राजनीति के अपराधीकरण का क्या अर्थ है?

राजनीति के अपराधीकरण का क्या अर्थ है?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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सांसदों, विधायकों और सरकारी कर्मचारियों पर महिलाओं के कथित यौन उत्पीड़न के हालिया मामले, राजनीति के अपराधीकरण के एक चिंताजनक पहलू तथा नैतिक ज़िम्मेदारी, पेशेवर नैतिकता को बनाए रखने में विफलता आदि जैसे नैतिक मुद्दों पर प्रकाश डालते हैं।

राजनीति के अपराधीकरण का क्या अर्थ है?

  • परिचय:
    • राजनीति का अपराधीकरण तब होता है जब आपराधिक आरोपों या पृष्ठभूमि वाले लोग राजनेता बन जाते हैं और विभिन्न महत्त्वपूर्ण पदों एवं दायित्वों के लिये चुने जाते हैं।
    • यह लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों, जैसे चुनावों में निष्पक्षता, जवाबदेही और कानून का पालन, को प्रभावित कर सकता है।
    • यह बढ़ता खतरा हमारे समाज के लिये एक बड़ी समस्या बन गया है, जो लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों, जैसे चुनावों में निष्पक्षता, कानून का पालन और जवाबदेह होने को प्रभावित कर रहा है।
  • आँकड़े:
    • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के आँकड़ों के मुताबिक, भारत में संसद के लिये चुने जाने वाले आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों की संख्या वर्ष 2004 से बढ़ रही है।
    • वर्ष 2009 की लोकसभा में 30% सांसदों पर आपराधिक मामले लंबित थे, जो वर्ष 2014 की लोकसभा में बढ़कर 34% हो गए।
    • वर्ष 2019 लोकसभा में, 543 लोकसभा सदस्यों में से 233 (43%) को आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ा।
      • वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में 112 सांसदों (21%) को उनके विरुद्ध गंभीर आपराधिक मामलों का सामना करना पड़ा, जिनमें बलात्कारहत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के विरुद्ध अपराध शामिल थे।

राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के क्या कारण हैं?

  • राजनेताओं और अपराधियों के बीच साँठगाँठ:
    • भारत में कई राजनेताओं ने आपराधिक आधारों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित किये हैं, जो अक्सर चुनाव जीतने के लिये अपने धन और बाहुबल का उपयोग करते हैं।
  • कमज़ोर कानून प्रवर्तन और न्यायिक प्रणाली:
    • भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में अक्सर धीमी, अकुशल और भ्रष्ट प्रक्रियाओं की विशेषता होती है, जिससे आपराधिक पृष्ठभूमि वाले राजनेताओं पर प्रभावी ढंग से मुकदमा चलाना तथा उन्हें दोषी ठहराना कठिन हो जाता है।
      • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट से पता चला है कि संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा किये गए अपराधों के लिये सज़ा की दर वर्ष 2019 में केवल 6% थी।
  • आंतरिक दलीय लोकतंत्र का अभाव:
    • भारत में कई राजनीतिक दलों में कमज़ोर आंतरिक लोकतांत्रिक संरचनाएँ हैं, जिससे पार्टी नेताओं को उनकी ईमानदारी के आधार पर नहीं, बल्कि चुनाव जीतने की उनकी क्षमता के आधार पर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को चुनने की अनुमति देती है।
    • आंतरिक दलीय लोकतंत्र का यह अभाव नागरिकों की अपने प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने की क्षमता को कमज़ोर करता है।
  • मतदाता उदासीनता और राजनीतिक जागरूकता का अभाव:
    • कुछ मतदाता, विशेष रूप से ग्रामीण और निर्धन क्षेत्रों में, सुशासन एवं कानून के शासन के दीर्घकालिक विचारों पर आपराधिक समर्थित उम्मीदवारों द्वारा प्रदान किये गए तात्कालिक लाभों को प्राथमिकता दे सकते हैं।

आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों की अयोग्यता के विधायी पहलू:

