भारत में दत्तक ग्रहण से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) द्वारा दायर याचिका के मामले में सुनवाई करते हुए देश में दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में तेज़ी लाने और इसे सरल बनाने के लिये केंद्र, राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों को कई निर्देश जारी किये हैं।
- न्यायालय ने दत्तक ग्रहण की कम दर और स्थायी परिवार के बिना बाल देखभाल संस्थानों (CCI) में बड़ी संख्या में रहने वाले बच्चों को लेकर भी चिंता व्यक्त की है।
दत्तक ग्रहण के विषय में सर्वोच्च न्यायालय ने क्या कहा?
- न्यायालय ने कहा कि CCI में रहने वाले बच्चों, जिनके माता-पिता एक वर्ष से अधिक समय से उनसे मिलने नहीं आए हैं या जिनके माता-पिता या अभिभावक “अयोग्य” हैं, उनकी पहचान की जानी चाहिये और उन्हें दत्तक श्रेणी के अंतर्गत लाना चाहिये।
- न्यायालय ने ‘अयोग्य अभिभावक’ को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जो “माता-पिता बनने के लिये अयोग्य या अनिच्छुक’ है, जो मादक द्रव्यों का सेवन करता है, दुर्व्यवहार या शराब में लिप्त है, बच्चे के साथ दुर्व्यवहार या उसकी उपेक्षा करता है, जिसका आपराधिक रिकॉर्ड है, जिसे स्वयं देखभाल की आवश्यकता है या जो मानसिक रूप से अस्वस्थ है आदि”।
- न्यायालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को CCI में अनाथ-परित्यक्त-आत्मसमर्पित (OAS) श्रेणी में बच्चों की पहचान करने हेतु द्विमासिक अभियान शुरू करने का आदेश दिया।
- न्यायालय ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दत्तक ग्रहण के लिये संभावित बच्चों, विशेष रूप से CCI में कमज़ोर बच्चों पर डेटा संकलित करने तथा विवरण केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority- CARA) और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को सौंपने का भी निर्देश दिया।
- न्यायालय ने कहा कि राज्यों को भारत में दत्तक ग्रहण के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म चाइल्ड एडॉप्शन रिसोर्स इंफॉर्मेशन एंड गाइडेंस सिस्टम (CARINGS) पोर्टल पर ज़िले के सभी OAS बच्चों का पंजीकरण सुनिश्चित करना चाहिये।
केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) क्या है?
- CARA, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का एक वैधानिक निकाय है।
- यह भारतीय बच्चों के दत्तक ग्रहण के लिये नोडल निकाय है और इसे देश में दत्तक ग्रहण की निगरानी करने एवं विनियमन का अधिकार है।
- CARA को वर्ष 2003 में भारत सरकार द्वारा अनुसमर्थित हेग कन्वेंशन ऑन इंटरकंट्री एडॉप्शन, 1993 के प्रावधानों के अनुसार अंतर-देशीय दत्तक ग्रहण (Adoptions) की गतिविधियों से निपटने के लिये केंद्रीय प्राधिकरण के रूप में भी नामित किया गया है।
- CARA मुख्य रूप से अपनी संबद्ध/मान्यता प्राप्त दत्तक ग्रहण एजेंसियों के माध्यम से अनाथ, परित्यक्त और आत्मसमर्पण करने वाले बच्चों को गोद लेने का कार्य करता है।
भारत में दत्तक ग्रहण के वर्तमान रुझान तथा आँकड़े क्या हैं?
