क्या है सेंट्रल विस्टा प्लान?विपक्ष के निशाने पर क्यों है प्रोजेक्ट.

क्या है सेंट्रल विस्टा प्लान? विपक्ष के निशाने पर क्यों है प्रोजेक्ट.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सेंट्रल दिल्ली का राजपथ जिसे सेंट्रल विस्टा के नाम से भी जाना जाता है। देश का पॉवर कोरिडोर एक मेकओवर के लिए तैयार है। जुलाई 2022 तक तैयार हो जाएगा नया संसद भवन। मार्च 2024 तक एक नया सेंट्रल सेक्रेटेरिएट और इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक एक नया राजपथ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वकांक्षी सेंट्रल विस्टा रीडेवलपमेंट प्लान में इन सब के अलावा भी बहुत कुछ है।

लेकिन सेट्रल विस्टा यानी मोदी सरकार और विपक्ष के बीच टकराव का नया मुद्दा। मोदी सरकार और विपक्ष के बीच इसी सेंट्रल विस्टा को लेकर तलवारें खिची हैं। कांग्रेस के कथित टूलकिट में जिस सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को मोदी का घर कहा गया है। कोरोना काल में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को जारी रखने के फैसले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने मुहर लगा दी है। हाई कोर्ट ने इसके खिलाफ जारी याचिका को दुर्भावना से प्रेरित बताकर खारिज कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ये राष्ट्रीय महत्व का महत्वपूर्ण सार्वजनिक प्रोजेक्ट है।

लोगों की रुचि इसमें है। इसकी वैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट मुहर लगा चुका है। प्रोजेक्ट को नवंबर 2021 तक पूरा करना है। निर्माण के काम में लगे मजदूर कोविड नियमों का पालन कर रहे हैं। इसे रोकने का कोई कारण नहीं है। लेकिन कोर्ट के फैसले के बावजूद सेंट्रल विस्टा पर कांग्रेस ने रुख नहीं बदला है। कांग्रेस इसे कोरोना काल में पैसों की बर्बादी कह रही है। कांग्रेस की दलील है कि प्रोजेक्ट में लगने वाले पैसों से कोरोना काल में वैक्सीन लगवाई जा सकती है। तो उधर दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी हमलावर है। बीजेपी के अनुसार सेंट्रल विस्टा के खिलाफ भ्रम फैलाया जा रहा था।

विपक्ष

  •  सवाल उठाया जा रहा है कि क्या कोरोना काल में इतना खर्च ठीक है।
  •  विपक्ष कह रहा है कि इस प्रोजेक्ट को रद्द कर देना चाहिए।
  • सेंट्रल विस्टा में लगने वाले 20 हजार करोड़ को जान बचाने में लगाना  चाहिए।

पक्ष

  • सरकार विपक्ष की मांग को राजनीति से प्रेरित बता रही है।
  • ये कई सालों में होने वाला खर्च है

क्या है सेंट्रल विस्टा रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट 

इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन तक राजपथ के दोनों तरफ के इलाके को सेंट्रल विस्टा कहते हैं। इस पूरे इलाके की लंबाई तीन किलोमीटर के करीब है। राष्ट्रपति भवन, नार्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक, संसद भवन, रेल भवन, कृषि भवन, निर्माण भवन, रक्षा भवन के अलावा नेशनल म्युजियम, नेशनल आरकाइव, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स, उद्योग भवन, बिकानेर हाउस, हैदराबाद हाउस और जवाहर भवन सेंट्रल विस्टा का हिस्सा हैं।

इनमें से ज्यादातर इमारतें 1931 से पहले की बनी हैं। सेंट्रल विस्टा रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट केंद्र सरकार के इस पूरे इलाके को रिनोवेट करने की योजना का नाम है। दिल्ली के मास्टर प्लान 1962 में इस जगह के लिए कहा गया था- ”  ये समृद्ध संस्कृति कि आंकाक्षाएं पूरी करने के लिहाज से अहम जगह है। इस जगह ऐसे ही कुछ भी तोड़ा या बनाया नहीं जा सकता है। अगर कुछ बनाना है तो उस पर स्टडी होगी। ये देखा जाएगा कि अगले कम से कम 25 सालों तक इस जगह की जरूरतें कैसी रहेंगी, कितना ट्रैफिक रहेगा, सीवेज का क्या सिस्टम होगा, फ्लोर एरिया कितना होगा।”

 2019 में मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स प्रस्ताव लेकर आया। इसमें कहा गया कि जगह की कमी पड़ रही है। कई ऑफिस लगभग 100 साल पुराने हैं। कर्मचारी बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में इस पूरे इलाके के रिडेवलपमेंट की जरूरत है। इस पूरे प्रोजेक्ट पर लगभग 20 हजार करोड़ रुपये खर्च होने की बात हो रही है। औपचारिकता पूरी होने के बाद सितंबर 2020 में ठेका निकाल कर रिडेवलपमेंट का काम टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को दे दिया।

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट रीडेवलपमेंट के तहत क्या-क्या बन रहा?

