मीथेन उत्सर्जन से निपटने के लिये भारत में क्या पहल हुआ है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्

खाद्य और कृषि संगठन ने “पशुधन और चावल प्रणालियों में मीथेन उत्सर्जन” शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। यह रिपोर्ट पशुधन और चावल के खेतों से होने वाले मीथेन उत्सर्जन के कारण जलवायु पर पड़ने वाले प्रभाव पर प्रकाश डालती है।

  • यह रिपोर्ट, जिसे सितंबर 2023 में FAO के पहले “सतत् पशुधन परिवर्तन पर वैश्विक सम्मेलन” के दौरान जारी किया गया था, IPCC की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट में वर्णित पेरिस समझौते के उद्देश्यों को पूरा करने में मीथेन उत्सर्जन को कम करने के महत्त्व पर ज़ोर देती है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  • मीथेन उत्सर्जन के स्रोत:
    • जुगाली करने वाले पशुधन और खाद प्रबंधन का वैश्विक स्तर पर मानवजनित मीथेन उत्सर्जन में लगभग 32% का योगदान है।
    • चावल के खेतों से अतिरिक्त 8% मीथेन उत्सर्जन होता है।
    • कृषि खाद्य प्रणालियों के अतिरिक्त, मीथेन उत्सर्जन उत्पन्न करने वाली अन्य मानवीय गतिविधियों में लैंडफिल, तेल और प्राकृतिक गैस प्रणालियाँ, कोयला खदानें आदि शामिल हैं।
  • जुगाली करने वाले पशु रुमिनेंटिया (आर्टियोडैक्टाइला) उपवर्ग के स्तनधारी जीव हैं।
    • इनमें जिराफ, ओकापिस, हिरण, मवेशी, मृग, भेड़ और बकरी जैसे जानवरों का एक विविध समूह शामिल है।
  • अधिकांश जुगाली करने वाले जानवरों का उदर चार कक्षों (four-chambered) वाला और पैर दो खुरों वाला होता है। हालाँकि ऊँटों और चेवरोटेन्स (chevrotains) का उदर तीन-कक्षीय होता है तथा इन्हें अक्सर स्यूडोरुमिनेंट कहा जाता है।
  • जुगाली करने वाले पशुधन का प्रभाव:
    • मीथेन के दैनिक उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान मवेशियों का हैं, इसके बाद भेड़ और बकरी का स्थान है।
    • जुगाली करने वाले पशुधन माँस एवं दूध प्रदान करने वाले प्रोटीन के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं और वर्ष 2050 तक इन पशु उत्पादों की वैश्विक मांग 60-70% तक बढ़ने की उम्मीद है।
  • फीड दक्षता में सुधार:
    • यह रिपोर्ट फीड दक्षता बढ़ाकर मीथेन उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित है।
      • इसमें पोषक तत्त्व घनत्व और फीड पाचनशक्ति में वृद्धि, रूमेन माइक्रोबियल संरचना में बदलाव, नकारात्मक अपशिष्ट फीड सेवन और अल्प चयापचय के शारीरिक वज़न वाले जानवरों का चयन करना शामिल है।
    • बढ़ी हुई फीड दक्षता फीड की प्रति इकाई पशु उत्पादकता को बढ़ाती है, संभावित रूप से फीड लागत और मांस/दुग्ध संप्राप्ति के आधार पर कृषि लाभप्रदता में वृद्धि करती है।
  • क्षेत्रीय अध्ययन की आवश्यकता:
    • यह रिपोर्ट पशु उत्पादन बढ़ाने तथा मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिये बेहतर पोषण, स्वास्थ्य, प्रजनन और आनुवंशिकी के प्रभावों के मापन के लिये क्षेत्रीय अध्ययन की आवश्यकता पर बल देती है।
      • इस तरह के अध्ययनों से क्षेत्रीय स्तर पर निवल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर शमन रणनीतियों के प्रभाव का आकलन करने में मदद मिलेगी।
  • मीथेन उत्सर्जन को कम करने की रणनीतियाँ:
    • अध्ययन में मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिये चार व्यापक रणनीतियों का उल्लेख किया गया है:
      • पशु प्रजनन एवं प्रबंधन
      • आहार योजना, उचित आहार और फीड प्रबंधन
      • चारा अनुसंधान
      • जुगाली में बदलाव
  • चुनौतियाँ और अनुसंधान अंतराल:
    • चुनौतियों में कार्बन फुटप्रिंट की गणना के लिये क्षेत्रीय जानकारी की कमी और सीमित आर्थिक रूप से किफायती मीथेन शमन समाधान शामिल हैं।
    • व्यावहारिक एवं लागत प्रभावी उपाय विकसित करने के लिये और अधिक शोध की आवश्यकता है।

