Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का क्या तात्पर्य है? - श्रीनारद मीडिया

राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का क्या तात्पर्य है?

राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का क्या तात्पर्य है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

संविधान (128वाँ संशोधन) विधेयक, 2023 लोकसभा और राज्यसभा द्वारा सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के रूप में पेश यह विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित करने का लक्ष्य रखता है।

विधेयक की मुख्य बातें

  • महिलाओं के लिये आरक्षण: यह विधेयक लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में कुल सीटों की लगभग एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान करता है। लोकसभा और राज्य विधानमंडल में SCs और STs के लिये आरक्षित सीटों पर भी यह प्रावधान लागू होगा।
  • आरक्षण का प्रभावी होना: इस विधेयक के लागू होने के बाद आयोजित होने वाली जनगणना के प्रकाशन के उपरांत यह आरक्षण प्रभावी होगा। नवीन जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने के लिये परिसीमन (delimitation) किया जाएगा। यह आरक्षण आरंभ में 15 वर्ष की अवधि के लिये प्रदान किया जाएगा। हालाँकि, संसद द्वारा निर्मित एक विधि के माध्यम से इसे आगे के लिये भी जारी रखा जा सकेगा।
  • सीटों का रोटेशन: संसद द्वारा निर्मित एक विधि द्वारा निर्धारित आधार पर महिलाओं के लिये आरक्षित सीटों का प्रत्येक परिसीमन के बाद रोटेशन किया जाएगा।

भारतीय राजनीति में महिलाओं के लिये आरक्षण की पृष्ठभूमि:

  • राजनीति में महिलाओं के लिये आरक्षण का मुद्दा लंबे समय से विमर्श का अंग रहा है जिसके चिह्न भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में ढूँढ़े जा सकते हैं। वर्ष 1931 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में (तीन महिला निकायों द्वारा नए संविधान में महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त रूप से जारी किये गए आधिकारिक ज्ञापन को प्रस्तुत करते हुए) महिला नेत्री बेगम शाह नवाज़ और सरोजिनी नायडू ने कहा था कि किसी भी प्रकार के अधिमान्य व्यवहार की तलाश करना राजनीतिक स्थिति की पूर्ण समानता की भारतीय महिलाओं की सार्वभौमिक मांग की अखंडता का उल्लंघन करने के समान होगा।
  • महिलाओं के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National Perspective Plan for Women) ने वर्ष 1988 में अनुशंसा की थी कि महिलाओं को पंचायत से लेकर संसद के स्तर तक आरक्षण प्रदान किया जाए।
  • इन अनुशंसाओं ने 73वें और 74वें संविधान संशोधन के ऐतिहासिक अधिनियमन का मार्ग प्रशस्त किया, जहाँ सभी राज्य सरकारों के लिये पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) में महिलाओं के लिये एक तिहाई सीटें आरक्षित करने और पंचायती राज संस्थाओं एवं शहरी स्थानीय निकायों में सभी स्तरों पर अध्यक्ष/प्रमुख के पदों पर एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का अधिदेश दिया गया। महिलाओं के लिये आरक्षित इन सीटों में से एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिये आरक्षित हैं।
  • राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण नीति (National Policy for the Empowerment of Women), 2001 में कहा गया कि उच्च विधायी निकायों में भी आरक्षण पर विचार किया जाएगा।
  • मई 2013 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने महिलाओं की स्थिति पर विचार करने के लिये एक समिति का गठन किया, जिसने स्थानीय निकायों, राज्य विधानसभाओं, संसद, मंत्रिमंडलीय स्तर और सरकार के सभी निर्णयकारी निकायों में महिलाओं के लिये कम से कम 50% सीटों का आरक्षण सुनिश्चित करने की अनुशंसा की।
  • वर्ष 2015 में ‘भारत में महिलाओं की स्थिति पर रिपोर्ट’ (Report on the Status of Women in India) में दर्ज किया गया कि राज्य विधानसभाओं और संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व निराशाजनक बना हुआ है। इसने भी स्थानीय निकायों, राज्य विधानसभाओं, संसद, मंत्रिमंडलीय स्तर और सरकार के सभी निर्णयकारी निकायों में महिलाओं के लिये कम से कम 50% सीटें आरक्षित करने की सिफ़ारिश की।

