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भारत में बाल विवाह को रोकने के लिए क्या किया जा रहा है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

‘द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ’ जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन भारत में बाल-विवाह की मौजूदा स्थिति को उजागर करता है, जिससे समाज में गहनता से व्याप्त इस कुप्रथा के खिलाफ लड़ाई में प्रगति तथा विफलता दोनों का पता चलता है।

भारत में स्थिति:
वर्ष 1993 में बाल-विवाह के मामले 49% थे जो वर्ष 2021 में घटकर 22% हो गए। बालकों के बाल-विवाह के मामले वर्ष 2006 में 7% थे जो वर्ष 2021 में घटकर 2% हो गए, यह राष्ट्रीय स्तर पर समग्र गिरावट का संकेत देता है।हालाँकि वर्ष 2016 से 2021 के बीच यह प्रगति धीमी हो गई तथा कुछ राज्यों में बाल-विवाह में चिंताजनक वृद्धि हुई।विशेष रूप से छह राज्यों में बालिका बाल-विवाह में वृद्धि देखी गई, जिनमें मणिपुर, पंजाब, त्रिपुरा तथा पश्चिम बंगाल शामिल हैं।

छत्तीसगढ़, गोवा, मणिपुर तथा पंजाब सहित आठ राज्यों में बालकों के बाल-विवाह में वृद्धि देखी गई।वैश्विक रुझान: विश्व स्तर पर बाल-विवाह के विरुद्ध हुई प्रगति उल्लेखनीय रही है किंतु कोविड-19 महामारी ने इस प्रगति को खतरे में डाल दिया, जिससे एक दशक में लगभग 10 मिलियन से अधिक बालिकाओं के बाल-विवाह का खतरा बढ़ गया है।

बाल-विवाह से संबंधित प्रमुख कारक क्या हैं?
आर्थिक कारक: गरीबी में जीवनयापन करने वाले परिवार विवाह को लड़की की ज़िम्मेदारी को उसके पति के परिवार को हस्तांतरित करके अपने आर्थिक बोझ को कम करने के साधन के रूप में देख सकते हैं।कुछ क्षेत्रों में दहेज देने की परंपरा परिवारों को बेटी के उचित आयु पूर्ण होने पर उच्च दहेज लागत से बचने के लिये कम उम्र में बेटियों का विवाह करने के लिये प्रभावित कर सकती है।

इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाओं अथवा कृषि संकट से ग्रस्त क्षेत्रों में आर्थिक कठिनाइयों का सामना करने वाले परिवार इस समस्या का सामना करने अथवा स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये शीघ्र विवाह का विकल्प चुन सकते हैं।सामाजिक मानदंड और पारंपरिक प्रथाएँ: लंबे समय से चली आ रहे रीति-रिवाज़ और परंपराएँ अक्सर एक सामाजिक आदर्श के रूप में कम उम्र में विवाह को प्राथमिकता देती हैं, जो पीढ़ियों तक इस प्रथा को कायम रखता है।समुदाय या परिवार की ओर से प्रचलित रीति-रिवाज़ों और परंपराओं के अनुरूप दबाव डालने के कारण विशेषकर लड़कियों का विवाह जल्दी हो जाता है।

लैंगिक असमानता एवं भेदभाव: लड़कों की तुलना में लड़कियों की बड़े होने की क्षमता कम उम्र में विवाह में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।जो परिवार कम उम्र में शादी को अपनी बेटियों के भविष्य को सुरक्षित करने के साधन के रूप में देखते हैं, वे अक्सर अपनी बेटियों के लिये शिक्षा और कॅरियर में उन्नति के पारंपरिक तरीकों की बजाय इसे चुनते हैं।