- CARA के अनुसार, देश में सालाना लगभग 4,000 बच्चे गोद लिये जाते हैं, जबकि वर्ष 2021 तक 3 करोड़ से अधिक अनाथ थे।
- CARA के ऑनलाइन पोर्टल CARINGS के अनुसार, विधिक रूप से गोद लेने के लिये उपलब्ध बच्चों तथा संभावित दत्तक माता-पिता (Prospective Adoptive Parents- PAPs) की संख्या के बीच भी एक बड़ा अंतराल है।
- PAPs ऐसे व्यक्ति अथवा युग्म हैं जो दत्तक माता-पिता बनने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं।
- CARA द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों के राज्य-वार विश्लेषण से पता चला कि अक्तूबर 2023 तक 2,146 बच्चे गोद लेने के लिये उपलब्ध थे।
- इसके विपरीत अक्तूबर 2023 तक लगभग 30,669 PAPs को देश में गोद लेने के लिये पंजीकृत किया गया है।
- पंजीकृत PAPs तथा गोद लेने के लिये उपलब्ध बच्चों की संख्या में भारी बेमेल के कारण PAPs को ‘स्वस्थ तथा छोटा बच्चा’ गोद लेने के लिये तीन से चार वर्ष तक प्रतीक्षा करना पड़ती है।
- CARA के सारणीकरण से पता चलता है कि 69.4% पंजीकृत PAPs शून्य से दो वर्ष की आयु के बच्चों को चुनते हैं; 10.3% दो से चार वर्ष के आयु वर्ग को तथा 14.8% चार से छह वर्ष के आयु वर्ग को चुनते हैं।
- इसके अतिरिक्त देश के 760 ज़िलों में से केवल 390 ज़िलों में विशिष्ट दत्तक ग्रहण अभिकरण मौजूद हैं।
भारत में दत्तक ग्रहण से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- लंबी तथा जटिल दत्तक ग्रहण प्रक्रिया:
- भारत में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (जिसे बाद में 2021 में संशोधित किया गया था) तथा हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) द्वारा शासित गोद लेने की प्रक्रिया में अनेक जटिल चरण शामिल हैं।
- इसके चरणों में पंजीकरण, गृह अध्ययन, बच्चे का रेफरल, मिलान, स्वीकृति, गोद लेने से पहले पालन-पोषण की देखभाल, न्यायालय का आदेश तथा अनुवर्ती कार्रवाई शामिल है।
- गोद लेने की प्रक्रिया की विस्तारित समय-सीमा बच्चों की उपलब्धता, माता-पिता की प्राथमिकताएँ, अधिकारियों की दक्षता तथा विधिक औपचारिकताओं जैसे कारकों से प्रभावित होती है।
- भारत में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (जिसे बाद में 2021 में संशोधित किया गया था) तथा हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) द्वारा शासित गोद लेने की प्रक्रिया में अनेक जटिल चरण शामिल हैं।
- दत्तक को वापस लौटाने की उच्च दर:
- वर्ष 2017-19 के बीच CARA द्वारा रिपोर्ट किये गए चाइल्ड रिटर्न में असामान्य वृद्धि चिंता का विषय है।
- आँकड़ों के अनुसार, लौटाए गए बच्चों में से 60% लड़कियाँ थीं, 24% दिव्यांग थे तथा कई छह वर्ष से अधिक उम्र के थे।
- ऐसी चुनौतियाँ इसलिये उत्पन्न होती हैं क्योंकि दिव्यांग तथा बड़े बच्चों को दत्तक परिवारों में विस्तारित समायोजन अवधि का सामना करना पड़ता है, जो नए पारिवारिक वातावरण में ढलने को लेकर अपर्याप्त तैयारी तथा संस्थानों से परामर्श के कारण और भी जटिल हो जाता है।
- वर्ष 2017-19 के बीच CARA द्वारा रिपोर्ट किये गए चाइल्ड रिटर्न में असामान्य वृद्धि चिंता का विषय है।
- दिव्यांग बच्चों का सीमित दत्तक ग्रहण:
- वर्ष 2018 तथा 2019 के बीच केवल 40 दिव्यांग बच्चों को गोद लिया गया, जो वर्ष में गोद लिये गए बच्चों की कुल संख्या का लगभग 1% था।
- वार्षिक रुझानों से पता चलता है कि दिव्यांग बच्चों को घरेलू तौर पर गोद लेने की संख्या में कमी आई है, जो गोद लेने के परिदृश्य में असमानता को उजागर करता है।
- वर्ष 2018 तथा 2019 के बीच केवल 40 दिव्यांग बच्चों को गोद लिया गया, जो वर्ष में गोद लिये गए बच्चों की कुल संख्या का लगभग 1% था।
