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कनाडा-भारत तनाव का सिख समुदाय पर क्या असर पड़ेगा ? - श्रीनारद मीडिया

कनाडा-भारत तनाव का सिख समुदाय पर क्या असर पड़ेगा ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पिछले कुछ दिनों से भारत और कनाडा के बीच राजनयिक तनाव बढ़ गए हैं। ऐसे में सवाल पैदा होता है कि कनाडा में रहने वाले सिखों पर इसका क्या असर पड़ेगा। दोनों देशों के बीच तनाव इतना बढ़ गया है कि भारत सरकार ने कनाडाई नागरिकों की भारत में एंट्री बंद कर दी है। भारत ने कनाडा में अपनी वीजा सेवा को निलंबित कर दिया है।

भारत-कनाडा के बीच क्यों बढ़ा राजनयिक तनाव?

कनाडा में कुछ महीनों पहले खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या हो गई थी। अब इस मामले को लेकर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि इसमें भारत सरकार के एजेंट का हाथ है। हालांकि, भारत सरकार ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। दोनों देशों के बीच ऐसे माहौल के बीच कनाडा में सबसे बड़ा संकट सिख समुदाय को लेकर मंडरा रहा है।

कनाडा में सिखों की अच्छी आबादी है। कनाडा में 2021 में हुए जनगणना के अनुसार, कनाडा की कुल आबादी में 2.1 प्रतिशत सिख है। माना जाता है कि भारत के बाद सबसे अधिक सिख कनाडा में रहते हैं। यूं तो कनाडा में सिख समुदाय काफी पहले से मौजू है, लेकिन नब्बे के दशक से अधिक संख्या में सिखों ने कनाडा की तरफ रुख किया।

सिखों ने कनाडा का कब किया रुख?

बता दें कि 1990 के आस-पास सिखों ने कनाडा में नौकरी और रोजगार के लिए रुख किया था। कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया और ओंटारियो में रोजगार के अच्छे साधन ने अधिक संख्या में सिखों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया। वहां गए सिखों के रहन-सहन को लेकर नई पीढ़ी भी प्रभावित हुई और प्रवास का सिलसिला अभी तक जारी है।

सिखों ने कनाडा को क्यों चुना?

पंजाब से सिखों के प्रवास के कई कारण हैं। इनमें सबसे मुख्य कारण है रोजगार। नब्बे के दशक में रोजगार के अच्छे विकल्पों का न होना सिखों का पंजाब से कनाडा जाना बड़ी वजह माना जाता है। वहीं, पंजाब में बढ़ती आपराधिक घटना इसके पीछे एक वजह बनीं। बता दें कि कनाडा में जैसे-जैसे सिखों की आबादी बढ़ती गई, वहां पर उनके गुरुद्वारे भी बनते गए।

कनाडा जाने वाले पहले सिख कौन थे?

माना जाता है कि कनाडा जाने वाले पहले सिख केसूर सिंह थे। केसूर सिंह ब्रिटिश भारत की सेना में रिसालदार मेजर थे, जो वर्ष 1897 में कनाडा पहुंचे थे। वह ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया की डायमंड जुबली के अवसर पर कनाडा पहुंचे थे। वह हांगकांग रेजिमेंट में तैनात थे, जो सिख सैनिक के पहले ग्रुप के तौर पर वैंकूवर पहुंचा था।

महारानी विक्टोरिया की डायमंड जुबली के दौरान सिखों को कनाडा में रेलवे, मिलों और खदानों में काम मिले। उन्हें इन कामों के बदले अच्छे पैसे मिल जाते थे, जो अगली पीढ़ी को कनाडा जाने के लिए प्रेरित किया।

शुरुआत में सिखों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

कनाडा में सिखों को आसानी से रोजगार मिले, हालांकि उन्हें स्थानीय लोगों का रोजगार छीनने जैसे आरोपों का सामना करना पड़ा। इसके अलावा उन्हें काम ढूंढने में कोई परेशानी नहीं हुई। कुछ जगहों पर सिखों के साथ उनकी नस्ल और संस्कृति के आधार पर भेदभाव हुए, जैसा कि पश्चिम में हमेशा देखा जाता है।

वर्तमान में कनाडा में सिखों की स्थिति

वर्तमान समय में कनाडा में सिखों का अच्छा वर्चस्व है। कनाडाई राजनीति में भी सिखों की महत्वपूर्ण भूमिका है। कनाडा की कई पार्टियों के नेता सिख समुदाय से हैं। वहां के कई सांसद भी सिख समुदाय से हैं। इसके अलावा 2015 में पहली बार ट्रूडो कैबिनेट में चार सिख मंत्रियों को शामिल किया गया था।

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