शास्त्री के साथ क्या हुआ था,समझौता, सियासत और एक पीएम की मौत ?
आज लाल बहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि है
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
अगर मौत के फरिश्ते का वाकई कोई वजूद होता तो वो उस दिन जरूर ताशकंद में कहीं किसी कोने में छिपकर बैठा था, जबकि वहाँ समूचा घटनाक्रम तो जैसे लाल बहादुर शास्त्री के इर्द-गिर्द ही घूम रहा था।
…एयरपोर्ट में कसीगीन, अयूब खान, स्वर्ण सिंह और चह्वाण शास्त्री के ताबूत को हवाई जहाज के भीतर ले गए। उस दौरान मौज़ूद हज़ारों निगाहें एक अजीब सी मुर्दा खामोशी के साथ यह सब होता हुआ देख रहीं थीं। वहाँ से रवाना होते वक़्त सीएस झा ने जनरल अयूब को गुडबाय कहा। उन्होंने जवाब दिया, “झा साहब यह क्या हो गया? खुदा न करे इसका नतीजा हमारे मुल्कों पर बुरा हो।”
वंशवाद और परिवारवाद को चुनौती देते हुए अपनी मेधा और आत्मबल से द्वितीय प्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा की। वर्ष 1955 में दक्षिण भारत के ‘अरियल’ के समीप रेल दुर्घटना में कई लोग हताहत हुए जिसके लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने रेल मंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
रेल दुर्घटना पर लंबी बहस का जवाब देते हुए उन्होंने कहा-“शायद मेरे लंबाई में छोटे एवं विनम्र होने के कारण लोगों को लगता है कि मैं बहुत दृढ़ नहीं हो पा रहा हूँ यद्यपि शारीरिक रूप से मैं मजबूत नहीं हूँ लेकिन मुझे लगता है कि मैं आतंरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ।”
शास्त्री जी ने समाज के वंचित वर्गों के लिए भी उल्लेखनीय कार्य किया। वे लालालाजपतराय द्वारा स्थापित “सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी” (लोक सेवा मंडल) के आजीवन सदस्य बने। जहाँ उन्होंने पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए कार्य करना शुरू किया और बाद में वे उस सोसायटी के अध्यक्ष भी बने। इसी तरह उन्होंने किसान एवं युवा वर्ग को देश की आर्थिक एवं सैनिक शक्ति के तौर पर देखा।
श्री लाल बहादुर शास्त्री ने “जय जवान जय किसान” का नारा भी दिया, जो आगे चलकर देशभक्ति का प्रतीक बन गया। शास्त्री जी के इस नारे का मुख्य उद्देश्य एक ओर जहाँ देश की सैनिक शक्ति में वृद्धि करने का था वही दूसरी ओर देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का रहा।
भविष्य में आपका मुकाम जो भी हो, आप सबको खुद को सबसे पहले देश का नागरिक मानना चाहिए। इससे आपको संविधान के मुताबिक निश्चित अधिकार मिलेंगे, लेकिन अधिकारों के साथ जो कर्तव्य भी आपके हिस्से आएंगे, उन्हें भी ठीक से समझ लेना चाहिए। हमारे लोकतंत्र में आजादी की शर्त समाज के हित में कुछ कर्तव्यों के साथ जुड़ी हुई है। एक अच्छा नागरिक वह है, जो कानून का पालन करे, तब भी जब भी कोई पुलिसकर्मी मौजूद न हो। पहले जमाने में आत्मसंयम और अनुशासन परिवार व शिक्षकों से मिलता था, लेकिन वर्तमान के आर्थिक तंगी वाले जीवन में अब ये मुमकिन नहीं रहा, चूंकि शैक्षणिक संस्थानों में भी संख्या बढ़ती जा रही है, इसलिए शिक्षक और शिष्य के बीच व्यक्तिगत संपर्क की गुंजाइश कम हो गई है।
आप ये कभी न भूलें कि देश के लिए वफादारी आपकी किसी भी वफादारी से पहले है। हमेशा याद रखिए कि पूरा देश एक है और जो भी बांटने या अलगाव की बातें करे, वो हमारा सच्चा दोस्त नहीं है। एक लोकतांत्रिक देश किसी एक के नहीं, बल्कि सहयोग के आधार पर सभी के प्रयासों से महान बन सकता है। देश का भविष्य आपके हाथों में है। अगर आप नागरिक के तौर पर सही होंगे तो देश का भविष्य सुनहरा होगा। हमारी जिम्मेदारी जो भी हो, काम जो भी हो, हम उसे पूरी ईमानदारी और काबिलियत से करने का नजरिया अपनाएं, यह युवा नागरिकों की महती भूमिका है।
भारत में हमारी अपनी अलग समस्याएं हैं। हमारा लक्ष्य हर भारतीय की बुनियादी जरूरतों को पूरा करना और आजादी से जीवन जीने का अवसर देना है। एक ऐसा लोकतांत्रिक समाज, जहां सबके लिए एक समान स्थान हो, समान सम्मान हो और सेवा व तरक्की के लिए समान अवसर हो, हम भेदभाव और छूआछत मिटा सकें। युद्ध और संघषों से किसी कीमत पर कोई हल नहीं निकलता है, बल्कि समस्या और बढ़ती ही हैं।
न्यक्लियर और थर्मोन्यूक्लियर एनर्जी के क्षेत्र में विज्ञान और प्रौद्योगिक ने महत्वपूर्ण उपलब्धियों हासिल की हैं। अब हमें सोचना है कि हम इनका इस्तेमाल रचनात्मक ढंग से करें या विध्वंस के लिए। आर्थिक असमानता की गहरी खाईं को पाटना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। हम नहीं चाहते कि सारी पूंजी कुछ हाथों में केंद्रित हो जाए।
सदियों की हमारी महान सांस्कृतिक धरोहर किसी एक समुदाय की नहीं है, बल्कि इतिहास में जितने महान लोग यहां रहे हैं, उन सबके साक्षा योगदान का नाम हमारी संस्कृति है। मैंने यहां जितने लक्ष्य बताए हैं, उन्हें हासिल करना मामूली बात नहीं है। मुझे पता है कि इनमे से अभी हम कुछ ही हासिल कर सके हैं, लेकिन जब तक पूरी सफलता न मिले, तब तक दृढ़ संकल्पित रहना है।
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