विधेयक के पक्ष में प्रमुख तर्क:

  • लैंगिक समानता:
    • राजनीति में महिलाओं का उपयुक्त प्रतिनिधित्व लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
    •  ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, भारत राजनीतिक सशक्तीकरण के मामले में 146 देशों की सूची में 48वें स्थान पर था।
    •  इस रैंक के बावजूद उसका स्कोर 0.267 के अत्यंत निम्न स्तर पर था। इस श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग वाले कुछ देशों का स्कोर इससे बहुत बेहतर है। उदाहरण के लिये, आइसलैंड 0.874 के स्कोर के साथ पहले स्थान पर रहा, जबकि बांग्लादेश 0.546 के स्कोर के साथ 9वें स्थान पर था।
  •  ऐतिहासिक रूप से कम प्रतिनिधित्व:
    • लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या पहली लोकसभा में 5% से बढ़कर 17वीं लोकसभा में 15% हो गई; लेकिन यह संख्या अभी भी बहुत कम है
    • पंचायतों में महिलाओं के लिये आरक्षण के प्रभाव के बारे में वर्ष 2003 के एक अध्ययन से पता चला कि आरक्षण नीति के तहत निर्वाचित महिलाओं ने महिलाओं से संबद्ध सार्वजनिक हित या ‘पब्लिक गुड्स’ में अधिक निवेश किया।
    • कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी स्थायी समिति (2009) ने पाया कि स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण ने उन्हें सार्थक योगदान देने में सक्षम बनाया।
  •  महिलाओं का स्व-प्रतिनिधित्व और स्व-निर्णय का अधिकार:
    •  यदि किसी समूह को राजनीतिक व्यवस्था में आनुपातिक रूप से प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं होता है तो नीति-निर्माण को प्रभावित करने की उसकी क्षमता सीमित हो जाती है। महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर कन्वेंशन (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women) निर्दिष्ट करता है कि राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव को समाप्त किया जाना चाहिए।
    • विभिन्न सर्वेक्षणों से पता चलता है कि पंचायती राज की महिला प्रतिनिधियों ने गाँवों में समाज के विकास एवं समग्र कल्याण की दिशा में सराहनीय कार्य किया है और उनमें से कई निश्चित रूप से वृहत स्तर पर कार्य करने की इच्छा रखती हैं,
    • लेकिन प्रचलित राजनीतिक संरचना में उन्हें विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • विविध परिप्रेक्ष्य:
    • एक अधिक विविधतापूर्ण विधानमंडल, जिसमें महिलाएँ उल्लेखनीय संख्या में शामिल हों, निर्णय लेने की प्रक्रिया में व्यापक दृष्टिकोण का प्रवेश करा सकता है। यह विविधता बेहतर नीति निर्माण और शासन की ओर ले जा सकती है।
  • महिलाओं का सशक्तीकरण :
    • राजनीति में महिला आरक्षण विभिन्न स्तरों पर महिलाओं को सशक्त बनाता है। यह न केवल अधिकाधिक महिलाओं को राजनीति में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करता है बल्कि महिलाओं को अन्य क्षेत्रों में भी नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिये प्रेरित करता है।
  • महिला संबंधी मुद्दों को बढ़ावा:
    • राजनीति में सक्रिय महिलाएँ प्रायः उन मुद्दों को प्राथमिकता देती हैं और उनकी वकालत करती हैं जो महिलाओं को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं, जैसे लिंग-आधारित हिंसा, महिलाओं का स्वास्थ्य, शिक्षा एवं आर्थिक सशक्तीकरण उनकी उपस्थिति से नीतिगत विमर्शों में इन मुद्दों को प्राथमिकता प्राप्त हो सकती है।
  • ‘रोल मॉडल’:
    • राजनीति में सक्रिय महिला नेत्रियाँ बालिकाओं के लिये ‘रोल मॉडल’ के रूप में कार्य कर सकती हैं, जिससे उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व की भूमिका की आकांक्षा रखने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है। राजनीति में प्रतिनिधित्व रूढ़िवादिता को तोड़ सकता है और भावी पीढ़ियों को प्रेरित कर सकता है।
    • वर्ष 1966 से 1977 तक भारत की पहली एवं एकमात्र महिला प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत रहीं इंदिरा गांधी और भारत की दूसरी महिला विदेश मंत्री (इंदिरा गांधी के बाद) रहीं सुषमा स्वराज ने देश की बालिकाओं के लिये ऐसे ही ‘रोल मॉडल’ प्रस्तुत किये
  • विधेयक के विपक्ष में प्रमुख तर्क
    • महिलाएँ जाति समूह की तरह किसी सजातीय समुदाय (homogeneous community) नहीं हैं। इसलिये, जाति-आधारित आरक्षण के लिये जो तर्क दिये जाते हैं, वे महिला आरक्षण के पक्ष में नहीं दिये जा सकते।
    • महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने का कुछ लोगों द्वारा इस आधार पर विरोध किया जाता है कि ऐसा करना संविधान में शामिल समता के अधिकार  की गारंटी का उल्लंघन है। उनका दावा है कि यदि आरक्षण लागू हुआ तो महिलाएँ योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर पाएँगी, जिससे समाज में उनका दर्ज़ा कमतर हो सकता है।

