जलवायु परिवर्तन से बच्चों की शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) की वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट की एक नई रिपोर्ट ने प्रारंभिक बाल्यावस्था में अनुभव किये जाने वाले जलवायु संबंधी आघातों के दीर्घकालिक प्रभाव पर प्रकाश डाला है।
जलवायु परिवर्तन बच्चों और उनकी शिक्षा पर किस प्रकार प्रभाव डालता है?
- बच्चों की भेद्यता:
- रिपोर्ट में कहा गया है कि छोटे बच्चे बाढ़, सूखे और हीटवेव जैसे शारीरिक खतरों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं, जो उनकी शारीरिक क्षमताओं, संज्ञानात्मक क्षमताओं, भावनात्मक कल्याण तथा शैक्षिक अवसरों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
- अधिकांश निम्न और मध्यम आय वाले देशों में जलवायु संबंधी घटनाओं के कारण प्रतिवर्ष स्कूल बंद कर दिये जाते हैं, जिससे सीखने की क्षमता में कमी तथा पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने की दर बढ़ जाती है।
- बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमताओं पर प्रभाव:
- इक्वाडोर में गंभीर अल नीनो बाढ़ की घटना के दौरान गर्भ में पल रहे बच्चों की लंबाई कम पाई गई, जिसके बाद संज्ञानात्मक परीक्षणों में भी उनका प्रदर्शन खराब रहा।
- भारत में, प्रारंभिक जीवन में वर्षा के आघातों ने 5 वर्ष की आयु में शब्दावली और 15 वर्ष की आयु में गणित तथा गैर-संज्ञानात्मक कौशल पर नकारात्मक प्रभाव डाला।
- सात एशियाई देशों में 140,000 से अधिक बच्चों को प्रभावित करने वाली आपदाओं के विश्लेषण से पता चला कि 13-14 वर्ष की आयु तक लड़कों के स्कूल नामांकन और लड़कियों के गणित प्रदर्शन के बीच नकारात्मक सहसंबंध था।
- स्कूल बंद होना और बुनियादी ढाँचे को नुकसान:
- जलवायु-संबंधी तनावों के कारण स्कूल बार-बार बंद होते हैं तथा पिछले 20 वर्षों में विषम मौसम की 75% घटनाओं के कारण स्कूल बंद होने की समस्या उत्पन्न हुई है।
- बाढ़ और चक्रवात सहित प्राकृतिक आपदाओं के कारण मृत्यु हुई हैं तथा शैक्षिक बुनियादी ढाँचे को काफी नुकसान पहुँचा है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2013 में जकार्ता में आई बाढ़ के कारण स्कूलों तक पहुँच बाधित हुई; वर्ष 2019 में चक्रवात ईदाई ने मोज़ाम्बिक में 3,400 कक्षाएँ नष्ट कर दीं; वर्ष 2018 में उष्णकटिबंधीय चक्रवात गीता ने टोंगा में 72% स्कूलों को क्षतिग्रस्त कर दिया।
- इथियोपिया, भारत और वियतनाम में बाढ़ के कारण युवाओं की शैक्षिक उपलब्धि में कमी आई।
- हीट और पर्यावरणीय परिवर्तनशीलता का प्रभाव:
- हीट इफेक्ट: जन्मपूर्व और प्रारंभिक बाल्यावस्था के दौरान औसत से अधिक तापमान के संपर्क में आने से बच्चों की विद्यालय के स्तर की पढ़ाई में कमी आती है।
- गर्भावस्था और बाल्यावस्था के प्रारंभिक चरण के दौरान औसत से अधिक तापमान का संबंध स्कूल में कम वर्षों की पढ़ाई से है।
- अध्ययनों से पता चलता है कि हीट के कारण चीन में हाई स्कूल स्नातक और कॉलेज प्रवेश दर में कमी आई है।
- भारत के महाराष्ट्र में अनावृष्टि के कारण गणित के अंकों में 4.1% की कमी आई और अध्ययन-अंकों में 2.7% की कमी आई।
- पाकिस्तान में, बाढ़ग्रस्त ज़िलों में बच्चों के स्कूल जाने की संभावना गैर-बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों की तुलना में 4% कम थी।
रिपोर्ट की सिफारिशें क्या हैं?
- अनुकूलन की आवश्यकता: रिपोर्ट में व्यापक जलवायु अनुकूलन रणनीतियों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है, जिसमें बेहतर स्कूल अवसंरचना, पाठ्यक्रम सुधार और सामुदायिक समन्वय शामिल हैं।
- पाठ्यक्रम एकीकरण: रिपोर्ट में जलवायु विज्ञान के ज्ञान और आघातसहनीयता, अनुकूलन एवं सतत् विकास में कौशल प्रदान करने के लिये स्कूली पाठ्यक्रम में जलवायु परिवर्तन शिक्षा को शामिल करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।
- सक्रिय उपाय: शिक्षा पर जलवायु प्रभावों को कम करने के लिये सक्रिय उपायों की सिफारिश की गई है, जिसमें स्कूल के अवसंरचना को मज़बूत करना, मनोवैज्ञानिक एवं शैक्षणिक सहायता के लिये शिक्षकों को प्रशिक्षित करना, जागरूकता एवं अनुकूलन पहलों के माध्यम से सामुदायिक आघातसहनीयता को बढ़ावा देना शामिल है।
- शिक्षा में निवेश: पर्यावरणीय चुनौतियों के बावजूद शिक्षा की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये जलवायु संबंधी व्यवधानों के प्रति उनकी आघातसहनीयता बढ़ाने हेतु शैक्षिक प्रणालियों में निवेश बढ़ाने का आह्वान किया गया है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के शमन हेतु क्या उपाय किये गए हैं?
- वैश्विक स्तर:
- पेरिस समझौता: राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों और $100 बिलियन वार्षिक जलवायु वित्त सहायता के साथ वैश्विक तापमान को 2°C से नीचे सीमित करने का लक्ष्य रखता है।
- UNFCCC: COP बैठकों और वैश्विक स्टॉकटेक के माध्यम से वैश्विक जलवायु वार्ता और प्रगति आकलन की सुविधा प्रदान करता है।
- सतत् विकास लक्ष्य (SDG): जलवायु कार्रवाई को व्यापक विकास लक्ष्यों (लक्ष्य-13) में शामिल करता है।
- वैश्विक पहल: जलवायु परिवर्तन के शमन हेतु कार्रवाई और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के लिये भागीदारी एवं वित्तपोषण शामिल है।
- भारत में जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये उठाए गए कदम
- LiFE पहल: LiFE का विचार भारत द्वारा वर्ष 2021 में ग्लासगो में 26वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) के दौरान पेश किया गया था, ताकि पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली को बढ़ावा दिया जा सके जो ‘विचारहीन और अनावश्यक उपभोग’ के बजाय ‘वैचारिक और ध्यानपूर्वक उपयोग’ पर केंद्रित हो।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC): इसमें सौर ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और संधारणीय आवासों पर मिशन शामिल हैं।
- नवीकरणीय ऊर्जा: लक्ष्य में वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट सौर ऊर्जा और 60 गीगावाट पवन ऊर्जा शामिल है।
- इलेक्ट्रिक मोबिलिटी: परिवहन उत्सर्जन में कटौती के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना।
- अनुकूलन और लचीलापन: राज्य-विशिष्ट कार्य योजनाएँ और आपदा प्रबंधन संवर्द्धन।
- वनीकरण: ग्रीन इंडिया मिशन और बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण पहल।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: पेरिस समझौते के प्रति प्रतिबद्धता और वैश्विक जलवायु वित्त में भागीदारी।
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