  • नया संसद भवन
  • सांसदों के लिए ऑफिस
  • केंद्रीय सचिवालय
  • सचिवालय अनुलग्नक
  • सेंट्रल कॉन्फ्रेंस सेंटर
  • स्पोर्ट्स फैसेलिटी
  • प्रधानमंत्री कार्यालय
  • प्रधानमंत्री हाउस के अलावा कई म्युजियम बनेंगे

नए संसद भवन का भूमि पूजन 10 दिसंबर 2020 को हो चुका है। पीएम मोदी ने संसद भवन की नई बिल्डिंग की आधारशिला रखी। नई इमारत 64 हजार 500 स्क्वायर मीटर में फैली होगी। इसमें कुल 971 करोड़ का खर्च आएगा।

सरकार क्यों बना रही है नया भवन?

केंद्र सरकार का कहना है कि इस इलाके में जो पुरानी इमारतें मौजूद हैं उनकी डिजाइन वर्षों पुरानी है। बदलती जरूरतों के साथ इमारतों में अब पर्याप्त स्थान और सुविधाएं नहीं हैं। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के विरोध के बीच केंद्रीय शरही विकास मंत्री हरदीप पुरी कई बार सफाई दे चुके हैं कि मौजूदा बिल्डिंग 93 साल पुरानी है जिसका निर्माण भारत की निर्वाचित सरकार ने नहीं किया था, इसका निर्माण उपनिवेश काल में हुआ था। नई बिल्डिंग बनेगी वो भारत की आकांक्षाओं को दर्शाएगी।

सुप्रीम कोर्ट से मिल चुकी है मंजूरी 

दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 10 दिसंबर को ‘सेंट्रल विस्टा परियोजना’ के आधारशिला कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति दे दी। इससे पहले, सरकार ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि इस परियोजना को चुनौती देने वाली याचिकाओ का निबटारा होने तक निर्माण कार्य या इमारतों को गिराने जैसा कोई काम नहीं किया जाये। लेकिन इसके एक महीने बाद 5 जनवरी 2021 को संसद भवन के निर्माण को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी है।

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि नए भवन के निर्माण के लिए सरकार ने सभी तरह के क्लियरेंस लिए हैं। तीन जजों की पीठ ने प्रोजेक्ट के पक्ष में फैसला दिया। हालांकि जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, “प्रस्ताव में सरकार ने लोगों की भागीदारी के बारे में नहीं बताया है और हैरिटेज कंजरवेशन कमेटी की भी कोई पूर्व स्वीकृति नहीं ली गई है।”

विपक्ष के निशाने पर क्यों है प्रोजेक्ट

प्रोजेक्ट की घोषणा के बाद से ही तमाम विपक्षी दल इसके विरोध में हैं। राहुल गांधी समेत तमाम बड़े नेता आए दिन सरकार को घेरते रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान भी निर्माण कार्य चलते रहने से आलोचनाएं और तीखी हो गई हैं। सरकार ने इस प्रोजेक्ट को आवश्यक सेवाओं की सूची में शामिल कर दिया है ताकि लॉकडाउन के दौरान भी काम नहीं रुके, इसके बाद विरोध और बढ़ गया है। नेताओं का कहना है कि देश की वर्तमान हालात को देखते हुए ये गैर जरूरी खर्च है। इसके बजाय स्वास्थ्य सुविधाओं पर ये खर्च किया जा सकता है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सेंट्रल विस्टा को आपराधिक बर्बादी करार दिया है। उन्होंने एक ट्वीट में लिखा कि लोगों की जिंदगी को केंद्र में रखिए, न कि नया घर पाने के लिए अपनी जिद।

दिल्ली हाईकोर्ट ने बताया आवश्यक परियोजन

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सेंट्रल विस्टा परियोजना के निर्माण कार्य को जारी रखने की अनुमति देते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय महत्व की एक ‘‘अहम एवं आवश्यक’’ परियोजना है। इसके साथ ही अदालत ने इस परियोजना के खिलाफ याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह किसी मकसद से ‘‘प्रेरित’’ और ‘‘दुर्भावनापूर्ण’’थी। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के दौरान परियोजना रोके जाने का अनुरोध करने वाली याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया।

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