इस विधेयक के कार्यान्वयन की राह की प्रमुख चुनौतियाँ:

  • परिसीमन संबंधी मुद्दे:
    • परिसीमन किये जाने के बाद ही महिला आरक्षण लागू हो सकेगा, जबकि परिसीमन की प्रक्रिया अगली जनगणना के प्रासंगिक आँकड़े प्रकाशित होने के बाद ही शुरू हो सकेगी।
    • चूँकि अगली जनगणना की तिथि अभी पूर्णतः अनिश्चित है, इसलिये परिसीमन की कोई भी बात दोगुनी अनिश्चित है।
  • विधेयक से संबद्ध OBCs का मुद्दा:
    • महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% सीटें आरक्षित करता है लेकिन इसमें अन्य पिछड़े वर्ग (OBCs) की महिलाओं के लिये कोई कोटा शामिल नहीं है।
    • गीता मुखर्जी समिति (1996) ने महिला आरक्षण को OBCs तक विस्तारित करने की सिफ़ारिश की थी।

महिला प्रतिनिधित्व को प्रभावी ढंग से कैसे साकार किया जा सकता है?

  • स्वतंत्र निर्णयन को सुदृढ़ करना:
    • एक स्वतंत्र निगरानी प्रणाली या समितियाँ स्थापित की जानी चाहिये जो पारिवारिक सदस्यों द्वारा महिला प्रतिनिधियों की निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करने पर स्पष्ट रूप से रोक लगाएँ।
    • पितृसत्तात्मक मानसिकता के प्रभाव को कम कर इसे प्रवर्तित किया जा सकता है।
  •  जागरूकता और शिक्षा की वृद्धि:
    • महिलाओं में उनके अधिकारों और राजनीति में उनकी भागीदारी के महत्त्व के बारे में जागरूकता पैदा करना आवश्यक है। शैक्षिक कार्यक्रम और जागरूकता अभियान महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
  • लिंग-आधारित हिंसा और उत्पीड़न को संबोधित करना:
    •  लिंग-आधारित हिंसा और उत्पीड़न राजनीति में महिलाओं की भागीदारी की राह की बड़ी बाधाएँ हैं। नीतिगत एवं विधिक उपायों के माध्यम से इन मुद्दों को संबोधित करने से राजनीति में महिलाओं के लिये एक सुरक्षित और अधिक समर्थनकारी माहौल तैयार हो सकता है।
  • चुनावी प्रक्रिया में सुधार:

Leave a Reply

error: Content is protected !!