- बाल तस्करी के मुद्दे:
- गोद लेने योग्य बच्चों की घटती संख्या के कारण अवैध दत्तक ग्रहण की गतिविधियों में वृद्धि हुई है।
- महामारी के दौरान बाल तस्करी का खतरा, विशेष रूप से गरीब या हाशिये पर रहने वाले परिवारों के प्रभावित होने से नैतिक और कानूनी चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- दत्तक ग्रहण के लिये बाल तस्करी से कानूनी दत्तक ग्रहण की प्रक्रियाओं की अखंडता कमज़ोर होती है और प्रणाली के प्रति विश्वास की कमी के कारण सामाजिक व्यवधान की स्थिति उत्पन्न होती है।
- पारंपरिक पारिवारिक मानदंड और LGBTQ+ परिवार:
- गोद लेने के इच्छुक LGBTQ+ परिवारों के लिये कानूनी मान्यता चुनौतियाँ, दत्तक माता-पिता बनने की उनकी क्षमता में बाधा डालती हैं, जिससे समलैंगिक समुदाय के भीतर अवैध दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में वृद्धि होती है।
- सामाजिक कलंक और जागरूकता की कमी:
- गोद लेने को लेकर सामाजिक कलंक, विशेष रूप से कुछ जनसांख्यिकी के लिये गोद लेने की दर को प्रभावित करता है।
- गोद लेने की प्रक्रिया के बारे में सीमित जागरूकता गलत धारणाओं को बढ़ावा देती है और भावी दत्तक माता-पिता के लिये बाधाएँ उत्पन्न करती है।
- भ्रष्टाचार और मुकदमेबाज़ी:
- दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया में भ्रष्टाचार के मामले इसकी अखंडता से समझौता करते हैं और चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
- कानूनी विवाद और मुकदमे दत्तक ग्रहण की कार्यवाही को और धीमा कर देते हैं, जिससे समग्र प्रक्रिया में जटिलताएँ बढ़ जाती हैं।
बच्चों और समाज के लिये दत्तक ग्रहण के क्या लाभ हैं?
- माता-पिता की देखभाल से वंचित बच्चों को गोद लेने से एक प्रेम भरा और स्थिर पारिवारिक माहौल मिल सकता है।
- दत्तक ग्रहण से बच्चों का समग्र विकास और कल्याण सुनिश्चित हो सकता है, जिसमें उनकी शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक एवं शैक्षणिक ज़रूरतें भी शामिल हैं।
- दत्तक ग्रहण से राज्य और समाज पर बोझ कम करके और बच्चों को उत्पादक और ज़िम्मेदार नागरिक बनने के लिये सशक्त बनाकर देश के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में भी योगदान दिया जा सकता है।
- यह एक सकारात्मक दत्तक ग्रहण की संस्कृति विकसित करता है, सामाजिक कलंक को तोड़ता है और दत्तक ग्रहण के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाता है।
आगे की राह
- CCI में अयोग्य माता-पिता या अभिभावकों वाले बच्चों की सक्रिय रूप से पहचान करना, यह सुनिश्चित करना कि उन्हें स्थायी परिवार में शामिल होने का मौका देने के लिये तुरंत दत्तक ग्रहण श्रेणी में लाया जाए।
- नए दत्तक परिवारों में स्थानांतरित होने के लिये बच्चों, विशेष रूप से बड़ी उम्र के और विकलांग बच्चों को तैयार करने तथा परामर्श देने के लिये संस्थागत प्रयासों को बढ़ाना।
- एक सहज एकीकरण प्रक्रिया सुनिश्चित करते हुए समायोजन चुनौतियों का समाधान करने के लिये व्यापक कार्यक्रम विकसित करना।
- गोद लेने के लाभों, कलंक और गलतफहमियों को दूर करने के बारे में जनता को शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान चलाना।
- गोद लेने के लिये बाल तस्करी को रोकने और अंतर-देशीय दत्तक ग्रहण के नियमों को मज़बूत करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग करना।
- संस्थागतकरण के विकल्प के रूप में पालन-पोषण देखभाल कार्यक्रमों को विकसित करना और बढ़ावा देना, गोद लेने की प्रतीक्षा कर रहे बच्चों के लिये एक अस्थायी और पोषण वातावरण प्रदान करना।
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