यूनिसेफ बाल विवाह को लड़कियों और लड़कों दोनों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव के कारण मानवाधिकार उल्लंघन के रूप में वर्गीकृत करता है।सतत् विकास लक्ष्य 5.3 में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक लैंगिक समानता और महिलाओं एवं लड़कियों के सशक्तीकरण के लक्ष्य के साथ सतत् विकास लक्ष्य 5 को प्राप्त करने में बाल विवाह उन्मूलन महत्त्वपूर्ण है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वर्ष 2022 में दुनिया भर में 5 में से 1 लड़की (19%) की शादी बचपन में ही कर दी गई।
भारत में बाल विवाह से संबंधित विधायी ढाँचा और पहल क्या हैं? वैधानिक ढाँचा: भारत ने 2006 में बाल विवाह निषेध अधिनियम लागू किया, जिसमें पुरुषों के लिये विवाह की कानूनी उम्र 21 वर्ष और महिलाओं के लिये 18 वर्ष निर्धारित की गई।
बाल विवाह निषेध अधिनियम की धारा 16 राज्य सरकारों को विशिष्ट क्षेत्रों के लिये ‘बाल विवाह निषेध अधिकारी (CMPO’ नियुक्त करने की अनुमति देती है।

CMPO बाल विवाह को रोकने, अभियोजन के लिये साक्ष्य एकत्र करने, ऐसे विवाहों को बढ़ावा देने या सहायता के खिलाफ परामर्श देने, उनके हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और समुदायों को संवेदनशील बनाने के लिये ज़िम्मेदार है। सरकार ने महिलाओं की शादी की उम्र को पुरुषों के बराबर करने के लिये इसे 21 साल करने के लिये ‘बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक, 2021’ नाम से एक विधेयक पेश किया है।

धनलक्ष्मी योजना: यह बीमा कवरेज वाली बालिका के लिये एक सशर्त नकद हस्तांतरण योजना है।इसका उद्देश्य माता-पिता को चिकित्सा खर्चों के लिये बीमा कवरेज की पेशकश और लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित कर बाल विवाह प्रथा को खत्म करना है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP) जैसी योजनाओं का उद्देश्य लड़कियों को शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा के माध्यम से सशक्त बनाना एवं बाल विवाह को हतोत्साहित करना है।

ओडिशा सरकार ने बाल विवाह से निपटने के लिये एक व्यापक रणनीति तैयार की है। इसमें लड़कियों की स्कूल में उपस्थिति और गाँव में उपस्थिति पर नज़र रखी जाती है तथा 10-19 वर्ष की लड़कियों के लिये “अद्विका” मंच का प्रयोग किया जाता है।

कमज़ोर जनजातीय समूहों को प्रोत्साहन के साथ गाँवों को बाल विवाह मुक्त घोषित करने के लिये दिशा-निर्देश मौजूद हैं।
ज़िले विभिन्न दृष्टिकोण लागू करते हैं, जैसे- लड़कियों का डेटाबेस बनाए रखना और विवाह में आधार संख्या अनिवार्य करना।

आर्थिक सशक्तीकरण पहल: जोखिमपूर्ण स्थिति वाली लड़कियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण और उद्यमिता के अवसर प्रदान करना, शीघ्र विवाह के लिये व्यवहार्य विकल्प प्रदान करना चाहिये।परिवारों के लिये सूक्ष्म ऋण तक पहुँच को सुविधाजनक बनाने, आय सृजन को प्रोत्साहित करने और कम उम्र में विवाह के लिये वित्तीय दबाव को कम करने की आवश्यकता है।

कला और मीडिया के माध्यम से सामुदायिक जुड़ाव: बाल विवाह के परिणामों को लेकर जागरूक करने और शिक्षित करने के लिये कला-आधारित कार्यशालाएँ, थिएटर प्रदर्शन या सामुदायिक कथा सत्र आयोजित करने की आवश्यकता है।
संगीत, नुक्कड़ नाटक या लघु फिल्मों के माध्यम से प्रभावी ढंग से अभियानों के संचालन के लिये स्थानीय कलाकारों और प्रभावशाली लोगों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।

सहकर्मी शिक्षा और परामर्श कार्यक्रम: युवा नेताओं को बाल विवाह के विरुद्ध वकालत करने के लिये प्रशिक्षित करने, उन्हें अपने समुदायों के भीतर साथियों को शिक्षित करने और सलाह देने हेतु सशक्त करने की आवश्यकता है।स्कूलों में व्यापक शिक्षा मॉड्यूल पेश करने, छात्रों के बीच चर्चा और जागरूकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

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