गलवन घाटी में 15-16 जून की रात कैसे भारतीय जवानों ने चीन को चटाई थी धूल.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
लद्दाख की गलवन घाटी का जिक्र आते ही सभी को 15-16 जून की वो रात याद आ जाती है जब भारतीय जवानों ने चीन की पीएलए के जवानों को धूल चटाई थी। वर्षों बाद पहली बार इस इलाके में इस तरह की ये पहली घटना थी। इस दिन चीन के सैनिकों को उनका ही हिंसक होना भारी पड़ गया था। आलम ये था कि खुद को एशिया का सबसे ताकतवर समझने वाला चीन इस घटना के बाद बुरी तरह से तिलमिला कर रह गया था। इसकी वजह थी इसमें उसके जवानों का मारा जाना। वो इस घटना को भले ही खुलकर बताने में हिचकिचाता रहा, लेकिन चीन के ही कुछ लोगों ने उसकी पोल खोल दी थी। हालांकि, ऐसे लोगों को इसकी सजा के तौर पर जेल की सलाखों के पीछे भी डाला गया। इसका ताजा उदाहरण चीन के एक ने अपने एक चर्चित ब्लॉगर क्यू जिमिंग को मिली आठ महीने की सजा है।
क्यू का कसूर था कि उसने इस झड़प में मारे गए चीनी जवानों की जानकारी उजागर की थी और साथ ही जवानों पर कमेंट पास किया था। आपको बता दें कि क्यू के पूरी दुनिया में 25 लाख फॉलोअर्स हैं और वो चीन में एक इंटरनेट सेलिब्रिटी के तौर पर जाने जाते हैं। बहरहाल, चीन के जवानों के मारे जाने की जानकारी केवल क्यू ने ही नहीं दी थी, बल्कि अमेरिकी इंटेलिजेंस ने अपनी जो रिपोर्ट सौंपी थी उसमें बताया गया था कि भारत के साथ हुई झड़प में 40 से अधिक पीएलए के जवान मारे गए थे। रूस की एजेंसी ने भी इसी तरह की रिपोर्ट दी थी।
चीन को इस बात को मानने में करीब आठ महीने का समय लगा। फरवरी 2021 में पीएलए ने पहली बार माना कि गलवन में उसका बटालियन कमांडर समेत चार जवान मारे गए थे, जबकि एक रेजिमेंट कमांडर गंभीर रूप से घायल हुआ था। हालांकि, पूरी दुनिया मानती है कि चीन अपने इस बयान में भी जवानों के मारे जाने की सही संख्या को छिपा गया। चीन ने हाल ही में इस झड़प में मारे गए जवानों को मरणोपरांत पदक भी दिए हैं। इसी दौरान एक समझौते के तहत दोनों देशों ने पीछे हटने पर रजामंदी जाहिर की थी।
15-16 जून की रात गलवन में भारत और चीन के सैनिकों के बीच जो झड़प हुई थी उसमें भारत के भी करीब 20 जवान शहीद हुए थे। इनमें एक कर्नल संतोष बाबू भी थे, जो वहां के कमांडिंग ऑफिसर थे। इस रात को भारतीय सेना की एक पैट्रोलिंग पार्टी सीमा का मुआयना कर रही थी। उसी दौरान उन्हें भारतीय सीमा में चीन के जवान दिखाई दिए। भारतीय जवानों ने उन्हें वहां से वापस चले जाने का आग्रह किया, जो उन्होंने ठुकरा दिया। धीरे-धीरे ये आग्रह चीन की सीनाजोरी के बीच गुस्से में बदल गया।
चीन के जवानों ने भारतीय सैनिकों पर पत्थरों से हमला कर दिया। भारतीय सेना के मुताबिक जिस जगह पर झड़प हुई थी उसी जगह पर दो दिन पहले कर्नल संतोष बाबू ने चीनी सेना का लगा टेंट उखाड़ फेंका था। आपको बता दें कि यहां पर किसी भी तरफ के सैनिकों को हथियारों का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है। भारतीय जवानों ने इस बात का पूरा ध्यान रखा। लेकिन दूसरी तरफ मौजूद चीनी सैनिकों के पास लोहे की रॉड थी जिनमें कंटीली तार लगी थीं।
झड़प बढ़ती देख भारतीय सैनिकों ने तत्काल और जवानों को वहां पर बुलाने का मैसेज फॉरवर्ड किया। छह घंटे तक चीनी सैनिकों के पत्थरों और लोहे की रॉड से भारतीय सैनिक टक्कर लेते रहे। इसी झड़प में कर्नल संतोष बुरी तरह से जख्मी हो गए और वहीं पर उन्होंने प्राण त्याग दिए थे। अपने कमांडिंग ऑफिसर की शहादत से भारतीय जवानों का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने भी इसका मुंहतोड़ जवाब दिया। इसके बाद चीन ने अगले दिन अपने आधिकारिक बयान में गलवन घाटी को अपना क्षेत्र बताते हुए भारतीय जवानों की कार्रवाई को गलत करार दिया था। भारत की सरकार की तरफ से भी इसका मुंहतोड़ जवाब दिया गया।
गलवन की घटना के करीब 10 माह के बाद तक भी चीन और भारत के बीच इस मुद्दे को लेकर तनातनी जारी रही। भारत ने भी किसी भी स्थिति का जवाब देने के लिए पूरी तरह से कमर कस ली थी। सीमा पर अत्याधुनिक फाइटर जेट के अलावा टैंक तक की तैनाती कर दी गई। सीमा पर जवानों की संख्या में भी इजाफा कर दिया गया। अंतरराष्ट्रीय जगत में गलवन में भारतीय जवानों की कार्रवाई को ठीक करार दिया गया। अमेरिका ने साफतौर पर कहा कि भारतीय जवानों को अपनी सीमा की रक्षा करने का पूरा अधिकार है। लिहाजा गलवन में की गई कार्रवाई पूरी तरह से जायज है।
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