अनुच्छेद 370 पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का क्या तात्पर्य है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 370 और 35A के निरस्तीकरण पर अपना ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। इस निर्णय के माध्यम से न्यायालय ने भारत की संप्रभुता एवं अखंडता की संपुष्टि की, जिसे प्रत्येक भारतीय अपने मन में संजोकर रखता है। सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का सरकार का निर्णय—जिसने तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य के विशेष दर्जा को समाप्त कर दिया—संवैधानिक एकीकरण को बढ़ावा देने के लिये लिया गया था न कि विघटन के लिये। न्यायालय ने इस तथ्य को भी स्वीकार किया कि अनुच्छेद 370 अपनी प्रकृति में ‘अस्थायी’ (temporary) था। 

अनुच्छेद 370: 

  • भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करता था जो भारत, पाकिस्तान और चीन के मध्य एक विवादित क्षेत्र है।
    • इसका मसौदा भारतीय संविधान सभा के सदस्य एन. गोपालस्वामी आयंगर ने तैयार किया था थे और इसे वर्ष 1949 में ‘अस्थायी उपबंध’ (temporary provision) के रूप में संविधान में जोड़ा गया था।
  • इसने राज्य को अपना संविधान एवं ध्वज रखने के साथ ही रक्षा, विदेशी मामले एवं संचार को छोड़कर अधिकांश मामलों में स्वायत्तता रखने की अनुमति दी।
  • यह विलय पत्र (Instrument of Accession) की शर्तों पर आधारित था, जिस पर वर्ष 1947 में पाकिस्तान के आक्रमण के बाद भारत में शामिल होने के लिये जम्मू-कश्मीर के शासक हरि सिंह ने हस्ताक्षर किये थे।
  • सरकार ने अनुच्छेद 370 को किस प्रकार निरस्त किया? 
  • राष्ट्रपति का आदेश (Presidential Order): वर्ष 2019 के राष्ट्रपति के आदेश में संसद ने एक प्रावधान पेश करते हुए ‘जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा’ को ‘जम्मू और कश्मीर की विधान सभा’ के रूप में नया अर्थ प्रदान किया और फिर अनुच्छेद 370 को रद्द करने के लिये राष्ट्रपति शासन के माध्यम से विधान सभा की शक्तियों को ग्रहण कर लिया।
  • संसद में संकल्प: संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा द्वारा क्रमशः 5 और 6 अगस्त 2019 को समवर्ती संकल्प पारित किये गए। इन संकल्पों ने अनुच्छेद 370 के शेष प्रावधानों को भी रद्द कर दिया और उन्हें नए प्रावधानों से प्रतिस्थापित किया।
  • जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम: जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को संसद द्वारा 5 अगस्त 2019 को पारित किया गया। इस अधिनियम ने जम्मू और कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों- ‘जम्मू और कश्मीर’ तथा ‘लद्दाख’ में विभाजित कर दिया। 

सर्वोच्च न्यायालय ने क्या कहा? 

  • अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान: न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था और जम्मू-कश्मीर राज्य की कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं थी।
    • न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 370 दो प्राथमिक कारणों से एक ‘अस्थायी प्रावधान’ था।
      • इसने एक संक्रमणकालीन उद्देश्य की पूर्ति की, जो थी जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की स्थापना के लिये एक अंतरिम व्यवस्था करना, जिसे राज्य संविधान का मसौदा तैयार करना था।
      • इसका उद्देश्य वर्ष 1947 में राज्य में व्याप्त युद्ध जैसी स्थिति के मद्देनजर जम्मू-कश्मीर के भारत संघ में एकीकरण को आसान बनाना था।
  • राज्यपाल राज्य विधानमंडल की ‘सभी या कोई भी’ (all or any) भूमिका ग्रहण कर सकता है: न्यायालय ने एसआर बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) मामले के ऐतिहासिक निर्णय (जो राष्ट्रपति शासन के तहत राज्यपाल की शक्तियों एवं सीमाओं से संबंधित है) का हवाला देते हुए यह माना राज्यपाल राज्य विधानमंडल की ‘सभी या कोई भी’ (all or any) भूमिका ग्रहण कर सकता है।
    • भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कहा कि राज्यपाल (जम्मू-कश्मीर के मामले में राष्ट्रपति) राज्य विधानमंडल की ‘सभी या कोई भी’ भूमिका निभा सकता है और ऐसी कार्रवाई का न्यायिक परीक्षण केवल असाधारण मामलों में ही किया जाना चाहिये।
  • राज्य सरकार की सहमति आवश्यक नहीं: न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 370 (3) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए एकपक्षीय रूप से अधिसूचित कर सकता है कि अनुच्छेद 370 का अस्तित्व समाप्त हो गया है।
    • इसमें आगे कहा गया कि राष्ट्रपति को इस संबंध में राज्य सरकार की सहमति (concurrence) प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं थी, जैसा कि अनुच्छेद 370(1)(d) के परंतुक द्वारा निर्दिष्ट है।
  • वर्ष 2019 के कानून की संपुष्टि: न्यायालय ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की उस सीमा तक संपुष्टि की जहाँ तक जम्मू-कश्मीर राज्य से केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख को पृथक किया गया।
    • न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रस्तावित पुनर्गठन के संबंध में राज्य विधानमंडल के विचार अनुशंसात्मक प्रकृति के हैं और संसद पर बाध्यकारी नहीं हैं।
  • राष्ट्रपति शासन के दौरान संसद महज विधि निर्मात्री संस्था नहीं: मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि राष्ट्रपति शासन के तहत किसी राज्य में संसद की शक्ति महज विधि निर्माण तक ही सीमित नहीं है। इसका विस्तार कार्यकारी कार्रवाई तक भी होता है।
    • न्यायालय ने यह भी कहा कि जब अनुच्छेद 356 के तहत कोई उद्घोषणा प्रवर्तन में होती है तब ऐसे कई निर्णय होते हैं जो केंद्र सरकार द्वारा दिन-प्रतिदिन के प्रशासन के उद्देश्य से राज्य सरकार की ओर से लिये जाते हैं।
    • राज्य की ओर से केंद्रीय कार्यकारिणी द्वारा लिया गया प्रत्येक निर्णय और कार्रवाई चुनौती के अधीन नहीं है।
      • प्रत्येक निर्णय को खुली चुनौती देने से अराजकता और अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न होगी।
  • चुनाव कराने के साथ राज्य का दर्जा बहाल करना: न्यायालय ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाना चाहिये। उसने आदेश दिया कि जम्मू-कश्मीर की विधान सभा के चुनाव 30 सितंबर 2024 तक संपन्न करा लिये जाएँ।
  • ‘सत्य और सुलह आयोग’ की स्थापना: न्यायमूर्ति कौल ने अपने सहमति राय (concurring opinion) में दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के बाद स्थापित आयोग की तर्ज पर एक ‘सत्य और सुलह आयोग’ (Truth and Reconciliation Commission) की स्थापना का प्रस्ताव किया ताकि 1980 के दशक से जम्मू-कश्मीर में राज्य और गैर-राज्य अभिकर्ता दोनों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन को संबोधित किया जा सके।

अनुच्छेद 370 क्यों हटाया गया? 