  • परिचय: 
    • इस संबंध में भारतीय संविधान यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि संसद, विधानसभा या किसी अन्य विधानमंडल के लिये चुनाव लड़ने से किसी व्यक्ति को किन आधारों पर अयोग्य ठहराया जा सकता है?
    • जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 में विधायिका का चुनाव लड़ने के लिये किसी व्यक्ति को अयोग्य घोषित करने के मानदंड का उल्लेख है।
      • अधिनियम की धारा 8 कुछ अपराधों के लिये दोषी ठहराए जाने पर चुनाव लड़ने हेतु अयोग्यता प्रदान करती है, जिसके अनुसार दो वर्ष से अधिक सज़ायाफ्ता (जिनकी न्यायालय द्वारा सज़ा तय कर दी गई है) व्यक्ति कारावास की अवधि समाप्त होने के बाद छह वर्ष तक चुनाव में खड़ा नहीं हो सकता है।
      • हालाँकि कानून उन व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से नहीं रोकता है जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, इसलिये आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों की अयोग्यता इन मामलों में उनकी सज़ा पर निर्भर करती है।
  • राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ पहल/सिफारिशें: 
    • वर्ष 1983 में राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा समिति का गठन राजनीतिक-आपराधिक गठजोड़ की सीमा की पहचान करने और राजनीति के अपराधीकरण से प्रभावी ढंग से निपटने के तरीकों की सिफारिश करने के उद्देश्य से किया गया था।
    • विधि आयोग द्वारा प्रस्तुत 244वीं रिपोर्ट (2014) में विधायिका में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिये गंभीर परिणाम उत्पन्न करने वाले आपराधिक राजनेताओं की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की आवश्यकता पर विचार किया गया है।
      • विधि आयोग ने उन लोगों की अयोग्यता की सिफारिश की जिनके खिलाफ पाँच वर्ष या उससे अधिक की सज़ा के साथ दंडनीय अपराध के लिये नामांकन की जाँच की तारीख से कम-से-कम एक वर्ष पहले आरोप तय किये गए हैं।
    • वर्ष 2017 में केंद्र सरकार ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के मुकदमे को तेज़ी से ट्रैक करने हेतु एक वर्ष के लिये 12 विशेष न्यायालय स्थापित करने की योजना शुरू की।
  • राजनीति के अपराधीकरण के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
    • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत संघ, (2002):
      • वर्ष 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक उम्मीदवार को शैक्षिक योग्यता के साथ उसे अपने आपराधिक और वित्तीय रिकॉर्ड की घोषणा भी करनी होगी।
    • PUCL बनाम भारत संघ (2004):
      • सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि चुनावी उम्मीदवारों के लिये अपने आपराधिक रिकॉर्ड को प्रदर्शित करने की आवश्यकता को समाप्त करने वाला कानून असंवैधानिक है। न्यायालय ने कहा कि निष्पक्ष चुनाव के लिये मतदाताओं को उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि के बारे में जानने का अधिकार है।
    • रमेश दलाल बनाम भारत संघ (2005):
      • वर्ष 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि दोषी ठहराए जाने पर मौजूदा सांसद या विधायक को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और न्यायालय द्वारा दो वर्ष या उससे अधिक के लिये कारावास की सज़ा सुनाई जाएगी।
    • लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013):
      • सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की है कि संसद या राज्य विधानसभा का कोई भी सदस्य जो किसी अपराध के लिये दोषी ठहराया जाता है और दो साल या उससे अधिक की जेल की सज़ा भुगतता है, उसे पद धारण करने से अयोग्य घोषित किया जाएगा।
    • मनोज नरूला बनाम भारत संघ (2014):
      • दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि एक व्यक्ति को केवल इसलिये चुनाव लड़ने से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि उस पर आपराधिक आरोप लगाया गया है।
      • हालाँकि न्यायालय ने यह भी कहा कि राजनीतिक दलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारना चाहिये।
    • पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ (2019):
      • सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड को अपनी वेबसाइट, सोशल मीडिया हैंडल और समाचार पत्रों पर प्रकाशित करने का आदेश दिया है।
      • न्यायालय ने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को यह सुनिश्चित करने के लिये एक ढाँचा तैयार करने का भी निर्देश दिया ताकि उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी प्रभावी ढंग से प्रसारित की जा सके।

भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में जवाबदेही और नैतिक मानकों को बहाल करना एक जटिल एवं दीर्घकालिक प्रयास होगा। हालाँकि, एक बहुआयामी दृष्टिकोण जो संस्थागत, सांस्कृतिक और सामाजिक आयामों का समाधान करता है, अपराधीकरण एवं पक्षपातपूर्ण संरक्षण से संबंधित प्रवृत्तियों का मुकाबला करने में सहायता कर सकता है जिसने लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अखंडता को कमज़ोर किया है।

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