चीन-अमेरिका संबंधों की बदलती गतिशीलता और भारत के हितों पर क्या प्रभाव पड़ा?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
चीन और अमेरिका ने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) शिखर सम्मेलन के मौके पर एक द्विपक्षीय बैठक की है, जिससे चीन-अमेरिका संबंधों में बदलती गतिशीलता के बारे में भारत की चिंता बढ़ गई है।
- हाल के दशकों में चीन-अमेरिका संबंधों में महत्त्वपूर्ण बदलाव और जटिलताएँ प्रदर्शित हुई हैं, जो वर्तमान में सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा तथा तनाव के मिश्रण को दर्शाती हैं।
बैठक की मुख्य बातें क्या हैं?
- सहभागिता के नए क्षेत्र:
- शिखर सम्मेलन में अमेरिका-चीन सहयोग के उभरते क्षेत्रों पर चर्चा हुई, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को विनियमित करने में, जो वैश्विक AI नियमों और तकनीकी प्रगति पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
- ऊर्जा पर समझौता:
- अमेरिका और चीन ने स्वच्छ ऊर्जा को तेज़ी से बढ़ाने, जीवाश्म ईंधन को विस्थापित करने और ग्रह को गर्म करने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिये एक समझौते की घोषणा की।
- कुल मिलाकर वे विश्व की ग्रीनहाउस गैसों का 38% हिस्सा हैं।
- देश “कोयला, तेल और गैस उत्पादन के प्रतिस्थापन में तेज़ी लाने” के इरादे से “वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने के प्रयासों को आगे बढ़ाने” पर सहमत हुए।
- अमेरिका और चीन ने स्वच्छ ऊर्जा को तेज़ी से बढ़ाने, जीवाश्म ईंधन को विस्थापित करने और ग्रह को गर्म करने वाले उत्सर्जन को कम करने के लिये एक समझौते की घोषणा की।
हाल के वर्षों में चीन-अमेरिका संबंध कैसे रहे हैं?
- हाल के वर्षों में अमेरिका ने अधिक टकरावपूर्ण रुख अपनाया, व्यापार युद्ध शुरू किया, चीनी तकनीकी कंपनियों को निशाना बनाया और चीन के क्षेत्रीय दावों को चुनौती दी। मानवाधिकार संबंधी चिंताओं ने चीन और हॉन्गकॉन्ग के बीच तनाव को बढ़ा दिया है, खासकर शिनजियांग के संदर्भ में।
- जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर सहयोग की मांग करते हुए अमेरिका ने विभिन्न मोर्चों, विशेषकर व्यापार, प्रौद्योगिकी और मानवाधिकारों पर सख्त रुख बनाए रखा है।
अमेरिका-चीन संबंधों में बदलाव पर भारत की चिंताएँ क्या हैं?
- संभावित G-2 गतिशीलता:
- भारत एशिया में एक प्रमुख चीन-अमेरिकी सहयोग (जिसे ‘G-2’ कहा जाता है) के उद्भव को लेकर सतर्क रहता है, जो अन्य वैश्विक शक्तियों को दरकिनार कर सकता है, जिससे भारत के सामरिक हित प्रभावित हो सकते हैं।
- AI विनियमन में अमेरिका-चीन की भागीदारी:
- भारत अमेरिका-चीन सहभागिता के नए क्षेत्रों, विशेषकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) को विनियमित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- इस क्षेत्र में दोनों देशों के बीच संभावित समझ वैश्विक AI विनियमों तथा तकनीकी प्रगति को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती है, जिसका भारत के तकनीकी परिदृश्य पर प्रभाव पड़ सकता है।
- चीन के साथ अमेरिका के व्यापारिक संबंध:
- अमेरिकी कारोबारी नेताओं को पुनः चीन में आकर्षित करने के चीन के प्रयास भारत के लिये चिंता बढ़ाते हैं। यदि यह सफल हुआ तो पश्चिमी पूंजी के लिये भारत के आकर्षण को कमज़ोर कर सकता है, जिससे आर्थिक सहभागिता एवं निवेश प्रभावित हो सकते हैं।
- भारत यह मानकर संतुष्ट नहीं हो सकता कि ‘चीन विकल्प’ अब पश्चिमी व्यवसायों के लिये व्यवहार्य नहीं है।
- पश्चिमी पूंजी के लिये भारत के प्रयास को बनाए रखना आवश्यक है, जिसके लिये पश्चिमी आर्थिक हितों के साथ अधिक उत्पादक रूप से जुड़ने के निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।
- इंडो-पैसिफिक डायनेमिक्स और ताइवान मुद्दा:
- क्षेत्रीय सुरक्षा चर्चाओं, विशेषकर ताइवान जैसे संवेदनशील मुद्दों पर पर्याप्त सफलताओं की कमी चिंता का विषय है।
- भारत हिंद-प्रशांत पर अमेरिका-चीन वार्ता को करीब से देखता है और क्षेत्रीय स्थिरता एवं सुरक्षा गतिशीलता पर इसके निहितार्थ को समझता है।
आगे की राह
- भारत को विशेष रूप से अमेरिका, चीन और रूस के बीच शक्ति संबंधों में बदलाव का लगातार आकलन करना चाहिये।
- भारत का ध्यान अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने, रूस के साथ अपने दीर्घकालिक संबंधों को बनाए रखने और चीन के साथ कठिन संबंधों को प्रबंधित करने के लिये नई संभावनाओं का लाभ उठाने पर होना चाहिये।
- भारत के आगे की राह में एक संतुलित और सक्रिय दृष्टिकोण शामिल है, जिसमें अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए तथा वैश्विक स्थिरता एवं प्रगति में सकारात्मक योगदान देते हुए बदलती विश्व व्यवस्था को नेविगेट करने के लिये वैश्विक साझेदारी, आर्थिक विकास, रणनीतिक पैंतरेबाज़ी व मजबूत कूटनीति का लाभ उठाया जा सकता है।
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