भारत एवं खाड़ी के देशों के मध्य बढ़ते संबंध का क्या मतलब है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
खाड़ी क्षेत्र पर नया भारत-अमेरिका संबंध भारत और अमेरिका दोनों ही में मध्य-पूर्व के प्रति पारंपरिक दृष्टिकोण से एक उल्लेखनीय बदलाव को प्रकट करता है। भारत में, पूर्व की विदेश नीति के स्थापित सिद्धांतों में से एक यह दृष्टिकोण रहा था कि भारत को या तो अमेरिका का विरोध करना चाहिये या मध्य-पूर्व में उससे दूरी बनाए रखनी चाहिये।
- सऊदी क्राउन प्रिंस और यूएस, यूएई एवं भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच रियाद में हाल में हुई बैठक खाड़ी क्षेत्र में भारत और यूएस के बीच बढ़ते रणनीतिक अभिसरण को रेखांकित करती है। यह अरब प्रायद्वीप में भारत की नई संभावनाओं को भी उजागर करता है।
खाड़ी देश
- ‘खाड़ी देश’ (Gulf Nations) शब्द मध्य-पूर्व के फ़ारस की खाड़ी क्षेत्र में स्थित देशों के समूह को संदर्भित करता है। खाड़ी राष्ट्रों में निम्नलिखित देश शामिल हैं:
- बहरीन
- कुवैत
- ओमान
- कतर
- सऊदी अरब
- संयुक्त अरब अमीरात।
- ये सभी देश खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council- GCC) के सदस्य हैं।
- भारत की विदेश नीति में वैचारिक निषेध क्या था?
- भारत अमेरिका, इस्राइल और खाड़ी देशों के साथ संलग्न होगा, ऐसी किसी भी प्रस्थापना को कुछ वर्ष पूर्व तक महज कल्पना ही माना जाता था। इस वैचारिक निषेध या वर्जना (ideological taboo) के पीछे के कुछ प्रमुख कारण रहे हैं:
- पारंपरिक रूप से भारत ने गुटनिरपेक्षता (non-alignment) की नीति का अनुपालन किया जो अपने विदेशी संबंधों में तटस्थता और स्वतंत्रता बनाए रखने पर लक्षित थी।
- भारत ने ऐतिहासिक रूप से दक्षिण एशिया में पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता दी। इसने अपने निकट पड़ोस में क्षेत्रीय गठजोड़ का निर्माण करने, संघर्षों को दूर करने और इस क्षेत्र के भीतर आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया।
- अतीत में भारत के पास अपने निकटतम पड़ोस से परे के क्षेत्रों में (जिसमें खाड़ी क्षेत्र भी शामिल था) प्रभाव जमाने के लिये निवेश हेतु करने के लिये सीमित संसाधन थे। भारत ने अपने स्वयं के घरेलू विकास पर ध्यान केंद्रित किया और आंतरिक आर्थिक मुद्दों को संबोधित किया, जिसने खाड़ी देशों के साथ इसकी संलग्नता को कुछ हद तक बाधित किया।
- इसके साथ ही, रूस के साथ भारत के गहरे संबंधों को देखते हुए, भारत द्वारा अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बढ़ाना भी अतीत में एक वर्जना या ‘टैबू’ के रूप में देखा गया था।
- फ़िलिस्तीन पर अरब-इज़राइल संघर्ष के कारण भारतीय नीतिनिर्माताओं के बीच यह धारणा प्रचलित रही थी कि भारत इज़राइल के साथ खुले रूप से मित्रवत नहीं हो सकता।
भारत की विदेश नीति में परिवर्तन
- भारतीय विदेश नीति में मध्य-पूर्व के महत्त्व को चिह्नित किये जाने के बाद भारत ने खाड़ी क्षेत्र के साथ अपने संबंध बढ़ाने शुरू किये। इस ओर ऐतिहासिक बदलाव को चार देशों के समूह के गठन के साथ देखा गया (जिसका अनावरण अक्टूबर 2021 में किया गया), जिसे I2U2 नाम दिया गया और इसने भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका को एक साथ किया।
- भारत ने इस धारणा को अस्वीकृत करते हुए अपनी विदेश नीति में परिवर्तन किया है कि भारत खुले रूप से इज़राइल से मित्रवत नहीं हो सकता और इज़राइल एवं अरब दोनों के ही साथ संबंधों का एक संतुलन बनाए रखा है।
- अरब के दो साम्राज्यों सऊदी अरब एवं संयुक्त अरब अमीरात के साथ भी भारत के असहज संबंधों का रूपांतरण हुआ है और ठोस रणनीतिक साझेदारियों का निर्माण किया गया है।
खाड़ी क्षेत्र के साथ भारत के बढ़ते संबंधों का महत्त्व
- आतंकवाद और पाकिस्तान का मुक़ाबला: यदि भारत मध्य-पूर्व में अपने ‘पश्चिमी-विरोधी’ दृष्टिकोण को छोड़ देता है तो उपमहाद्वीप और खाड़ी के बीच के संबंधों को देखने में अमेरिका पाकिस्तान-समर्थक पूर्वाग्रह के त्याग के लिये पश्चिमी देशों का नेतृत्व करेगा। वे आतंकवाद का मुक़ाबला करने में भी भारत की मदद कर सकते हैं।
