुए पर्यटन-केंद्रित सड़क मार्ग का विस्तार करते हुए चार-लेन और दो-लेन वाली सड़कों का निर्माण किया गया है।
- सड़क निर्माण के दौरान पहाड़ों की ऊर्ध्वाधर कटाई के परिणामस्वरूप सामान्य वर्षा के दौरान भी भूस्खलन के कारण मौजूदा कई सड़कें क्षतिग्रस्त हो गई हैं, इस प्रकार भारी बारिश अथवा बाढ़ की स्थिति में होने वाले विनाश की तीव्रता काफी बढ़ गई है।
- पहले पहाड़ों में सीढ़ीदार और घुमावदार सड़कें होती थीं जो भूस्खलन के प्रति कुछ हद तक सुरक्षित थीं लेकिन खड़ी सड़कें भूस्खलन एवं कटाव के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।
- सीमेंट संयंत्र:
- बड़े पैमाने पर सीमेंट संयंत्रों की स्थापना तथा व्यापक स्तर पर पहाड़ों के कटान ने भूमि उपयोग के पैटर्न को बदल दिया है जिससे भूमि की जल अवशोषण क्षमता कम हो गई है तथा वर्षा के दौरान आकस्मिक बाढ़ की संभावनाएँ बढ़ी हैं।
- फसल पैटर्न में परिवर्तन:
- पारंपरिक अनाज की खेती के बजाय नकदी फसल तथा बागवानी अर्थव्यवस्थाओं में बदलाव, जिनका परिवहन कम समय-सीमा के भीतर बाज़ारों में करना पड़ता है क्योंकि वे जल्दी खराब हो जाते हैं।
- उचित भूमि कटाई तथा जल निकासी के बिना नकदी फसलों या बड़े कृषि क्षेत्रों के लिये जल्दबाज़ी में सड़क निर्माण के कारण वर्षा के दौरान नदियों में तेज़ सैलाब के चलते बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है।
आकस्मिक बाढ़ से निपटने के लिये सरकारी पहल:
- राष्ट्रीय बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण परियोजना (NFRMP)
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP)
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)
- राष्ट्रीय बाढ प्रबंधन कार्यक्रम
- राष्ट्रीय बाढ़ आयोग (राष्ट्रीय बाढ़ आयोग-1976)
आगे की राह
- प्रमुख हितधारकों को शामिल करते हुए एक जाँच आयोग गठित करना, जो स्थानीय समुदायों की संपत्तियों पर उनके अधिकार को सशक्त बनाने के साथ त्वरित पुनर्निर्माण की सुविधा के लिये संपत्तियों का बीमा प्रदान करे। जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता पर विचार करते हुए आपदाओं को रोकने के लिये बुनियादी ढाँचे की योजना में पर्याप्त बदलाव भी महत्त्वपूर्ण हैं।
- जलवायु परिवर्तन को एक वास्तविकता के रूप में देखते हुए लोगों को समस्या को नहीं बढ़ाना
- चाहिये, बल्कि राज्य में पिछले कुछ समय से देखी जा रही आपदाओं को रोकने के लिये बुनियादी ढाँचे की योजना में पर्याप्त बदलाव करना चाहिये।
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