मीथेन:

  • मीथेन सबसे सरल हाइड्रोकार्बन है, जिसमें एक कार्बन परमाणु (C) और चार हाइड्रोजन परमाणु (H4) होते हैं।
    • यह ज्वलनशील है और विश्व भर में इसका उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है।
  • मीथेन एक प्रबल ग्रीनहाउस गैस (GHG) है, जिसका वायुमंडलीय जीवनकाल लगभग एक दशक का होता है और यह जलवायु को सैकड़ों वर्षों तक प्रभावित करती है।
  • वायुमंडल में अपने अस्तित्त्व के प्रारंभिक 20 वर्षों में, मीथेन का वार्मिंग प्रभाव कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 80 गुना अधिक है।
  • मीथेन के सामान्य स्रोत तेल और प्राकृतिक गैस प्रणालियाँ, कृषि गतिविधियाँ, कोयला खनन एवं अपशिष्ट हैं।

मीथेन उत्सर्जन से निपटने के लिये पहल:

  • भारतीय स्तर पर:
    • ‘हरित धरा’ (HD):
      • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) ने एक एंटी-मिथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट ‘हरित धारा’ (HD) को विकसित किया है, जो मवेशियों के मीथेन उत्सर्जन को 17-20% तक कम कर सकता है और इसके परिणामस्वरूप अधिक दूध उत्पादन भी हो सकता है।
    • सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Sustainable Agriculture-NMSA):
      • इसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाता है और इसमें चावल की खेती में मीथेन नियंत्रण विधिओं जैसी जलवायु प्रत्यास्थ गतिविधियाँ शामिल हैं
        • ये विधियाँ मीथेन उत्सर्जन में पर्याप्त कमी लाने में योगदान करती हैं।
    • जलवायु अनुकूल कृषि में राष्ट्रीय नवाचार (National Innovation in Climate Resilient Agriculture-NICRA):
      • NICRA परियोजना के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने चावल की कृषि से मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिये तकनीक विकसित की है। इन प्रौद्योगिकियों में शामिल हैं:
        • चावल गहनता प्रणाली: यह तकनीक पारंपरिक रोपाई वाले चावल की तुलना में 22-35% कम जल का उपयोग करते हुए चावल की उपज को 36-49% तक बढ़ा सकती है।
        • चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण: यह विधि पारंपरिक धान की कृषि के विपरीत नर्सरी को बढ़ावा देने, जल भराव और रोपाई की आवश्यकता को समाप्त करके मीथेन उत्सर्जन को कम करती है।
        • फसल विविधीकरण कार्यक्रम: धान की कृषि से दालें, तिल, मक्का, कपास और कृषि वानिकी जैसी वैकल्पिक फसलों को अपनाने से मीथेन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
    • भारत स्टेज-VI मानदंड:
      • भारत स्टेज- IV (BS-IV) से भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंडों में बदलाव।
  • वैश्विक स्तर पर:
    • मीथेन चेतावनी और प्रतिक्रिया प्रणाली (MARS):
      • MARS बड़ी संख्या में मौज़ूदा और भविष्य के उपग्रहों से डेटा को एकीकृत करेगा जो विश्व में कहीं भी मीथेन उत्सर्जन की घटनाओं का पता लगाने की क्षमता रखता है तथा इस पर कार्रवाई करने के लिये संबंधित हितधारकों को सूचनाएँ भेजता है।
    • वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा :
      • वर्ष 2021 में ग्लासगो जलवायु सम्मेलन (UNFCCC COP 26) में वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन को वर्ष 2020 के स्तर से 30% तक कम करने के लिये लगभग 100 राष्ट्र एक स्वैच्छिक प्रतिज्ञा में शामिल हुए थे, जिसे ग्लोबल मीथेन प्रतिज्ञा के रूप में जाना जाता है।
        • भारत वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा का हिस्सा नहीं है।
    • वैश्विक मीथेन पहल (Global Methane Initiative- GMI):

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