- पाकिस्तान की रणनीतिक स्थिति में लगातार गिरावट खाड़ी क्षेत्र की बदलती भू-राजनीति के लिये उसे अब कम प्रासंगिक बना रही है।
- खाड़ी देशों में एक वैचारिक परिवर्तन भी आया है जहाँ वे धर्म से राष्ट्रवाद की ओर आगे बढ़ रहे हैं। उनके साथ संलग्नता भारत को उपमहाद्वीप के भीतर हिंसक धार्मिक अतिवाद की खतरनाक शक्तियों पर काबू पाने में भी मदद करेगा।
- ऊर्जा सुरक्षा: सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और कुवैत सहित विभिन्न खाड़ी देश प्रमुख तेल एवं गैस उत्पादक हैं। भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिये खाड़ी देशों पर अत्यधिक निर्भर है, क्योंकि वे इसके तेल एवं गैस आयात में उल्लेखनीय अंश की पूर्ति करते हैं। संबंधों को सुदृढ़ करने से एक स्थिर और विश्वसनीय ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित होगी जो भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- वे दीर्घावधि में तेल पर निर्भरता कम करने के लिये भी प्रयासरत हैं जो भारत के लिये भी लाभप्रद सिद्ध हो सकता है।
- वर्ष 2014-18 के बीच GCC देशों में स्थापित कुल नवीकरणीय बिजली में 300 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई।
- यूएई, सऊदी अरब, ओमान और बहरीन भारत द्वारा शुरू किये गए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) के सदस्य हैं।
- वे दीर्घावधि में तेल पर निर्भरता कम करने के लिये भी प्रयासरत हैं जो भारत के लिये भी लाभप्रद सिद्ध हो सकता है।
- आर्थिक सहयोग: खाड़ी देश पर्याप्त निवेश क्षमता वाली सुदृढ़ अर्थव्यवस्थाएँ रखते हैं। भारत इन देशों के साथ व्यापार एवं आर्थिक सहयोग की वृद्धि की इच्छा रखता है जहाँ निवेश, अवसंरचना विकास और द्विपक्षीय व्यापार के नए अवसरों की तलाश कर रहा है। यह भारतीय व्यवसायों के लिये खाड़ी क्षेत्र के आकर्षक बाज़ारों में प्रवेश कर सकने और निर्माण, रियल एस्टेट, वित्त एवं पर्यटन जैसे उनके विविध क्षेत्रों से लाभ उठा सकने के अवसर प्रदान करता है।
- पिछले कुछ वर्षों के दौरान खाड़ी क्षेत्र से भारत में निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। खाड़ी देशों से और अधिक निवेश आकर्षित करने के लिये भारत अपने संबंधों का उपयोग कर सकता है।
- भारत और खाड़ी सहयोग परिषद के बीच एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर भी वार्ता चल रही है।
- धन प्रेषण और भारतीय प्रवासी: खाड़ी देशों में लाखों भारतीय लोग रहते हैं जो धन प्रेषण (remittances) के माध्यम से भारत की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन राष्ट्रों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने से बेहतर कल्याण एवं सुरक्षा प्रदान करने, श्रम प्रवासन की वृद्धि और रोज़गार के अधिक अवसर पैदा करने के रूप में भारतीय कामगारों को लाभ प्राप्त होता है।
- वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान भारत को अब तक का सर्वाधिक धन प्रेषण प्राप्त हुआ। संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद संयुक्त अरब अमीरात दूसरा सर्वाधिक योगदानकर्ता रहा।
- भू-रणनीतिक महत्त्व: अपनी अवस्थिति के कारण खाड़ी क्षेत्र का भू-रणनीतिक महत्त्व भी है जो यूरोप, एशिया और अफ्रीका को जोड़ता है। इस क्षेत्र में भारत की बढ़ती हुई संलग्नता इसे अपने प्रभाव का विस्तार करने और क्षेत्रीय गतिशीलता को आकार देने के लिये एक मंच प्रदान करती है। यह भारत को खाड़ी सहयोग परिषद (GCC), अरब लीग और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) जैसे संगठनों से जुड़ने और विभिन्न संवादों एवं पहलों में भागीदारी का अवसर प्रदान करता है, इस प्रकार इसके राजनयिक संबंधों एवं रणनीतिक भागीदारियों को सुदृढ़ करता है।
- सांस्कृतिक संपर्क और लोगों के परस्पर संबंध: भारत खाड़ी देशों के साथ ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संबंध साझा करता है जो सदियों पुराना है। द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करने से सांस्कृतिक आदान-प्रदान, पर्यटन और लोगों के आपसी संपर्क को बढ़ावा मिलता है, जो इन राष्ट्रों के बीच आपसी समझ एवं सद्भावना को आगे बढ़ाता है। यह खाड़ी क्षेत्र में भारतीय प्रवासियों की साझा विरासत, परंपराओं और मूल्यों को संरक्षित एवं संवर्द्धित करने में मदद करता है।