  • एकीकरण और विकास: अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर के भारतीय संघ में पूर्ण एकीकरण में बाधा डाली, अलगाववाद की भावना पैदा की और राज्य के विकास को बाधित किया।
    • यह माना जा रहा था कि पूर्ण एकीकरण से जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिये संसाधनों, अवसंरचना और अवसरों तक बेहतर पहुँच की स्थिति बनेगी।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: क्षेत्र में आतंकवाद और अलगाववाद का समर्थन करने के लिये पाकिस्तान द्वारा अनुच्छेद 370 का दुरुपयोग किया जा रहा था। इसे निरस्त करने से भारत सरकार के इस क्षेत्र पर अधिक नियंत्रण होने और आतंकवादी गतिविधियों पर नकेल कसने के रूप में राष्ट्रीय सुरक्षा सुदृढ़ होगी।
  • भेदभाव समाप्त करना: अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर में महिलाओं, दलितों और हाशिये पर स्थित अन्य समूहों के विरुद्ध भेदभाव करता था। इसे निरस्त करने से ये समूह भारतीय कानूनों के दायरे में आ जाएँगे और उन्हें समान अधिकार एवं अवसर प्राप्त होंगे।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर के शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी पैदा की। इसके निरसन से राज्य केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) और सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) के दायरे में आ जाएगा, जिससे बेहतर प्रशासन एवं जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
  • आर्थिक समृद्धि: अनुच्छेद 370 ने जम्मू-कश्मीर में आर्थिक विकास को बाधित किया। इसे निरस्त करने से क्षेत्र में अधिक निवेश, पर्यटन और रोज़गार सृजन की अनुमति मिलेगी।

अनुच्छेद 370 के निरसन का प्रभाव:

  • हिंसा में गिरावट: अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद से जम्मू-कश्मीर में हिंसा की घटनाओं में उल्लेखनीय गिरावट आई है।
    • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, पिछले चार वर्षों में आतंकवादी घटनाओं की संख्या में 50% से अधिक की कमी आई है और सुरक्षा बलों ने 300 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया है।
    • इसका श्रेय कई कारकों के संयोजन को दिया जा सकता है, जिनमें सुरक्षा उपायों की वृद्धि, खुफिया सूचनाओं का बेहतर संग्रहण और उग्रवाद के लिये सार्वजनिक समर्थन में गिरावट शामिल हैं।

  • बेहतर आर्थिक विकास: सरकार ने जम्मू-कश्मीर में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये कई पहलें लागू की हैं, जैसे प्रधानमंत्री विकास पैकेज (PMDP) और औद्योगिक विकास योजना (IDS)। 
    • इन पहलों से क्षेत्र में निवेश, रोज़गार सृजन और आर्थिक विकास में वृद्धि हुई है।
    • केंद्रशासित प्रदेश के रूप में जम्मू-कश्मीर में कर राजस्व में 31% की वृद्धि देखी गई। वर्ष 2022-23 के दौरान जम्मू-कश्मीर की GSDP स्थिर कीमतों पर 8% की दर से बढ़ी, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 7% रही।

  • उन्नत अवसंरचना: सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अवसंरचना क्षेत्र के विकास में भी भारी निवेश किया है। इसमें नई सड़कों, पुलों, सुरंगों और बिजली लाइनों के निर्माण जैसी परियोजनाएँ शामिल हैं।
    • इन सुधारों ने लोगों के लिये क्षेत्र में यात्रा करना और व्यापार करना आसान बना दिया है।
  • पर्यटन में वृद्धि: अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से जम्मू-कश्मीर आने वाले पर्यटकों की संख्या में व्यापक वृद्धि हुई है। बेहतर सुरक्षा, बेहतर विपणन और नई पर्यटन पहलों की शुरूआत सहित विभिन्न कारकों के संयोजन से यह संभव हुआ है।
    • एक रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2022 में 1.62 करोड़ पर्यटक आए, जो भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्षों में सर्वाधिक है।

सर्वोच्च न्यायालय के हाल के निर्णय ने न केवल ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के सिद्धांतों को संपुष्ट किया है, बल्कि इसने सुशासन के लिये एकता एवं सामूहिक समर्पण के महत्त्व को भी सिद्ध किया है। इस निर्णय ने हमारे राष्ट्र के ताने-बाने को सुदृढ़ करने और एक समाज के रूप में हमें परिभाषित करने वाले मूल्यों को प्रबल करने में न्यायालय की प्रतिबद्धता को भी प्रकट किया है।

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