भारत-खाड़ी संबंधों में विद्यमान चुनौतियाँ
- भू-राजनीतिक गतिशीलता: खाड़ी क्षेत्र अपने ऊर्जा संसाधनों और प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्गों के चौराहे पर अपनी अवस्थिति के कारण रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है। क्षेत्र में भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और संघर्ष—जैसे ईरान-सऊदी अरब प्रतिद्वंद्विता, यमन का गृहयुद्ध और कतर का राजनयिक संकट, खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं।
- क्षेत्रीय अस्थिरता: खाड़ी क्षेत्र ने हाल के वर्षों में राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा खतरों को सामना किया है। जारी संघर्षों, जैसे कि सीरियाई गृह युद्ध और ISIS जैसे चरमपंथी समूहों के उदय ने क्षेत्रीय स्थिरता के लिये चुनौतियाँ पैदा की हैं। इन समस्याओं का खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंधों पर भी प्रभाव पड़ सकता है और इस क्षेत्र में रहने वाले भारतीय नागरिकों के लिये सुरक्षा चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- ‘चाइना फैक्टर’: चीन भू-राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में उभरा है और इस क्षेत्र में इसके राजनयिक एवं राजनीतिक प्रभाव में वृद्धि जारी रहेगी। हालाँकि, चीन खाड़ी क्षेत्र में प्रमुख बाहरी अभिकर्ता के रूप में अमेरिका को प्रतिस्थापित कर सकने की स्थिति में अभी नहीं पहुँचा है। इस प्रकार, यह खाड़ी देशों के साथ अपने संबंधों को बढ़ावा देने के लिये भारत को भी अमेरिका पर अत्यधिक निर्भर बनाता है।
आगे की राह
- आर्थिक सहयोग ढाँचे: द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग ढाँचों की स्थापना—जैसे मुक्त व्यापार समझौते (FTA) या तरजीही व्यापार समझौते (PTA), सुगम व्यापार एवं निवेश प्रवाह की सुविधा प्रदान कर सकते हैं। भारत-GCC मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत को अंतिम रूप देने के लिये भारत को सक्रिय प्रयास करना चाहिये।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान और लोगों के परस्पर संपर्क: सांस्कृतिक आदान-प्रदान को सुदृढ़ करना, पर्यटन को बढ़ावा देना और लोगों के परस्पर संपर्क को सुगम बनाना भारत एवं खाड़ी देशों के बीच आपसी समझ को बढ़ावा देगा तथा संबंधों को सुदृढ़ करेगा। सांस्कृतिक उत्सवों, शैक्षिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करने और पर्यटन पहलों को बढ़ावा देने से ज़मीनी स्तर पर सशक्त संबंध बनाने में मदद मिल सकती है।
- सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ाने में ‘सिस्टर सिटी’ (Sister city) सबंध भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- व्यापार का विविधीकरण: जबकि भारत और खाड़ी देशों के बीच महत्त्वपूर्ण व्यापार संबंध स्थापित हैं, इनमें अभी भी विविधीकरण के अवसर मौजूद हैं। दोनों पक्ष नए क्षेत्रों की खोज कर सकते हैं और तेल एवं गैस से परे व्यापार के दायरे का विस्तार कर सकते हैं। नवीकरणीय ऊर्जा, प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा और कृषि जैसे क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करने से द्विपक्षीय व्यापार बढ़ सकता है और एकल पण्य/कमोडिटी पर निर्भरता कम हो सकती है।
- भारत ने संयुक्त अरब अमीरात के साथ CEPA पर हस्ताक्षर किये हैं। अन्य खाड़ी देशों के साथ भी इस तरह के समझौते पर हस्ताक्षर करने से भारत को अपने व्यापार में विविधता लाने में मदद मिलेगी।
निष्कर्ष
नए अवसरों का लाभ उठाने के लिये भारत को खाड़ी क्षेत्र में अपने दृष्टिकोण को अद्यतन करने की आवश्यकता है। इसमें खाड़ी क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों के बारे में भारत के दृष्टिकोण को आधुनिक बनाना और उन पुराने पड़ चुके तरीकों को बदलना शामिल होगा जिनसे अरब प्रायद्वीप को देखा जाता है।
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